50. बाजबहादुर चंद (1638-1678 ई०)-
बाज बहादुर चंद शाहजहां का समकालीन शासक था शाहजहां ने इसे बहादुर की उपाधि दी थी। बाज बहादुर चंद नीलू गोसाई का पुत्र था। इसने मुगलों के गढ़वाल अभियान में सहायता की थी। इसी कारण शाहजहां ने इसे बहादुर की उपाधि दी थी।इसके साथ साथ इसे तराई की भूमि दान में दी थी।यहां पर बाज बहादुर ने बाजपुर नामक नगर बसाया था। इसे कुमाऊँ का सबसे बड़ा जमीदार भी कहा जाता है। बाज बहादुर चंद ने उत्तराखंड पर जजिया कर लगाया था तथा कर की वसूली कर दिल्ली भेजा करता था। इसने मांग कर,नमक कर नामक दो अन्य कर लगाए थे।यह अपने आप को नारायण कहता था।1670 में इसने तिब्बती आक्रमणों का सफलतापूर्वक सामना किया और तिब्बत का किला तकला खाल को जीत लिया और तिब्बतियों पर सिरती (व्यापारी कर) नामक कर लगाया था।इसके पुत्र कुंवर उद्योग चंद ने बगावत की थी। इसने 1673 में कैलाश मानसरोवर यात्रियों के लिए एक गूँठ भूमि(मंदिरों के निर्माण के लिए दी जाने वाली भूमि) दान में दी थी।इसने पिथौरागढ़ कैथल में एक प्रसिद्ध देवाल मंदिर का निर्माण करवाया था। जिसे एक हथिया देवाल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह एलोरा के कैलाश के मंदिर के समान है इसे एक हाथ वाले मिस्त्री ने बनाया था। इसने एक होडार मंदिर का भी निर्माण करवाया था। इसने अल्मोड़ा के कटारमल के मंदिर का जिनोंद्वार करवाया था।
मुगलों से प्रभावित होकर बाज बहादुर चंद ने कुछ नए कर्मचारी पद सृजित किए थे।
- मठपाल- मंदिरों की रक्षा करने वाले को मठपाल कहा जाता था।
- पनेरु- पानी भरने वाले को पनेरु कहते थे।
- हरबोला- हर हर की आवाज कर राज परिवार को जगाने वाले को हरबोला कहते थे।
- फुलेरिया- फूलों की देख-रेख करने वाले को फुलेरिया कहा जाता था।
यह पवार राज्य पर विजय के प्रतीक के रूप में माँ नंदा देवी की मूर्ति उठा लाया था और मूर्ति को अल्मोड़ा किले में स्थापित किया था।बाज बहादुर अपने अंतिम काल में लोगों पर बहुत अत्याचार करने लगा इसीलिए ये बूढ़ा अत्याचारी शासक भी कहलाने लगा था।बाज बहादुर चंद ने मानीला गढ़ (अल्मोड़ा पौड़ी सीमा) पर आक्रमण किया था।इस समय यहां पर उत्तरवर्ती कत्यूर रह रहे थे। बाज बहादुर के आक्रमण के बाद कत्यूर गढ़वाल की तरफ भाग गए थे।
1658-59 मे शाहजहां के पुत्रों के मध्य उत्तराधिकार का युद्ध हुआ था।शाहजहां ने अपने सबसे बड़े पुत्र दारा शिकोह को राजा घोषित कर दिया था लेकिन औरंगजेब ने अपने सारे भाइयों को पराजित कर दिया और अपने बड़े भाई दारा शिकोह की हत्या कर दी थी।दारा शिकोह का पुत्र सुलेमान शिकोह उत्तराखंड के राजा बाज बहादुर की आया था।इसके बाद सुलेमान गढ़वाल के पवार वंश के शासक पृथ्वीपति शाह के दरबार में गया था।इसके बाद बाज बहादुर चरवाहे का राजा बना था।
51. उद्योत चंद (1678-1698 ई०)-
इसने गढ़वाल पर आक्रमण किया था। इस समय पवारों का शासक फतेहशाह था। उद्योग चंदने फतेहशाह को पराजित कर दिया था। इसके बाद इसने डोटी पर आक्रमण किया था।इस समय डोटी का राजा देवपाल था।जब उद्योग चंद्र ने डोटी पर आक्रमण किया तो देवपाल भाग गया था।इसके बाद 1688 में देवपाल ने कुमाऊँ पर आक्रमण कर दिया था,लेकिन उद्योग चंद्र ने उसे पराजित कर दिया था। इसके परिणाम स्वरूप देवपाल और उद्योग चंद के मध्य खेरागढ़ की संधि हुई थी। इसके अनुसार डोटी के राजा अब चंद राजाओं को कर देंगे।