पंवार वंश के शासक (भाग -2)
Ruler of Panwar Dynasty (Part -2)
फतेह शाह (1684 – 1716) –
- फतेह शाह मेदिनी शाह का पुत्र था।
- फतेह शाह के समकालीन राजा – उद्योग चंद , ज्ञान चंद (द्वितिय ) तथा जगत चंद थे।
- फतेह शाह के शासन काल को पंवार वंश का स्वर्ण काल (मतिराम द्वारा ) कहा जाता है।
- फतेह शाह के शासन काल का एक सिक्का भी प्राप्त हुआ है जिससे यह पता चलता है कि गढ़वाल की स्वतंत्र सत्ता थी।
- सिरमौर के राजा मेदिनी प्रकाश ने सिक्खों के 10वें गुरु गुरु गोविन्द सिंह से सहायता माँगी थी। जिसके फलस्वरूप गुरु गोविन्द सिंह और फतेह शाह के मध्य बंगाड़ी का युद्ध (18 सितम्बर 1688 देहरादून) में हुआ था।
- इस युद्ध में सिक्ख सेना विजयी रही थी। इसकी जानकारी गुरु गोविन्द सिंह द्वारा रचित विचित्र नाटक से मिलती है।
- फतेह शाह ने पंजाब के बिलासपुर के राजा भीम चंद के बेटे से अपनी पुत्री का विवाह किया था।
- फतेह शाह ने फ़तेहपुर नामक शहर बसाया था।
फतेह शाह के दरबारी कवि –
श्री रतन कवि (वास्तविक नाम – क्षेमराम) – पुस्तक – “फतेह शाह ”
कविराज सुखदेव – पुस्तक – “वृत्तविचार ”
जटाधर / जटाशंकर – पुस्तक – “फ़तेहशाह कर्णग्रन्थ ”
भूषण कवि – पुस्तक – “फतेहप्रकाश ” । इस पुस्तक में फतेहशाह को सील का सागर , हिन्दुओं का रक्षक , उदंडो को दंड देने वाला शासक बताया गया है।
- मतिराम की पुस्तक ” छंदसार पिंगल ” वृत्त कोमुदी ” यह दोनों पुस्तके फतेह शाह से सम्बंधित है।
- मतिराम ने ही गढ़वाल को फतेह शाह के शासन काल को स्वर्णकाल कहा है।
- मतिराम ने छंद पिंगल में फतेहशाह की तुलना भगवान शिवजी से की है।
- फतेहशाह को प्रेमानुरागी कहा जाता है, क्यूंकि यह संगीत , साहित्य और चित्रकला से अधिक प्रभावित था।
- इसी कारण मौलाराम ने फतेहशाह को प्रीतम शाह कहा है।
- यह एक धार्मिक राजा था।
- यह नाथपंथ का अनुयायी था।
- इसके शासन काल में चंद राजा उधोत चंद ने गढ़वाल में आक्रमण किया था तथा बधाणगढ़ जीत लिया था।
सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य तथा अकबर की भाँति फतेहशाह के दरबार में भी 9 रत्न थे।
- हरिदत्त थपीयाल
- कृतिराम कन्हौला
- शशिधर डंगवाल
- बासवानंद बहुगुणा
- हरिदत्त नौटियाल
- रुद्रिदत्त कमोठी
- खेतराम दसमाना
- सुरेशानंद बर्थवाल
- सहदेव चंदोला
- सिक्खों के 7वें गुरु हर राय के पुत्र राम रायद्वारा गढ़वाल में शरण ली जाती है।
- फतेहशाह ने गुरु राम राय को सम्मान दिया तथा देहरादून में एक गुरूद्वारे का निर्माण का भी स्वागत किया।
- गुरु राम राय ने देहरादून में धामावाला झंडे दरबार साहब गुरुद्वारा बनाया था।
- गुरुद्वारा के आय हेतु तीन ग्राम खुंडा बुडा, राजपुरा , चामासारी भी दान स्वरुप भेट किये।
- 1699 में झंडामेला इन्ही के नाम से शुरू हुआ था।
- पृथ्वीपति शाह की मृत्यु के बाद रानी कटौची फतेहशाह की संरक्षिका बनी थी।
- 1703 में ज्ञानचंद द्वितीय व फतेह पति शाह के मध्य दुधोली का युद्ध लड़ा गया था। इस युद्ध को ज्ञानचंद द्वितीय ने औरंगज़ेब की सहायता से जीता था।
फतेहशाह के 2 पुत्र थे।
- उपेन्द्र शाह
- दिलीप शाह
उपेन्द्र शाह (1716) –
- उपेन्द्र शाह ने कुछ समय तक ही शासन किया था।
- 22 वर्ष की उम्र में ही उपेन्द्र शाह की मृत्यु हो गयी थी।
दिलीप शाह (1717) –
- दिलीप शाह का शासन काल सबसे छोटा था।
प्रदीप शाह (1717- 1773) –
- प्रदीपशाह के समकालीन चंद शासक दीप चंद तथा कल्याण चंद थे।
