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राजस्थान और 1857 की क्रांति

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राजस्थान और 1857 की क्रांति


Rajasthan and the Revolution of 1857


 1857 क्रांति के समय ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थिति – 

  • क्रांति के समय कंपनी के गवर्नर जनरल लार्ड केनिंग थे।
  • राजस्थान उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त में आता था। इसका मुख्यालय आगरा था।
  • आगरा में लेफ्टिनेंट गवर्नर जनरल बैठा करते थे। उस समय लेफ्टिनेंट गवर्नर जनरल कालविन थे।
  • उस समय नागरिक प्रशासन अजमेर – मेरवाड़ा में कर्नल डिक्शन के नियंत्रण में था।
  • एजेंट टू गवर्नर जनरल (AGG) पद का गठन 1832 ई. में हुआ था।
  • एजेंट टू गवर्नर जनरल (AGG) का मुख्यालय अजमेर था। इसका ग्रीष्मकालीन मुख्यालय माउंट आबू था।
  • प्रथम (AGG) मिस्टर लाँकेट थे।
  • 1857 की क्रांति के समय (AGG) जार्ज पेट्रिक लारेंस थे। इससे पहले जार्ज पेट्रिक मेवाड़ के पोलिटिकल एजेंट रह चुके थे।
  • क्रांति के समय मेवाड़ के पोलिटिकल एजेंट शावर्स थे।
  • क्रांति के समय सिरोही के पोलिटिकल एजेंट जे. डी. हॉल थे।
  • क्रांति के समय कोटा के पोलिटिकल एजेंट मेजर बर्टन थे।
  • क्रांति के समय जयपुर के पोलिटिकल एजेंट ईडन थे।
  • क्रांति के समय धौलपुर के पोलिटिकल एजेंट निक्सन थे।
  • क्रांति के समय भरतपुर के पोलिटिकल एजेंट मॉरीसन थे।
  • क्रांति के समय मारवाड़ के पोलिटिकल एजेंट मैकमोसन थे।

सैनिक छावनियाँ – 

1857 की क्रांति के समय राजस्थान में छ: सैनिक छावनियाँ थी।

नसीराबाद छावनी –

  • नसीराबाद छावनी अजमेर में थी।
  • नसीराबाद छावनी का गठन 1822 ई. में हुआ था।
  • नसीराबाद छावनी का मुख्यालय नसीराबाद में था।
  • नसीराबाद छावनी में मेरवाड़ा लीजन/ अजमेर मेरवाड़ा कोर सैनिक टुकड़ी रहती थी।

एरिनपुरा छावनी – 

  • एरिनपुरा छावनी पाली में थी।
  • एरिनपुरा छावनी का गठन 1835 ई. में हुआ था।
  • एरिनपुरा छावनी का मुख्यालय एरिनपुरा (पाली) में था।
  • एरिनपुरा छावनी में जोधपुर लीजन सैनिक टुकड़ी रहती थी।

ब्यावर छावनी – 

  • ब्यावर छावनी अजमेर में थी।
  • ब्यावर छावनी का गठन 1822 ई. में हुआ था।
  • ब्यावर छावनी का मुख्यालय ब्यावर में था।
  • ब्यावर छावनी में मेरवाड़ा बटालियन सैनिक टुकड़ी रहती थी।

खैरवाड़ा छावनी – 

  • खैरवाड़ा छावनी उदयपुर में थी।
  • खैरवाड़ा छावनी का गठन 1841 ई. में हुआ था।
  • खैरवाड़ा छावनी का मुख्यालय खैरवाड़ा में था।
  • खैरवाड़ा छावनी में मेवाड़ भील कोर सैनिक टुकड़ी रहती थी।

नीमच छावनी – 

  • नीमच छावनी मध्यप्रदेश में थी।

देवली छावनी – 

  • देवली छावनी टोंक में थी।
  • देवली  छावनी में कोटा कल्टिजेनट सैनिक टुकड़ी रहती थी।

