- मूल नाम- जोगिंदर सिंह
- पिता – शेर सिंह
- जन्म- 26 सितम्बर 1921
- उपाधि – सूबेदार
- देहांत – अक्टूबर 1962(उम्र 41)
जोगिंदर सिंह का जीवन परिचय-
जोगिंदर सिंह का जन्म पंजाब में मोगा जिले के गाँव मेहाकलन में 26 सितम्बर 1921 को ब्रिटिश भारत में हुआ था।जोगिंदर सिंह का परिवार ज्यदा समृद्ध नहीं था,इसीलिए वो अपनी पढाई भी अच्छे से नहीं कर पाए थे।प्राथमिक स्तर की पढाई जोगिंदर सिंह ने नाथू अला गांव में की तथा उसके बाद की शिक्षा उन्होंने दरोली गांव के मिडिल स्कूल से प्राप्त की थी।इसे बाद उन्होंने सेना में जाने का फैलसा लिया।
जोगिंदर सिंह की पहली पोस्टिंग-
24 सितंबर 1936 जोगिंदर सिंह को ब्रिटिश भारतीय सेना की सिख रेजिमेंट ( 1 सिख) की पहली बटालियन में तैनात किया गया था।सेना में शामिल होने के बाद उन्होंने अपनी पढाई आगे चालू रखी और सेना की परीक्षाएं उत्तीर्ण कीं और जोगिंदर सिंह को यूनिट शिक्षा प्रशिक्षक नियुक्त किया गया।जोगिंदर सिंह ने द्वितीय विश्व युद्ध में बर्मा की ओर से तथा भारत-पकिस्तान 1947-1948 के दौरान भाग लिया था।
भारत-चीन युद्ध–
वर्ष 1962 में भारत-चीन के बेच विवाद होना शुरू हुआ।चीनी सेना ने भारत की सीमा के अन्दर आ कर भारत की धरती में अपनी चौकिया बनाना शुरू कर दिया था।जिसने बाद में युद्ध का रूप ले लिया था।9 सितंबर 1962 भारत के रक्षा मंत्री वी.के.कृष्ण मेनन ने एक सभा में चीनी सेना को थागला रिज की दक्षिणी सीमा से बाहर करने का निर्णय लिया।तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु उस समय लन्दन गए हुए थे,कामनवेल्थ देशों के प्रधान मन्त्रियों की बैठक में भाग लेने के लिए।पंडित नेहरु के देश में ना होने की वजह से उन्हें रक्षा मंत्री के निर्णय के लिए उन्हें अवगत कराया और अपनी सहमति दे दी।इसी निर्णय के बाद 7 इन्फेट्री ब्रिगेड को नामका चू की ओर कूच करने के आदेश दे दिए गए।चीनी सेना इस जगह में पूरी तैयारी के साथ बैठी हुई थी।आदेश मिलने के बाद जैसे ही भारतीय सेना बड़ी वैसे ही इस ख़बर को भारतीय प्रेस ने बढ़ा – चढ़ा कर छाप दिया।जिससे चीनी सेना और सतर्क हो गयी।सच्चाई तो यह थी की भारतीय सेना इस चीज के लिए अच्छे से तैयार ही नहीं थी।भारतीय सेना के पास हथियार और गोला बारूद की भारी कमी थी।इसं सबकी कमी के बावजूद भारतीय सेना पुरे जोश और बहादुरी के साथ आगे बढ़ते रही।20 अक्तूबर 1962 को भारत और चीन की सेना बूमला मोर्चे पर आमने-सामने थी।इस हमले में 7 इन्फेन्टरी ब्रिगेन को चीनी सेना से नामका चू पर पराजय का सामना करना पड़ा था। नामका चू पर विजय पाने के बाद चीनी सेना तावांग की ओर बढीं।
सूबेदार जोगिंदर सिंह का अदम्य साहस-
20 अक्तूबर 1962 को सूबेदार जोगिन्दर सिंह अपनी टुकड़ी के साथ रिज के पास नेफा में टोंग पेन में तैनात थे।सुबह करीब साढ़े बजे चीनी सेना ने बूमला पर हमला कर दिया।चीनी सेना का टोवांग तक पहुँचने का इरादा था।चीनी सेना ने जैसे ही हमला किया सूबेदार और उनके साथियों ने बहुदारी के साथ से चीनी सेना का सामना किया और चीनी सेना को पीछे हटना पड़ा।इस हमले में चीनी सेना का काफी नुक्सान हुआ था।कुछ देर पीछे हटने के बाद चीनी सेना ने फिर से हमला कर दिया और फिर सूबेदार और उनके साथियों ने पुरे जोश और बहादुरी के साथ ‘जो बोले सो निहाल’ का नारा लगाते हुए लड़े और चीनी सेना के हौसलों को पस्त कर दिया था’।इस दुसरे हमले में सुबेकर जोगिंदर सिंह के काफ़ी साथीयों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था।इस हमले में सूबेदार जोगिंदर सिंह भी घ्याल हो चुके थे।उनकी जाँघ में गोली लगी थी फिर भी वो डटे रहे और चीनियों का सामना करते रहे।उनकी इसी इमात को देखते हुए बाकि जवानों में भी हिम्मत आती रही और वो अभी भी चीनियों से लड़ते रहे।एक तरफ़ भारतीय सेना थी जिसके पास पूरी मात्रा में गोला बारूद नहीं था वहीं दूसरी ओर चीनी सेना थी जो आधुनिक हथियारों और पूरी तैयारी के साथ युद्ध करने आई थी।चीनी सेना ने फिर से हमला किया।सूबेदार जोगिंदर सिंह ख़ुद मशीनगन लेकर दुश्मनों में हमला करना शुरू कर दिया था।इस हमले में चीनी सेना का बहुत नुक्सान हो गया था,पर पूरी तैयारी के साथ आई चीनी सेना लगातार आग बढ़ती रही।लगातार हो रहे इस हमले में भारतीय सेना का गोलिया का भण्डार खत्म हो गया था।इसके बार सूबेदार जोगिंदर सिंह और उनके साथियों ने संगीन को खंजर की तरह इस्तमाल करना शुरू कर दिया था।सूबेदार और उनके साथी इस आमने-सामने की लड़ाई में पूरी वीरता के साथ लड़ते रहे और काफ़ी देर लड़ने के बाद उन्हें और उनके साथियों को चीनी सेना ने बंदी बना दिया था।उसके बाद चीनी सेना ने उनकी कोई खबर दी और ना ही उनका शव भारत को सौपा।
परमवीर चक्र-
युद्ध के दौरान अपने परम साहस और वीरता तथा युद्ध के दौरान अपने सैनिकों को प्रेरित करने सूबेदार जोगिंदर सिंह को भारत सरकार द्वारा वर्ष 1962 में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।