- प्रदीप शाह का शासन काल सबसे लम्बा था।
- इसकी संरक्षिका राजमाता कनक देई थी।
- प्रदीप शाह एक मोकविलासी राजा था।
- प्रदीप शाह के समय में कुमाऊँ व् गढ़वाल के मध्य अच्छे सम्बन्ध थे।
- इसी समय चंद पर रोहलो ने आक्रमण (1744 – 45) में आक्रमण किया था।
- इस युद्ध में प्रदीप शाह ने चंदो की सहायता की थी।
- प्रदीप शाह के दरबारी कवि मेधाकर थे।
- मेधाकर ने ही “प्रदीप रामायण ” ग्रन्थ लिखा था।
- प्रदीप शाह ने मौलाराम को संरक्षण दिया था।
- प्रदीप शाह के मंत्री चन्द्रमणीडंगवाल ने श्रीनगर में मंगलेश्वर मंदिर का निर्माण किया था।
- राजा प्रदीप शाह के शासन काल का एक सिक्का लखनऊ के म्यूज़ियम में उपलब्ध है।
- प्रदीप शाह की मृत्यु लकवा से हुई थी।
ललित शाह (1773 – 1780 ) –
- यह प्रदीप शाह का पुत्र था।
- दीप चंद , मोहन चंद ललित शाह के समकालीन राजा थे।
- ललित शाह के शासन काल में कुमाऊँ में गृहकलेश चल रहा था,इसी कारण कुमाऊँ के चाणक्य कहे जाने वाले हर्षदेव जोशी ने ललित शाह को कुमाऊँ पर आक्रमण करने को कहा था।
- 1779 में ललित शाह ने कुमाऊँ पर आक्रमण कर दिया था।
- इस युद्ध को बग्वाली पोखर के नाम से जाना जाता है।
- यह युद्ध ललित शाह और मोहन चंद के बीच हुआ था जिसमे मोहन चंद पराजित हो गया था।
- इस युद्ध के दौरान मोहन चंद ने भागकर रामपुर के नवाब फैजुला खां के यहाँ शरण ली थी।
- इस युद्ध को जीतने के बाद ललित शाह ने अपने पुत्र प्रद्युम्न शाह को कुमाऊँ का राजा बनाया था ।
- प्रद्युम्न शाह ने बाद में स्वयं को राजा दीप चंद का दत्तक पुत्र घोषित कर प्रद्युम्न चंद नाम ग्रहण किया था ।
- 1779 में ललित शाह व सिक्खों के मध्य सिरमौर का युद्ध हुआ था।
- ललित शाह की मृत्यु मलेरिया के कारण दुलंडी नामक स्थान पर हुआ था।
- ललित शाह के 4 पुत्र थे।
- जयकृत शाह
- प्रद्युम्न शाह
- प्राकृम शाह
- प्रीतम शाह
जयकृत शाह (1780 – 1786) –
- प्रद्युम्न चंद जयकृत शाह का समकालीन राजा था।
- जयकृत शाह के समय सिक्खों ने गढ़वाल पर आक्रमण किया था।
- इस युद्ध में सिक्खों की सेना विजय रही थी। जिसके फलस्वरूप सिक्खों को 4 हजार वार्षिक कर या राखि नामक कर देना स्वीकार किया जिससे की सिक्खों के आक्रमण से बचा जा सके।
- जयकृत शाह के राज्यकाल में उनके मंत्रियों एवं पदाधिकारियों के मध्य सदैव ही तनाव रहता था।
- मंत्री और पदाधिकारी सदैव षड्यंत्रो में व्यस्त रहते थे,इसमे कृपाराम डोबाल, खंडूरी आदि थे।
- श्रीनगर के गवर्नर घमंड सिंह मियाँ द्वारा कृपाराम की हत्या कर दी जाती है, कृपाराम डोबाल एक अत्याचारी मंत्री था।
- जयकृत शाह एवं प्रद्युम्न शाह सौतेले भाई थे तथा इन दोनों भाइयों में परस्पर शत्रुता थी।
- जयकृत शाह के द्वारा अपने भाई को कुमाऊँ के सिंहासन से हटाने के लिए विद्रोही मोहन चंद ने सहायता की थी।
- इसी कारण प्रद्युम्न चंद ने गढ़वाल पर आक्रमण कर दिया था।
- प्रद्युम्न शाह ने पहले देवलगढ़ को लूटा तथा उसके बाद श्रीनगर पर आक्रमण कर दिया था।
- 1785 में जयकृत शाह और सिरमौर के राजा जगत प्रकाश ने मिलकर प्रद्युम्न चन्द और प्राकृम शाह के विरुद्ध कपरोली का युद्ध लड़ा।
- इस युद्ध में जयकृत शाह विजयी रहा था।
- युद्ध जितने के बाद जयकृत शाह देवलगढ़ के राजराजेश्वरी मंदिर गया था।
- इसकी जानकारी प्रद्युम्न चन्द को मिली तो प्रद्युम्न चंद ने गढ़वाल पर आक्रमण कर दिया तथा 3 वर्ष तक प्रद्युम्न चंद ने श्रीनगर में ही निवास कर शासन करने का प्रयास किया।
