• मूल नाम- धन सिंह थापा
  • पिता –  पी. एस. थापा
  • जन्म- 10 अप्रैल, 1928
  • उपाधि –मेजर (बाद में- लेफ्टिनेंट कर्नल)
  • देहांत –5 सितम्बर 2005 (उम्र 77)

धन सिंह थापा का जीवन परिचय-

10 अप्रैल 1928 को हिमाचल प्रदेश के शिमला में धन सिंह थापा का जन्म हुआ था।यह नेपाली मूल के भारतीय थे।28 अगस्त 1949 को धन सिंह थापा को 8 गोरखा राइफल्स की पहली बटालियन में  शामिल किया गया था।धन सिंह थापा एक कमांडिंग ऑफिसर के रूप में सेना सेना में शामिल हुए थे। वह बहुत ही सरल स्वभाव के अधिकारी थे।

भारत-चीन युद्ध

1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान भारत युद्ध करने की स्थिति में नहीं था।तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भारत चीन बॉर्डर से सेना पीछे हटाने का आदेश दे दिया था क्योंकि पंडित जवाहरलाल नेहरू का मानना था कि देश के भीतर विकास होना ज्यादा आवश्यक है।इसी के चलते देश में अधिकतर गोला बारूद बनाने वाली कंपनियां बंद कर दी गई और बॉर्डर से अधिकतर सैनिकों को वापस बुला लिया गया था। इसका फायदा उठाकर चीन ने 1962 में भारत पर आक्रमण कर दिया था।चीन युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार था। चीनियों के पास हथियारों और गोला-बारूद का भंडार था।
8 गोरखा राइफल्स की पहली बटालियन की डी कंपनी को सिरी जाप चौकी पर बनाने का काम दिया था।इस कंपनी की कमान मेजर धन सिंह थापा सम्भाल रहे थे।पानगौंग त्सो झील के समीप सिरी जाप 1 पर भारतीय सेना ने चौकी बनानी थी,उधर चीन ने पहले से ही लद्दाख में बहुत सारी चौकियाँ बना चुके थे।सिरी जाप का ये इलाक़ा 48 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ था,इसलिए यहाँ कुछ-कुछ दूरी में चौकियाँ बनाना जरुरी था।मेजर धन सिंह थापा की डी कंपनी में केवल 28 सैनिक थे।इस युद्ध में चीनी सेना भारतीय सेना से हर चीज में आगे थी।चीनी सेना ने भुत तेजी के साथ चौकियां बनाना शुरू कर दिया था।
19 अक्टूबर 1962 को भारतीय सेना ने देखा की सिरी जाप में उनकी चौकी के पास चीनी सेना की तादाद बहुत ज्यदा बढ़ने लगी थी।ऐसा ही नज़ारा ढोला के सामने, पूर्वी छोर पर भी देखने को मिला।जहाँ काफ़ी मात्रा में चीनी सैनिक भरी मात्रा में थे और उनके पास भुत ज्यदा मात्रा में गोला बारूद भी था।संकेत यह मिल रहे थे की चीनी सेना दो तरफों से हमला करने की सोच रही थी।इस सब को देखते हुए धन सिंह थापा ने ये सब देखते हुए अपने साथियों से जल्द से जल्द अपने बचे हुए काम खत्म करने को कहा।लड़ाई के लिए जो बंकर बनानी थी वो कार्य भी बेहद कठिन था क्योंकि जमीन बर्फ की सख्त सतह से ढकी हुई थी।इन सब कठिनाइयों को देखते हुए कम्पनी कमाण्डर ने रेत की बोरियों और राशन की बोरियों तक से बंकर बनाने के आदेश दे दिए थे।
20 अक्टूबर 1962 को सुबह 4:30 बजे चीनी सेना ने भारतीय सेना पर हमला कर दिया था।चीनी सेना तमाम आधुनिक हथियारों के साथ हमला कर रही थी।चीनी सेना लगातार गोलियों चलाने के साथ-साथ मोर्टार से भी हमला करने में सक्षम थे।यह हमला करीब ढाई घंटे तक चला जिसका फायदा चीनी सेना को मिला और वो करीब डेढ़ सौ गज अंदर आ अगये थे।गोलाबारी रुकने के बाद जैसे ही भारतीय सेना ने देखा की क़रीब छह सौ चीनी सैनिक हमला करने के लिए उनकी तरफ़ आने में है।गोरखा इसी का इंतजार कर रहे थे ताकि चीनी उनके बरिब आये और उनकी मशीनगन के मार के अन्दर आ सके।जैसे ही चीनी सेना करीब आई वैसे ही मेजर धन सिंह थापा ने अपने सैनिको को हमला करने को बोल दिया,जिससे काफ़ी मात्रा में चीनी सैनिक मारे गये और बहुत से चीनी सैनिक घायल हो गये थे।इस हमले में भारतीय सेना को भी काफ़ी नुक्सान उठाना पड़ा।बहुत से सैनिक शहीद तथा घायल हो गये थे।सैनिको को घायल होते हुए देख सेक्शन कमाण्डार नायक कृष्णा बहादुर थापा ने खुद लाइट मशीनगन संभाल कर चीनी सैनिकों गोलियाँ बरसानी शुरू की थीं।