Indus Valley Civilization An Introduction
सिन्धु घाटी सभ्यता एक परिचय
भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम महान संस्कृतियों में से एक है हमारे वैदिक रचनाओं के आधार पर हम भारतीय हमारे प्राचीन इतिहास को बड़ी गौरवता से विश्व के सामने प्रदर्शित करते हैं।हमारी वैदिक संस्कृति से भी पहले हमारी भारत भूमि पर एक विकसित सभ्यता वास करती थी। जो अपने समय काल की विश्व की सबसे उन्नत और विस्तृत सभ्यता थी।
जो भारतीय उपमहाद्वीप पर आर्यों के आगमन से पहले एक विकसित समाज का निर्माण कर चुकी थी।जिनके नगर विश्व के सबसे उत्कृष्ट रचनाबद्ध तरीके से बनाएं नगर से विश्व के सभी क्या प्राचीन सभ्यताएं नदियों के किनारे पायी गयी।मेसोपोटामिया की सभ्यता दजला और फरात नदी के किनारे पाई गई और चीन की सभ्यता यलो नदी के किनारे पाई गयी। वैसे ही भारत की सभ्यता सिंधु नदी के किनारे पाई गई इसलिए इसे सिंधु सभ्यता अथवा सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से जाना जाता है। यह सभ्यता 5000 साल पुरानी सभ्यता है।
1826 में सर चार्ल्स मनसन नाम के एक अंग्रेज व्यक्ति ने भारत के उत्तर पश्चिमी पंजाब क्षेत्र का दौरा कर रहे थे जो कि आज के पाकिस्तान का पंजाब प्रांत है। उन्होंने वहां के हड़प्पा क्षेत्र में जमीन के नीचे दबे पुरातन अवशेषों का निरीक्षण किया और सन 1842 में लेख लिखकर सर्वप्रथम दुनिया के सामने इस बात को प्रदर्शित किया।
उसके बाद सन 1853 से 1856 के बीच कराची और लाहौर के दरमियां जब रेलवे लाइन का निर्माण कार्य शुरू हुआ जब रेलवे इंजीनियर बल्टन बंधु जिनका नाम जेम्स और विलियम बल्टन था इन्हें हड़प्पा में मजबूत ईंटो का पता चला।अति प्राचीन खंडरो के अवशेष के रूप में इन ईंटो का इस्तेमाल उन्होंने रेलवे की पटरी के निर्माण कार्य में किया।उसके पश्चात सन 1856 में अलेक्जेंडर कनिंघम नामक एक अंग्रेज़ अधिकारी ने हड़प्पा का निरीक्षण करके मानचित्र बनाया था।
यह वही अंग्रेज अधिकारी थे जिन्होंने 1861 में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की थी। सन् 1921 में इसी भारतीय पुरातत्व विभाग के प्रमुख सर्च जोन मार्शल के नेतृत्व में पहली बार हड़प्पा का अधिकारिक तौर पर उत्खनन कार्य प्रारंभ हुआ।भारतीय शोधकर्ता दयाराम साहनी ने सन 1921 में हड़प्पा का उत्खनन कार्य शुरू किया और सन 1922 में राखालदास बेनर्जी ने सिंध प्रांत के mohenjo-daro में उत्खनन कार्य शुरू किया और दुनिया के सामने हड़प्पा के रूप में पहली बार सिंधु सभ्यता का रोग उजागर हुआ और इसीलिए आज की सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से जाना जाता है। इस सभ्यता के इतिहास ऐतिहासिक महत्व को समझते हुए भारत भर में अन्य कई जगहों पर इसके उत्खनन कार्य को गति मिल गई।