शेखावटी ब्रिगेड – 

  • शेखावटी ब्रिगेड की स्थापना 1834 ई. में हुई थी।
  • शेखावटी ब्रिगेड का मुख्यालय झुनझुनू में था।

Note –  इन सभी छावनियों में सैनिक भारतीय थे। खैरवाड़ा व ब्यावर सैनिक छावनीयों ने क्रांति में भाग नहीं लिया था।

क्रांति के कारण – 

  • भेदभावपूर्ण निति – अंग्रेज काले व गोरो में भेदभाव करते थे।
  • आर्थिक शोषण 
  • आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप
  • गोद निषेध निति / हड़प निति
  • 1857 की क्रान्ति का तल्कालीन कारण – चर्बी वाले कारतूस का प्रयोग
  • रायफल ब्राउन बेस के स्थान पर राॅयल एनफिल्ड राइफल नामक बन्दुक का प्रोयग होता था जिसमे चर्बी वाले कारतूस को दांतों से छिल कर प्रयोग करना पड़ता था।

क्रांति के वाहकसाधू संत

क्रांति का प्रतिक चिन्हकमल का फूल व चपाती (रोटी)

क्रांति की शुरवात – 

क्रांति की शुरुवात नसीराबाद से हुई थी, जिसके बाद यह क्रांति  नीमच, एरिनपुरा , देवली व अंतिम में कोटा पहुंची थी।

नसीराबाद – 

  • नसीराबाद में क्रांति 28 मई 1857 को हुई थी। यहाँ सैनिकों ने विद्रोह शुरू कर दिया था।
  • जिसका नेतृत्व 15 वीं बंगाल नेटिव इन्फेन्ट्री ने किया था। 15 वीं बंगाल नेटिव इन्फेन्ट्री को नसीराबाद से हटाया जा रहा था व इनकी जगह मेर बटालियन तथा डीसा (गुजरात) को लाया जा रहा था।
  • इसके बाद 30 वीं बंगाल नेटिव इन्फेन्ट्री द्वारा क्रांति की गयी थी।
  • इस क्रांति में स्पोटिस वुड, न्यूबरो नामक अधिकारीयों की हत्या कर दी गयी थी।
  • डुंगर जी व जवाहर जी ने इस नसीराबाद छावनी को लूटा था। डुंगर जी व जवाहर जी को क्रांति का देवता भी कहा जाता है।
  • वाल्टर हीथकोट द्वारा नसीराबाद में  क्रांति का दमन कर दिया गया था।
  • यहाँ विद्रोह करने के पश्चात सैनिक दिल्ली की ओर को चले गये थे।
  • दिल्ली में क्रांति का नेतृत्व बख्त खां के पास था।
  • भारत की क्रांति का नेतृत्व बहादुर शाह जफ़र (बहादुर शाह द्वितीय) के पास था।

नीमच (मध्यप्रदेश) – 

  • नसीराबाद में क्रांति 3 जून 1857 को हुई थी।
  • जिसका नेतृत्व हीरा सिंह व मोहम्मद अली बेग ने किया था।
  • इस छावनी के कप्तान मैकडॉनाल्ड थे।
  • मोहम्मद अली बेग ने यहाँ शपथ लेने से इनकार कर दिया था।
  • नीमच से अंग्रेज अधिकारी व उनके परिवार भाग कर डुँगला (चित्तौड़) गये थे। यहाँ ये रुगाराम किसान के घर रहते है। इसके पश्चात मेवाड़ के राणा स्वरूप सिंह ने इनको जगमंदिर में गोकुलचंद पारिख की देख-रेख में ठहराया था।
  • नीमच से क्रांतिकारी शाहपुरा चले गये थे। शाहपुरा के जागीरदार लक्ष्मण सिंह ने क्रांतिकारियों का साथ दिया था।
  • इसके बाद ये क्रांतिकारी देवली की ओर चले व उसके बाद दिल्ली की ओर चले गये थे।

