- मूल नाम- योगेन्द्र सिंह यादव
- पिता – करण सिंह यादव
- जन्म – 10 मई 1980
- उम्र – 19 साल ( युद्ध के दौरान)
- उपाधि – ग्रेनेडियर (युद्ध के दौरान ) बाद में सूबेदार मेजर
योगेन्द्र सिंह यादव का जीवन परिचय–
योगेन्द्र सिंह यादव का जन्म उत्तर प्रदेश केबुलंदशहर जिले के औरंगाबाद अहिर गांव में 10 मई 1980 को हुआ था। उनके पिता करण सिंह यादव ने भारत-पाकिस्तान के 1965 और 1971 के युद्धों में भाग लेकर कुमाऊं रेजिमेंट में सेवा की थी। पिता के सेना में होने के कारण बचपन से ही योगेन्द्र सेना में भर्ती होने का सपना देखने लगे थे।योगेन्द्र अक्सर अपने पिता के साथ बैठकर सेना की वीर गाथाये सुना करते थे। इसी के चलते महज 16 साल 5 महीने की उम्र में ही भारतीय सेना में शामिल हो गए थे।1996 में उनकी सेना में भर्ती होने का पैगाम आया। योगेन्द्र घर वालो का आशार्वाद लेते हुए अपनी ट्रेनिग के लिए चले गये। योगेन्द्र सिंह यादव सबसे कम मात्र 19 वर्ष कि आयु में ‘परमवीर चक्र’ प्राप्त करने वाले व्यक्ति है।
योगेन्द्र सिंह यादव की पहली पोस्टिंग –
ट्रेनिंग खत्म होने के बाद योगेन्द्र सिंह यादव को 18 ग्रिनेडियर में भेज दिया गया । उनकी पहली पोस्टिंग कश्मीर में थी ।
योगेन्द्र की शादी के महज पंद्रह दिन बाद ही कारगिल-
ट्रेनिंग ख़त्म होने के कुछ साल बाद ही योगेन्द्र की शादी हो गई। अभी शादी को केवल 15 दिन ही हुए थे ,तभी सेना मुख्यालय से आदेश आया जिसमे लिखा था युद्ध के आसार साफ़ साफ़ नजर आ रहे है तो सभी सैनको की छुट्टी केंसिल कर दी गयी है और जल्द से जल्द अपनी यूनिट को वापिस ज्वाइन करे। उस युवा जवान के मन में एक पल के लिए भी परिवार का ख्याल नहीं आया, क्योंकि इतनी जल्दी देश के लिए लड़ने का और कुछ करने का मौका मिल रहा था।
योगेन्द्र सिंह यादव का सपना –
योगेन्द्र सिंह यादव ने एक दिन एक स्वपन देखा की कोई भारतीय ध्वज को लेके भाग रहा है और वो लोग हमारे सैनको को मार रहे है। योगेन्द्र ने बात घर वालो को बताई तो सबने ये कहा की आप कश्मीर में रहते हो वहा गोलिया चलाते रहते हो वो ही सब की वजह से ये सपना भी देखा । लेकिन जब योगेन्द्र जम्मू पहुचे तो उनका वो सपना बिलकुल सच हो रहा था । योगेन्द्र वापिस जम्मू पहुचे और उन्हें पता चला की उनकी बटालियन 18 ग्रिनेडियर तोलोलिंग पहाड़ी पर लड़ाई लड़ रही है जो की द्रास सेक्टर की सबसे ऊंची पहाड़ी है।
कारगिल युद्ध में योंगेन्द्र सिंह यादव की अहम् भूमिका –
जम्मू से जाने के दो दिन बाद अपनी यूनिट के पास पहुचे।उस समय यूनिट द्रास सेक्टर के तोलोलिंग पर लड़ाई लड़ रही थी। बटालियन के मोमेंट उसी दिन शुरू हो गया था। उनके एक जवान को सर में गोली लगी थी। उनकी बॉडी निचे की तरफ आ रही थी। इस युवा जवान का खून खोल उठा और इसका बदला लेने की ठान ली। उस टाइम योंगेन्द्र तथा उनके 14 साथी छुट्टी से वापिस आये थे। उनको उप्पर लड़ाई कर रहे जवानों के लिए खाना- पानी तथा हतियार ले जाने का जिम्मा सोपा गया । ये जवान सुबह 5:30 बजे चलते थे और रात को 2:30 उप्पर पहुचते थे। ये सभी जवान 22 दिन तक लगातार चले। इसमें 3 जवान ऐसे थे जो लगातार 22 के 22 दिन चलते रहे। उन 22 दिनों के अंदर ही इन 3 जवानों की पहचान बनी की ये तीनो जवान शारीरिक व् मानसिक तौर पर बहुत मजबूत है। इन तीनो जवानों को एक विशेष टुकड़ी में भेजा गया।
स्पेशल यूनिट का हिस्सा बने योगेन्द्र –
