कुणिन्द वंश (Kunind Dynasty) [1500 B.C.- 300 A.D.]-
कुणिन्द उत्तराखंड का पहला राजवंश था।कुणिन्द वंश की जानकारी हमे प्रागैतिहासिक काल तथा एतिहासिक काल दोनों तरह से मिलती है।
- एतिहासिक काल – महाभारत
- महाभारत में इन्हें द्विजश्रेष्ठ कहा जाता था।
- प्रागैतिहासिक काल – कुणिन्द कालीन सिक्के
कुणिन्दो का निवास मध्य हिमालयी क्षेत्र,काली नदी की घाटी,यमुना घाटी और कालिंदी घाटी तक था।प्रारंभ में कुणिन्द लोग मोर्यों के अधीन थे।अमोघभूति कुणिन्द वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था।अमोघभूति ने कास्य और रजत मुद्राओं का प्रचलन प्रारंभ किया गया था, जिसमे देवी और मृग अंकित थे।अमोघभूति की मृत्यु के बाद शक वंशो ने कुणिन्दो के मैदानी भागों पर अधिकार कर लिया।पाणिनि की अष्टाध्यायी से भी कुणिन्दो की जानकारी मिलती है, जिसमे इनको कुलून कहा गया है।
- विष्णु पुराण में कुणिन्दो को कुणिन्दो पत्यकस्य कहा गया है।
- रामायण के किसकिन्दा कांड से भी कुणिन्दो की जानकारी मिलती है।
- कुणिन्द राजवंश के 5अभिलेख भी प्राप्त हुए है। जिसमे से 1 मथुरा (उत्तर प्रदेश) से तथा 4 बरहुद (मध्य प्रदेश) से प्राप्त हुए है।
1500 B.C.- 900 A.D. (प्राचीन कुणिन्द)-
- प्राचीन कुणिन्दो की कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती सिवाय महाभारत के।महाभारत में इन्हें द्विजश्रेष्ठ कहा जाता था।
- प्राचीन कुणिन्द के पहले राजा सुबाहु थे।
- उनकी कुणिधान्धिपति की उपाधि प्राप्त हुई थी।
- इनके राज्य की राजधानी श्रीनगर(पौड़ी) थी।
- इनके दुसरे राजा विराट थे।
- जिनके राज्य की राजधानी विराटगढ़ी थी।
900 B.C. – 200 B.C. (मध्यवर्ती कुणिन्द)-
- मध्यवर्ती कुणिन्दो की जानकारी के रूप में ना तो किसी की मुद्रए मिली, ना ही किसी के नाम ।
- मध्यवर्ती कुणिन्दो का कोई निशान न मिले का कारण यह था की उत्तर भारत में महाजनपदो का उदय हुआ। जिसमे सबसे शक्तिशाली मौर्य प्रशासन अत्यधिक केंद्रकृत था।
- इसी कारण उत्तराखंड में इस समय गठ शासन प्रचलित था।
- मध्यवर्ती कुणिन्दो के वक्त कुणिन्दो की राजधानी कालकूट/ (कालसी) थी।
- मध्यवर्ती कुणिन्दो के समय मौर्यों का उत्तराखंड में प्रमुख केंद्र कालसी (देहरादून में) था।
- कालसी स्थित अभिलेख में कुणिन्दो को पुलिंद कहा गया है।
200 B.C. – 300 A.D. (उत्तरवर्ती कुणिन्द)-
- अशोक के बाद मौर्या काल में कुणिन्द भी स्वयं को शत्रुघन नगर(सहारनपुर) में स्थापित करने में सफल हुए थे।
- उत्तरवर्ती कुणिन्दो के कुछ सिक्के प्राप्त हुए है।
कुणिन्द कालीन सिक्के-
- अमोघभूति प्रकार
- अल्मोड़ा प्रकार
