NOTE - उत्तराखंड के मध्यकालीन इतिहास में दो राज वंशों का स्थान महत्वपूर्ण है।
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चंद वश (पूर्वी उत्तराखंड)
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पवार वंश (पश्चिमी उत्तराखंड)
चन्द वंश (Chand Dynasty)-
ब्रह्मदेव की मृत्यु के बाद कत्यूरी वंश बिखर गया तभी कत्यूरी वंश का एक शासक ब्रह्मदेव द्वितीय काली कुमाऊं के क्षेत्र में सुई का किला बनाकर रहने लगा। कालांतर में इसने अपने साम्राज्य को पाली पछाऊ तक खस राजाओं को पराजित कर बड़ा दिया और पाली पछाऊ में द्रोण का किला बनाकर रावत राजा को अपना सामंत नियुक्त किया।
चंद वंश पहला ऐसा राजवंश है जिसके लिखित प्रमाण प्राप्त हुए हैं। इसकी जानकारी हमें अभयचंद के सबसे प्राचीन अभिलेख से मिलती है।उत्तराखंड के इतिहासकारों के अनुसार 1018 में महमूद ग़ज़नवी ने कन्नौज पर आक्रमण किया तब सोमचंद ने भागकर ब्रह्मदेव द्वितीय के पास शरण ली थी।
बद्री दत्त पांडे के अनुसार सोमचंद इलाहाबाद के झूसी का शासक था जो 700 ई० में उत्तराखंड की यात्रा पर आया था।
एटकिंसन के अनुसार चंद्र उत्तराखंड की चारधाम यात्रा पर 953 ई० में आया था।
बद्री दत्त पांडे के अनुसार ब्रम्हदेव द्वितीय के समय सोम चंद उत्तराखंड की यात्रा पर आया था और ब्रह्मदेव द्वितीय ने अपनी पुत्री चंपा की शादी इलाहाबाद के राजकुमार सोमचंद से करा दी थी तथा 15 बीघा जमीन दहेज में दी थी।इस जमीन पर सोमचंद ने राजबुंगा का किला बनवाया था। इसी राजबुंगा किले पर एक नए राजवंश की स्थापना की थी जो चंद्र वंश के कहलाया था।इसी राजबुंगा को सोमचंद ने अपनी राजधानी बनाया था।अतः कहा जाता है कि चंदवंश की प्रथम राजधानी राजबुंगा थी।
चन्दवंश का प्रथम युद्ध-
काली कुमाऊं के पश्चिम में द्रोण कोट /इनाकोर्ट पर बैण सामंत रावत राजा को बाहर से आए सोमचंद का शासन करना पसंद नहीं आया। फलस्वरूप सोमचंद व रावत राजा के मध्य युद्ध हुआ जिसे द्रोण कोर्ट/इनाकोर्ट का युद्ध कहा जाता है। जिसमें सोमचंद विजय रहा।उस समय सोमचंद का सेनापति कालू तडागी था।
सोमचंद [700-721 A.D.]-
बद्रीदत्त पांडे के अनुसार यह चंद्र वंश के संस्थापक थे। इन्होंने चंपावत में राजबुंगा के किले का निर्माण कराया और उसे अपनी राजधानी बनाया था।
सोम चंद्र के प्रशासनिक कार्य-
- सोमचंद ने राजबुंगा किले के चारों तरफ किले बनाये।इन किलों पर एक-एक किलेदारों को नियुक्त किया जिन्हें चाराल कहा गया तथा यह प्रशासनिक व्यवस्था चाराल व्यवस्था कहलायी गयी।
- किलेदार – चौधरी,कार्की,तड़ागी,बोरा
- सोमचंद ने चार ब्राह्मणों का एक दल बनाया था जिसे चौथानी ब्राह्मण कहा गया था।
- चौथानी ब्राह्मण– जोशी (दीवान) सेमल्टी (राजगुरु) देवरिया (पुजारी) मंडलिया (पंडा)
- सोमचंद के समय पुरे चम्पावत को पांच थोको के बाँटा गया था। जिसमे पांच प्रमुख जातियाँ रहती थी। मेहरा,फर्त्याल,ढेक,देव,करायत रहती थी।इन थोको पर नियंत्रण रखने के लिए सोमचंद ने ग्रामीण व्यवस्था की शुरुवात की थी अर्थात कहा जा सकता है कि सोमचंद वह पहला शासक था जिसने उत्तराखंड में ग्रामीण राज व्यवस्था/पंचायती राज व्यवस्था की शुरुवात की थी। इसके अंतर्गत इसने प्रत्येक गॉंव में पांच बुजुर्ग व्यक्तियों की नियुक्ति कर दी जिन्हें स्याणा कहा गया था। इन पांच लोगो का मुख्य कार्य राजस्व (कर) लेना था। एक बार कर वसूलने के विवाद को लेकर मेहरा व फर्त्याल लोगों ने इन पांचो का सर काटकर एक जगह पर दफना दिया और वहां पर एक चबूतरे का निर्माण किया जिसे वर्तमान में बुड चौराहा के नाम से जाना जाता है।
