उत्तराखंड का पौड़ी गढ़वाल जनपद
Pauri Garhwal district of Uttarakhand
पौड़ी गढ़वाल जनपद का इतिहास व भौगोलिक स्थिति –
पौड़ी गढ़वाल जनपद का इतिहास –
- पौड़ी गढ़वाल भी गढ़वाल के परमार वंश के अधीन था।
- गढ़वाल वंश के शासक अजयपाल ने पहले देवलगढ़ व उसके बाद श्रीनगर को परमार वंश की राजधानी बनाया था।
- अजयपाल से लेकर प्रधुम्न शाह (1804) तक गढ़वाल के परमार वंश की राजधानी श्रीनगर रही।
- 1804-1815 तक इस क्षेत्र में गोरखाओं ने शासन किया।
- 1815 में यह क्षेत्र अंग्रेजों के अधीन आ गया था।
- अंग्रेजों ने ब्रिटिश गढ़वाल का मुख्यालय श्रीनगर को बनाया।
- 1804 मैं अंग्रेजों ने ब्रिटिश गढ़वाल का मुख्यालय श्रीनगर से पौड़ी लाया व पौड़ी गढ़वाल नए जनपद के रूप में 1840 में गठित हुआ।
- 1969 में गढ़वाल मंडल का गठन हुआ जिसका मुख्यालय पोड़ी बनाया गया।
स्थापना – 1840 में ब्रिटिश गढ़वाल का जिला
मुख्यालय – पौड़ी गढ़वाल
क्षेत्रफल – 5329 वर्ग किलोमीटर
पौड़ी गढ़वाल जनपद की भौगोलिक स्थिति –
पूर्व – अल्मोड़ा नैनीताल
पश्चिम – हरिद्वार देहरादून
उत्तर – टिहरी रुद्रप्रयाग चमोली
दक्षिण – उत्तर प्रदेश
पौड़ी जनपद उत्तराखंड के सर्वाधिक 7 जनपदों से सीमा बनाता है
राष्ट्रीय राजमार्ग –
NH 534 – मेरठ – बिजनोर – नजीबाबाद – कोटद्वार पोड़ी
NH 309 – रामनगर ( नैनीताल ) – थलीमैण – पाबो
जनसंख्या - 6,87,271 पुरूष - 326829 महिला - 360442 जनघनत्व - 129 लिंगानुपात- 1103 साक्षरता दर - 82.02% पुरुष साक्षरता - 92.71% महिला साक्षरता - 72.6%
पौड़ी जनपद नदी तंत्र –
1.नयार नदी –
- नयार नदी दो नदियों से मिलकर बनती है।
पूर्वी नयार-
- उद्गम दुधतोली श्रेणी की जखमोलीधार श्रेणी से
- पूर्वी नयार पर दुनाब परियोजना(बीरोखाल में) है।
पश्चिमी नयार-
- दुधतोली श्रेणी की उत्तर पश्चिमी ढाल से
- पूर्वी नयार व पश्चिमी नयार का संगम सतपुली के निकट होता ह व यहाँ से नयार नदी आगे बढ़ती हुई ब्यास घाट में गंगा से संगम करती है।
2.पश्चिमी रामगंगा-
- उद्गम- दुधतोली श्रेणी से
- पश्चिमी रामगंगा कालागढ़ नामक स्थान से राज्य की बाहर निकल जाती है।
- पश्चिमी रामगंगा पर कालागढ़ बांध परियोजना स्थित है।
3.मालिनी नदी –
- यह नदी कण्वाश्रम के निकट से बहती है।
4.खोह नदी-
- खोह नदी दो नदियों लंगूरगाढ़ व सिलगाढ़ से मिलकर बनती है ये दोनों नदी दुग्गडा के निकट मिलकर आगे खोह नदी के नाम से जानी जाती है।
- खोह नदी कोटद्वार के निकट से बहते हुए उत्तरप्रदेश के धामपुर में पश्चिमी रामगंगा में मिल जाती है।
पौड़ी जनपद की प्रमुख जल विद्युत परियोजनाएँ –
- चीला परियोजना- गंगा नदी
- श्रीनगर जल विद्युत परियोजना – अलकनंदा नदी
- उत्यांसू बांध परियोजना – अलकनंदा
- कालागढ़ बांध परियोजना – पश्चिमी रामगंगा
- दुजाऊ परियोजना – पश्चिमी नयार
- दुनाब परियोजना – पूर्वी नयार
पौड़ी जनपद में जलप्रपात-
पटना जलप्रपात –
- यह जलप्रपात ऋषिकेश में पौड़ी गढ़वाल जनपद के क्षेत्र में गंगा नदी के तट पर स्थित है।
कुंड– तारा कुंड
पौड़ी जनपद के पर्यटक स्थल –
1. कोटद्वार –
- कोटद्वार को गढ़वाल का प्रवेश द्वार कहा जाता है।
- कोटद्वार खोह नदी के निकट बसा है।