देवली – 

  • देवली में क्रांति 4 जून 1857  को हुई थी।
  • जिसका नेतृत्व मीर आलम खां ने किया था।
  • टोंक ने नवाब वजीर खां / वजीरूदौला थे। ये अंग्रेजों के समर्थक थे।
  • ताराचंद पटेल देवली में शहीद हो गये थे। यहाँ ताराचंद पटेल को तोप के मुह के आगे बाँध के उड़ा दिया गया था।

एरिनपुरा –

  • एरिनपुरा में क्रांति 21 अगस्त 1857  को हुई थी।
  • जिसका नेतृत्व ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत ने किया था।
  • एरिनपुरा में प्रमुख केंद्र आउवा (वर्त्तमान में पाली में) था।
  • जोधपुर लीजन सैनिकों को पूर्विया सैनिक कहा जाता था।
  • खैरवा स्थान पर ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत पूर्विया सैनिकों की भेंट हुई थी।

Note –  सुगाली माता का मंदिर आउवा में बना हुआ है। सुगाली माता को चम्पवातों की कुलदेवी कहते है। देवी की मूर्ति के 10 सिर व 54 हाथ है। इनको 1857 क्रांति की देवी कहा जाता है। अंग्रेजों क्रोधित होकर माता की मूर्ति को लेकर अजमेर संग्रहालय में रख दिया था। वर्तमान में यह मूर्ति बांगड़ संग्रहालय में रखी गयी है।

बिथौड़ा का युद्ध – 

  • बिथौड़ा का युद्ध 8 सितम्बर 1857 को हुआ था। यह युद्ध वर्त्तमान के पाली में लड़ा गया था।
  • यह युद्ध ठाकुर कुशाल सिंह व हीथकोट के मध्य हुआ था। इस युद्ध में हीथकोट के साथ अनाड़ सिंह पंवार तथा कुशलराज सिंधवी थे।
  • इस युद्ध में ठाकुर कुशाल सिंह विजयी हुए थे।
  • इस युद्ध में अनाड़ सिंह पंवार की मृत्यु हो गयी थी।
  • इस समय जोधपुर के महाराजा तख़्तसिंह थे। इनकी सेना इस युद्ध में हार जाती है।

चेलावास का युद्ध – 

  • चेलावास का युद्ध 18 सितम्बर 1857 को हुआ था। यह युद्ध भी वर्त्तमान के पाली में लड़ा गया था।
  • यह युद्ध ठाकुर कुशाल सिंह अंग्रेजी सेना के मध्य हुआ था। जिसका नेतृत्व ए. जी. जी. जार्ज पैट्रिक लारेन्स व इनका साथ मारवाड़ के पोलिटिकल एजेंट मैकमोसन थे।
  • इस युद्ध में भी ठाकुर कुशाल सिंह विजयी हुए थे।
  • इस युद्ध को गौरों व कालों का युद्ध कहा जाता है।
  • इस युद्ध में जोधपुर के पालिटिकल एजेट मैकमोसन का सिर काटकर आउवा के किले के मुख्य द्वार पर लटका दिया था।
  • इस युद्ध के बाद नारा लगा था “चलो दिल्ली मारो फिरंगी “

