उत्तराखंड का इतिहास (पंवार वंश – 2)
History of Uttarakhand (Panwar Dynasty – 2 )
पंवार वंश का परिचय (Introduction of Panwar Dynasty)–
कत्यूरी वंश के पतन के बाद पंवार वंश का उदय हुआ। चाँदपुर पंवार वंश के राजाओं का गढ़ था। कत्यूरी वंश के बिखरने के बाद पुरे उत्तराखंड में अलग -अलग स्थानों पर कत्यूरी वंश के वंशजों ने अपने स्वतन्त्र राज्यों की स्थापना कर ली थी।
जो आपस में ही लड़ते रहते थे। कत्यूरी राज्य छोटे-छोटे राज्यों में बट गया था। इन्ही छोटे-छोटे राज्यों को गढ़ कहा जाने लगा। इन गढो की संख्या 52 थी।पंवार वंश ने इसी का फयदा उठाते हुए इन सभी गढ़ों में हमला कर दिया था तथा इन्हें अपने अंतर्गत सम्मिलित कर लिया था।
सभी मिले हुए गढ़ों को गढ़वाल नाम से जाना जाता है। 1815-59 ई0 तक राज कर रहे राजा सुदर्शन शाह ने अपने वंश को पंवार कहा था। इसी कारण इस वंश को पवार वंश नाम से ही जाना जाता है।
पंवार वंश की स्थापना (Establishment of Panwar Dynasty)-
पंवार वंश की स्थापना अलग-अलग मिली वंशावलियों के अनुसार अलग-अलग व्यक्तियों ने की थी। विलियम्स तथा वैकेट की वंशावलियों के अनुसार कनकपाल, अल्मोड़ा से प्राप्त वंशावली के अनुसार भगवान पाल, मौलाराम की वंशावली के अनुसार भौना (भवन) पाल ,तथा हाईविक की वंशावली के अनुसार भोगदत्त ने पंवार वंश की स्थापना की थी।
इन सभी वंशावलियों के अनुसार यह स्पष्ट नहीं हो पाया की वास्तव में पंवार वंश का संस्थापक कौन थे।कई इतिहासकारों के अनुसार वैकेट वंशावली ही प्रमाणिक हैं। जिसके अनुसार पंवार वंश की स्थापना कनकपाल द्वारा की गयी थी। पंवार वंश का प्रथम शासक जगतपाल था।
जगत पाल का एक शिलालेखदेव प्रयाग से प्राप्त हुआ है। इसे 1455 ई० तिथि को उत्कीर्ण किया गया।जगतपाल एक शक्तिशाली व वीर राजा था जिसका राज्य चाँदपुर गढ़ के अतिरिक्त देवलगढ़ तथा बारहस्यूँ के क्षेत्रों में भी फ़ैला हुआ था।जगतपाल के पश्चात चांदपुर गढ़ में जीतपाल तथा आनंद राजाओं ने राज किया।
हालाँकि इनसे सम्बन्धित कोई भी प्रमाण उपस्थित नहीं है। इन दोनों राजाओ के बाद पंवार वंश का अगला शासक अजयपाल था। मानोदय काव्य नामक ग्रन्थ में अजय पाल से सम्बंधित सूचना प्राप्त होती है।पंवार वंश के राजा मानशाह के राजकवि ने अजय पाल की तुलना युधिष्ठिर से की है।
अजय पाल एक कुशल राजा था जिसने चाँदपुर गढ़ के राज्य क्षेत्र में विस्तार किया था।अजय पाल के राज में प्रारम्भिक राजधानी चाँदपुर गढ़ में थी जिसे बाद में बदल कर देवलगढ़ तथा उसके पश्चात श्रीनगर कर दी गयी थी। काफ़ी लम्बे समय तक श्रीनगर ही राजधानी बनी रही।
राज्य की राजधानी को बदलने के मुख्या कारण चन्द वंश के राजाओं से होने वाले आक्रमण से बचाव तथा राजधानी को राज्य के केन्द्र में स्थापित करना था ताकि पुरे राज्य की देखभाल अच्छे से की जा सके।
अजयपाल के राज में गद देश में चंद वंश के राजा कीर्तिचंद ने आक्रमण कर दिया तथा इस युद्ध में कीर्तिचंद की सेना विजयी रही। इस युद्ध को दोनों वंशो की सीमा में लड़ा गया था। पंवार वंश की वंशावलियों के अनुसार अजयपाल की म्रत्यु के बाद कल्याण शाह, सुन्दरपाल, हंसदेव, विजयपाल ने पंवार वंश पर राज किया परन्तु मानोदय काव्य के अनुसार अजयपाल की म्रत्यु की पश्चात सहजपाल गद्दी पर आसीन हुए क्यूंकि सहजपाल अजयपाल का पुत्र था।
हालांकि कल्याण शाह, सुन्दरपाल, हंसदेव, विजयपाल की जानकारी का आभाव होने के कारण इनको अनेक विद्वानों ने काल्पनिक माना है।मनोदय काव्य के अनुसार सहजपाल उन राजाओं में से था जो प्रजा का हित तथा दुश्मनों का नाश करने में विश्वास रखता था।
सहजपाल बेहद चालाक,दानी तथा राजनीतिज्ञ था। सन् 1548 ई0 तथा 1561 ई0 में सहज पाल के दो अभिलेख प्राप्त हुये हैं। ये दोनों ही अभिलेख देवप्रयाग से प्राप्त हुये हैं। मौलाराम की वशावली के अनुसार सहजपाल के पश्चात विजय राज पाल, बलभद्र शाह तथा शीतल शाह राजा बने तथा उसके बाद मानशाह ने पंवार वंश की गद्दी संभाली।
वैकेट की वंशावली के अनुसार सहजपाल के बाद बल भद्र शाह तथा उसके बाद मानशाह ने पंवार वंश पर राज किया।हालाँकि इससे सम्बंधित कोई भी जानकारी स्पष्ट नहीं है। सहजपाल के बाद तथा मानशाह के राज करने से पहले यह माना जाता है की उस समय जितने भी राजा थे उनके और चंद वंश के बीच युद्ध हुआ होगा। इन्ही युद्ध में चंद वंश के सेनापति पुरुषोत्तम पंत का देहांत हुआ था।
इतिहासकार बी. डी. पाण्डे के अनुसार इसी काल में हुए युद्ध के समय दुलाराम पंवार राज्य का राजा था। हालाँकि दुलाराम का नाम अल्मोड़ा से प्राप्त हुई वंशावली के अतिरिक्त किसी भी वंशावली में नहीं पाया गया है।
जबकि अलमोड़ा से मिली वंशावली में भी मानशाह के पुत्र श्याम शाह का नाम आता है पश्चात दुलाराम का नाम आता है। कुछ इतिहासकारो का कहना है की दयाराम एक विवादस्पद नाम है।