राजस्थान का इतिहास (मेवाड़ का सिसोदिया वंश – भाग II)
History of Rajasthan (Sisodia Dynasty of Mewar – Part II)
राणा कुम्भा के दो पुत्र थे। रायमल व ऊदा (उदयकरण) थे। अपने पिता की हत्या करने के बाद इसको मेवाड़ का पितृहन्ता कहा जाता है। पिता की हत्या के बाद यह मालवा चला गया था। आकाशीय बिजली गिर जाने के कारण ऊदा की मृत्यु हुई थी।
राणा रायमल –
- राणा रायमल ने एकलिंग नाथ जी मंदिर का पुनः निर्माण कराया था।
- राणा रायमल के दरबारी शिल्पी का नाम अर्जुन था।
- राणा रायमल के प्रशस्तिकार गोपाल भट्ट, महेश भट्ट थे।
- राणा रायमल ने राम , शंकर व समयासंकट तालाब का निर्माण कराया था।
- राणा रायमल का विवाह मारवाड़ के राजा राव जोधा की पुत्री श्रृंगारीदेवी से हुआ था।
- श्रृंगारीदेवी ने घोसुण्डी बावड़ी का निर्माण कराया था।
- राजस्थान में सर्वप्रथम वैष्णव धर्म की जानकारी घोसुण्डी बावड़ी से ही मिलती है।
- राणा रायमल की दो और पत्नियाँ रतन कंवर व वीर कंवर थी।
- रतन कंवर के दो पुत्र पृथ्वीराज सिसोदिया व संग्राम सिंह (राणा सांगा) थे।
- वीर कंवर से उत्पन्न संतान का नाम जयमल था।
जयमल –
- जयमल ने राव सुरतान सोलंकी की पुत्री तारा बाई से विवाह का प्रताव रखा था।
- प्रस्ताव सुनने के बाद तारा बाई ने उत्तर दिया – “जो बदनौर का उद्धार करेगा, मैं केवल उसके साथ विवाह करूँगी।”
- जयमल ने टोडा टोंक को अफगानियो से मुक्त स्वीकार कर लिया था।
- जयमल का व्यवहार तारा बाई के लिए अच्छा नहीं था। वह निर्लज्जतापूर्वक तरीके से उनके साथ व्यवहार करता था।
- यह व्यवहार तारा बाई व उनके पिता राव सुरतान सोलंकी को पसंद नहीं आया।
- डॉ. दशरथ शर्मा के अनुसार जयमल राव सुरतान सोलंकी के हाथों से मारा गया था।
पृथ्वीराज सिसोदिया –
- पृथ्वीराज सिसोदिया के तेज गति से घोड़ा चलाने के कारण इन्हें उड़ना राजकुमार भी कहा जाता हैं।
- पृथ्वीराज सिसोदिया टोडा टोंक को जीत लेते है।
- इसके पश्चात राव सुरतान सोलंकी की पुत्री तारा बाई का विवाह पृथ्वीराज सिसोदिया से हो जाता है।
- पृथ्वीराज सिसोदिया ने अजयमेरू दुर्ग का नाम बदलकर अपनी पत्नी के नाम पर तारागढ़ रखा था।
- पृथ्वीराज सिसोदिया की बहन आनंदाबाई का विवाह सिरोही के शासक जगमाल देवड़ा के साथ हुआ था।
- पृथ्वीराज सिसोदिया को जहर जगमाल देवड़ा द्वारा दिया गया था। जिससे पृथ्वीराज सिसोदिया की मृत्यु हो जाती है।
- पृथ्वीराज सिसोदिया की मृत्यु कुम्भलगढ़ दुर्ग में हुई थी।
- कुम्भलगढ़ दुर्ग में पृथ्वीराज सिसोदिया की 12 खम्भों की छतरी है।
- पृथ्वीराज सिसोदिया की छतरी का शिल्पी घषणपना था।
महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) (1509-28 ई.) –
- राणा सांगा का जन्म 12 अप्रैल 1482 ई. में हुआ था।
- राणा सांगा के पिता रायमल थे।
- राणा सांगा की माता रतन कुंवर थी।
- राणा सांगा के चाचा सारंग देव थे।
- राणा सांगा का राजभिषेक 25 मई 1509 ई. में हुआ था।
- राणा सांगा के राजभिषेक के समय गुजरात के शासक महमूद बेगड़ा, मालवा के शासक नासिरुद्दीन खिलजी, दिल्ली में सिकंदर लोदी था।
- सांगा ने श्रीनगर (अजमेर) के कर्मचंद पंवार की पुत्री जसोदा कंवर से विवाह किया था।
- कर्मचंद पंवार को राणा सांगा द्वारा बंबोई की जागीर व “रावत” की उपाधि दी गयी थी।
- कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार राणा सांगा की सेना में 7 राजा 9 राव व 104 सरदार उपस्थित रहते थे।
- राणा सांगा के शरीर पर 80 घाव थे। राणा सांगा को इसके लिए “सैनिकों का भग्नावशेष” कहा गया है।
- कर्नल जेम्स टॉड ने “सैनिकों का भग्नावशेष” कहा है।
- राणा सांगा को हिन्दुपत कहा गया है।
- 1517 ई. में राणा सांगा व दिल्ली इब्राहिम लोदी के मध्य खातोली (बूँदी) का युद्ध हुआ था। इस युद्ध में राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी को हराया था। वर्तमान में खातोली कोटा में है।
- 1518 ई. में राणा सांगा व दिल्ली इब्राहिम लोदी के मध्य बाड़ी (धौलपुर) का युद्ध हुआ था। इस युद्ध में राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी को हराया था। इब्राहिम लोदी के मियां माखन व मियां हुसैन इसी युद्ध में आये थे।
- 1519 ई. को राणा सांगा व मालवा के शासक महमूद खिलजी द्वितीय के मध्य गागरोण (झालावाड़) का युद्ध हुआ था। इस युद्ध में महमूद खिलजी द्वितीय को राणा सांगा ने हराया व अपना बंदी बना लिया था। महमूद खिलजी द्वितीय का ताज व कमरबंद छीन लिया था।
Note – पंजाब के दौलोत खां व आलम खां लोदी (इब्राहिम लोदी के चाचा) ने बाबर को भारत आमंत्रित किया था।
Note – बाबर की आत्मकथा तुजुक-ए- बाबरी (तुर्की भाषा में) में लिखा है की मुझे राणा सांगा ने आमंत्रित किया था। इसी आत्मकथा में बाबर ने कमल के बाग का वर्णन किया है यह बाग (धौलपुर) में है। धौलपुर का प्राचीन नाम कोठी था।
- 16 फ़रवरी 1527 ई. को राणा सांगा व बाबर के मध्य बयाना (भरतपुर) का युद्ध हुआ था। इस युद्ध में बाबर को हार का सामना करना पड़ा था। इस युद्ध में बाबर ने महेंदी ख्वाज़ा को भेजा था। बाबर का सेनापति सगर खां इस युद्ध में मारा गया था।
Note – काबुल के ज्योतिषी मुहम्मद शरीफ़ ने भविष्यवाणी की थी बाबर ये युद्ध हार जाएगा।
- 17 मार्च 1527 ई. को राणा सांगा व बाबर के मध्य खानवा (रूपवास तहसील गम्भीर नदी किनारे भरतपुर जिले में) का युद्ध हुआ था। इस युद्ध में भी बाबर जीत जाता है। इस युद्ध में पराजित होने का कारण बाबर का तोपखाना था।
- खानवा युद्ध से पहले राणा सांगा ने “पाती परवन” लिखा था।
- इस युद्ध में सभी राजपूत राजाओं ने राणा सांगा की मदद की थी। इस युद्ध में नागोर से पृथ्वीराज कछवाह, आमेर से भारमल, बुंदी से नारायण दास, भरतपुर से आशोक परमार, बीकानेर से कल्याण मल, जोधपुर से मालदेव, ड़ुंगरपुर से उदयसिंह, सिरोही से अखेराज देवड़ा, अलवर से हसन खां मेवाती, सलूम्बर के रावल रतन सिंह, अफगान शासक महमूद लोदी व झाला से अज्जा ने राणा सांगा की सहायता की थी।
- इस युद्ध में बाबर ने जिहाद का नारा दिया था। अर्थात इस युद्ध को बाबर ने धर्म युद्ध घोषित कर दिया था।
- खानवा के युद्ध में बाबर ने गाज़ी की उपाधि धारण की थी। (गाज़ी अर्थात – काफ़िरों को मारने वाला)
- बाबर ने मुसलमान व्यापारियों पर लगने वाला तमगा कर (व्यापारिक कर) माफ़ कर दिया था।
- बाबर ने मदिरा का त्याग किया था।
- खानवा युद्ध में बाबर की तरफ से प्रसिद्ध तोपची उस्ताद अली व मुस्तफ़ा अली था।
- बाबर ने इस युद्ध में तुलुगमा/उसमानी/ तोपखाना विधि अपनायी थी।