आउवा का युद्ध – 

  • आउवा का युद्ध 20 जनवरी 1858 को हुआ था। यह युद्ध भी वर्त्तमान के पाली में लड़ा गया था।
  • यह युद्ध ठाकुर कुशाल सिंह जनरल होम्स के मध्य हुआ था।
  • इस युद्ध में जनरल होम्स विजयी हुए थे।
  • इस युद्ध को हारने के बाद ठाकुर कुशाल सिंह आउवा का किला पृथ्वी सिंह लाम्बिया को सौप मेवाड़ चले गये थे।
  • मेवाड़ के ठाकुरों द्वारा इनकी सहायता की गयी थी। सलुम्बर के रावत केसरी सिंह , कोठारिया के रावत जोधसिंह ने इनकी सहायता की थी।
  • मारवाड़ ठाकुरों द्वारा इनकी सहायता की गयी थी।आसोप के शिवनाथ सिंह, गूलर के बिसन सिंहआलनियावास के अजीत सिंह ने इनकी सहायता की थी।
  • अगस्त 1860 को ठाकुर कुशाल सिंह ने नीमच में आत्मसमर्पण कर दिया।
  • कुशाल सिंह द्वारा किये गए विद्रोह की जांच के लिए मेजर टेलर कमीशन का गठन किया गया था।
  • 25 जुलाई 1864 को उदयपुर में कुशाल सिंह का निधन हो गया था।

 

कोटा क्रांति – 

  • कोटा में क्रांति 15 अक्टूबर 1857 को हुई थी।
  • इसका नेतृत्व जयदयाल, हरदयाल व मेहराब खां ने किया था।
  • उस समय कोटा के महाराव राम सिंह द्वितीय थे।
  • क्रांति के समय कोटा के पोलिटिकल एजेंट मेजर बर्टन थे।
  • इन क्रांतिकारीयों ने बर्टन व उनके पुत्रों तथा डॉ. सैडलर की हत्या कर दी थी। इनकी हत्या कर छ: माह तक कोटा में अपना कब्ज़ा कर लिया था।
  • महाराव राम सिंह द्वितीय की जांच के लिए एक आयोग का गठन किया गया था जिसका नाम लार्ड रॉबर्ट आयोग था।
  • जांच के बाद महाराव राम सिंह द्वितीय को सज़ा दी गयी व इनकी तोप की सलामी कम कर दी गयी थी। इनकी तोप की सलामी 17 से 13 कर दी गयी थी।
  • इसी समय कोटा को क्रांतिकारीयों से मुक्त करण के लिए मेजर जनरल रार्बट्स के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना आयी थी।
  • इस सेना को सहायता करौली के मदनपाल ने की थी। इसके बाद मदनपाल की तोप की समाली बढ़ा दी गयी थी।
  • कोटा को मुक्त करने के पश्चात जयदयाल, हरदयाल, मेहराब खां अम्बर खां, गुल मोहम्मद खां को फांसी दी गयी थी।
  • 1857 की क्रांति में मेहराब खां प्रथम मुस्लिम थे जिनको फांसी हुई थी।

Note – कोटा जनक्रांति का केंद्र था। कोटा में सबसे व्यापक एवं सुव्यवस्थित क्रांति हुई थी। रतन लाल तथा जिया लाल रामसिंह द्वितीय के अभिकारी थे जो अंग्रजों के खिलाफ से थे तो इनकी वजह से रामसिंह द्वितीय पर आरोप लगा था। 

धौलपुर – 

  • धौलपुर में क्रांति अक्टूबर 1857 में हुई थी।
  • इस क्रांति का नेतृत्व रामचन्द्र व हीरालाल ने किया था।
  • धौलपुर के राजा भगवंत सिंह थे जिन्होंने अंग्रेजों का साथ दिया था।
  • क्रांति के समय धौलपुर के पोलिटिकल एजेंट निक्सन थे।
  • धौलपुर में क्रांतिकारी इंदौर व ग्वालियर से आये थे।
  • क्रांति के दमन के लिए पटियाला सेना को बुलाया गया था।

भरतपुर – 

  • भरतपुर में क्रांति 31 मई 1857 को हुई थी।
  • भरतपुर के पोलिटिकल एजेंट मॉरीसन थे। ये भाग कर आगरा चले गये थे।
  • भरतपुर के राजा जसवंतसिंह जिन्होंने अंग्रेजों का साथ दिया था।

अलवर – 

  • अलवर में क्रांति का समय 11 जुलाई 1857 था।
  • अलवर का राजा विनय सिंह / बनने सिंह ने अंग्रेजों का साथ दिया था। इन्होने अंग्रेजों की सहायता हेतु आगरा अपनी सेना भेजी थी।

