गढ़वाल यूनियन की स्थापना 1901 में देहरादून में की गयी थी।
गढ़वाल यूनियन की स्थापना तारादत्त गैरोला, विशम्भर दत्त चंदोला तथा चन्द्रमोहन रतूड़ी ने की थी।
जिन्हें त्रिमूर्ति भी कहा जाता है।
1905 में गढ़वाल यूनियन द्वारा गढ़वाली मासिक पत्र का प्रकाशन किया गया।
जिसके संपादक गिरिजा दत्त नैथाणी थे।
गिरिजा दत्त नैथाणी द्वारा 1902 में लैंसडाउन से गढ़वाल समाचार पत्र निकाला गया।
गढ़वाल समाचार पत्र कुछ वर्षो बाद बंद हो गया था।
गढ़वाल यूनियन तथा हित करणी सभा का उद्देश्य-
जनता को जागरुक करना,शिक्षित करना,कुप्रथाओं को समाप्त करना जैसे कन्या विक्रय,पशु बलि प्रथा,मदिरा सेवन आदि सामाजिक बुराइयों को दूर करना।
गढ़वाल यूनियन एग्रवाल के विभिन्न क्षेत्रों में पुरोहितों को नियुक्त किया ताकि वह गांव के अशिक्षित लोगों को शिक्षित कर सके और जागरूक कर सके।
गढ़वाल यूनियन ने 6 मई 1905 को गढ़वाली मासिक समाचार पत्र का प्रकाशन किया जिससे गढ़वाल यूनियन को अपने विचार अधिक लोगों तक पहुंचाने में मदद मिली।
गढ़वाल भातृ मंडल-
गढ़वाल भातृ मंडल की स्थापना 1907 में लखनऊ में हुई थी।
गढ़वाल भातृ मंडल के संस्थापक मथुरा प्रसाद नैथाणी थे।
गढ़वाल भातृ मंडल का प्रथम अधिवेशन 1908 में कोटद्वार में हुआ।
जिसके अध्यक्ष पोलानंद थे।
गढ़वाल भातृ मंडल का उद्देश्य-
गढ़वाल की विभिन्न जातियों के बीच बंधुत्व व सहयोग बढ़ाना।
गढ़वाल में जातीय सभाओं का विरोध करना।
गढ़वाल भातृ मंडल का प्रथम अधिवेशन(1908)-
गढ़वाल भ्रातृ मंडल का प्रथम अधिवेशन 1908 को कोटद्वार में कुलानंद बड़थ्वाल जी के नेतृत्व में हुआ था।
छटा अधिवेशन-
गढ़वाल भ्रातृ मंडल का 6वां अधिवेशन 30 दिसम्बर 1913 में हुआ था।
इस अधिवेशन में दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध क्षोभ प्रस्ताव पारित किया गया।
भ्रातृ मंडल ने कहा कि सभी ब्राह्मण,क्षत्रिय,शुद्र अपने को एक ही शरीर के भिन्न-भिन्न अंग समझें व जातीय एवं वर्ण भेदों से हटकर संपूर्ण गढ़वाल की उन्नति में योगदान।
जहां एक और गढ़वाल यूनियन समाज को शिक्षित व जागरूक करने का प्रयास कर रहा था वहीं गढ़वाल भ्रातृमंडल समाज को एक साथ मिलकर रहने की सीख दे रहा था ।
बाद में दोनों संगठनों का आगे चलकर गढ़वाल सभा मे विलय हुआ।
सरौला सभा –
गढ़वाल में सरोला सभा की स्थापना 1904 में हुई थी।
सरोला सभा का मुख्यालय टिहरी को बनाया गया था।
सरोला सभाके संस्थापक तारादत्त गैरोला थे।
यह गढ़वाल की पहली जातीय सभा थी।
सरोला सभा के उद्देश्य –
ब्राह्मणों के शैक्षिक व सामाजिक उत्थान हेतु प्रयास करना
मादक द्रव्यों पर प्रतिबंध लगाना
वधु मूल्य पर प्रतिबंध लगाना
सारोला ब्राह्मणों को हल जोतना निषेध होगा
सारोला ब्राह्मण अन्य ब्राह्मण उपजातियों की स्त्रियों से विवाह नहीं करेंगे
सांस्कृतिक विद्यालय बनाना व विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति प्रदान करना
सारोला सभा के महत्वपूर्ण अधिवेशन –
6वां अधिवेशन- यह अधिवेशन 1911ई० में कर्णप्रयाग में हुआ जिसमें 200 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
10वां अधिवेशन- यह अधिवेशन 1914 में कर्णप्रयाग में हुआ जिसमें कन्या-विक्रय पर प्रतिबंध व प्रांतीय काउंसिल में कुमाँऊ को प्रतिनिधित्व दिए जाने की मांग।
क्षेत्रिय सभा –
क्षेत्रिय सभा की स्थापना 1919 में कोटद्वार में हुई थी।
क्षेत्रिय सभा की स्थापना जोधसिंह नेगी तथा प्रताप सिंह नेगी द्वारा की गयी थी।
क्षेत्रिय सभा का उद्देश्य-
क्षत्रियों का शैक्षणिक व सामाजिक उत्थान करना।