- इस युद्ध में घायल हुए राणा सांगा को मालदेव व अखेराज देवड़ा बसवा दौसा लेके गये थे।
- इसके पश्चात राणा सांगा को काल्पी के इरिच गाँव ले जाया गया था।
- 30 जनवरी 1528 ई. को राणा सांगा को जहर देकर इनकी हत्या कर दी जाती है।
- राणा सांगा की छतरी माण्डलगढ़ (भीलवाड़ा) में है। यह छतरी अशोक परमार ने बनवायी थी।
- राणा सांगा का स्मारक बसवा (दौसा) में है।
- राणा सांगा ने अशोक परमार (जग्नेर, भरतपुर) की वीरता से प्रभावित होकर उन्हें बिजोलिया ठिकाना दिया था।
- राणा सांगा के साथ रायसीन के सिल्हंदी तंवर व नौगर के खानजादा ने विश्वासघात किया था।
- राणा सांगा का राज्य चिन्ह व मुकुट लेकर झाला अज्जा ने युद्ध किया था।
- एकमात्र राणा सांगा की सेना में मुस्लिम सेनापति हसन खां मेवाती था।
- इस युद्ध के बाद लेनपूल ने कहा था- राजपूतों का बड़ा हिन्दू संगठन हार गया।
राणा सांगा के 4 पुत्र थे।
- भोजराज
- रतन सिंह
- विक्रमादित्य
- उदय सिंह
भोजराज –
- भोजराज की पत्नी का नाम मीराबाई था।
- मीराबाई के बचपन का नाम पेमलदे था।
- मीराबाई का जन्म कुडकी गाँव (पाली) में हुआ था।
- मीराबाई के पिता मेड़ता के रतन सिंह राठौर थे।
- मीराबाई के दादा राव दूदा थे।
- मीराबाई के गुरु संत रैदास (गुरु रविदास) थे। संत रैदास रामानंद के शिष्य थे।
- मीराबाई के शिक्षकपंडित गजाधर थे।
- मीराबाई महाराणा प्रताप की ताई थी।
- मीराबाई कल्ला जी राठौर की बुआ थी।
- मीराबाई ने दास-दासी संप्रदाय चलाया था।
- मीराबाई की भक्ति माधुर्यभाव की थी।
- मीराबाई को राजस्थान की राधा कहा जाता है।
- मीरा महोत्सव चित्तौडगढ़ में मनाया जाता है। चित्तौडगढ़ में ही मीरा मंदिर भी है।
- मीराबाई को जहर का प्याला विक्रमादित्य द्वारा दिया गया था।
- मीराबाई की मृत्यु रणछोड़राय मंदिर द्वारका (गुजरात) में हुई थी।
रतनसिंह (1529 – 30) –
- रतनसिंह धनकवर (माता) के पुत्र थे।
- रतनसिंह बुंदी के सूरजमल हाड़ा के साथ अहेरिया उत्सव के दौरान युद्ध करते है तथा इस युद्ध में मारे जाते है।
विक्रमादित्य (1531-35 ई.) –
- विक्रमादित्य राणा सांगा के अल्पवयस्क पुत्र थे।
- विक्रमादित्य की माता कर्णावती (कर्मावती) या कमलावती ने संरक्षिका बनकर शासन किया था।
- 1533 ई. में कर्णावती ने बहादुरशाह (गुजरात) के आक्रमण के समय मुग़ल बादशाह हुमायुं को सहायता हेतु राखी भेजी थी। इस आक्रमण में कर्णावती संधि कर रणथम्भोर दे देती है।
- सन् 1534 में बहादुरशाह के दुसरे आक्रमण के समय चित्तौड़ दुर्ग में जौहर किया गया था। यह चित्तौड़ का दूसरा साका था। इस आक्रमण ने कर्णावती ने जौहर किया था।
- इसी आक्रमण में बाघ सिंह ने केसरिया किया था। बाघ सिंह प्रतापगढ़ ( प्राचीन नाम – देवलिया) के थे।
- बाघ सिंह की छतरी चित्तोडगढ दुर्ग में है।
- विक्रमादित्य की हत्या बनवीर ने की थी।
बनवीर (1536-37 ई.) –
- बनवीर राणा सांगा के भाई पृथ्वीराज सिसोदिया की दासी के पुत्र थे। दासी से उत्पन्न संतान को औरस पुत्र कहा जाता था।
- विक्रमादित्य की हत्या करने के पश्चात बनवीर राजकुमार उदयसिंह की हत्या करने के लिए जाता है, किन्तु पन्नाधाय ने अपने पुत्र चंदन का बलिदान देकर उदयसिंह की रक्षा की थी।
