टिहरी रियासत के भारत में विलेय के कारण
The merger of Tehri State in India
टिहरी रियासत में अकुशल नेतृत्व था। टिहरी रियासत के पंवार राजा नरेन्द्र शाह ने ज्यादातर समय विदेशी यात्रा में ही व्यय किया था।
टिहरी रियासत अयोग्य कर्मचारी के कारण भी अकुशल शासन था।
टिहरी रियासत में अलोकप्रिय कर प्रणाली थी।
अलोकप्रिय वन व्यवस्था –
- 1927 – 28 में एक वन निति लायी गयी थी जिसके तहत ग्रामीणों का वनों पर अधिकारों को सिमित किया गया था।
- ग्रामीणों ने इसके खिलाफ वन पंचायत/आजाद पंचायत की स्थापना की थी।
- कुमाऊँ कमिश्नर ने वन कानूनों में जनता को रियाते दे दी इस वजह से टिहरी के रबाई में 30 मई 1930 को एक आन्दोलन शुरू कर दिया गया था।
- इस आन्दोलन के समय टिहरी नरेश नरेन्द्र शाह राज्य में उपस्थित नहीं थे तथा राज्य का शासन दीवान चक्रधर जुयाल देख रहे थे।
- चक्रधर जुयाल ने यमुना नदी के किनारे तिलाड़ीनामक स्थान पर शांतिपूर्णतरीके से आन्दोलन कर रहे ग्रामीणों पर गोली चलवा दी थी।
- इस गोलीकांड में अनेक किसानों की मृत्यु हो गयी थी।
- इस कांड को ही तिलाड़ी खाई कांड के नाम से जाना जाता है।
- इस कांड को उत्तराखंड का जलियांवाला बाग कांड कहा जाता है तथा चक्रधर जुयाल को उत्तराखंड का जनरल डायर कहा जाता है।
प्रजा मंडल आन्दोलन –
1938 में एक कांग्रेस सम्मेलन हुआ था।इसमें यह निर्णय लिया गया की देशी रियासतों में एक मंडल की स्थापना कर सकते है इसलिए देहरादून में प्रजा मंडल की स्थापना 23 जनवरी 1939 में हुई थी।
प्रजा मंडल का उद्देश्य –
1. टिहरी राज्य की नीतियों का विरोध करना था।
2. टिहरी रियासत में अलोकप्रिय कर प्रणाली को समाप्त करना था।
3. उत्तरदायी शासन की स्थापना करना।
4. 1939 में श्री देव सुमन प्रजामंडल के सदस्य बने।
- श्री देव सुमन ने राज्य में अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाई थी।
- 1942 में श्री देव सुमन ने महात्मा गाँधी से बर्धा (महाराष्ट्र)में वार्ता की थी।
- 24 फरवरी 1944 को श्री देव सुमन को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था।
- श्री देव सुमन ने जेल में ही टिहरी राज्य के विरुद्ध आमरण अनशन किया था।
- 25 जुलाई 1944 को अनशन के 84वें दिन श्री देव सुमन की मृत्यु हो गयी थी।
- 29 अगस्त 1946 को राज्य दरबार और प्रजामंडल में एक संधि हुई थी।
- इस संधि के तहत राजनीतिक नेताओं को जेल से रिहा करने को कहा गया था, लेकिन राज्य के कृषक नेता दौलत राम को स्वतंत्र नही किया गया था।
- कृषक नेता दौलत राम को रिहा ना करने के कारण राज्य की जनता और ज्यादा क्रोधित हो जाती है।
- इस स्थिति को संभालने के लिए 28 अप्रैल 1947 को मानवेन्द्र शाह शांति रक्षा अधिनियम पर स्वीकृति दे दी थी।
- मई 1947 को टिहरी में प्रजा मंडल के अधिवेशन के दौरान पूर्ण स्वतंत्रता की रखी गयी थी।
पौण-टूटी कर –
- यह एक आयात- निर्यात में लगने वाला कर था।
- यह कर व्यापारियों से लिया जाता था।
- इस कर को वसूलने वाले अधिकारी अनुचित तरीके से तलाशी करते थे जिससे जनता को परेशानियों का सामना करना होता था।
बरा कर –
- यह कर भू – व्यवस्था की देखरेख करने वाले कर्मचारी हेतु सुविधा शुल्क था।
- यह कर जनता पर अनावश्यक बोझ था।
नई भूमि व्यवस्था –
- 1944 में टिहरी रियासत में भूमि निरीक्षण का कार्य प्रारंभ हुआ था।जिसमे भूमि को अपने नाम करने के लिए नजराना देना पड़ता था।
इसी भूमि व्यवस्था से किसान वर्ग में रोष पैदा हुआ था। - नागेंद्र सकलानी और मोलू सिंह के नेतृत्व में इस भूमि व्यवस्था का विरोध किया गया था।
राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन का प्रभाव –
कीर्ति नगर आंदोलन (सकलाना विद्रोह)-
- 10 जनवरी 1948 नागेंद्र सकलानी के नेतृत्व में आंदोलनकारियो ने टिहरी कोर्ट पर कब्ज़ा कर लिया था।
- इस आन्दोलन में नागेन्द्र सकलानी और मोलू राम की मृत्यु हो गयी थी।
- आंदोलनकारियो द्वारा विद्रोह करने पर 15 जनवरी 1948 को मानवेन्द्र शाह द्वारा एक सार्वजनिक सम्मेलन बुलाया गया था और वाही मानवेन्द्र शाह द्वारा उत्तरदायी शासन की घोषणा कर दी गयी थी।
- अत: 1 अगस्त 1948 को टिहरी रियासत भारत में विलय हो गया था।
- सयुक्त प्रान्त (उत्तर प्रदेश) का टिहरी को 50वाँ जिला बना दिया गया था।