- छत्रेश्वर प्रकार
अमोघभूति प्रकार-
- अभी तक ज्ञात सिक्को में सबसे प्राचीन कुणिन्द सिक्के अमोघभूति प्रकार के है।
- जो चाँदी और ताँबे के बने होते थे।
- सर्वाधिक सिक्के अमोघभूति प्रकार के प्राप्त होने की वजह से इसे कुणिन्द वंश का सबसे प्रतापी शासक माना गया है।
- इन सिक्को के एक पहलू पर शिव नंदी त्रिशूल, तथा दुसरे पहलू पर में खरोष्ठी और ब्राह्मी लिपि में राज्ञ: कुणिन्दस्य अमोघभूति लिखा गया है।
- कुछ सिक्को पर कुलिन्द्रिय भी लिखा गया है।
अल्मोड़ा प्रकार-
- अधिकांश सिक्के अल्मोड़ा से प्राप्त हुए इसलिए इसे अल्मोड़ा प्रकार कहा जाता है।
- ये सिक्के ताँबे से निर्मित थे।
- ताँबे के अधिकांश सिक्के अल्मोड़ा से प्राप्त हुए है।
- इन सिक्को में चार राजाओ के नाम अंकित किये गये थे। (शिवदत्त,शिवपाली,हरिदत्त,भगवत)
- वर्तमान में यह सिक्के लन्दन संग्रहालय में रखे गये है।
छत्रेश्वर प्रकार-
- ये सिक्के ताँबे से निर्मित थे।
- इन सिक्को में ब्रह्मी लिपि का उपयोग किया गया है।
- कुछ सिक्को में भगवत छत्रेश्वर माहराज लिखा गया है।
- राहुल सांस्कृतिपान के अनुसार इनके आराध्य देव शिव थे।
- इन मुद्राओ में बौद्ध और शैव धर्म का प्रभाव मिलता है।
ज्ञात मुद्राओ के आधार पर कुणिन्द कालीन शासक-
- प्रथम शासक
- सबसे प्रतापी शासक
- अंतिम शासक
प्रथम शासक-
- विष देव
- अग्रराज
- धनभूती
- धनभूति(द्वितीय)
- बलभूती
सबसे प्रतापी शासक-
- अमोघभूति
- शिवदत्त
- शिवपाली
- हरिदत्त
- भगवत
अंतिम शासक-
- छत्रेश्वर
- भानू
- रावण
सभी कुणिन्द शासको को खशाधिपति कहा जाता था, क्योंकि इन्होने खशों पर राज किया था।
कुणिन्द वंश की जानकारी के स्त्रोत-
- महाभारत – द्विजश्रेष्ठ
- सिक्के
- पाणिनि – अष्टाध्यायी
- टॉमली यात्रा – वृत्तांत
- कालसी अभिलेख
कुणिन्द राज्य में स्थित प्रदेश-
- कालकूट – कालसी
- तमसा – टोंस नदी के आस – पास का क्षेत्र (जौनसार भाबर)
- भारद्वाज -पौड़ी गढ़वाल और टिहरी
- तंकड़ – उत्तरकाशी व चमोली का क्षेत्र (जहां भोटिया प्रजाति रहती है)
- गोविसाड़ – उधमसिंह नगर व नैनीताल का क्षेत्र
शक वंश (Saka Dynasty)–
शक प्राचीन मध्य एशिया में रहने वाले स्किथी जनजातियों का एक समूह था। यह बौद्ध धर्म को मानते थे। इस जनजाति के लोग बाद में चीन, ईरान, यूनान आदि देशो में जाकर बसने लगे।इनकी सही नस्ल की पहचान करना कठिन रहा है क्योंकि भारतीय ,ईरानी और यूनानी स्त्रोतों में इनका वर्णन अलग-अलग किया गया है,फिर भी अधिकतर इतिहासकार मानते है की ये सभी शक स्किथी थे। शको ने शक संवत चलाया था।शक संवत नाम से ही आधुनिक भारतीय राष्ट्रीय कैलेंडर है।