भारत और पाकिस्तान जब आजाद हो रहे थे उस वक्त से जुड़े 40 से 50 नगरों की खोज हो चुकी थी और आज तक इस खोज ने हमें लगभग 1500 नगरों से परिचित करवाया है। जिनमें से ज्यादातर नगर भारत में पाए गए हैं। जिनकी संख्या लगभग 925 तक है।पाकिस्तान में पाए गए नगरों की संख्या 575 के आसपास है और अफगानिस्तान में 2 नगरों की खोज हो चुकी है।
इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह सभ्यता कितने विस्तृत क्षेत्र में फैलीं होगी।अब तक के उत्खनन के आधार पर इसके सीमा का निर्धारण अगर हम करते हैं तो हमें सबसे उत्तर में जम्मू कश्मीर से प्राप्त होता है माणडा नगर सबसे दक्षिण में महाराष्ट्र में दायमाबाद ,पूर्व में उत्तर प्रदेश का आलमगीरपुर और पश्चिम में बलूचिस्तान का सुतकागेडोर कुल मिलाकर देखा जाए तो 13 लाख वर्ग किलोमीटर से भी अधिक क्षेत्र में यह सभ्यता फैली हुई थी।
इसका उत्तर – दक्षिण विस्तार 1400 किलोमीटर तक माना जाता है और पूर्व – पश्चिम विस्तार 1600 किलोमीटर तक माना जाता है।इसकी तुलना यदि विश्व की समकक्ष अन्य सभ्यता से करे तो मिश्र तथा मेसोपोटामिया की सभ्यता मिलाकर भी उससे 12 गुना बड़े क्षेत्र में हड़प्पा सभयता फैली हुई थी।
सर ज़ोन मार्शल में इस सभ्यता का कार्यकाल ईशा पूर्व 3250 से लेकर ईशापूर्व 2750 तक माना। कार्बन 14 डेटिंग प्रणाली के आधार पर सर डी .पी. अग्रवाल ने इसका कार्यकाल ईशापूर्व 2300 से लेकर ईशापूर्व 1750 तक माना हैं।ज्यदातर इतिहासकार इस सभ्यता के कार्यकाल को ईशापूर्व 2500 से लेकर ईशापूर्व 1750 तक मानते हैं।
इस सभ्यता के मूल निर्माणकर्ता कौन थे इसको लेकर भी विभिन्न मत सामने आते हैं ज्यादातर भारतीय इतिहासकारों का यही मानना है यह सभ्यता यहीं के मूल निवासी स्थानीय लोगों ने निर्माण की थी।जबकि मार्शल , विलर ,गार्डनर चाइल्ड जैसे विदेशी इतिहासकार कहते हैं कि सभ्यता के निर्माता सुमेरियन सभ्यता के लोग थे क्योंकि दोनों सभ्यताओं में काफी समानताएं हैं।
इन लोगों को लिपि का ज्ञान था। चित्रात्मक अक्षरों के सहारे इन्होंने अपने विचारों को लिपिबद्ध करना सीख लिया था।इन्होंने ताँबा और टीन को मिश्रित करके कास्य धातु के निर्माण की कला अवगत कर ली थी।उत्खनन में मिले अवशेषों के आधार पर यह पता चला है कि यह लोग माप तोल करना जानते थे।इन्हें मिट्टी से बर्तन औज़ार और खिलौने बनाने की कला अवगत थी।
इन्हें गणित का ज्ञान भी अवश्य होगा तभी इन्होंने रचानाबद्ध और विशाल भवन बनवाए थे। इनकी ईटें प्रमाणबद्ध थी। लगभग सभी जगहों पर मिली ईटें समान पाई गई है जैसे इन्हें एक ही जगह में बनवाया गया हो। पाकिस्तान के सिंध प्रांत में मिला मोहनजोदड़ो नगर की सभ्यता का सबसे बड़ा और सुनियोजित रचनाबद्ध नगर है। इसलिए इसे हड़प्पा सभ्यता की राजधानी के रूप में भी देखा जाता है। मोहनजोदड़ो अपने आप में ही एक अद्भुत नगर था।
