कुछ विद्वानों की मानें तो प्राचीन काल में गंगा-पठार में पूर्व से लेकर मध्य तक तथा नेपाल के कुछ क्षेत्र में आग्नेयवंशीय कोल – किरात दोनों जातियों का निवास था।
कालांतर में कोल – किरात दोनों जातियों के वंशज राजी के नाम से जाने गए।
उत्तराखंड राज्य में राजी जनजाति न्यूनतम आबादी वाली जनजाति है।
इस जनजाति को बनरोत, बनराउत, बनरावत, जंगल के राजा आदि नामों से भी संबोधित किया जाता है।
इन सब में राजी नाम अधिक प्रचलित है।
राजी जनजाति का निवास –
राजी जनजाति के लोग उत्तराखण्ड राज्य में मुख्यतः पिथौरागढ़ जनपद के धारचूला, डांडिहाट, कनालीछीनी विकासखंड के 7 गाँवों में, चंपावत के एक गाव में व नैनीताल के जगह में निवास करती है।
उत्तराखण्ड राज्य के पिथौरागढ़ जनपद में 66% राजी जनजाति पायी जाती है।
राजी जनजाति अभी भी उत्तराखंड के जंगलो में वास करती हैं।
उत्तराखण्ड राज्य में अब राजी जनजाति के लोग धीरे – धीरे जंगलो से बाहर आकर झोपड़ियों में रहने लगे हैं।
राजी जनजाति के लोग अपने आवास को ये रोत्युड़ा कहते हैं।
सन 2011 में उत्तराखण्ड राज्य में राजी जनजाति के परिवारों की कुल संख्या 130 तथा इनकी कुल जनसंख्या लगभग 528 थी।
राजी जनजाति का शारीरिक गठन –
राजी जनजाति के लोगों का कद छोटा, मुख चपटा, काठी मजबूत , होंठ बाहर व घुमावदार होते हैं।
राजी जनजाति के लोगों के बाल घुमावदार होते है।
राजी जनजाति के लोगों का शरीर का रंग सामान्य काला या कुछ-कुछ पीलापन होता है।
राजी जनजाति का पहनावा –
राजी जनजाति के पुरूष धोती, अंगरखा, पगड़ी, व चोटी रखते हैं।
राजी जनजाति की महिलाएं ओढ़नी, लहंगा, चोली पहनती है।
राजी जनजाति की भाषा-
राजी जनजाति के लोगों की भाषा में तिब्बती (Tibetan) और संस्कृति शब्दों की अधिक पाए जाते है।
मुख्यतः राजी जनजाति में मुंडा भाषा बोलते हैं।
इस मुंडा भाषा में स्थानीय भाषा का प्रभाव देखने को मिलता है।
राजी जनजाति में बाह्य संपर्क हेतु कुमाऊँ भाषा का प्रयोग किया जाता है ।
राजी जनजाति की सामाजिक व्यवस्था-
राजी जनजाति में विवाह –
राजी जनजाति में बाल विवाह प्रथा प्रचलित है।
राजी जनजाति में विवाह दो परिवारों के बीच एक समझौता माना जाता है।
राजी जनजाति में भी हिंदुओं की तरह अपने गौत्र में विवाह नहीं करते है।
राजी जनजाति में विवाह के पूर्व सांगजांगी व पिण्ठा संस्कार सम्पन होता है।
राजी जनजाति में पलायन विवाह का भी प्रचलन है।
राजी जनजाति का धर्म –
राजी जनजाति के लोग हिन्दू धर्म को मानते हैं।
राजी जनजाति के लोगों का विश्वास है, कि देवी-देवता पहाड़ की चोटी, नदी, तालाब और कूओं में रहते है।
राजी जनजाति के लोग बागनाथ, मलेनाथ, गणनाथ, सैंम, मल्लिकार्जुन, छुरमल आदि देवी-देवताओं को पूजते है।
राजी जनजाति के मुख्य देवता बागनाथ है।
जिस स्थान पर किसी की मृत्यु हो जाती है, तो उस स्थान पर कोई नहीं रहता।
राजी जनजाति में मृतकों को गाड़ने व जलाने की पृथा प्रचलित है।
राजी जनजाति के त्योहार –
राजी जनजाति के दो प्रमुख त्योहार हैं कारक(कर्क) व मकारा(मकर) संक्राति।
राजी जनजाति में इन त्योहारों पर सभी परिवारों में पकवान आदि बनाये जाते है।
राजी जनजाति का नृत्य –
राजी जनजाति के लोग विशेष अवसरों पर ये थडिया जैसा नृत्य करते है।
राजी जनजाति के लोग यह नृत्य गोले में होकर(थडिया नृत्य जैसे) करते हैं।
राजी जनजाति का भोजन –
राजी जनजाति के लोग पहले अपना पोषण जंगल में ही फल-फूल, कंद व मांस आदि खाकर किया करते थे।
अब राजी जनजाति के लोग समिति स्तर पर कृषि, दस्तकारी व मजदूरी से करते है।
राजी जनजाति के लोगों का मुख्य भोजन मडुआ, मक्का, दाल, सब्जी, भट्ट (सोयाबीन), मछली, मांस, जंगली फल, कंदमूल व अनेक जंगली वनस्पतियां है।
राजी जनजाति की अर्थव्यवस्था –
राजी जनजाति के लोग काष्ठ कला (लकड़ियों के सामान) में निपुण होते हैं।
राजी जनजाति के लोग मूक या अदृश्य विनिमय द्वारा व्यापार करते थे।
राजी जनजाति के कुछ परिवार आज भी घुमक्कड़ी अवस्था में जीवन यापन कर रहे है।
राजी जनजाति के अब ज्यादातर लोग झूमविधि से थोड़ी बहुत कृषि करने लगे है।
राजी जनजाति के लोग कृषि के साथ-साथ अब ये आखेट, पशुपालन व वन उत्पाद संग्रहण भी करते है।
सरकार द्वारा वनों की कटाई पर रोक लगने के बाद अब राजी जनजाति के लोग वनों से बाहर निकल कर मजदूरी भी करने लगे है।
अभाव एवं कुपोषण के कारण राजी जनजाति की संख्या दिन – प्रतिदिन घटती जा रही है।