- मूल नाम- संजय कुमार
- पिता – दुर्गाराम
- जन्म- 03 मार्च 1976
- उपाधि – राइफलमैन(युद्ध के दौरान)
- वर्तमान – सूबेदार
संजय कुमार का जीवन परिचय-
हिमाचल प्रदेश के बिलासपुरजिले के कलोल बल्किन ग्राम में संजय कुमार का जन्म 03 मार्च 1976 को हुआ था।घर के आर्थिक स्तिथि अच्छी नहीं थी। पिता दुर्गाराम कठिन परिश्रम करके जैसे-तैसे घर खर्च चलाते थे।आर्थिक स्तिथि अच्छी ना होने के कारण भी संजय कुमार के पिता ने उनकी पढ़ाई में कोई अवरोध नहीं आने दिया।संजय कुमार की शुरुआती शिक्षा कलोलच हाई स्कूल से हुई।उच्च शिक्षा के लिए उन्हें बिलासपुर भेज दिया गया।
देश सेवा का भाव-
संजय कुमार का बचपन सैनिको के बीच में बीता था।खुद संजय कुमार के चाचा फौज में थे।जिन्होंने 1965 के भारत-पाक युद्ध में अपना योगदान दिया था।गांव से कई अन्य व्यक्ति भी फ़ौज में थे।भारतीय फ़ौज की वीरता भरे किस्से सुनकर संजय कुमार बड़े हुए थे।
संजय कुमार का नियुक्ति-पत्र-
उच्च शिक्षा समाप्त होने के तुरंत बाद ही संजय ने फ़ौज में जाने के लिए मेहनत शुरू कर दी। संजय फ़ौज में रहे लोगो से फ़ौज की कहानिया सुनते व् फ़ौज के गुण सीखते।सेना में भारती होने से पहले संजय ने दिल्ली में टैक्सी चालक का काम भी किया था।सेना में भर्ती होने से पहले संजय तीन बार अस्वीकृत हुए पर उन्होंने न मानते हुए मेहनत जारी रखी।साल 1996 में संजय के नाम का एक पत्र आया।यह पत्र संजय की फ़ौज में भर्ती का था।घर वालो का आशीर्वाद लेके संजय ट्रेनिंग के लिए चले गये।
नौकरी के तीन साल के भीतर ही ‘कारगिल युद्ध’-
ट्रेनिंग के बाद संजय कुमार को 13 जम्मू एण्ड कश्मीर राइफल्स में भेजा गया। अभी उनको नौकरी में कुछ ही वर्ष हुए ही थे की पकिस्तान ने 1999 में कारगिल युद्ध छेड़ दिया।संजय कुमार की यूनिट को कारगिल में मस्को वैली के प्वाइंट 4875 का टास्क दिया गया।संजय कुमार चार व पांच जुलाई को अपने 11 साथियों के साथ तैनात थे।संजय कुमार और उनके साथियों ने उप्पर पहाड़ी पर चढ़ना शुरू किया पाकिस्तानियों ने अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरु कर दी।इसी हमले में संजय कुमार के 2 साथी शहीद हो गये तथा 8 गंभीर रूप से घायल हो गये थे।
सर्वप्रथम देश-
साथियों में घायल होने के बाद भी संजय कुमार आगे बढ़ते रहे।संजय कुमार दुश्मनों को मुह तोड़ जवाब दे रहे थे। लड़ते-लड़ते संजय कुमार की गोलियां खत्म हो गयी थी।इनके के चलते संजय कुमार को भी तीन गोलियां लगी,जिसमे एक गोली पीठ में तथा बाकि दो गोलिया उनकी टांगों में लगी।अब संजय कुमार घायल हो चुके थे।घयाल होने के बाद भी संजय कुमार ने लड़ना बंद नहीं किया और आगे बढ़ते रहे।उन्होंने योजना बनाई की पाकिस्तानियों पर अचानक से हमला करके उन्हें खत्म किया जाए।संजय कुमार आगे बढ़ते रहे और उस ठिकाने में अचानकसे हमला कर तबाह कर दिया जहां से उनके साथियों और उन पर हमला हुआ था।इस आमने-सामने की मुठभेड़ में उन्होंने तीन दुश्मन सैनिकों को मार गिराया और उसी जोश के साथ गोलाबारी करते हुए आगे बढ़ते रहे और पाकिस्तानियों का काफी नुक्सान किया। इस मुठभेड़ में संजय लहू लुहान हो गए थे, फिर भी आगे बढ़ के दुश्मनों पर हमला किया।अचानक हुए हमले से पाकिस्तानी डर गये और मैदान छोड़ भागने लगे।अब दुश्मन की यूनीवर्सल मशीनगन संजय के हाथ में थी, और उन्होंने उसी मशीनगन से दुश्मन का ही सफाया शुरू कर दिया।
संजय को ईएसआई वीरता से लड़ते हुए देख उनकी टुकड़ी के दूसरे जवान बहुत उत्साहित हुए और बेहद फुर्ती के साथ ‘जय माता दी’ के नारे के साथ दुश्मन पर धावा बोल दिया।घायल होने के बाद भी संजय कुमार दुश्मन से लड़ते रहे जब तक प्वाइंट फ्लैट टॉप 4875 भारतीयों के कब्जे में नहीं आ गया। इसके बाद दुश्मन के बाकी बंकर भी संजय की टोली ने खत्म कर दिए।टास्क पूरा हो चूका था अब प्वाइंट फ्लैट टॉप 4875 पर भारतीय तिरंगा लहरा रहा था।मिशन पूरा होने के बाद प्लाटून की कुमुक सहायतार्थ वहां पहुंची तथा घायल संजय कुमार को तत्काल हेलिकाप्टर से श्रीनगर लाया गया और सैनिक अस्पताल में भर्ती कराया गया।
परमवीर चक्र-
संजय कुमार की बहुदारी को देखते हुए भारत सरकार द्वारा वर्ष 1999 में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।