Land System, Judicial System, Tax System of Panwars
पंवारो की भूमि व्यवथा –
आय का मुख्यसाधन सिरती व भूमि कर था।
राज तीन परिस्थितियों में भूमि दान दे सकता था।
1. रोत भूमि – (अस्थाई भूमि) वीरता के लिए दान दी जाती थी।
2. जागीर – (स्थाई भूमि) राज्य के अधिकारियों को दी जाती थी।
3. संकल्प / विष्णु प्रीति भूमि – (स्थाई भूमि) विद्यमान ब्राह्मणों को दी जाती थी।
जिन्हें भूमि दान में दी जाती थी उन्हें थातवान कहा जाता था।।
नाली प्रथा भूमिमापन की इकाई थी
दफ्तरी के कार्यकाल में सभी राज्य के भूमि का लेखा – जोखा रखा जाता था।
पंवारो की न्याय व्यवस्था –
राज्य में न्याय हेतू मान्य संस्था पंचायत थी यह साधारण विवादों का निर्णय देती थी तथा इनका निर्णय मान्य होता था।
अधिक गंभीर विवाद ही पदाधिकारियों तक पहुँचते थे।
दण्ड व्यवस्था में आर्थिक दण्ड , राजनिकाला, मृत्यु दण्ड, हाथ – नाक काटना आदि थे।
पंवारो की कर प्रणाली –
कृषि की उपज का आधा व तीसरा भाग कर के रूप में लिया जाता था जिसे अधेल वतिहाड़ कहा जाता था।
कर कुल भूमि के उपज के अंतर्गत देना होता था।
राज्य की आय का प्रमुख साधन सिरती कर था जो भूमि कर था जो नगद के रूप में लिया जाता था।
साधारण उर्वता वाली भूमि का आधा भाग भूमि कर के रूप में लिया जाता था।
सेना के लिए लिया जाने वाला कर कटक कर कहलाता था।
अनाज या उपज के रूप में लिए जाने वाले कर को बैकर कर कहा जाता था।
नदी पार करने के लिए दिए जाने वाले कर को ज्यूलिया कर कहा जाता था।
राजा की आज्ञा से कृषि भूमि पर खेती करने वाले किसानों को आसामी कहा जाता था।
आसामी तीन प्रकार के होते थे –
मौरुसीदार – ये सीधे राजा को कर दिया करते थे।
खायकर – ये मौरुसीदार के अधीन थे।
सिरतान – ये खायकर को नगद कर देते थे।
पंवारो का प्रशासन –
राज्य की सभी भूमि के मालिक राजा होते थे और इनसे कुशल प्रशासनिक व्यवस्था की थी जो राजा को परामर्श देती थी।
भूमि देने का अधिकार केवल राजा को था।
मंत्री परिषद में राजा के बाद सबसे बड़ा पद मुख्तार का था। मुख्तार के पश्चात नेगी आते थे। ये सभी मंत्री राजा को महत्वपूर्ण कार्यों में परामर्श देने का कार्य करते थे।
नेगी का पद वंशानुगत था।
चणु या चंड – तीव्र गामी सन्देश वाहक
ओझागुरु – धर्माधिकारी
चोपदार – राजा के साथ सोने व चाँदी का दण्ड लेकर चलने वाला अधिकारी
सोरी – राजा के भोजन की व्यवस्था करने वाला
गोलदार – ये राजमहल राजकोष के महत्वपूर्ण स्थानों की देखभाल करता था।
फौजदार – प्रत्येक परगने में सेना का मुख्य अधिकारी
ख्वास व ख्वासिन – सेवक और सेविकाए
धोकदार – यह परगनों में राजस्व वसूली का कार्य करता था तथा ग्राम में प्रधान की नियुक्ति करता था।