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राजस्थान की चित्रकला (भाग – I)

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राजस्थान की चित्रकला (भाग – I)


Painting of Rajasthan (Part – I)


7-15 वीं सदी में अजंता शैली का प्रभाव था

15 वीं सदी में मुग़ल शैली का प्रभाव था

17-18 वीं सदी राजस्थानी चित्रकला का स्वर्णकाल था

चित्रकला का नामकरण – 

  • हिन्दू शैली – राजस्थानी चित्रकला को एन. सी. मेहता ने हिन्दू शैली कहा है
  • राजस्थानी शैली – राजस्थानी चित्रकला को राम कृष्ण दास व कर्नल टॉड ने राजस्थानी शैली कहा है
  • राजपूत शैली – राजस्थानी चित्रकला को आनंद कुमार स्वामी, ओ. सी. गाँगुली व हैवेल ने राजपूत शैली कहा है
  • राजपूत कला – राजस्थानी चित्रकला को डब्लू. एच. ब्राउन महोदय ने इंडियन पंटिंग्स में राजपूत कला कहा है
  1. भारतीय चित्रकला का पितामह – रवि वर्मा (केरल)रवि वर्मा में महाराणा प्रताप का चित्र बनाया था
  2. प्रथम भारतीय महिला चित्रकार – सुरजीत कुमारी चोयल
  3. आधुनिक चित्रकला का जनक – कुंदन लाल मिस्त्री
  4. राजस्थानी चित्रकला का प्रथम वैज्ञानिक विभाजन – आनंद कुमार स्वामी
  5. एकल चित्रप्रियदर्शनी कला का वर्गीकरण – राम गोपाल विजयवर्गीय
  6. मास्टर ऑफ़ नेचर लिविंग ऑब्जेक्ट (Master of Nature Living Object) देवकीनंदन शर्मा (अलवर)

राजस्थानी चित्रकला का उदभव –

  • तिब्बती इतिहासकार तारा नाथ भंडारी ने मारवाड़ में मरुप्रदेश में राजा शील के दरबार में शृंगाधर नामक चित्रकार का उल्लेख किया है
  • दसेव कालिक सूत्र चूर्णी ,ओध नियुक्ति वृति राजस्थान का 1060 ई. का प्रथम चित्रित ग्रन्थ था
  • आलनिया (कोटा) से शैलचित्र प्राप्त हुए थे। इनकी खोज श्रीधर वाकणकर ने की थी।
  • विराट नगर की पहाड़िया (वर्तमान – बैराट) से कंकाल के चित्र मिले है। इनकी खोज वी. ए. टॉलमी ने की थी। विराट नगर की पहाड़ियों को परयात्र भी कहा जाता है।
  • पुष्कर में अग्यस्थ ऋषि के गुफा के चित्र मिले है।
  • दर (भरतपुर) में पशु- पक्षियों में चित्र डॉ. जगन्नाथ पुरी के है।
  • सवाई माधोपुर में मंदिरों में आखेट (शिकार) के चित्र मिले है।

राजस्थानी चित्रकला को चार स्कूलों में बाटा गया है –

  1. मेवाड़ स्कूल 
  2. मारवाड़ स्कूल  
  3. ढूढाड़ स्कूल 
  4. हाडौती स्कूल 

मेवाड़ स्कूलमारवाड़ स्कूल ढूढाड़ स्कूल हाडौती स्कूल
उदयपुर जोधपुरआमेर (जयपुर)कोटा
चावण्ड (उदयपुर)बीकानेरजयपुरबुंदी
नाथद्वारा (राजसमन्द)किशनगढ़ (अजमेर)अलवर
देवगढ़ (राजसमन्द)नागौरउणियारा (टोंक)
शाहपुरा (भीलवाड़ा)जैसलमेरशेखावाटी

मिनीएचर पंटिंग – 

  • मिनिएचर शब्द की उत्पत्ति मिनियम शब्द से हुई है। यह एक लेटिन भाषा का शब्द है। जिसका अर्थ लाल रंग का शीशा होता है।
  • सूक्ष्म वस्तुओं पर किया जाने वाला चित्रांकन। चावल या राई के दाने में चित्र बनाना।
  • बेंगू (वर्तमान में चित्तौड़गढ़) के किशन शर्मा ने राइ के दाने में मीरा बाई का चित्र बनाया था।
  • हीरालाल सोनी ने चावल के दाने में चित्र बनाया था।