- कोटद्वार के निकट मोरध्वज का किला है।
- कोटद्वार को 1951 में नगर पालिका बनाया गया व 2017 में कोटद्वार को नगर निगम बनाया गया।
- कोटद्वार को पहले खोहद्वार भी कहते थे यानी खोह नदी का प्रवेश द्वार।
- कोटद्वार में पौड़ी गढ़वाल का एकमात्र रेलवे स्टेशन है जिसकी स्थापना ब्रिटिश काल में( 1889-90 ) हुई।
- कोटद्वार को अब कण्व नगरी के नाम से जाना जाएगा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इसकी घोषणा की।
2. कण्वाश्रम –
- कोटद्वार से 14 किलोमीटर दूर।
- कवणाश्रम हेमकूट व मणिकूट पर्वतों में मध्य बसा हुआ प्राचीन विद्यापीठ है।
- कवणाश्रम मालिनी नदी के तट पर बसा हुआ है।
- कवणाश्रम में महाकवि कालिदास ने अभिज्ञान शांकुतलम की रचना की।
- कवणाश्रम का वर्तमान नाम चौकाघाट है।
- महाकवि कालिदास ने कवणाश्रम को किसलय प्रदेश कहा।
3. श्रीनगर –
- स्थापना – 1358 ( कनिघम के अनुसार )
- श्रीनगर का पुराना नाम श्री क्षेत्र था
- 1517 अजयपाल ने श्रीनगर को गढ़वाल की राजधानी बनाया।
- अजयपाल से लेकर 1804 ( प्रधुम्न शाह )तक 1804- 1815 तक यहाँ गोरखा का शासन रहा।
- 1815 में यहाँ अंग्रेजों का अधिकार हो गया व श्रीनगर को ब्रिटिश गढ़वाल का मुख्यालय बनाया गया।
- 1840 में ब्रिटिश गढ़वाल का मुख्यालय श्रीनगर से हटाकर पोड़ी गढ़वाल में स्थानांतरित किया गया।
- 1973 में गढ़वाल विश्विद्यालय की स्थापना हुई।
- 1989 में गढ़वाल विश्वविद्यालय का नाम हेमवतीनंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय किया गया।
- 15 जनवरी 2009 को इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त हुआ।
- श्रीनगर के सुमाड़ी में 2009 में NIT ( नेशनल इस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी )की स्थापना की गयी।
श्रीनगर से सम्बंधित अन्य महत्वपूर्ण जानकारी-
केशोराय मठ - भक्तियाणा ( श्रीनगर ) में महिपतशाह के शासनकाल में केशोराय ने केशोरायमठ का निर्माण कराया
कमलेश्वर मन्दिर - यहाँ पर भगवान राम ने शिव की तपस्या की थी
शंकरमठ - भगवान विष्णु व लक्ष्मी को समर्पित शंकराचार्य द्वारा स्थापित अलकनंदा नदी पर स्थित है
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श्रीनगर में मोलाराम चित्र संग्रहालय स्थित है
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उच्च स्थलीय पौध शोध संस्थान श्रीनगर में स्थित हाव्
4.देवलगढ़ –
- देवलगढ़ को कांगड़ा के राजा देवल ने बसाया था।
- अजयपाल ने श्रीनगर से पहले देवलगढ़ को परमार वंश की राजधानी बनाया था।
- देवलगढ़ में राज राजेश्वरी मंदिर स्थित है।
5.लैंसडौन –
- लैंसडौन का पुराना नाम कालोडांडा था।
- 4 नवंबर 1887 को ब्रिटिश सरकार ने लैंसडौन में छावनी की स्थापना की।
- 1890 में कालोडांडा का नाम बदलकर वायसराय लार्ड लैंसडोन के नाम पर लैंसडोन रखा गया।
- लैंसडोन में गढ़वाल रेजीमेंट का मुख्यालय है।
6.खिर्सू-
- खिर्सू पोड़ी जनपद का प्रसिद्ध हिल स्टेशन है।
पौड़ी जनपद के प्रमुख मंदिर –
1.कमलेश्वर महादेव मंदिर –
- यह मंदिर श्रीनगर गढ़वाल में स्थित है।
- मान्यताओं के अनुसार रावण का वध कर भगवान श्री राम ने ब्रह्महत्या पाप से मुक्ति के लिये यहाँ पर शिव की आराधना की थी।
