उत्तराखंड की खस जनजाति
Khas Tribe of Uttarakhand
खस शब्द की उत्पत्ति –
- खस शब्द संस्कृत के ‘क्षेत्री’ शब्द से आया है। इसका अर्थ है नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाली एक योद्धा प्रजाति।
खस जनजाति के अन्य नाम –
- पहाड़ी राजपूत
- खस राजपूत
- गोर्खाला
धर्म –
- खस जनजाति के लोग हिन्दू धर्म को मानते थे।
- खस जनजाति भगवान् शिव के उपासक हुआ करती थी।
- खस जनजाति के स्थानीय देवता ‘मष्टो’ थे, और खस लोग इनको पूजा को ‘देवाली’ कहा करते थे।
भाषा –
- खस जनजाति की प्रारांभिक भाषा संस्कृत थी।
- बाद में किरातो के संपर्क में आने के बाद खस जनजाति वालो ने मुंड भाषा भी बोलना शुरू कर दिया था।
मुख्य व्यव्साय –
- खस जनजाति का व्यव्साय पशुपालन व् कृषि था।
प्रथाएँ –
- घर – जमाई प्रथा
- जेठो प्रथा (घर के जेष्ठ पुत्र के हिस्से में सम्पति का अधिक हिस्सा)
- टेकुआ प्रथा (वेदिक कालीन नियोग प्रथा सामान प्रथा थी)
Note- वेदिक कालीन नियोग प्रथा - यदि किसी महिला के पति की मृत्यु हो जाती है तो वह महिला अपने किस सम्बन्धी या अपने किसी मित्र के साथ रह सकती थी।
सम्बन्ध –
- खस जनजाति का सम्बन्ध इरान से माना जाता है।
निवास –
- खस जनजाति का प्राचीन निवास गांधार / कम्बोज (वर्तमान – पकिस्तान) में है।
- उत्तराखंड में शुरू में खस जनजाति अस्कोट (पिथौरागढ़) व् डीडीहाट में बसी थी।
- खस जनजाति का वर्तमान निवास नेपाल के पूर्वी क्षेत्रों में तथा गढ़वाल में क्षेत्र में है।
वर्णन –
- खस जनजाति का वर्णन सर्वप्रथम महाभारत (सभा पर्व) में हुआ है।
- वायु पुराण में , वराहमिहिर की पुस्तक वराह्सहिता
- स्कंद्पुराण में केदारमंडल (केदारमंडल यानि गढ़वाल मंडल) को खस मंडल का प्रयोग किया गया है।
- खुजराहो के शिलालेखो में भी खस का उल्लेख मिलता है।
- महाभारत में खस प्रजाति कौरवों की तरफ से लड़ी थी।