Skip to content

उत्तराखंड और 1857 की क्रांति (Uttarakhand and the revolution of 1857)

उत्तराखंड और 1857 की क्रांति


Uttarakhand and the revolution of 1857


उत्तराखंड में 1857 की क्रांति का ऐसा कोई ख़ास असर हुआ नहीं था। उत्तराखंड में शासन कर चुके कुरुर गोरखा शासकों के बाद आये ब्रिटिश शासन उत्तराखंड के लोगो को काफ़ी अच्छा लग रहा था। जिसकी वजह से उत्तराखंड में 1857 का कोई ख़ास असर देखने को नहीं मिला था।

  • 1857 की क्रांति के समय कुमाऊँ कमिश्नर हैनरी रैमेज था। इसका सहायक बैकेट था।
  • 1857 की क्रांति के समय भारत वायसराय लॉर्ड केनिन था।
  • 1857 के आन्दोलन का असर उत्तराखंड राज्य में बहुत कम था।
  • अन्यायपूर्ण गोरखा शासन की अपेक्षा लोगो को अंग्रेज प्रसासन सुधारवादी लग रहा था।
  • कुमाऊँ कमिश्नर हैनरी रैमेज उदारवादी शासक था।
  • टिहरी राजाओं की अंग्रेजों के प्रति भक्ति थी।
  • राज्य में शिक्षा,संचार,यातायात के साधनों की कमी थी।
  • राज्य में कुछ जगहों पर छोटे – बड़े आन्दोलन हुए थे –

1857 में काली कुमाऊँ की घटना –

  • अवध के नवाब बाजिद अली शाह के संपर्क में चम्पावत के विशुम गाँव (लोहाघाट में हरागाँव) के प्रधान कालू मेहरा आया था।
  • बाजिद अली शाह के कहने पर कालू मेहरा ने गुप्त संगठन क्रांति दल का गठन किया गया था।
  • कालू मेहरा का साथी बिशन सिंह करायत और आनंद सिंह फर्त्याल था।
  • इस संगठन ने बरम देव पुलिस चौकी पर हमला कर दिया था।
  • इसके बाद अंग्रेजो ने क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर किया गया था।
  • कालू मेहरा को जेल में रखा गया और कालू मेहरा को उत्तराखंड का प्रथम स्वतंत्रता सेनानी कहा जाता है।
  • बिशन सिंह व् आनंद सिंह को चानमारी (ऊँचे पहाड़ो से गिरना) से हत्या कर दी गयी थी।
  • 17 सितम्बर 1857 रोहेलखंड (बरेली) के नवाब खान बहादुर खां के सेनापति काले खां के नेतृत्व में तीन हजार धुड सवार सैनिको ने हल्द्वानी पर कब्ज़ा कर लिया था।
  • इसके बाद ब्रिटिश सेना तथा काले खां के मध्य युद्ध हुआ इस युद्ध में काले खां की सेना पराजित हो गयी थी।
  • ब्रिटिश की ओर से युद्ध का नेतृत्व के. मैक्सवेल, चैपमेन बैचर ने किया था।
  • इसके बाद काले खां सैनिकों के सैनिकों द्वारा हमला किया गया परन्तु वह विफल रहे थे।
  • 1857 की क्रांति के दौरान नैनीताल में फाँसी का गधेरा नामक स्थान पर कई क्रांतिकारियों को फाँसी की सज़ा दी गयी थी।
  • 1857 की क्रांति के दौरान ही नाना साहेब के उत्तराखंड में छुपे होने की अफवाह फैली थी।
error: Content is protected !!