- शकों ने कुणिन्दो के बाद राज किया था।
- ये स्किथी/सिथिया काबिले के लोग थे।
- इनकी भाषा ईरानी थी।
- इनका धर्म बौद्ध था।
- मालवा के राजा विक्रमादित्य ने शक संवत चलाया था।
- शक उत्तराखंड में सूर्य उपासक रहे जिनकी जानकारी उत्तराखंड में स्थित सूर्य मंदिरों से प्राप्त होती है।
उत्तराखंड के प्रमुख सूर्य मंदिर-
बड़ादित्य सूर्य मंदिर (कटारमल सूर्य मंदिर) –
- बड़ादित्य – बड़ अर्थात पेड़ तथा आदित्य आर्थात सूर्य
- स्कन्द पुराण में कटारमल सूर्य मंदिर का नाम बड़ादित्य सूर्य मंदिर है।
- स्थिति – अल्मोड़ा गाँव (सुतार)
- नदी तट – कौसिला (कोसी)
- समुद्र तल से ऊचाई- 2116 मीटर
- प्रमुख मूर्ति – बूटधारी ,आदित्य वेशी की मूर्ति ,विष्णु,गणेश की मूर्ति
- निर्माण – राजा कटारमल (कत्यूरी कालीन) 9-10 वी शताब्दी का मंदिर , 45 मंदिर समूह
- संरचना – नागर शैली
पलेठी का सूर्य मंदिर-
- स्थिति – देवप्रयाग टिहरी (पलेठी)
- निर्माण – कल्याण वर्मन
- जानकारी – कल्याण वर्मन के अभिलेख से इनकी जानकारी मिलती है।
- कल्याण वर्मन की उपाधि – परमभटारक महाराजाधिराज कल्याण वर्मन
- कल्याण वर्मन की राजधानी -पलेठी
कण्डारा सूर्य मंदिर-
- स्थिति – रुद्रप्रयाग
- निर्माण – ललित सुर देव (मध्य कत्यूरी का शासक)
कुषाण वंश–
उत्तराखंड के अन्दर कुषाण वंशीय ज्येष्ठ सूचि कबीले की शाखा थी।उत्तराखंड में इन्होने ज्यादा शासन नहीं किया था।कुषाण चीन से आये थे।इन्हें आर्यों से जुडा माना जाता है।कुषाण कालीन के कुछ अवशेष उत्तराखंडसे प्राप्त हुए है,जो इनकी जानकारी देते है।उत्तराखंड में शको के बाद तराई क्षेत्र में कुषाणों ने राज किया था।
- मुख्य शासक – कनिष्क
- अंतिम शासक – वासुदेव
कुषाण वंश की जानकारी के स्रोत-
इनके शासनकाल की कोई विशष जानकारी प्राप्त नहीं होती है। फिर भी कुषाण कालीन मुद्रए निम्नलिखित स्थानों से प्राप्त होती है।
- मुनि की रेती (वीरभद्र) – 1972 में उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल में 44 स्वर्ण मुद्राएँ प्राप्त हुई है।
- काशीपुर – कनिष्क प्रकार की मुद्राएँ मिली है।
- काशीपुर (गोविषाण) – यहाँ से वासुदेव प्रकार के स्वर्ण मुद्राएँ मिली है।
- बिजनौर – यहाँ से वासुदेव प्रकार की 5 स्वर्ण मुद्राएँ प्राप्त हुई है।
- ऋषिकेश – यहाँ से ताँबे की बनी कुषाण मुद्राएँ प्राप्त हुई है।
- खटीमा – कन्चिपुरी से 7 स्वर्ण मुद्राएँ प्राप्त हुई है।
कुषाण वंश के लोग बौद्ध धर्म को मानते थे। उत्तराखंड में कुषाण मध्य एशिया से स्थानांतरित होकर आये थे। कुछ इतिहासकार इस वंश को संयुक्त अरब अमीरात (UAE)के मूलक मानते है।