धार्मिक,एतिहासिक व पारंपरिक तौर से बागेश्वर में आयोजित उत्तरायणी मेले का आयोजन जनवरी मास में मकर सक्रांति के दिन किया जाता है। उत्तरायणी मेला कुमाऊँ का सबसे प्रसिद्ध मेला है।उत्तरायणी मेला 7 दिनों तक चलता है।उत्तरायणी मेले के अवसर पर बहुत अधिक मात्रा में श्रद्धालु बागनाथ मंदिर(बागेश्वर) में भगवान शिव के दर्शन के लिए पहुँचते हैं।
श्री पूर्णागिरी मेला-
चंपावत जनपद में स्थित अन्नपूर्णा शिखर पर पूर्णागिरी का मंदिर 5500 फुट की ऊँचाई पर है। चैत्र की नवरात्रियों में प्रत्येक वर्ष श्री पूर्णागिरी मंदिर में में मेला लगता है। देवी भगवती जी के108 सिद्धपीठ में श्री पूर्णागिरी देवी मंदिर की गणना की जाती है।
हाटकेशवर, शिवरात्रि मेला-
गंगोलीहाट, जनपद पिथौरागढ़ में इस मेले का आयोजन शिव रात्रि के दिन किया जाता है।
थल मेला-
पिथौरागढ़ में थल नामक स्थान पर इस मेले का आयोजन किया जाता है।13 अप्रैल1940 को थल में बैशाखी के अवसर पर जलियांवाला दिवस मनाया गया। जिसके बाद थल मेले की शुरुवात हुई।60 वर्षो तक यह मेला लगभग 20 दिनों तक चला था, लेकिन अब यह मेला 12-15 अप्रैल तक ही आयोजित किया जाता है।
स्याल्दे बिखौती मेला-
वैशाख माह में प्रतिवर्ष अल्मोड़ा के द्वाराहाट में बिखौती मेला लगता है। इस मेले का आयोजन 13-16 अप्रैल को आयोजित किया जाता है।प्रथम रात्रि में इस मेले को स्याल्दे मेला कहा जाता है।कत्यूरी शासन काल में इस मेले का आयोजन हुआ माना जाता है।
चैती मेला-
10 दिन तक चलने वाले इस मेले का आयोजन उधम सिंह नगर के काशीपुर के पास स्थित कुंडेश्वरी देवी के मंदिर में प्रतिवर्ष किया जाता है।
नंदा देवी मेला–
नंदादेवी(हिमालय की पुत्री) की पूजा-अर्चना के लिए प्रतिवर्ष नंदादेवी मेला भाद्र शुक्ल पक्ष की पंचमी से राज्य के कई क्षेत्रों (अल्मोड़ा, नैनीताल, बागेश्वर, मिलम आदि)में नंदादेवी का मेला शुरू होता है।नंदादेवी परिषर(अल्मोड़ा) में इस दिन बहुत बड़ा मेला का आयोजन होता है।
श्रावणी मेला-
श्रावणी मेला श्रावण मास में अल्मोड़ा के जागेश्वर धाम में प्रतिवर्ष एक माह तक लगता है। जागेश्वर धाम मंदिर 12-13वीं शताब्दी में निर्मित हुआ था।इस अवसर पर जागेश्वर मंदिर में महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए घी के दीपक हाथ में लिए रात भर पूजा-अर्चना करती हैं तथा आशीर्वाद मांगती हैं की उनकी मनोकामनाएं की पूर्ण हो। इस दौरान ग्रामीण ढोल-नगाड़े व् हुड़की की सुरीली धुन में नाचते-गाते जागेश्वर धाम मंदिर तक जाते है।
सोमनाथ मेला–
रामगंगा नदी के तट पर स्थित पाली-पछाऊ क्षेत्र मासी(रानीखेत) में सोमनाथ का मेला बैशाख महीने के अंतिम रविवार से शुरु होता है।मेला प्रारंभ होने की प्रथम रात्रि में सल्टिया सोमनाथ मेला लगता है तथा दूसरे दिन ठुल कौतिक लगता है।नान कौतिक,ठुल कौतिक के बाद लगता है।नान कौतिक के अगले दिन बाजार लगता है।सोमनाथ मेले मे पशुओं का क्रय-विक्रय अधिक मात्रा में होता है।सोमनाथ मेले मे झोडा, छपेली, बैर, चांचरी व भगनौल आदि लोक नृत्य होते हैं।इस मेले में दूर-दूर से आये गायक-कलाकार भाग लेते है।
गणनाथ मेला–
कार्तिक पूर्णिमा को गणनाथ (तालुका) जनपद अल्मोड़ा में प्रत्येक वर्ष गणनाथ मेला लगता है।तालबद्ध भजनों की आवाज़ और लोक गीत पूरे क्षेत्र के लोगो को लुभाते हैं।
बग्वाल मेला–
