1612 ई. के आमेर अभिलेख में कछवाहों को रघुवंश तिलक कहा गया है।
कछवाहा वंश की कुलदेवी “जमूवाय माता” है।
कछवाहों की आराध्य देवी “शीला माता” है।
कछवाहा वंश का झंडा पहले सफ़ेद रंग का था।
मानसिंह (I) काबूल अभियान के बाद झंडे को पचरंगा कर देते है, जिसमे हरा, नीला, पिला, लाल व काला रंग था।
कछवाहा वंश का वाक्य था – “यतो धर्मस्ततो जय:” लिखा है जिसका अर्थ है- ‘जहां धर्म है वहां सत्य की सदा जय होती हैं’!
कछवाहा राजवंश के संस्थापक दूल्हराय (तेजकरण) थे।
दुल्हराय ( दुलेराम ), ग्वालियर नरेश सोड़देव के पुत्र थे।
दूल्हराय ने ढूढ़ाड़ राज्य की स्थापना की थी।
जयपुर शहर को पहले आमेर कहा जाता था।
आमेर से पहले इस क्षेत्र को ढूढ़ाड़ प्रदेश कहा जाता था। यहाँ ढूढ़ नदी बहती थी जिसके कारण इसका नाम ढूढ़ाड़ पड़ा था।
ढूढ़ाड़ क्षेत्र में पहले मीणा व बड़गुर्जरों का शासन था।
जमवा रामगढ़ की ढूढ़ाड़ का पुष्कर कहा जाता है। (गुलाब की खेती के कारण इसे ढूढ़ाड़ का पुष्कर कहा जाता है। )
दुल्हराय का विवाह मौरा के चौहान शासक रालपसी की कन्या सुजान कँवर के साथ हुआ था।
आमेर को आम्रपाली/अम्बावती के नाम से भी जाना जाता है।
पृथ्वीराज ने राणा सांगा की वीरता से प्रभावित होकर अपने पुत्र का नाम सांगा रखा था।यह गलता जी तीर्थ में है।
गलता जी तीर्थ को उत्तर तोताद्रि या मंकी वैली बोला जाता है।
“देबारी समझौता” में सामिल हुए मारवाड़ के राजा अजीत सिंह की पुत्री सुरजकुँवर का विवाह सवाई जयसिंह के साथ होता है , इनके पुत्र ईश्वरी सिंह सवाई जयसिंह की मृत्यु के बाद गद्दी में बैठते है।
“देबारी समझौता” में सामिल हुए मेवाड़ के राजा अमर सिंह (II)की पुत्री चाँदकवर से उत्तपन संतान ही आमेर (जयपुर ) का अगला उत्ताधिकारी होगा , माधों सिंह (I)और ईश्वरी सिंह के मध्य युद्ध हुआ था।इस युद्ध में ईश्वरी सिंह की जीत होती है।
चाँदकवर की याद में सवाई जयसिंह ने सिसोदिया रानी का बाग महल बनवाया था।
जयपुर के सात गेट ध्रुव गेट,चांदपोल,सुरजपोल,सांगानेरी गेट,अजमेरी गेट,घाट गेट,न्यू गेट है।
जयपुर के बारे में जानकारी बुद्धिप्रकाश ग्रन्थ में मिलती है।