भारत के हरियाणा राज्य में खोजा गया राखीगढ़ी यह नगर भारत में खोजा गया सबसे बड़ा नगर है। भारत के गुजरात राज्य में सबसे ज्यादा नगरों की खोज हुई है। यहां की लोथल नगरी बंदरगाह के रूप में प्रसिद्ध हैं। यहाँ से हमें प्रदेश व्यापार के प्रमाण भी प्राप्त होते हैं। यह सभी नगर विशेषत: दो हिस्सों में बटे दिखाई पड़ते हैं जिसमें उप्परी हिस्सा पश्चिमी टीले के रूप में देखा जाता है जो समाज के धनी, अमीर , पुरोहितों की रहने की जगह हो सकती है इसे दुर्ग भी कहा जाता है।
इसका दूसरा हिस्सा पूर्वी टीला जिसमे किसान, मजदूर और सामान्य वर्ग के लोगों की रहने की जगह पायी गयी हैं।यह हिस्सा नीचे की तरफ पाया गया है ऊपरी हिस्से में ज्यादातर बड़े और पक्के भवन और सार्वजनिक वास्तु पाए गए हैं जिन्हें उचित तटबंदी से संरक्षित किया गया है।
इसकी तुलना में निचले हिस्से में छोटे और कच्ची ईंटों से बने मकान दिखाई पड़ते हैं जो की तटबंदी से भी संरक्षित नहीं है। इन सभी नगरों में एकमात्र ऐसा पाया गया है जो दो की जगह पर तीन हिस्सों में विभाजित है इसका नाम धोलावीरा है जो गुजरात राज्य में स्थित है।इसमें मिला तीसरा हिस्सा पूर्वी और पश्चिमी टीले के बीच में स्थित है जो मध्यमा के नाम से जाना जाता है।
यह व्यापारी वर्ग के लिए बनाया गया क्षेत्र मालूम पड़ता है। हड़प्पा सभ्यता के नगरीय रास्ते विशेष रूप से प्रशंसनीय थे क्योंकि मैं नियोजन बद्ध तरीके से एक दूसरे से समकोण में काटते हैं। रास्तों की इस पद्धति को ग्रीड पद्धति कहा जाता है। मुख्य रास्ता 10 मीटर तक चौड़ा पाया गया है और उससे मिलने वाले अन्य रास्ते 3 से 4 मीटर तक चौड़े पाए गए हैं।
सभी के घरों के दरवाजे मुख्य रास्ते की तरफ न खुलते हुए गली में खुलते दिखाई पड़ते हैं। हर घर में कुआँ, और जल निकासी के लिए नालियां मिलती है।जो मुख्य नाले से जुड़कर खराब पानी को शहर से बाहर ले जाती है। यह सभी नालियाँ उप्पर से ढकी नजर आती है।
गुजरात के धोलावीरा नगर में लकड़ी की बेहतरीन नालियाँ पाई गई है जो आज भी दिखाई देती है। यह सभ्यता विशेष रूप से अपने सामूहिक स्नानगृह, सभागृह, विशाल अन्नभंडार और गोदामों के लिए प्रशंसनीय मानी जाती हैं।इनके खान- पान में गेहूँ, जौ, तरबूज, खरबूजा, खजूर, राई, सरसों, तिल और कई जगह पर चावल व धानो के प्रमाण पाए गए हैं।
सजने सवरने के लिए यह लोग सोना, चांदी, हाथी के दांत, शंख, शिपि से बने आभूषणों का इस्तेमाल करते थे। इनके वस्त्र सूती, ऊनी और कड़ाईदार पाए गए हैं।हड़प्पा सभ्यता की आज तक की खुदाई में कहीं भी अस्त्र-शस्त्र जैसे लड़ाई से जुड़ी सामग्री नहीं पाई गई है।इससे यह प्रतीत होता है कि यह सभ्यता शांतिप्रिय सभ्यता थी जो व्यापार और विकास में विश्वास रखती थी।
इनकी लिखी चित्र लिपि को पढ़ पाना आज तक इतिहासकारों के लिए संभव नहीं हो पाया है लेकिन जब यह लिपि को पढ़ा जाएगा तब इस सभ्यता से जुड़े बहुत से राज खुल जाएंगे।