उत्तराखण्ड – गोरखा न्याय प्रशासन , कर निति
Uttarakhand – Gorkha Justice Administration, and Tax Policy
न्याय प्रशासन –
- गोरखाओं के विवादों का निपटारा जिस न्यायधीश से किया जाता था उसे विचारी / वैचारिक कहा जाता था।
- गवाहों को महाभारत का एक भाग (हरिवंश की चौथी) की शपथ दिलाई जाती थी , न्याय हेतु दिव / दिव्य प्रथा नाम की अग्नि परीक्षा होती थी।
- गोलादीप (दिव्य) – गरम लोहे की छड़ को हाथ में पकड़ना पड़ता था।
- तराजू दीप (दिव्य) – दोनों दोषी व्यक्तियों को पत्थरों से तराजू में तोला जाता था।
- कढ़ाई दीप – गर्म तेल में हाथ डाला जाता था, यदि हाथ नहीं जला तो निर्दोष माना जाता था।
- बौकटी हारया दिव्य – यह तैरने की प्रथा थी, जो व्यक्ति तैरने में असमर्थ होते थे वे दोषी कहलाये जाते थे।
- जहर दिव्य
- मंदिर दिव्य
कर निति –
- गोरखाओं ने ब्राहमणों पर भी कर लगाया था जिन्हें कुशही कर के नाम से जाना जाता है।
- भाभर में दोनिया नाम का कर पहाड़ी पशु चारको से लिया जाता था।
- पुगांड़ी या पुगंड़ी (भूमिकर) – यह भूमि कर था।सबसे अधिक आमदनी इसी कर से होती थी।सैनिकों का वेतन इसी कर से दिया जाता था।
- सलामी – यह एक प्रकार का नजराना था। जो मुख्य अधिकारियो को नजराने के तौर में दिया जाता था।
- टिका कर – यह कर शुभ अवसरों के समय लिया जाता था।
- तिमारी / तिमाही – इस कर में फौजदार को 4 आना तथा सूबेदार को 5 आना देने होते थे।
- मौ कर / घरही पिछही – बदरी दत्त पाण्डे के अनुसार यह कर केवल आवश्यकता पड़ने पर ही लिया जाता था। इस कर में हर परिवार को 2 रूपये देने पड़ते थे।
- घीकर – यह कर दूध देने वाले पशुओं के नाम से लिया जाता था।
- मिझारी – जागरियो, चर्मकार तथा शिल्पकारों से यह कर लिया जाता था।
- टाडंकर / ताम कर / तान कर – यह कर बुनकरों से लिया जाता था। यह कर शिल्प आय में लगाया गया दूसरा कर था। यह कर हिन्दू व् भोटिया से लिया जाता था।
- सोन्याफागुन – गोरखा शासकों द्वारा मनाये जाने वाले उत्सवों के व्यय पूर्ति हेतु यह कर लिया जाता था। इन उत्सवों में भैंस व बकरे भी देने होते थे।
- बहता कर – यह कर छिपाई हुई संपत्ति पर लगाया गया कर था।
- रहता कर – यह कर ग्राम छोड़कर भागे हुए लोगों पर लगाया गया था।
- माँगा कर – यह कर नौजवानों से लिया जाता था।
- जान्या सुन्या कर – यह कर राज कर्मचारियों से लिया जाता था।
- शायर कर – सीमा या चुंगी कर