कुछ समय बाद डोटी के राजाओं ने कर देने से मना कर दिया था। जिस कारण उद्योग चंद ने डोटी पर पुनः आक्रमण कर दिया था,लेकिन उद्योग चंद को इस युद्ध में पराजय का सामना करना पड़ा था। जिसके बाद उद्योग चंद ने कोई भी युद्ध नहीं लड़ा और वह एक धार्मिक राजा कहलाया।युद्धों के दौरान उद्योग चंद के सेनापति मैसी साहू तथा हीरो देऊपा की मृत्यु हो गई थी।इसने अल्मोड़ा में एक तल्ला महल का निर्माण कराया था। उद्योग चंद की पत्नी का नाम पार्वती देवी था।जिसके नाम पर इसने अल्मोड़ा में पर्वतेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया था।इसने त्रिपुरासुंदरी,रंगमहल आदि अनेक स्थानों का निर्माण भी कराया था।इसने हजार दियों की दीपावली बनाई थी,जिसे लक्ष्य दीपावली नाम दिया गया था।इसने अल्मोड़ा के सोमेश्वर नामक स्थान पर सोमेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया था।उद्योग चंद के राज कवि का नाम मतिराम था।
52. ज्ञान चंद (द्वितीय)(1698-1708 ई०)-
यह गढ़वाल के शासक फतेह शाह का समकालीन था।इसने 1699 में गढ़वाल पर आक्रमण किया था।ज्ञान चंद के युद्धों का मुख्य उद्देश्य लुट पाट करना था।इसने पिथौरागढ़ में नलुकेश्वर,कासिनी,चौपाता,मसौली आदि मंदिरों का निर्माण करवाया था।द्वाराहाट तहसील के दूधौली क्षेत्र में ज्ञान चंद और पवार वंश राजा फतेहशाह के मध्य युद्ध हुआ था,जिसमें फ़तेहशाह पराजित हुआ था।ज्ञान चंद ने बैजनाथ मंदिर का जिनोद्वार करवाया था।
53. जगत चंद (1708-1720 ई०)-
इसके काल को चंद वंश का स्वर्णकाल कहा गया है।गढ़वाल के साथ युद्ध में जगत चंद के प्रमुख सेनापति माणिक गौडा ने सहायता की और फलस्वरूप इसने श्रीनगर पर कब्ज़ा कर लिया था।इसने अपने शासन काल में 100 गायों को दान में दिया था,इसलिए इसे गौह्स्त्रदानू कहते थे।इसके समय में दो ग्रंथो की रचना की गयी थी।
- टिका दुर्गा
- टिका जगतचन्द्रिका
इसकी मृत्यु चेचक के कारण हुई थी।
54. देवी चंद (1720-1726 ई०)-
इसे कुमाऊँ का रंगीला बादशाह कहा जाता है।इसने 1723 में देवीधुरा नगर बसाया था।देवीचंद को चंद वंश का मुहम्मद तुग़लक़/तुग़लक़ कहा जाता था।देवी चंद को इसके चाटुकार(चापलूसी) करते थे व इसे बहुत सम्मान दिया करते थे तथा देवी चंद को बोला करते की यदि आप दान दे तो आप कुमाऊँ के विक्रमादित्य बन सकते है।देवीचंद ने दाऊद खां को अपना सेनापति नियुक्त किया था। मनिका गौडा और पुराण मल आइल मंत्री थे।1726 में इसके मंत्रियों ने इसकी हत्या कर दी थी।इसने मुग़ल सेना से युद्ध करने का निर्णय लिया था,जिस कारण इसने हरिद्वार के ठाकुरद्वारा में शरण ली थी।
55. अजीत चंद (1726-1729 ई०)-
अजीत चंद ज्ञान चंद(द्वितीय) का दामाद था।इसके समय माणिक गौड़ा तथा पूरन मल के द्वारा राज्य का प्रशासन चलाया गया था।इसी कारण इस काल को कुमाऊँ में गौड़ागर्दी काल कहा जाता है।इसकी मृत्यु पक्षाघात (लकवा) से हुई थी।
56. कल्याण चंद (पंचम) (1729-1747 ई०)-
इसने तल्ला महल के उत्तर में चौमहला का निर्माण करवाया था।यह चंद वंश का अनपढ़ राजा था ।इसे कुमाऊँ का कुंभकर्ण भी कहा जाता था।इसने मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला को भेंट भेजी थी।इसने शिव दत्त जोशी को अपना दीवान नियुक किया था।कल्याण चंद के समय गढ़वाल का राजा प्रदीप शाह था,जिसने बन्धु मिश्र तथा लक्ष्मीधर को कल्याण चंद के दरबार में अनेक उपहारों के साथ भेजा था।1745 में रोहलो ने चंदो पर आक्रमण कर दिया था।इस युद्ध का नेतृत्व शिवदत्त जोशी ने किया था तथा रोहलो को पराजित किया था।रोहल कुछ समय तक अल्मोड़ा पर अपना अधिकार कर लेते है लेकिन बाद में 3 लाख रूपये लेने के बाद अल्मोड़ा छोड़ कर चले जाते है।रोहलो के आक्रमण के दौरान अनेक हिन्दुओं का जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया और मुस्लिम बनाया गया।प्रसिद्ध कवि शिव ने इसी काल में कल्याण चंद्रोयम लिखी है।