जयपुर – 

  • जयपुर में ऐसे कोई क्रांति नहीं हुई परन्तु जयपुर के शासक ने अंग्रेजों की सहायता की थी।
  • जयपुर के राजा रामसिंह द्वितीय ने अंग्रेजों की सहायता की थी। जिसके बाद अंग्रेजों ने रामसिंह द्वितीय को सितार-ए-हिन्द की उपाधि दी थी।
  • अंग्रेजों ने रामसिंह को कोटकासिम का परगना प्रदान किया था।

झालावाड़ – 

  • क्रांति के समय झालावाड़ के राजा राणा पृथ्वी सिंह थे।
  • पृथ्वीसिंह के पास दो सैनिक दल गोपाल पलटन, भवानी पलटन थे।
  • इन दोनों दलों को तात्या टोपे ने रेलायता नामक स्थान पर हराया व झालावाड़ पर अपना अधिकार कर लिया था। (तात्या टोपे ने बांसवाड़ा में भी अपना अधिकार किया था।)

बीकानेर – 

  • क्रांति के समय बीकानेर के राजा सरदार सिंह ने तन,मन,धन से अंग्रेजों की सहायता की थी।
  • सरदार सिंह अपनी सेना लेकर अपनी रियासत से बहार गये थे। सरदार सिंह बांडलू (पंजाब) तथा हिसार (हरियाणा) गये थे।

अजमेर – 

  • क्रांति के समय अजमेर की जेल के कैदियों ने भी क्रांति कर दी थी।
  • कैदियों ने 9 अगस्त 1857 को क्रांति की थी।

राजस्थान में तात्या टोपे – 

  • तात्या टोपे का मूल नाम रामचन्द्र पांडूरंग था।
  • तात्या टोपे  महाराष्ट्र के निवासी थे।
  • तात्या टोपे ग्वालियर के क्रांतिकारी थे।
  • 8 अगस्त 1857 को सर्वप्रथम राजस्थान के  भीलवाड़ा में आये थे।
  • 9 अगस्त 1857 को कुआड़ा का युद्ध हुआ था। यह युद्ध तात्या टोपेजनरल रॉबर्ट्स के मध्य हुआ था।
  • इस युद्ध में तात्या टोपे हार जाते है। हरने के पश्चात तात्या टोपे यहाँ से चले जाते है।
  • 11 सितम्बर 1857 को तात्या टोपे ने बांसवाड़ा से पुनः प्रवेश  किया था। बांसवाड़ा के उस समय राजा लक्षमणसिंह थे।
  • लक्ष्मणसिंह राज-पाट छोड़ जंगलों में चले जाते है तथा तात्या टोपे ने बांसवाड़ा में अपना अधिकार कर लिया था।
  • सलुम्बर व कोठारिया के ठाकुरों ने तात्या टोपे का साथ दिया था।
  • तात्या टोपे जैसलमेर रियासत छोड़ बाकि सारी रियासतों में गये थे।
  • तात्या टोपे का साथ देने के कारण सीकर के ठाकुर को अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी।
  • मानसिंह नरुका ने तात्या टोपे को धोखा दिया व अंग्रजों ने तात्या टोपे को गिरफ्तार कर लिया था।
  • 18 अप्रैल 1859 में शिवपुरी (मध्यप्रदेश) में तात्या टोपे को फांसी की सज़ा दी गयी थी।

Note – अमरचन्द बांठिया बीकानेर के रहने वाले थे। इन्होने अपनी सारी संपत्ति सभी क्रांतिकारीयों को भेट कर दी थी। अमरचन्द बांठिया को 1857 क्रांति का भामाशाह कहा जाता है। अंग्रेजों द्वारा इनको फांसी की सज़ा दी गयी थी। 1857 क्रांति में राजस्थान का प्रथम शहीद अमरचन्द बांठिया थे।

 

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