2.दंगलेश्वर महादेव मंदिर-
- यह मंदिर पौड़ी जनपद के सतपुली में नयार नदी के तट पर स्थित है।
3.कोट महादेव मंदिर(बाल्मीकेश्वर महादेव) –
- यह मंदिर पौड़ी गढ़वाल के सीतोनस्यूं पट्टी में स्थित है।
- यहाँ पर महर्षि वाल्मीकि की तपस्थली है।
- सीतोनस्यूं पट्टी के देवल गाँव मे लक्ष्मण जी का प्राचीन मंदिर है।
4.एकेश्वर महादेव मंदिर-
- यह मंदिर सतपुली से 20 km दूर स्थित है।
- इस मंदिर को स्थानीय भाषा में इगासार महादेव मंदिर भी कहा जाता है।
5.तारकेश्वर महादेव मंदिर –
- यह मंदिर लैंसडौन से 36 KM दूर स्थित है।
6.बिन्सर महादेव मंदिर
7.क्यूंकालेश्वर महादेव मंदिर
8.आदेश्वर महादेव मंदिर
9.कालेश्वर महादेव मंदिर
10.राजराजेश्वरी मंदिर –
- यह मंदिर देवलगढ़ में स्थित है।
- राजराजेश्वरी मंदिर गढ़वाल के परमार वंश की कुलदेवी थी।
11.सिद्धबली मंदिर-
- कोटद्वार से 3 KM दूर कोटद्वार – पौड़ी राजमार्ग पर सिद्धबली मंदिर स्थित है।
- सिद्धबली मंदिर हनुमान जी को समर्पित है।
12.ज्वाल्पा देवी मंदिर-
- यह मंदिर पौड़ी-कोटद्वार राजमार्ग पर स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है।
13.धारी देवी मंदिर-
- यह मंदिर श्रीनगर से 14 km दूर अलकनंदा नदी के तट पर कल्यासोड़ में स्थित है।
पौड़ी जनपद के प्रसिद्ध मेले –
1. बैकुण्ठ चतुर्दशी मेला-
- यह मेला पोड़ी जिले के श्रीनगर गढ़वाल में कमलेश्वर मन्दिर में प्रतिवर्ष बैकुण्ठ चतुर्दशी को लगता है।
- कमलेश्व मन्दिर में दंपति रात भर हाथ मे दिया लिये संतान प्राप्ति हेतु पूजा अर्चना करते हैं।
- इस मंदिर में भगवान राम ने रावण को मारने के बाद पूजा की थी।
2. गिन्दी मेला(गेंदी मेला)-
- यह मेला मकर सक्रांति के अवसर पर पोड़ी जनपद के यमकेश्वर ब्लॉक में डांडामंडी में ‘भटपूड़ी देवी’ के मंदिर में लगता है।
- इस मेले में गेंद के लिये छीना झपटी होती है जो पक्ष गेंद को छीनने में सफल होता है वह विजयी होता है।
3. दनगल मेला-
- यह मेला पोड़ी जनपद के सतपुली के पास दनगल के शिव मंदिर में प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि को लगता है।
4. मनसार मेला(मंसार मेला)-
- इस मेले का आयोजन पौड़ी जनपद के सीटोन्सयूँ पट्टी के फलस्वाड़ी व देवलगढ़ गाँव में किया जाता है।
5. सिद्धबली मेला–
- यह मेला कोटद्वार में खोह नदी के तट पर आयोजित किया जाता है।
6.बूंखाल मेला-
- यह मेला पौड़ी गढ़वाल जनपद के थलीसैंण विकासखंड के बूंखाल में कालिंका माता मंदिर में लगता है।
7.नीलकंठ मेला
8.क्यूंकालेश्वर मेला
9.ज्वाल्पा धाम मेला
10.एकेश्वर मेला
पौड़ी गढ़वाल जनपद का प्रशासनिक ढांचा –
लोकसभा- पौड़ी गढ़वाल
विधानसभा क्षेत्र – 6
- पौड़ी ( sc )
- श्रीनगर
- यमकेश्वर
- लैंसडौन
- कोटद्वार
- चौबट्टाखाल
विकासखंड – 15
- पोड़ी
- खिर्सू
- कोट
- पाबौ
- कल्जीखाल
- जहरीखाल
- नैनीडांडा
- द्वारीखाल
- रिखणीखाल
- बोरोखाल
- एकेश्वर
- थलीसैंण
- पोखरा
- दुगड्डा
- यमकेश्वर
पौड़ी गढ़वाल जनपद की तहसील – 12
- पौड़ी
- कोटद्वार
- लैंसडौन
- श्रीनगर
- थलीसैंण
- सतपुली
- धूमाकोट
- चौबट्टाखाल
- यमकेश्वर
- बीरीखाल
- चाकीसैण
- जाखणीखाल