पंवार वंश के शासक (भाग -1)
Ruler of Panwar Dynasty (Part -1)
कनक पाल (888)-
गोत्र – शैनक
- राजा सुदर्शन शाह द्वारा रचित सभाकार में कनक पाल को पंवार वंश का संस्थापक माना जाता है।
- कनक पाल ने ही पंवार वंश की स्थापना की थी।
सोनपाल –
- सोनपाल पंवार वंश का 24वाँ शासक था।
- कुछ इतिहासकारों के अनुसार सोनपाल ही पंवार वंश का संस्थापक था।
अनंतपाल प्रथम (1191 – 1210) –
- अनंतपाल चन्दवंश के राजा नानकी चंद का समकालीन राजा था।
लखनपाल / लखनदेव (1310 – 1333) –
- लखनपाल पंवार वंश का पहला शासक था जिसकी ताम्र मुद्राएँ प्राप्त हुई है।
- लखनपाल को स्वयं मुद्रा चलाने वाला स्वतंत्र राजा कहा जाता है।
अनंतपाल द्वितीय (1333 – 1354) –
- अनंत द्वितीय पंवार वंश का पहला ऐसा शासक है जिसका शिलालेख मंदाकनी घाटी से प्राप्त हुआ है।
- अनंत द्वितीय का एक अभिलेख धाराशिला अभिलेख ऊखिमठ (रुद्रप्रयाग) से प्राप्त हुआ है।
जगतपाल (1444 – 1460) –
- जगतपाल का प्रथम ताम्रपत्र अभिलेख देवप्रयाग (टिहरी) के रघुनाथ मंदिर से प्राप्त हुआ है।
- इस ताम्रपत्र में जगतपाल ने स्वंय को रजवार कहा है।
अजयपाल (1490 -1519 ) –
- अजयपाल चंद राजा कीर्ति चन्द , तथा सिकंदर लोदी का समकालीन राजा था।
- अजयपाल को पंवार वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
- अजयपाल में अपनी राजधानी चाँदपुरगढ़ से देवलगढ़ तथा उसके पश्चात् श्रीनगर स्थानांतरित कर दी थी।
- श्रीनगर से अजयपाल की कान में कुण्डल वाली मूर्ति प्राप्त हुई है।
- श्रीनगर को गढ़वाल की दिल्ली कहा जाता है।
- अजयपाल ने सभी 52 गढ़ो को जीतकर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की तथा सभी 52 गढ़ो के शासको को अपने अधीन कर लिया था परन्तु उप्पू गढ़ के कप्फू चौहान ने अधीनता स्वीकार नहीं की जिससे क्रोधित होकर अजयपाल ने कप्फू चौहान के विरुद्ध युद्ध शुरू कर दिया।
- जिसमे अजय पाल की काफी क्षति हुई।जिसके बाद अजयपाल का ह्रदय परिवर्तन हो गया तथा अजयपाल ने कप्फू चौहान की वीरता से प्रभावित होकर उसे वीर की उपाधि दी थी।
- इस युद्ध के बाद अजयपाल ने युद्ध को त्याग दिया था।
- इसके बाद अजयपाल गुरु गोरखनाथ पन्त की शरण में गया था एक धार्मिक राजा बन गया था।
- इसी प्रकार अशोक ने भी कलिंग के युद्ध के बाद युद्ध त्याग दिया था और वह एक धार्मिक राजा बन गया था।
- इसी कारण अजयपाल को गढ़वाल का अशोक भी कहा जाता है।
- तांत्रिक विद्या से सम्बंधित ग्रन्थ सामली में अजयपाल को आदिनाथ कहा गया है।
- भारत कवी द्वारा रचित मानोदय काव्य में अजयपाल की तुलना कृष्ण,युधिष्ठिर,कुबेर तथा इंद्र से की है।
- देवलगढ़ में अजयपाल ने सत्यनाथ सिंह बाबा का मंदिर बनवाया था।
