डोला-पालकी आन्दोलन-
- डोला-पालकी आन्दोलन शिल्पकारों (निम्न वर्ग) द्वारा किया गया था।
- इस आन्दोलन का मुख्य उप्देश्य समाज में शिल्पकारों को स्वर्ण दुल्हे के समान सामाजिक स्तिथि को प्राप्त करना था।
- शिल्पकार दूल्हो को पैदल ही चलना पड़ता था उन्हें डोली में नहीं बैठने दिया जाता था।
- जयानंद भारती ने लगभग 20 वर्षों तक चलने वाले इस आन्दोलन के समाधान के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में मुकदमा दायर किया।
- जिसका निर्णय शिल्पकारों के पक्ष में आया।
- जिसके पश्चात शिल्पकार दुल्हे व् दुल्हन को भी डोली में बैठने का अधिकार प्राप्त हुआ।
- मुंशी हरी प्रसाद टम्टा को कुमाऊँ का अम्बेडकर(पहाड़ का अम्बेडकर भी) कहा जाता है।
- 1911 में मुंशी हरी प्रसाद टम्टा ने दलितों के लिए शिल्पकार शब्द का प्रयोग करा था।
- 1996 में परिपूर्णा नन्द पैन्यूली को अम्बेडकर पुरुस्कार से सम्मानित किया गया ।
कनकटा बैल आन्दोलन-
- कनकटा बैल आन्दोलन अल्मोड़ा के बडियार रेट (लमगड़ा) गाँव से शुरू हुआ था।
- यह आन्दोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ था।
- अल्मोड़ा के बडियार रेट (लमगड़ा) गाँव में एक बैल के ऋण लेने के लिए दो बार कान काटे गए।
- अधिकारियों ने दो बार ऋण लिया तथा दो बार बीमा की राशि हड़प कर ली गई ग्रामीणों द्वारा।
- फलस्वरुप इस बैल को राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों में घुमाया गया तथा भ्रष्ट अधिकारियों का पर्दाफाश किया गया।
- भ्रष्ट अधिकारियों के इस भ्रष्टाचार उजागर करने के लिए यह आन्दोलन चलाया गया।
कोटा खुर्द आंदोलन–
- सरकार द्वारा बनाए गए , नए भूमि तथा वन कानूनो के विरोध में कोटा खुर्द आंदोलन चलाया गया था।
- इस कानून तहत स्थानीय लोगों की जमीनों को जंगलात की भूमि में तब्दील किया जा रहा था।
- यह आन्दोलन इस सीलिंग कानून के खिलाफ राज्य के तराई क्षेत्रों में भूमिहीन किसानों एवं श्रमिकों को भूमि वितरण करने से सम्बंधित था।
कुली बेगार-
- कुली बेगार प्रथा ब्रिटिश काल में प्रचलन में थी।
- ब्रिटिश काल में जब अंग्रेज एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाते थे, तो रास्ते में पड़ने वाले सभी गॉवो के लोगों का यह दायित्व होता था कि गॉव के व्यक्ति अंग्रेजों क सामान को एक गांव से दूसरे गांव की सीमा तक लेकर जाएंगे।
- इसके संबंध में रजिस्टर तैयार किए गए थे जो गॉव के मुखिया के पास रहते थे।
- इन रजिस्टरों को बेगार रजिस्टर कहा जाता था।
- सामान ले जाने वाले ग्रामीणों को उसके बदले कोई भी धनराशि नहीं मिलती थी।
- 1921 में कुली-बेगार आन्दोलन बागेश्वर में आम जनता द्वारा चलाया गया अहिंसक आन्दोलन था।
- 13-14 जनवरी 1921 को बागेश्वर के उत्तरायणी मेला में बद्रीदत्त पाण्डेय तथा चिरंगी लाल शाह के नेतृत्व में 40 हजार आंदोलनकारियो द्वारा कुली बेगार ना देने की शपत ली गयी।
- पटवारियों ने कुली बेगार से सम्बंधित सभी रजिस्टर सरयू नदी में फेक दिए गये।
पाणी राखो आंदोलन-
- सरकार द्वारा चलाई गयी वन नीति के कारण जंगलों का अथाह रूप से कटान हो रहा था।
- जिसके कारण पर्यावरण असंतुलन तथा पेयजल समस्या गहराने लगी थी।
- पौड़ी के उफरैंखाल में सच्चिदानंद भारती द्वारा पाणी राखो आंदोलन चलाया गया।
- जिसके अंतर्गत पर्यावरण व् जल स्रोतों को संरक्षित करने का प्रयास किया गया था।
विश्वविद्यालय आन्दोलन-
- विश्वविद्यालय आन्दोलन के तहत कुमाऊँ तथा गढ़वाल में विश्वविद्यालय खोलने के लिए चलाया गया था।
- 1973 में कुमाऊँ विश्वविद्यालय तथा गढ़वाल विश्वविद्यालय की स्थपाना की गयी।