काफ़ी देर तक लड़ने और बहुत से चीनी सैनिको को मौत के घाट उतारने वाले स्वयं वीरगति को प्राप्त हो गये थे।चीनी सेना का तादात लगातार बढ़ने में थी।ये सब देखते हुए मेजर धन सिंह थापा अपने साथियों को युद्ध के लिए प्रेरित करते रहे।चीनी सेना की एक नई टुकड़ी उनकी सहायता के लिए आ गयी थी।जिसके आते ही चीनी सैनिक अब चौकी के मात्र 50 गज तक करीब आ चुके थे।चीनी सेना ने दोनों तरफो से अब गोलिया चलाना शुरू कर दिया था।अग्निवर्षक बम होने के कारण चीनी सेना को बहुत फयदा हो रहा था,चीनी सेना इस बम का इस्तमाल कर आग और धुएँ का कवज बनाकर आगे बढ़ने में थी।गोरखाओं ने बहादुरी के साथ इन सब का सामना करके चीनी सेना को मुंह तोड़ जवाब दे रहे थे।सूबेदार गुरुंग मशीनगन से लगतार चीनी सेना पर हमला कर रहे थे।
तभी अपने ही बंकर के ढह जाने से सूबेदार गुरुंग उसी के निचे दब गये,हिम्मत ना हारते हुए किसी तरह से ख़ुद को बहार निकाला और फिर मशीनगन से चीनियों पर हमला करना शुरू कर दिया था।सूबेदार गुरुंग ने कई चीनी सैनिको को मौत के घाट उतारा और लगातार हो रही दोनों जगह से गोलाबारी के बीच सूबेदार गुरुंग वीरगति को प्राप्त हो गये।अब मेजर धन सिंह थापा के पास 34 में  से केवल 7 जवान ही जीवित बचे थे और मेजर चौकी पर डटे हुए थे।चीनी सेना अब हैवी मशीनगन, बाजूका के साथ 4 ऐसे यान के साथ और करीब आ चुकी थी।भारतीय सेना की संचार व्यवस्था पहले ही चीनियों द्वारा तबाह कर दी गयी थी।मेजर धन सिंह थापा की चौकी पर अब बहुत भरी भरकम हमला होने लगा था।अब  संवाद का कोई साधन नहीं था इसलिए नायक रविलाल को बटालियन तक संवाद लेकर एक छोटी नाव में भेजा गया था। बटालियन से टोकुंग तक दो नावों में जवानों को मदद के लिए भेजा गया था परन्तु चीनी सेना ने दोनों नावों में हमला करना शुरू कर दिया,जिससे एक नाव में गोली लग जाने से नाव डूबने लगी और साथ ही उसने बैठे सभी सैनिक भी डूब गये थे।दूसरी नाव, जिसमें नायक रविलाल थे, किसी तरह उन्होंने ख़ुद को बचाया पर मेजर धन सिंह थापा तक मदद नही पहुँच पाई।
मेजर धन सिंह थापा के साथ के 4 जवान अब घायल हो चुके थे,जो अब चीनियों से लड़ने की हालत में नहीं थेअब सिर्फ मेजर के पास 3 जवान बचे हुए थेचीनी सेने ने मेजर धन सिंह थापा के बंकर में बम फेकने शुरू कर दिए थे और चौकी में अपना कब्ज़ा कर लिया तथा मेजर धन सिंह थापा को बंदी बना लिया गया।नायक रविलाल ने वापिस बटालियन पहुँचे तथा वहाँ अधिकारियों को पराजय की खबर दी।नायक रविलाल ने अधिकारियों को यह भी कहा की मेजर धन सिंह थापा बड़ी ही वीरता के लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये।जिसे सभी अधिकारियों ने सत्य मान लिया था।मेजर थापा अपने तीनों साथियों के साथ बंदी बना लिए गये थे।मेजर थापा के साथ बंदी तीन जवानों में से एक राइफल मैन तुलसी राम थापा भी थे।जो चीनी सैनिकों की पकड़ से भागने में सफल रहे थे।चार दिनों तक चीनी सैनिको को चकमा दे और छुपते-छिपाते वो अपनी बटालियन तक पहुँचे।जहाँ पहुच कर उन्होंने मेजर धन सिंह थापा और दो अन्य बंदी सैनिको की सूचना दी,परन्तु तब तक काफी देर हो चुकी थी,चीनी सेना मेजर धन सिंह थापा से भारतीय सेना की ख़ुफ़िया जानकारी पाने के लिए प्रताड़ित कर रहे थे।मेजर धन सिंह थापा ने चीनी सेना की हर यातना को सहन किया परन्तु भारतीय सेना का एक भी भेद उन्हें नहीं बतया।
देश वापिस लौटने के बाद मेजर धन सिंह थापा ने लेफ्टिनेंट कर्नल के पद तक भारतीय सेना में सेवा दी।सेना के बाद मेजर धन सिंह थापा ने लखनऊ में सहारा एयर लाइंस के निदेशक का पद संभाला।

परमवीर चक्र-

देश के लिए वीरता से लड़ते हुए और चीनी सैनिकों का बहदुरी से सामना करने के प्रयासों के कारण उन्हें भारत सरकार ने वर्ष 1962 में मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया, परन्तु वर्ष 1963 में उनके जीवित देश वापस आने पर,आवश्यक संशोधन किये गए।

error: Content is protected !!