- राजा अजयपाल के द्वारा एक केंद्रीय सेना का निर्माण किया गया था।
- अजयपाल के द्वारा यथेष्ट भूमि का निर्माण किया गया था।यह भूमि सैनिकों को उनकी वीरता के लिए दी जाती थी।
- अजयपाल के द्वारा सरोला ब्राहमण की नियुक्ति की थी,इसका मुख्य कारण जात-पात को ख़त्म करना था।
- अजयपाल एक न्याय करने वाला राजा था ,इसके द्वारा मानकीकरण किया गया।मापतौल का इसके द्वारा पार्थिक प्रणाली धर्म प्रथा , देवली प्रथा कहा जाता है।
- अजय पाल चंदो से आक्रमण करने वाला प्रथम पंवार वंश के शासक था।कीर्ति चंद ने 1491 में गढ़वाल पर आक्रमण किया और अजय पाल को पराजित कर दिया लेकिन 1492 में अजय पाल ने कीर्ति चंद पर आक्रमण किया और कीर्ति चंद को पराजित कर दिया।
कफ्फू चौहान का सेनापति देगू था। कफ्फू चौहान को गढ़वाल का महाराणा प्रताप कहा जाता है।
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अजय पाल की उपाधि- गढ़वाल का अशोक आदिनाथ गढ़वाल का दुर्योधन एक छत्र सम्राट गढ़पाल महात्मा (धार्मिक कार्यों के लिए)
कल्याण पाल (1519 – 1528) –
- कुछ विद्वानों के अनुसार कल्याण पाल पंवार वंश का प्रथम शासक था।
- कल्याण पाल ने शाह की उपाधि धारण की थी।
सहजपाल (1547 – 1575) –
- सहजपाल का समकालीन राजा भीष्म चंद , बालो कल्याण चंद , रूद्र चंद थे।
- सहजपल के केंद्र में समकालीन राजा हुमायूँ व अकबर था।
- अकबर द्वारा सहजपाल के कार्यकाल में गंगा जल के स्रोत हेतु अन्वेषक दल भेजा गया था।
- सहजपाल को वीर, गुणज्ञ, सुखद प्रजाया कहा जाता है अर्थात सहजपाल को सुख देने वाला शासक कहा जाता है।
बलभद्र शाह (1575 – 1591) –
- बहलोद लोदी के द्वारा शाह की उपाधि धारण करने वाला बलभद्र प्रथम शासक था।
- बलभद्र का समकालीन राजा रूद्र चन्द था।
- बलभद्र शाह के द्वारा राजदूत भेजने की प्रथा शुरू की गयी थी।
- बलभद्र शाह ने अपना प्रथम राजदूत अकबर के दरबार में भेजा था।
- बलभद्र शाह को रामशाह , बलराम शाह , दियूली रामशाह, बहादुर शाह के नाम से भी जाना जाता है।
- बलभद्र के रामशाह नाम का उल्लेख अकबर नामा में भी मिलता है।
- 1591 में ग्वालदम का युद्ध / बधानगढ़ का युद्ध रूद्र चंद तथा बलभद्र शाह के बीच हुआ था।इस युद्ध में बलभद्र ने कत्यूरी राजा सुखालदेव की सहायता से यह युद्ध जीत लिया था।
- इस युद्ध में रूद्र चंद का सेनापति पुरुषोत्तम पन्त मारा गया था।
- बलभद्र शाह को पंवार वंश का भीम भी कहा जाता है।
मानशाह (1591 – 1611) –
- मुगलों का राजा अकबर तथा जहाँगीर के समकालीन राजा मानशाह था।
- चंदो में रूद्र चंद व लक्ष्मी चंद के समकालीन राजा था।
- मानशाह ने तिब्बत (दापा) पर आक्रमण किया था।इस समय तिब्बत के शासक काकवा मोर थे।
- भोटप्रदेश में मानशाह का सेनापति जीतू बगणवाल था।