बाराही देवी मंदिर चंपावत जनपद के देवीधुरा नामक स्थान में है। बाराहीदेवी मंदिर के प्रांगणमें रक्षा बंधन (श्रावणी पूर्णिमा) के दिन प्रतिवर्ष बग्वाल मेले का आयोजन किया जाता है। इसे ‘आषाढी कौतिक’(स्थानीय बोली में) भी कहा जाता है।इस मेले में लोग एक दूसरों पर पत्थरों की वर्षा करते है।जो व्यक्ति इस बग्वाल में हिस्सा लेता है उन्हें द्योके कहा जाता है। इस बग्वाल में आस-पास के क्षेत्र चंयाल, वालिक, गहड़वाल व लमगाडा से लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते है।
लडी धुरा मेला–
चंपावत के बाराकोट में पद्मा के देवी मंदिर में लडी धुरा मेला लगाया जाता है।कार्तिक पूर्णिमा के दिन लडी धुरा मेले का आयोजन होता है। इस मेले में बाराकोट तथा काकड़ गांव के लोग धुनी बनाकर रात-भर भजन-कीर्तन करते हुए देवताओ की पूजा करते है।दूसरे दिन देवताओं को सभी विधि-विधान के साथ तैयार कर उन्हें रथ में बैठाया जाता है।मंदिर की परिक्रमा कर सभी भक्तजन पूजा करते हैं।
मानेश्वर मेला-
मायावती आश्रम (चंपावत) के समीप एक चमत्कारी शिला मानेश्वर है। इस चमत्कारी शिला के समीप मानेश्वर मेले का आयोजन होता है।मान्यता है की इस मानेश्वर नामक चमत्कारी शिला की पूजा करने से पशु, विशेषकर दुधारु पशु स्वस्थ रहते है।
जौलजीवी मेला–
उत्तराखंड के पिथोरागढ़ जनपद के जौलजीवी नामक स्थान काली एवं गौरी नदियों के संगम पर स्थित है।जौलजीवी में प्रतिवर्ष कार्तिक माह (14 नवंबर से 19 नवंबर) में जौलजीवी मेला लगता है। 1914 मार्गशीर्ष संक्रांति को सर्वप्रथम इस मेले की शुरुआत हुई थी। जौलजीवी मेले में बहुल क्षेत्रों जौहार, व्यास, दारमा आदि जनजाति के लोग आते है। ये लोग ऊनी उत्पाद जैसे दन,पंखिया, चुटके, पश्मीने,कालीन लेकर पहुंचते हैं।
कुमाऊँ मंडल के अन्य प्रमुख मेले–
अल्मोड़ा जनपद
बागेश्वर जनपद
नैनीताल जनपद
चम्पावत जनपद
उधमसिंहनगर जनपद
पिथौरागढ़ जनपद
बिनाथेश्वर मेला
बागनाथ मेला
जिया रानी का मेला (रानीबाग)
कार्य अभि मेला
अटरिया मेला (रुद्रपुर)
गबला देव मेला
सोमेश्वर मेला
नागनाथ मेला
चित्रशिला मेला
कालसन का मेला (टनकपुर)
सखरपीर मेला
छलिया मेला
देवस्थल मेला
वैद्यनाथ मेला
शीलावती मेला (नैनीताल)
सूर्य षष्ठी मेला
शहीद उधमसिंह महोत्सव
रामेश्वर मेला
गोलज्यू महोत्सव
पुष्कर नाग
हरियाली मेला
दीप महोत्सव
गंगावली महोत्सव
छलिया महोत्सव
सरस मेला (हल्द्वानी)
मोस्टामानु मेला
सालम रंग महोत्सव
ग्रामीण हिमालय हाट
बेरीनाग मेला
शहीद दिवस
हिलजात्रा उत्सव
बिनाथेश्वर मेला
गंगावली महोत्सव
कनालीछीना महोत्सव
गढ़वाल मंडल के प्रमुख मेले –
गिन्दी मेला–
पौड़ी गढ़वाल के डाडामण्डी में मकर संक्रांति के अवसर भटपुण्डी देवी के मंदिर पर प्रतिवर्ष गिन्दी मेला लगता है।
बिस्सू मेला–
उत्तरकाशी के भुटाणु, टिकोची, मैंजणी,किरोली आदि गांवों द्वारा सामूहिक रुप से प्रतिवर्ष बिस्सु मेला मनाया जाता है।यह मेला को प्रतिवर्ष विषुवत संक्रांति के दिन लगाया जाता है इसी के कारण इसे बिस्सू मेला कहा जाता है।जौनसार-भावर व आराकोट-बंगाण (देहरादून के चकराता तहसील) क्षेत्रों में भी बिस्सू मेला हर्षोल्लास से मनाया जाता है।बिस्सु मेला धनुष-बाणों के युद्ध के लिए प्रसिद्ध है।
चंद्रबदनी मेला–
चन्द्रबदनी मंदिर टिहरी में यह मेला प्रतिवर्ष अप्रैल में लगता है।गढ़वाल के स्थित प्रसिद्ध 4 शक्तिपीठों में से एक यह मंदिर भी माना जाता है।
बैकुंठ चतुर्दशी मेला–
पौड़ी जिले के श्रीनगर में कमलेश्वर मंदिर पर बैकुंठ चतुर्दशी के अवसर पर प्रतिवर्ष बैकुंठ चतुर्दशी मेला आयोजित किया जाता है।इस अवसर पर पुरे श्रीनगर बाजार को सजाया जाता है।