चितेरा – 

  • क्लॉथ आर्ट के जन्मदाता – कैलाश जागोटिया
  • भैसों का चितेरा – परमानंद चोयल
  • भीलों का / बारात का चितेरा – गोबर्धन लाल बाबा 
  • शवानों का चितेरा – जग मोहन माथोडिया
  • केनवास चितेरी – प्रतिभा पांडे
  • नीड़ का चितेरा – सौभाग्यमल गहलोत
  • गावों का चितेरा – भुर सिंह शेखावत 
  • राई का चितेरा – किशन लाल शर्मा 
  • वातिक कला का चितेरा – उमेश चन्द्र शर्मा 
  • जैन शैली का चितेरा – कैलाश चन्द्र 
  • मुग़ल शैली का चितेरा – साकिर अली

अनोटा – चित्रों को व्यवस्थित कर एक स्थान में रखना।

डमका – चित्रों में रंग भरना।

जोतदाना – चित्रों को संग्रहित करना।

चितेरा – चितेरा चित्रकार को कहा जाता है।

राजस्थानी चित्रकला की जननी मेवाड़ को कहा जाता है। इस चित्रकला में गुजरती चित्रकला शैली का प्रभाव मिलता है। पश्चिमी भारत के कलाकारों का प्रवेश राजस्थान में हुआ था।

मेवाड़ चित्रशैली –

  • मेवाड़ चित्रशैली में  गुजरात चित्रशैली का प्रभाव था।
  • मेवाड़ चित्रशैली में पोथी ग्रंथो का चित्रण सर्वाधिक हुआ है।
  • मेवाड़ राजस्थानी चित्रशैली की जननी है।
  • मेवाड़ चित्रशैली की शुरुवात 1260 ई. में महाराणा तेज सिंह के समय हुआ थी।
  • महाराणा तेज सिंह के समय श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र चूर्णी ग्रन्थ मिला था।
  • यह ग्रन्थ ताड़ के पत्तो पर बनाया गया ग्रन्थ था।
  • इस ग्रन्थ के चित्रकार कमलचंद्र थे।
  • यह वर्तमान में जैसलमेर संग्रालय में रखा हुआ है।
  • 1423 ई. में राणा मोकल के समय सुपासनाह चरियम ग्रन्थ मिला है।
  • सुपासनाह चरियम के चित्रकार हीरानंद थे।
  • सुपासनाह चरियम मेवाड़ चित्रशैली का सबसे बड़ा चित्रित ग्रन्थ है।
  • 1426 ई. में धनसार का चित्रित ग्रन्थ कल्पसूत्र मिला है।
  • राणा कुम्भा को कला व सथापत्य कला का जनक कहा जाता है।
  • संग्रामसिंह द्वितीय के समय कलीला दमना नामक चित्रित ग्रन्थ मिला है।
  • कलीला दमना अच्छाई व बुराई के प्रतिक दो गीदड़ है।
  • कलीला दमना के बारे में सर्वप्रथम अलबरूनी ने बताया था।
  • कलीला दमना का चित्रकार नुरदीन है।
  • पंच तंत्र का सचित्र प्रकाशन सवर्प्रथम 1258 ई. में बग़दाद में हुआ था।
  • पंच तंत्र विष्णु शर्मा की रचना है। पंच तंत्र का फारसी अनुवाद अनवारे सुहैली या आयरे दानिश कहलाता है।
  • पंच तंत्र का फ़ारसी अनवाद अनवारे सुहैली मुल्ला हुसैन वाइज काशिफी ने किया था।
  • पंच तंत्र का फ़ारसी आयरे दानिश अबुल फजल ने किया था।

मेवाड़ चित्र शैली का स्वर्ण काल – 

  • मेवाड़ चित्र शैली का स्वर्ण काल जगतसिंह प्रथम का काल था।
  • चित्रकला नासिरुद्दीन / निसारदीन ने राग माला शेड का चित्र बनाया था।

मेवाड़ चित्रशैली के ग्रन्थ – 

  • मनोहर – आर्ष रामायण
  • जगन्नाथ – बिहारी सतसई
  • धनसार – कल्पसूत्र
  • कमल चन्द्र – श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र चूर्णी
  • हीरानन्द – सुपास नाह चरियम
  • साहिबदीन – भागवत पुराण
  • राशिक प्रिय
  • मधु मालती
  • सुंदर शृंगार
  • कवि प्रिया

मेवाड़ चित्रशैली के रंग – 

  • प्रमुख रंग – लाल रंग
  • अन्य रंग – नीला, पिला, सफेद
  • बॉर्डर में कला रंग का भी उपयोग किया जाता है।

मेवाड़ चित्रशैली का प्रमुख वृक्ष – 

  • कदम्ब

मेवाड़ चित्रशैली के प्रमुख पशु- पक्षी – 

  • हाथी
  • चकोर पक्षी

नर चित्र की विशेषता – 

  • छोटा कद
  • मुछे
  • दाढ़ी
  • पगड़ी

नारी चित की विशेषता –

  • मीन/ कमल की आँखे
  • छोटा कद
  • गाल पर काले रंग का तिल
  • छोटी ठोड़ी

 

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