- लक्ष्मी चंद जो मानशाह का समकालीन राजा था उसने पंवार सेना पर 7 बार आक्रमण किया तथा हर बार हार गया था परन्तु 8 वे युद्ध में लक्ष्मी चंद के सेनापति गैंडा सिंह ने मानशाह के सेनापति खत्तड़ सिंह को पराजित कर दिया था इसलिए कुमाऊँ में खतड़वा त्यौहार मनाया जाता है।
- मानशाह के सेनापति का नाम नंदी था।
- मानशाह के दरबारी कवि का नाम भरत कवि था, जिन्होंने संस्कृत में मानोदकाव्य की रचना की थी।
- मानोदकाव्य पंवार वंश का सबसे प्राचीनतम काव्य है।
- भरतकवि द्वारा ज्ञानोदय काव्य की भी रचना की गयी है।
- जहाँगीर ने भरतकवि को ज्योतिक राय की उपाधि दी थी।
- मानशाह ने मानपुर नामक नगर की स्थापना की थी। यह नगर अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है।
- मानशाह ने ही आधुनिक हरिद्वार की नींव रखी थी।
- मानशाह के दरबार में यूरोपीय यात्री विलियम फिंच आया था ,जिसने मानशाह की तुलना राजा कर्ण व बाली से की है।
- मानशाह के सेनापति – नंदी , म्रंगी थे।
श्यामशाह ( 1611 – 1631) –
- श्यामशाह मानशाह का पुत्र था।
- श्यामशाह जहाँगीर का समकालीन राजा था।
- श्यामशाह ने मुग़ल बादशाह जहाँगीर से आगरा में मुलाकात की थी।इसकी जानकारी जहाँगीर नामा से मिलती है।
- श्यामशाह ने श्रीनगर में श्यामशाही बाग़ की स्थापना की थी।
- श्यामशाह के द्वारा शिरोमणी ग्रन्थ की रचना की गयी थी।
- श्यामशाह के राजगुरु शंकर देव थे, शंकर देव ने 1623 में वास्तुशिरोमणीग्रन्थ की रचना की थी। जिसमे स्थापत्य का वर्णन मिलता है।
- श्यामशाह के समय चंदो व पंवारो में अच्छे सम्बन्ध थे। चंद राजा त्रिमल चंद (लक्ष्मी चंद का पुत्र) भागकर श्यामशाह के दरबार में सहायता लेने आया था।
- श्यामशाह के दरबार में पुर्तगाली पादरी अन्तोंया देय अन्द्रोदे (1624) में आया था।
- श्यामशाह के शासन काल के दौरान सती प्रथा के प्रचलन का उल्लेख मिलता है। श्यामशाह के मृत्यु के बाद इसकी 60 रानियाँ सती हुई थी।
- श्यामशाह के शासन काल में जहाँगीर ने श्यामशाह को हाथी,घोड़े उपहार में दिए थे।
- श्यामशाह नि:सन्तान था इसलिए इसकी मृत्यु के बाद इसके चाचा महीपति शाह ने राज किया था।
महीपति शाह (1631 – 1635) –
- महीपति शाह पंवार वंश का सबसे अधिक उम्र में बनने वाला राजा था।
- महीपति शाह द्वारा भी तिब्बत (दापा) पर आक्रमण किया गया था।इस युद्ध में महीपति शाह का नेतृत्व इसके सेनापति माधो सिंह भंडारी, रिखोला लोदी और बनवारी दास ने किया था । इस युद्ध में गढ़वाल की विजय हुई थी।
- महीपति शाह ऐसा पंवार वंश का पहला शासक था जिसने तिब्बतियो के निर्णायक युद्ध का सामना किया तथा इसी युद्ध के दौरान महीपति ने नागा साधुओ की हत्या की थी।
- महीपति ने तिब्बत पर 3 बार आक्रमण किया था।