तोलोलिंग पहाड़ी पर 22 दिन बाद 12 जून 1999 को बटालियन ने 2 ऑफिसर ,2 जूनियर कमीशन ऑफिसर और 21 जवानों को खों कर पहली सफलता तोलोलिंग पहाड़ी पर हासिल की थी। उसके बाद द्रास सेक्टर की सबसे ऊची चोटी टाइगर हिल का टास्क योगेन्द्र की यूनिट को मिला। उसके बाद एक प्लाटून बनाई गयी। जिसमे कुछ पुराने जवान और युवा जवानों को लिया गया। प्लाटून का नाम घातक प्लाटून रखा गया। घातक प्लाटून को जो पहाड़ी से चढ़ना था, उसमे बिलकुल खड़ी चढाई थी । उस पहाड़ी में 90 डीग्री का स्लोप बन रहा था, तो पाकिस्तानी उस तरफ से बेफिक्र होने बैठे थे की उस पहाड़ी से कोई हमला नहीं होगा। लेफ्टनेंट बलवान सिंह को इस प्लाटून की कमान सौपी गयी।
उस पहाड़ी की उचाई 16,500 फिट थी।रात को ऑपरेशन शुरू कर दिया गया । सुबह होते ही सब पत्तरों के पीछे बैठ गये फिर रात में फिर से चलना शुरू किया। घातक प्लाटून के साथ डेल्टा कंपनी भी उसके सपोर्ट में चल रही थी। दो राते और एक पूरा दिन चलने के बाद शाम को जब ये जवान थोडा आराम करने को रुके तो डेल्टा कंपनी के कुछ जवान जगह को सर्च करने चले गयी। तभी पाकिस्तानियों ने उनपे हमला कर दिया था। उसके बाद सी .ओ. को बताया गया की पाकिस्तानियों ने डेल्टा कंपनी पर हमला कर दिया है। तो डेल्टा कंपनी को मेसेग दिया गया की जिस भी स्थान में हो पत्तरों के पीछे छुपे रहो, जब अँधेरा होगा आपको निकल दिया जायेगा। रात को 11:30 के आस-पास उस टीम को निकल दिया गया। उसमे एक जवान को हाथ में गोली लगी थी।
आमने-सामने की लड़ाई-
अब पाकिस्तानियों पर हमला करने को बोला गया। जिसमे योगेन्द्र सिंह यादव को एक टुकड़ी का गाइड बनाया गया। योगेन्द्र सिंह की टुकड़ी में उन्ही के नाम राशी के एक जवान थे। पूरा दिन चलने के बाद जब एक पहाड़ी आई जो बिलकुल खड़ी थी उसमे चलना मुस्किल था तो योगेन्द्र यादव ने कहा इसमें चढ़ना मुस्किल है बहुत तो उन्ही के नाम राशी योगेन्द्र यादव ने कहा आप मेरे कंधे में चढिये और उप्पर कही रस्सी बाध दीजिये।
रस्सी बाधने के बाद जवानों ने एक एक कर उप्पर चढ़ना शुरू कर दिया था। जैसे ही ये उप्पर पहुचे चोटी के दोनों तरफ बंकर थे जो अँधेरे की वजह से इन जवानों को दिखे नहीं। दोनों बंकरो से गोलिया चलने लगी। केवल 7 जवान ही उन बंकरो को पार कर पाए थे , बाकि किसी को कोई मौका नहीं मिला उन बंकरो को पार करने का। थोडा आगे जाने के बाद फिर सामने से 2 बंकरो ने इन 7 जवानों पर हमला कर दिया। इस हमले में पकिस्तान के सभी सैनिक मारे गये। अब टाइगर हिल का टॉप सिर्फ 50 से 60 मीटर दूर था। अब पाकिस्तान ने अपनी पूरी ताकत के साथ हमला कर दिया था। अब भारतीय सैना ना आगे बढ़ सकते थे और ना ही पीछे। तो उन सभी युवा जवानों ने कहा मरना ही तो है तो मरने से पहले जितने ज्यदा पाकिस्तानी को मार सकते है हम मरेंगे।
पाकिस्तानियों को मार उन्ही के बंकरो से लड़ना शुरू कर दिया। लगातार 5 घंटे तक लड़ते-लड़ते अब भारतीय सेना का गोला बारूद धीरे धीरे खत्म होने लगा था। जब बहुत कम मात्रा में गोला बारूद बचा हुआ था तो योगेन्द्र यादव ने एक योजना बनाई की अब फ़ायर बंद कर देते है । जिससे की पाकिस्तानियों को लगे की भारतीय सैनिक मर चुके है या इनकी गोलिया खत्म हो गयी है। जब पाकिस्तानी पत्तरों से बहार आये तो उन पर हमला कर देंगे ।अचानक से योगेन्द्र व् उनकी टीम ने फायर बंद कर दिया था। अब 15-20 मिनट के बाद जब पाकिस्तान के कुछ जवान बहार आये ये देखने के लिए की कितने लोग जिंदा है तो भारतीय सैनिको ने एक साथ फायर खोल दिया और बस एक या दो ही सैनिक बचे हुंगे पकिस्तान के बाकि सब को मार दिया गया था। फिर भारतीय सैनिको ने उन्ही के हतियार से आगे की लड़ाई लड़ी।