माघ मेला–
माघ के महीने में प्रतिवर्ष उत्तरकाशी में माघ मेले का आयोजन किया जाता है। माघ मेला बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है।माघ मेला 7 दिनों तक चलता है। इस दौरान ग्रामीण वासी देवी-देवताओं की डोली उठाकर इस मेले में लेके आते है।सभी व्यक्ति उसके बाद गंगा स्नान करते हैं।माघ मेले में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।
दनगल मेला–
पौड़ी के सतपुली के पास दनगल के शिव मंदिर में प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि के दिन दंगल मेला लगता है। इस दिन यहाँ बड़ी मात्रा में श्रद्धालुजन आते है।
रण भूत कौथिग–
यह मेला ‘भुत-नृत्य’ के रूप में राजशाही के समय विभिन्न युद्धों में मारे गये लोगों की याद में होता है।कार्तिक माह में प्रत्येक वर्ष टिहरी गढ़वाल के नैलचामी पट्टी केठेला गाँव में इस मेले का आयोजन किया जाता है।
विकास मेला–
विकास प्रदर्शनी के नाम से प्रसिद्ध यह मेला प्रतिवर्ष टिहरी गढ़वाल में आयोजित किया जाता है।
हरियाली पुड़ा मेला–
चैत्र मास के पहले दिन कर्णप्रयाग (चमोली) के नौटी गांव में हरियाली पुड़ा मेला लगता है।नंदादेवी को धियाण (विवाहित कन्या) मानते हुए नौटी गांव के लोग उनकी पूजा-अर्चना करते है। इस पावन मौक़े में धियाणिया(विवाहित कन्याए) अपने मायके जाती हैं तथा अपने परिवार- जन को भेंट(उपहार) देती है। इस मेले के दुसरे दिन श्रद्धालुजन उपवास रखते है तथा यज्ञ किया जाता है।
गौचरमेला–
गढ़वाल के तत्कालिक डिप्टी कमिश्नर बर्नेडी ने 1943 में गोचर मेला शुरु किया था। इस मेले का उद्देश्य सीमा-प्रदेश क्षेत्रवासियों को क्रय-विक्रय के लिए एक मंच उपलब्ध कराना था। आजादी से पहले मेले की तिथि का निर्धारण हर वर्ष भिन्न-भिन्न होता था,आज़ादी के बाद गौचर में मेले का आयोजन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन के अवसरपर होता है। यह मेला 14 नवम्बर से शुरू होकर एक हफ्ते तक चलता है।
टपकेश्वर मेला–
देहरादून की देवधारा नदी के किनारे एक गुफा में टपकेश्वर मन्दिर स्थित है। शिव रात्रि के पावन अवसर पर टपकेश्वर मन्दिर में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।इस टपकेश्वर मंदिर की मान्यता दूर-दूर तक है तथा यहाँ काफी दूर-दूर से श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन के लिए आते है।
नुणाई मेला–
श्रावण माह में देहरादून के जौनसार क्षेत्र में नूणाई मेला लगता है।नूणाई मेला भेड़ बकरियों को पालने वालों के नाम से जाना जाता है।
झंडा मेला–
चैत्र कृष्ण की पंचमी से शुरु होने वाले इस मेले का आयोजन देहरादून में प्रतिवर्ष होता है। यह मेला तक़रीबन 1 महीने तक चलता है।इस मेले को सिखों के 7वें गुरु राम राय जी के जन्मदिन तौर पर मनाया जाता है।इसी दिन गुरु राम राय जी का देहरादून आगमन हुआ था।इस मेले से कुछ दिन पूर्व ही पंजाब से श्री गुरु राम राय जी के भक्तों का बड़ा समूह पैदल चलकर देहरादून आता है।श्री गुरु राम राय जी के भक्तों समूह को संगत कहते है।करीब 100 फीट का लोहे के स्तंभ पर पर झंडे चढ़ाये जाते हैं।
कुंभ मेला–
कुम्भ मेला प्रत्येक बारहवे वर्ष में गुरु के कुंभ राशि और सूर्य के मेष राशि पर स्थित होने में हरिद्वार के गंगा तट पर लगता है।कुम्भ मेले में करोड़ों श्रद्धालु आते है। यह भीड़ इतनी ज्यदा होती है की इस भीड़ को ब्रह्माण्ड से भी देखा जा सकता है। प्रत्येक 6 वर्षो में अर्द्धकुम्भ लगता है।