- महीपति शाह ने माधो सिंह भंडारी को गर्भभंजक की उपाधि दी थी।
- महीपति शाह ने शाहजहाँ की अधीनता स्वीकार नहीं की इसी से शाहजहाँ क्रोधित हो उठा और पंवारो पर आक्रमण कर दिया था।
- अधीनता स्वीकार ना करने के कारण ही महीपति को मुगल राजाओं द्वारा अक्कड़ राजा कहा गया था
- मोलाराम ने महीपति को प्रचंड भुजदंड शासक कहा गया है।
- महीपति द्वारा रोटी सूची प्रथा की शुरुवात की गयी थी।
- महीपति को नागा साधुओ की हत्या तथा रिखोला लोदी की हत्या करने का बहुत पछतावा हुआ था। इसके पछतावे के लिए महीपति के गुरु ने तीन नियम बताये पीपल के पेड़ को छेदकर पानी भरकर तपस्या करो , गर्म पिघला सोना पी जाओ , युद्ध स्थल में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त करो।
- महीपति ने तीसरा मार्ग अपनाया और युद्ध में लड़ते – लड़ते वीरगति को प्राप्त किया।
- सिरमौर (हिमांचल प्रदेश ) में डाकुओ के दमन का श्रेय भी महीपति को जाता है।
- महीपति के द्वारा श्यामशाह के शासन काल में केसोरय मठ बनाया था।
पृथ्वीपति शाह (1640 – 1644) –
- पृथ्वीपति शाह का समकालीन राजा बाजबहादुर चंद था।
- पृथ्वीपति शाह का मुगलकालीन राजा शाहजहाँ था।
- पृथ्वीपति शाह का शासन दूसरा सबसे लम्बा था।
- 1640 में पृथ्वीपति शाह का राज्यभिषेक हुआ था।
- पृथ्वीपति शाह महीपति शाह का पुत्र था , महीपति शाह की मृत्यु के बाद पृथ्वीपति शाह राजा बना था।
- 1634 – 1640 तक इनकी माता कर्णावती इनकी संरक्षिका बनी।
- महीपति शाह की मृत्यु का समाचार पाकर शाहजहाँ ने अपने सेनापति एवं कांकड़ाके फ़ौजदार नजावत खां को गढ़वाल पर आक्रमण के लिए भेजा था।
- 1634-35 में नजावत खां और रानी कर्णावती के मध्य मोहाली चट्टी का युद्ध हुआ था। इस युद्ध में रानी ने मुगलों की सेना को पराजित कर दिया था और सैनिको की नाक काट दी इसलिए रानी कर्णावती को नाक कटी रानी के नाम से भी जाना जाता है।
- रानी कर्णावती को गढ़वाल की ताराबाई भी कहा जाता है।
- रानी कर्णावती की तुलना गोंडवाना संरक्षिका रानी दुर्गावती से की जाती है।
- रानी कर्णावती के बारे में जानकारी पिथौरागढ़ के हाट ताम्रपत्र से मिलती है। जिसमे रानी कर्णावती ने चमोली जिले के हाट ग्राम के एक हटवाल ब्राहमण को भूमि दान की थी , जिसमे माधो सिंह को साक्षी बनाया था।
- रानी कर्णावती ने ही देहरादून में करनपुर शहर की स्थापना की थी।
- पृथ्वीपति शाह ने 1640 में शासन प्रारंभ किया था।
- पृथ्वीपति शाह के शासन काल में सार्वधिक मुग़ल युद्ध हुए।
- पृथ्वीपति शाह ने गद्दी पर बैठते ही साम्राज्य विस्तार किया था।1640 में गढ़वाली सेना और तिब्बत की सेना (दापा) के मध्य तुमुल का युद्ध (छोटी पानी युद्ध ) हुआ,इस युद्ध में गढ़वाल सेना का नेतृत्व माधो सिंह भंडारी ने किया था।