बचे हुए पाकिस्तानी सैनिक वापिस भाग के गये और अपने कंपनी कमांडर को बताया की हमारे सरे सैनिक मारे जा चुके है।उसके बाद 30-35 पाकिस्तानी जवानों ने फिर से भारतीय सेना में हमला कर दिया।अब पाकिस्तानियों ने अपनी पूरी ताक़त के साथ इन सभी जवानों पर हमला शुरू कर दिया। काफी देर फायरिंग करने के बाद पाकिस्तानियों ने पत्थर फेकना शुरू कर दिया था। धीरे-धीरे अल्लाह हो अकबर के नारे लगाते हुए भारतीय सैनिको के पास आने लगे। योगेन्द्र यादव और उनकी टीम अभी भी शांत पत्थरों के पीछे छुप के बैठी थी। योगेन्द्र व् उनकी टीम के पास एक लाइट मशीन गन थी जो पाकिस्तानियों को नजर आ गयी थी, उन्होंने उसी के उप्पर ग्रनेड फेका और एल एम् जी को नुक्सान पंहुचा दिया।तभी प्लाटून हवालदार ने योगेन्द्र से कहा – योगेन्द्र इस एल एम् जी को उठा के फेक , दुनिया में कोई आज बचाने वाला नहीं है इस वेपन के अलवा। क्योंकि एल एम् जी की फायर पॉवर बहुत थी। जैसे ही योगेन्द्र ने एल एम् जी की उठाया और अपने साथी की तरफ फेका तो उन्होंने उप्पर को देखा तो जिस पत्थर के पीछे छुप के वो फायर कर रहे थे उसी के उप्पेर 7 पाकिस्तान के जवान खड़े थे। योगेन्द्र बोले सर ये तो नजदीक आ गये है, उतने में एक ग्रनेड उप्पर से आ गिरा। जो दुसरे योगेन्द्र यादव को लगा और उनकी ऊँगली अलग हो गयी।
पाकिस्तानियों ने पूरी टुकड़ी को घेर कर गोलियों की बौछार शुरु कर दी। योगेन्द्र के सभी साथी शहीद हो चुके थे। योगेन्द्र को भी कई गोलियां लगी हुई थी। योगेन्द्र को ये लगा की अब वो नहीं रहे पर गश्त कर रहे पाकिस्तानी का पैर जब योगेन्द्र से टकराया तो उन्हें आभास हुआ की वो जिंदा है।पाकिस्तानी भारतीय सैनिको पर गोलिया चला रहे थे की कही कोई जिंदा तो नहीं।
तीन गोलिया लगने के बाद भी योगेन्द्र का जज्बा कम नहीं हुआ –
इसके बाद भी पाकिस्तानी सैनिकों ने योगेन्द्र पर गोलियां चलाई । जिसमे एक गोली हाथ में, दो गोली योगेन्द्र के पैर में लगी। योगेन्द्र दर्द सहते चले गये , क्योंकि अगर वो हिलते तो मारे जाते। फिर पाकिस्तानियों ने दुबारा चेक करने के लिए सभी भारतीय सैनिको पर गोलिया चलाई इस बार गोलिया योगेन्द्र की छाती पर लगी पर अंदर की जेब में रखे पांच के सिक्को से जान बच गयी।
इसके बाद पाकिस्तानी सैनिक लौटने लगे तो योगेन्द्र ने जेब से हैंड ग्रेनेड निकाला और पाकिस्तानियों पर फेंक दिया। अब पाकिस्तानियों को समझ नहीं आ रहा था की ये क्या हुआ। अब योगेन्द्र ने उन्ही की बंदूक से उन्हें रोका। योगेन्द्र ने बड़ी ही चतुराई से जगह बदल-बदल कर पाकिस्तानियों पर गोलियां चलानी शुरू कर दी। पाकिस्तानियों को अब यह लगने लगा था की भारतीय सेना की दूसरी टुकड़ी वहां तक पहुंच गई है। पाकिस्तानी डर कर भाग गये।पाकिस्तानियों को खत्म करने के बाद योगेन्द्र ने हिम्मत जुटाई और किसी तरह नीचे लुढ़कते हुए अपने साथियों तक पहुचे।योगेन्द्र को उपचार के लिए बेस कैंप में भेजा गया। योगेन्द्र ने पाकिस्तानियों की सारी जानकारी सेना को दी। उसी रात भारतीय सेना की दूसरी टुकड़ी पूरी तैयारी के साथ ऊपर गई , पाकिस्तानियों पर हमला बोल दिया और उनको हराकर तिरंगा लहरा दिया।
परमवीर चक्र –
अपनी जान की परवाह न करते हुए इस युवा सैनिक के अदम्य साहस और पराक्रम को देखते हुए भारत सरकार ने योगेन्द्र सिंह यादव को परमवीर चक्र से सम्मानित किया ।