- 3 वर्षों के बाद प्रद्युम्न चंद वापस कुमाऊँ आ गया था।
- प्रद्युम्न चंद के कुमाऊँ वापस जाने के बाद जयकृत शाह ने पुनः बागडोर संभाली लेकिन जयकृत शाह के परम् विश्वास पात्र धनीराम ने ही जयकृत को धोका दे दिया इसलिए जयकृत शाह ने षड़यंत्रो से परेशान होकर 1784 में देवप्रयाग के रघुनाथ मंदिर में चले गया था।
- मंदिर में जाने के चौथें ही दिन जयकृत शाह का देहांत हो गया था।
- इतिहासकार मौलाराम के अनुसार जयकृत शाह के साथ उसकी 4 रानियाँ सती हो गयी थी।
- 1785 में हर्षदेव जोशी के नेतृत्व में कुमाऊँ की सेना ने गढ़वाल पर आक्रमण किया तथा देवलगढ़ व श्रीनगर में लूटपाट की थी इसलिए उत्तराखंड के इतिहास में इसे जोसयाड़ी कांड भी कहा जाता है
- जयकृत शाह के शासन काल के दौरान रोहिलो के द्वारा देहरादून पर भी आक्रमण किया गया था।
- जयकृत शाह का दरबारी कवि मौलाराम तोमर था।
- जयकृत शाह के द्वारा मौलाराम को 60 गांव जागीर में दिए थे।
प्रद्युम्न शाह / प्रद्युम्न चंद (1786 – 1804) –
- प्रद्युम्न शाह गढ़वाल में शासन करने वाला अंतिम स्वतंत्र शासक था।
- मोहन चंद ,प्रद्युम्न शाह का समकालीन शासक था।
- प्रद्युम्न चंद गढ़वाल व कुमाऊँ दोनों जगह शासन करने वाला एक मात्र शासक था।
- कुमाऊँ में प्रद्युम्नचंद ने 1780-86 तक शासन किया तथा उसके बाद गढ़वाल में 1786 – 1804 तक शासन किया था।
- प्रद्युम्न शाह के दरबार में कैप्टन हार्डविक आया था।
- प्रद्युम्न शाह ने कुमाऊँ का राजा बनने के लिए स्वंय को दिप चंद का दत्तक पुत्र घोषित किया था।
- प्रद्युम्न शाह के समय उत्तराखंड में 1786 में गुलाम कादिर ने आक्रमण किया था।
- गुलाम कादिर ने अनेक धार्मिक स्थलों को नष्ट किया था इसलिए प्रद्युम्न शाह के काल को रक्त रंजिस कि क्रान्ति कहा जाता है।
- 1790 में गोरखाओं में कुमाऊँ पर आक्रमण किया था तथा कुमाऊँ के अंतिम राजा महेंद्र चंद को हवालाबाग के युद्ध में पराजित किया तथा चंद वंश पर अपना अधिकार कर लिया था।
- अगले ही वर्ष 1791 में गोरखाओं ने गढ़वाल पर आक्रमण कर दिया लेकिन गोरखाओं की सेना पौड़ी के लंगूर गढ़ से आगे नही बढ़ पाई।
- फलस्वरूप 1791 में पंवारो तथा गोरखाओं के बीच लंगूर गढ़ की संधि हुई।
- इस संधि के साथ पंवारो ने गोरखाओं को कर देना प्रारम्भ किया था तथा गोरखाओं के द्वारा दुबारा आक्रमण न करने का वचन दिया गया था।
- 1791 में गोरखाओं की तरफ़ से सेनापति अमर सिंह थापा और हस्तीदल चौतरिया थे।
- 1795 में गढ़वाल पर अकाल पड़ा जिससे इकबनवी , रावनवी भी कहते है।
- 1803 में गढ़वाल में विनाशकारी भूकंप आया इस स्थिति का लाभ उठाकर गोरखों ने पंवारो पर आक्रमण करने की पुनः योजना बनाई।
- 14 मई 1804 को गोरखों व पंवारो के मध्य युद्ध हुआ जिसे खुड़वुड़ा युद्ध (देहरादून) भी कहा जाता है।
- इस युद्ध में प्रद्युम्न शाह मारा गया फलस्वरूप पंवार राज्य की हार हुई और गढ़वाल पर गोरखों का अधिकार हो गया था।
- गोरखाओं ने गढ़वाल पर 1815 तक शासन किया था।
- ब्रिटिश द्वारा 1815 के बाद सम्पूर्ण उत्तराखंड पर अधिकार कर लिया था और उत्तराखंड को अंग्रेजो के द्वारा 2 भागो में बांटा –
1. टिहरी रियासत
2. कुमाऊनी प्रान्त - अंग्रेजो द्वारा टिहरी रियासत का शासन पंवार राजा सुदर्शन शाह को सौंप दिया गया।
- सुदर्शन शाह प्रद्युम्न शाह का पुत्र था।