- इस युद्ध में गढ़वाल की सेना विजयी रही परन्तु इस युद्ध के दौरान माधो सिंह भंडारी की मृत्यु हो गयी। माधो सिंह भंडारी इस युद्ध में महान सेनापति था।
- इसके बाद पृथ्वीशाह ने सिरमौर पर विजय प्राप्त की और सिरमौर के राजा मान्धात प्रकाश के साथ हटकोटि की संधि (1650) में हुई।
- इसके पश्चात सिरमौरके राजा मान्धाता प्रकाश ने गढ़वाल पर आक्रमण करने के लिए शाहजहाँ से सहायता माँगी।
- 1655 में खलितुलाके संरक्षक में दिल्ली की सेनाओ ने गढ़वाल पर आक्रमण कर दिया था।उन्होंने सिरमौर के शासक मान्धाता प्रकाश तथा कुमाऊँ के शासक बाजबहादुर चंद की सहायता से दून की घाटी पर विजय प्राप्त की थी।
- शाहजहाँ ने इस क्षेत्र में चतुर्भुज सिंह को अपना सामंत नियुक्त किया था।
- 1659 में मुगलों के मध्य उत्तराधिकार का तीसरा युद्ध हुआ था,जिसे सामूगढ़ का युद्ध कहा जाता है।
- सामूगढ़ के युद्ध में जब दाराशिकोह औरंगजेब से पराजित हुआ तो दाराशिकोह की हत्या कर दी और दाराशिकोह का पुत्र अपनी रक्षा हेतु गढ़वाल भाग गया और इसने पृथ्वीपति शाह के दरबार में शरण ली थी।
- सुलेमान सिकोह के साथ अन्य दो लोग भी आये थे जो चित्रकार श्यामदास तथा हरदास थे।
- मौलाराम इन्ही के वंशज थे।
- औरंगजेब ने गढ़राज द्वारा अपने शत्रु को शरण देना अपना अपमान समझा तथा औरंगजेब ने पृथ्वीपति शाह से सुलेमान शिकोह को तुरंत दिल्ली भेजने को कहा लेकिन पृथ्वीपति शाह ने मना कर दिया था।
- लेकिन बाद में पृथ्वीपति शाह के बेटे मेदिनी शाह ने रामसिंह (मुगलों के मंत्री जय सिंह का बेटा) की मदद करता था ,मेदिनी शाह की सहायता से सुलेमान शिकोह को औरंगजेब के हवाले कर दिया था और औरंगजेब ने सुलेमान शिकोह की (1661) में हत्या कर दी थी।
- पृथ्वीपति शाह ने इससे क्रोधित होकर अपने पुत्र को इस अपराध के लिए देश निकाला दे दिया जिसके बाद मेदिनी शाह दिल्ली चला गया और मेदिनी शाह की 1662 में दिल्ली में ही मृत्यु हो गयी।
- इसका उल्लेख औरंगजेब द्वारा पृथ्वीपति शाह को भेजे गए पत्र में मिलता है ,जो आज भी उत्तर प्रदेश में अभिलेखाकार में मौजूद है।
- कुछ इतिहासकारों का मानते है की मेदिनी शाह ने 1660- 1684 तक गढ़राज पर शासन किया परन्तु यह सत्य नहीं है।
- पृथ्वीपति शाह ने राजगढ़ीनामक स्थान को अपनी द्वितीय राजधानी बनाया था।
- पृथ्वीपति शाह ने देहरादून में पृथ्वीपुर शहर बसाया था।
- “गढ़वाल चित्रकला “ की शुरुवात इसी शासन काल में हुई थी।
- इसने अपने पोत्र फ़तेहशाह को अपना शासक नियुक किया था।
पृथ्वीपति शाह के पुत्र-
मेदिनी शाह
दिलीप शाह
अज्बू कुँवर शाह - महीपति शाह के सेनापति रिखोला लोदी की हत्या दापा के राजा काकोवामोर ने की थी।