क्षत्रियों की सामाजिक कुप्रथाओं का निराकरण करना।
क्षत्रिय समाज के लोगों को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा सेना में भर्ती किया जाता था लेकिन वे उच्च पदों पर नहीं पहुंच पाते थे।
1914 के प्रथम विश्व युद्ध मे गढ़वाल सेना ने अपना अपार शौर्य दिखाया व हिंदुस्तानी सेना को मिले 10 विक्टोरिया क्रॉस में से 2 पदक गढ़वाल रायफल के जवान गब्बर सिंह व दरबान सिंह नेगी को मिले।
प्रथम विश्व युद्ध के बाद पहली बार गढ़वाल रायफल को रॉयल की उपाधि दी गयी।
गढ़वाल रायफल की इस कामयाबी से गढ़वाल के क्षत्रिय समाज के प्रति ब्रिटिश हुकूमत का विश्वास व सम्मान और बढ़ गया।
ब्रिटिश हुकूमत ने प्रथम विश्व युद्ध की जीत की खुशी पर व गढ़वाल में 100 वर्ष शासन के उपलक्ष्य में 30 मार्च 1920 को श्रीनगर गढ़वाल में एक सभा का आयोजन किया।
इस सभा मे ब्राह्मणों की बाहुल्यता देखकर कमिश्नर पीढ़म ने कहा- जिनके सम्मान में यह अधिवेशन किया जा रहा है वे तो कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं।
गोरक्षणि सभा –
गैरक्षीणी सभा की स्थापना 1907 में हुई थी।
गैरक्षीणी सभा की स्थापना धनीराम शर्मा द्वारा की गयी थी।
गोरक्षणि सभा का उद्देश्य-
गोवध का विरोध करना
गोरक्षा पर जनमत जागरण
धनीराम मिश्र ने अपने निजी खर्च पर धर्मोपदेशक नियुक्त किये जो कि गांव-गांव में घूमकर गो माता के महत्व को समझाते थे।
गोरक्षणि सभा के कार्यक्रम 1929ई० तक निरन्तर चलते रहे लेकिन उसके बाद समाज की सारी शक्तियों का झुकाव राजनीतिक आंदोलनों में झुक गया था।
जागृत गढ़वाल संघ-
जागृत गढ़वाल संघ की स्थापना 1919 में हुई थी।
जागृत गढ़वाल संघ की स्थापना प्रताप सिंह नेगी द्वारा की गयी थी।
इसके द्वारा गढ़वाल कांग्रेस कमेटी बने गयी।
जिसने 1 सितम्बर 1989 को किसान दिवस मनाया।
गढ़वाल क्षत्रिय छात्रवृत्ति ट्रस्ट –
गढ़वाल क्षत्रिय छात्रवृत्ति ट्रस्ट की स्थापना 14 सितम्बर 1919 को पौड़ी में हुई थी।
गढ़वाल क्षत्रिय छात्रवृत्ति ट्रस्ट के संस्थापक जोध सिंह नेगी थे।
3 जुलाई 1919 को गढ़वाल सभा मे रघुनाथ सिंह बैरिस्टर की अध्यक्षता में एक प्रस्ताव रखा गया जिसका उद्देश्य शिक्षा के प्रचार प्रसार में बढ़ावा देना था।
14 सितम्बर 1919 को जोध सिंह नेगी द्वारा 500 ruoaye दान करके छात्रवृत्ति ट्रस्ट की स्थापना की गयी
क्षत्रिय छात्रवृत्ति ट्रस्ट के उद्देश्य-क्षत्रिय युवाओं को शिक्षित करने हेतु फण्ड एकत्रित करना था।
15 जनवरी 1922 ई० को क्षत्रिय वीर पाक्षिक समाचार पत्र का प्रकाशन प्रताप सिंह नेगी के संपादन में किया गया
1935-1938 तक कोतवाल सिंह नेगी व शंकर सिंह नेगी द्वारा क्षत्रिय वीर समाचार पत्र का सम्पादन किया गया
1920-1969ई० तक क्षत्रिय छात्रवृत्ति ट्रस्ट द्वारा 68,614 रुपये ब्यय किये गये।
क्षत्रिय सभा द्वारा सारोला सभा को गंगाडी सभा व गढ़वाल हितकारणी सभा को खण्डूरी हितकारणी सभा कहा गया।
गढ़वाल सभा –
गढ़वाल सभा की स्थापना 16 फरवरी 1914 को दुग्गड्डा में हुई थी।
16 फरवरी 1914 को दुग्गड्डा में नारायण सिंह की अध्यक्षता में एक बैठक हुई व इस बैठक में निम्न प्रस्ताव रखे गए –
गढ़वाल में पत्रिकाओं व समाचार पत्रों का एकीकरण।
गढ़वाल यूनियन व गढ़वाल भ्रातृ मंडल का विलय करके गढ़वाल सभा की स्थापना करना।
समाचार पत्रों को साप्ताहिक करना।
1915ई० गढ़वाल सभा द्वारा दुग्गड्डा स्थित स्टोवल प्रेस की स्थापना की गयी।
1916ई० में गढ़वाल सभा द्वारा पहली बार गढ़वाली साहित्य का संकलन व प्रकाशन प्रारम्भ किया।