सामाजिक सुधार- प्रमुख सामाजिक सुधार
Major social reforms
सती प्रथा : Sati Pratha (Sati Practice) –
- वर्ष 1829 तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक (Lord william bentik) ने सती प्रथा को बंद कर दिया।
- विलियम बेंटिक ने 1829 ईसवी के नियम 17 के द्वारा सती प्रथा को बंद किया था।
- सती प्रथा को बंद करवाने में सबसे महत्वपूर्ण योगदान राजा राममोहन राय का था।
- 1830 में राजा राधाकांत देव ने सती प्रथा के समर्थन के लिए धर्म सभा की स्थापना की।
दास प्रथा : Das pratha (Slavery Practice) –
- मध्यकालीन भारत में तुगलक वंश के राजा फिरोजशाह तुगलक ने दासों के व्यापार पर रोक लगाई थी तथा दासों के लिए दीवान-ए- बंदगान नामक विभाग भी बनाया था।
- इसके बाद मुगल काल के समय मुगल बादशाह अकबर ने भी दास प्रथा को प्रतिबंधित किया था।
- आधुनिक काल में 1789 ईस्वी में कार्नवालिस ने दासों के व्यापार को बंद किया और इसके बाद गवर्नर जनरल एलनबरो ने 1843 में दास प्रथा को भी समाप्त कर दिया।
नरबलि प्रथा : Narbali pratha (Cannibalism Practice) –
- नरबलि प्रथा भारतीय समाज में व्याप्त एक प्रचलित बुराई थी, अधिकतर यह प्रथा को जनजाति क्षेत्रों में प्रचलित थी।
- जिसे समाप्त करने के लिए गवर्नर जनरल हार्डिंग प्रथम ने एक अंग्रेज अधिकारी कैंपबेल की नियुक्ति की।
- वर्ष 1844-45 में इस प्रथा को समाप्त कर दिया गया।
- नरबलि प्रथा को समाप्त करने का श्रेय गवर्नर जनरल हार्डिंग प्रथम को जाता है।
ठगी प्रथा:Thagi pratha (Fraudulent Practice) –
- 1830 ईस्वी में ठगों को समाप्त किया गया, जिसका श्रेय गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक को जाता है।
- इस कार्य के लिए बेंटिक ने एक अंग्रेज अधिकारी कार्ल स्लीमैन की नियुक्ति की थी।
शिशु वध : Shishu Vadh (Infant slaughter) –
- भारतीय समाज में प्रचलित शिशु वध प्रथा के तहत कन्याओं को जन्म लेते ही मार दिया जाता था।
- 1795 ईस्वी में गवर्नर जनरल जॉन शोर ने बंगाल नियम XXI के तहत शिशु वध को गैरकानूनी घोषित किया गया।
- इसके बाद 1802 ईस्वी में गवर्नर जनर वेलेजली ने धारा 6 के द्वारा शिशु हत्या को साधारण हत्या के बराबर का अपराध घोषित किया।