यौधेय वंश (Yudhyaya Dynasty)-
जौनसार, शिमला,कागडा किला का झंडा आदि निम्नलिखित स्थानों से यौधेय वंश की मुद्राए प्राप्त हुई है।यहाँ से प्राप्त सिक्को में ब्राह्मी लिपि में ‘यौधेय ग्जस्पजय’ लिखा गया है।
परवर्ती कुणिन्द (उत्तरवर्ती कुणिन्द)-
- कुषाणों और यौधेय के अधिकार के बाद उत्तराखंड में कुणिन्द किसी न किसी रूप में शासन करते रहे।
- इन शासको के नाम के बाद भी कुषाणों के बाद की मुद्राएँ उत्तराखंड से मिली है।
- पौड़ी के दुगड्डा से भानू तथा रावण के नाम के ताम्र मुद्राएँ उत्तराखंड से प्राप्त हुए है।
गोविसाड का मित्र वंश –
- काशीपुर के तराई क्षेत्र में मिव वंश का शासक था।
- इसकी जानकारी हमे गोविसाड से प्राप्त पृथ्वी मित्र तथा माव मित्र दो शासको के ईटो के अभिलेख से मिलती है।
- आगे चल के मित्र वंश का विलय गुप्तो में हो गया।
छगलेश राजवंश(Chaglesh dynasty)–
- इनकी जानकारी लाखामंडल अभिलेख से प्राप्त होती है।
- यमुना प्रदेश के आस पास यह राजवंश शासन कर रहे थे ।
- लाखंमंडल में इस वंश के शासको के नाम प्राप्त होते है। (नरपति जयदास,अचल,नामछत,गुहेश, छगलेश आदि)
सिंहपुर व यदुराज वंश(Singhpur Yaduraj Dynasty)–
- इस वंश की जानकारी ईश्वरा के लाखनमंडल अभिलेख से मिलती है।
- इस अभिलेख में 12 शासको के नाम उल्लेख है।
- इस अभिलेख के अनुसार यौधेयो की राजधानी सिंहपुर थी।
- इस वंश का शक्तिशाली शासक भास्कर वर्मन था।
- ईश्वरा ने एक कैलाश मंदिर बनाया था जहां पर यह अभलेख है।
नाग वंश (Nag Dynasty)-
उत्तराखंड में प्रचलित नाग पूजा व नाग मंदिरो से इस वंश की जानकारी मिलती है। ये मूलतः बदी से सम्बंधित थे।नाग वंश का विस्तार हिमाली से वर्तमान के चमोली तक था।नाग वंश ने कश्मीर, उत्तराखंड तिब्बत, पिथौरागढ़, चमोली, नागपुर ,नागालैंड में शासन किया था।नाग वंश की भाषा नागा भाषा थी।नाग वंश द्वारा बनाये गये मंदिरों में नाग देवता और नाग लोक का वर्णन देखने को मिलता है।नाग वंश को जानने के प्रमाण वंशावली कश्मीर (अनंतनाग) से मिलती है।
इसके अनुसार-
- अनंतनाग (शेषनाग)
- वासुकीनाग (कैलाश पर्वत)
- तक्षकनाग (तक्षशिला)
- पिंगलगाना (कश्मीर)
नाग वंश को जानने के लिए 2 अन्य प्रमुख स्रोत है।
- जम्मू कश्मीर – शुद्ध महादेव का त्रिशूल मंदिर अभिलेख
- गोपेश्वर (चमोली) – रूद्र महादेव का त्रिशूल अभिलेख
उत्तराखंड के प्रमुख नाग मंदिर-
- नाग मंदिर(चम्पावत) (निर्माण- 1663 में कल्याण चन्द द्वारा)
- बेरीनाग (पिथौरागढ़)
- सेममुखेम (टिहरी)
अन्य प्रमाण-
गोपेश्वर के त्रिशूल अभिलेख से 4 राजाओ के नाम प्राप्त हुए है।
- स्कन्द नाग
- अंशु नाग
- विभु नाग
- गणपति नाग (सबसे शक्तिशाली शासक)
नाग वंश की लिपि – शंक लिपि
मौखरी वंश (Maukhari Dynasty)–
- मौखरी वंश ने नागो की सत्ता को समाप्त कर उत्तराखंड में अपना अधिकार कर लिया था।
- इनकी राजधानी कन्नौज थी।
- ग्रहवर्मन का विवाह थानेश्वर के पुष्पभूति वंश /वर्धन वंश के शासक हर्षवर्धन की बहन राजश्री से हुआ था।
- गौण (बंगाल) के राजा शंशाक ने ग्रहवर्मन की हत्या कर दी और राजश्री को बंधी बना लिया गया।
- हर्षवर्धन कन्नौज पहुंचा उसने शंशाक की हत्या कर दी और कन्नौज को अपने अधीन कर लिया।इस प्रकार उत्तराखंड में हर्षवर्धन का अधिकार हो गया था।
पुष्पभूति वंश (Pushpabhuti Dynasty)-
इस वंश की जानकारी हमे हर्षवर्धन के दरबारी कवि वाणभट्ट द्वारा रचित हर्ष चरित्र से मिलती है।इसके द्वारा हर्षवर्धन की एक पर्वतीय कन्या से विवाह करने की जानकारी मिलती है।उत्तराखंड मे भ्रमण पर हर्षवर्धन के साथ हुवेनसांग के आने का भी वर्णन मिलता है।
हर्षवर्धन का जन्म 590 ई० में हुआ था।इसका शासन 606 से 647 ई० तक रहा।इसके राज्य की राजधानी थानेश्वर थी।इसके शिलादित्य की उपाधि दी गयी थी।प्रत्येक 5 वर्षो में यह प्रयाग में एक धार्मिक सम्मलेन करता था। इस सम्मेलन में भू.राज्य्स्व प्रणाली चलायी थी जिसे सामती प्रणाली कहा जाता था। हर्षवर्धन एक कुशल राजनीतिज्ञ व शक्तिशाली शासक था।इसने अपने जीवन काल में अनेक युद्ध जीते थे,परन्तु नर्मदा नदी के तटपर चालुक्य वंश के शासक पुल्केसिन से लड़ा युद्ध हारा था।इसकी जानकारी कर्नाटक स्थित एहोल अभिलेख से प्राप्त होती है।हर्षवर्धन भारत में अंतिम शक्तिशाली हिन्दू शासक था।
हुवेनसांग ने अपनी पुस्तक सी-यू-की में उत्तराखंड को पोली-हि-मो-पुलों कहा गया है।हुवेनसांग हिमालय के वृहापुर राज्य में गया था।जो कि बौद्ध धर्म के लिए प्रसिद्ध है।यहाँ पर इसने 5 बौद्ध विहार होने का उल्लेख किया है।हुवेनसांग ने हरिद्वार को मो-यू-लो (मयूर पुर) कहा है।उत्तराखंड में मौखरी वंश का क्षेत्र हर्षवर्धन के द्वारा एक सांमत यशोवर्मन को देख-रेख के लिए दिया गया था। हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद उत्तराखंड का सम्पूर्ण क्षेत्र निम्न भागों में विभाजित हो गया-
- वृहापुर
- शत्रुघन नगर
- गौविषाण
- कल्याण वर्मन का राज्य