57. दीप चंद (1747-1777 ई०)-
दीप चंद के शासन काल में शासन की वास्तविक सत्ता शिव दत्त जोशी तथा हर्ष देव जोशी के हाथों में थी।इन्ही हर्ष देव जोशी को कुमाऊँ का चाणक्य कहा जाता है।इसने अपने शासन काल में कोई भी महत्पूर्ण कार्य नहीं किये थे इसलिए इसे गूंगा शासक कहा गया था।शिवदत्त जोशी दीपचंद का संरक्षक था इसलिए इसे कुमाऊँ का बैरम खां कहा जाता था।1761 में पानीपत का तृतीय युद्ध मराठा तथा अहमद शाह अब्दाली के मध्य हुआ था।इस युद्ध में दीप चंद ने 4 हजार की सेना के साथ सेनापति हरिराम के नेतृत्व में मराठाओ के विरुद्ध भेजी थी।
58. मोहन चंद (1777-1779 ई०)
मोहन चंद दीप चंद की अवैध पत्नी से उत्पान संतान थी। इसने दीप चंद के सभी पुत्रो की हत्या कर दी थी।इसने अपनी माता श्रृंगारमंजरी की मदद से सत्ता हासिल की थी।इसने हर्षदेव जोशी को बंदी बनाया था तथा वह वहाँ से भाग गया था। हर्षदेव जोशी गढ़वाल के शासक ललित शाह के पास गया व उसे कुमाऊँ पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था। ललित शाह व मोहन चंद के मध्य बग्वाली पोखर का युद्ध हुआ था, जिसमे मोहन चंद लखनऊ भाग गया था।
59. प्रद्युम्न शाह (1779-1786 ई०)
ललित शाह ने अपने पुत्र प्रद्युम्न शाह को चंदो की अवैध संतान कहा जाता है क्यूंकि ललित चंद ने प्रद्युम्न शाह को कुमाऊँ की गद्दी में बैठाया था। ललित शाह की मलेरिया से मृत्यु हो गयी थी तथा जयकृत शाह गढ़वाल की गद्दी में बैठ गया था।प्रद्युम्न शाह पवार वंश का पहला शासक था जो चंद वंश की गद्दी में बैठा था। प्रद्युम्न शाह व जयकृत शाह के मध्य हमेशा विवाद ही रहा था।जयकृत शाह ने प्रद्युम्न शाह को एक पत्र लिखा था। जिसमे कुमाऊँ को गढ़वाल अधीनता स्वीकार करने की बात कही गयी थी।प्रद्युम्न शाह ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था। इसके पश्चात जयकृत शाह ने कुमाऊँ पर आक्रमण कर दिया था इस दौरान उसकी मृत्यु हो गयी थी। इसके बाद प्रद्युम्न शाह ने चंद वंश की सत्ता हर्ष देव जोशी को सौपी और स्वयं श्रीनगर की गद्दी में बैठ गया था।
60. मोहन चंद (द्वितीय कार्यकाल)(1786-1788 ई०) –
मोहन चंद ने सिंहासन खाली होने का फायदा उठाया और कुमाऊँ की सत्ता अपना नियंत्रण में ले ली थी। मोहन चंद के दुसरे कार्यकाल में सरकारी खजाना खाली हो चूका था। सेना को देने तक का वेतन नहीं था।इसलिए मोहन चंद ने मांगा कर लगाया था।हर्षदेव जोशी ने एक सशक्त सेना तैयार की और 1786 में मोहन चंद से युद्ध कर उसे हराया था।
61. शिव चंद (शिव सिंह) (1788 ई०)-
हर्षदेव जोशी ने शिवचंद को कुमाऊँ का नया शासक बनाया था।इसके पश्चात मोहन चंद के भाई लाल सिंह ने रामपुर के नवाब की सहयता से कुमाऊँ की गद्दी हासिल की और महेंद्र चंद को राजा बनाया था।
62. महेंद्र चंद (1788-1790 ई०)-
महेंद्र चंद के समय हर्षदेव जोशी ने गोरखा नायक बहादुर शाह को कुमाऊँ पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था। गोरखाओं ने अल्मोड़ा में आक्रमण किया था। 1790 में एक साधारण से युद्ध में महेंद्र चंद की हत्या गोरखाओं द्वारा हो गयी थी।