- इसके बाद सोमचंद को लगा की इन पर नियंत्रण करना मुश्किल है इसके लिए इसने पांचों जातियों में से तीन-तीन लोगों को ग्रामीण व्यवस्था में नियुक्त किया।
- सोमचंद इतना प्रभावशाली होने के बावजूद भी एक स्वतंत्र शासक नहीं था क्योंकि वह डोटी के राजा जयदेव को कर दिया करता था अर्थात यह एक मांडलिक राजा था।
- सोमचंद्र के प्रशासनिक कार्यों की वजह से इसे मौलिक पंडित भी कहा जाता है।
चन्दवंश के अन्य शासक-
2. आत्मा चंद-
इतिहास में उल्ल्लेख नहीं मिलता।
3. पूर्णचंद –
शिकार करने का शौक़ीन था।
4. इंद्रा चंद-
इंद्र चंद पहला राजा था, जिसने उत्तराखंड के अंदर रेशम का उत्पादन प्रारंभ किया था। तिब्बत के शासक सौग-जोग-पौग से रेशम के कीड़े लाया और इसने रेशम उत्पादन व रेशमी वस्त्र बनाने का कार्य प्रारंभ किया। इसी समय इसके साम्राज्य में झूठ बोलने वाली एक प्रथा चलाई गई जिसे पटरंग बादी कहते थे।
5. संसार चंद
6. सुधा चंद
7. हरि चंद
8. वीणा चंद-
वीणा चंद चंद्रवंश का कमजोर शासक था।इसका लाभ उठाकर खसों ने चंदो पर आक्रमण किया सर्वप्रथम खस राजा बीजड ने आक्रमण किया था और खसों ने इसके बाद 200 वर्ष तक शासन किया था। इसी आक्रमण के दौरान वीणा चंद का भाई वीर चंद भागकर नेपाल चला गया और चंद लोग पश्चिम की तरफ भाग गए।खसों का शासन अच्छा नहीं था।खस राजा अत्याचारी थे।इसी के चलते चंदो ने वीणा चंद के भाई वीर चंद को बुलाया।कुमाऊं में अंतिम खस राजा सोपाल था।खासों ने यहाँ 850 -1050 ई० तक शासन किया था।
9. वीर चंद (1065-1080 ई०)-
वीर चंद को चंद वंश का पुनः संस्थापक कहा जाता है।वीर चंद के समय कुमाऊँ पर खसों का राज था। इस समय कुमाऊँ की गद्दी पर खस राजा सोपाल का शासन चल रहा था।वीरचंद ने सोनखडायन को अपना सेनापति नियुक्त किया और चंदो को पुनः एकत्रित कर करने का कार्य सौंपा। इससे सोपाल पर आक्रमण किया और उसे पराजित किया। इस तरह चंदवंश का चम्पावत/काली कुमाऊँ में पुनः अधिकार हो गया था।
10. रूप चंद(1080-1093 ई०)
11. लक्ष्मी चंद (1093-1113 ई०)
12. धर्म चंद (1113-1121 ई०)
13. कर्म चंद (1121-1140 ई०)
14. कल्याण चंद (1140-1149 ई०)
15. निर्भय चंद/नामी चंद (1149-1170 ई०)
16. नर चंद (1170-1177 ई०)
17. नानकी चंद (1177-1195 ई०)-
नानकी चंद के शासनकाल में अशोक चल्ल का आक्रमण हुआ था।इसकी जानकारी हमे बाड़ाहाट का अभिलेख(1191) तथा गोपेश्वर का अभिलेख(1209)और त्रिशूल शिलालेख से मिलती है।अशोक चल्ल ने उत्तराखंड को जीतने के बाद बिहार पर आक्रमण किया था।जिसकी जानकारी अशोकचल्ल के बोधगया अभिलेख से मिलती है।इस अभिलेख में अशोक चल्ल को सपाल दत्त /शिवालिक का राजा कहा गया है,क्योंकि बोधगया अभिलेख में उत्तराखंड को सपाल दत्त के नाम से जाना जाता है।
18. राम चंद (1195-1205 ई०)
19. भीष्म चंद (1205-1226 ई०)
20. मेघ चंद (1226-1233 ई०)
21. ध्यान चंद (1233-1251 ई०)
22. पर्वत चंद (1251-1261 ई०)
23. थोहर चंद (1261-1275 ई०)-
हर्ष देव जोशी के अनुसार थोहर चंद को कांड वंश का वास्तविक संस्थापक कहा गया है,परन्तु वंशावली के अनुसार थोहर चंद चंद वंश के 23वें राजा थे।
24. कल्याण चंद द्वितीय (1275-1296 ई०)
25. त्रिलोक चंद (1296-1303 ई०)-
खिलजी वंश के शासक अलाउद्दीन ख़िलजी के समकालीन शासक था।यह चंद वंश का पहला शासक था जिसने साम्राज्य विस्तार की नीति अपनाई।इससे पहले चंद वंश का साम्राज्य काली कुमाऊँ तक सीमित था,लेकिन त्रिलोक चंद के समय इसका शासन नैनीताल (पालीपछाऊ) तक फ़ैल गया था।इसने छकाता राज्य जीतकर उसे अपने राज्य में मिलाया तथा भीमताल में एक किला बनवाया था।