- पन्नाधाय ने पत्तल चुगने वाले कीरत बारी की सहायता से पत्तल की टोकरी में उदसिंह को डालकर कुम्भलगढ़ दुर्ग के द्वारपाल आशा देवल/ देवपुरा तक पहुँचाया था।
- कुम्भलगढ़ दुर्ग को मेवाड़ शासकों की शरणस्थली व आत्मिर्भर दुर्ग कहा जाता है।
उदयसिंह (1537-72 ई.) –
- उदयसिंह के राजभिषेक 1537 ई. में कुम्भलगढ़ दुर्ग में हुआ था।
- उदयसिंह के 3 पुत्र थे। जगमाल , शक्तिसिंह और महाराणा प्रताप
- जगमाल की माता धीर मटियाणी व शक्तिसिंह की माता का नाम सज्जा बाई था।
- 1544-45 में शेरशाह सूरी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया तो उदयसिंह ने चित्तौड दुर्ग की चाबियाँ सौप दी थी।
- अफगानों की अधीनता स्वीकार करने वाला प्रथम मेवाड़ का शासक उदयसिंह था।
- 1557 में हरमाड़ा के युद्ध ( हरमाड़ा जयपुर में है) उदयसिंह व अजमेर के हाजी खां के मध्य हुआ था। इस युद्ध में हाजी खां का सात मारवाड़ के मालदेव देते है। इस युद्ध में हाजी खां जीत जाता है।
- 1559 ई. में उदयसिंह ने उदयपुर शहर बसाया था।
- उदयसिंह राजस्थान का पहला शासक था जिसने छापामार युद्ध पद्धति का प्रयोग किया था।
- उदयसिंह ने मालवा के बाज बहादुर को शरण दी थी जिसके कारण अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया था।
- उदयसिंह गोगुन्दा चले गये थे और धीर भटियानी के कहने पर जगमाल को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था।
- चित्तौड़ का तीसरा साका उदयसिंह के समय में ही हुआ था। यह साका 1567-58 ई. में हुआ था।
- इस साके में केसरिया जयमल राठौर, कल्लाजी राठौर, फत्ता सिसोदिया ने किया था।
- इस साके में जौहर फुलकंवर ने किया था। फुलकंवर फ़तेह सिंह की पत्नी थी।
- अकबर द्वारा संग्राम नामक बन्दुक से गोली चलायी जाती है जो जयमल राठौर के पैर में लगती है।
- यमल राठौर के पैर में गोली लगने के बाद कल्लाजी राठौर ने जयमल राठौर को कंधे में बैठा लिया था। कंधे में बैठाने के बाद इन्हें शेषनाग का अवतार, चार हाथों वाले देवता कहा जाता है।
- भैरव पोल के पास कल्लाजी व जयमल, फत्ता सिसोदिया की छतरी है।
- जयमल राठौर व फत्ता सिसोदिया की वीरता से प्रभावित होकर अकबर आगरा किले के प्रवेश द्वार में इनकी मूर्ति बनवाता है। बाद में औरंगजेब इन दोनों मूर्तियों को तुड़वा देता है। वर्तमान में ये मूर्तियाँ जुनागढ़ दुर्ग (बिकमेर) में सूरजपोल पर जयमल-फत्ता की हाथी पर सवार मूर्तियाँ है।
- 28 फरवरी 1572 ई. में उदयसिंह की गोगुन्दा (उदयपुर) में मृत्यु हो जाती है। उदयसिंह की छतरी गोगुन्दा में है।
महाराणा प्रताप Maharana Pratap (1572-97 ई.) –
- महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया को हुआ था।
- महाराणा प्रताप का जन्म जुनी कचेरी, बादल महल कटारमल, कुम्भलगढ़ दुर्ग (राजसमन्द) राजस्थान में हुआ था।
- महाराणा प्रतताप के बचपन का नाम कीका था। (भीलों में छोटे बच्चों को कीका कहा जाता है।)
- महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह थे।
- महाराणा प्रताप की माता का नाम महारानी जयवंताबाई था।
- महारानी जयवंताबाई अखैराज सोनगरा (पाली) की पुत्री थी।
- महाराणा प्रताप की पत्नी का नाम अजब दे पंवार थी।
- महाराणा प्रताप के पुत्र अमरसिंह प्रथम थे।
- महाराणा प्रताप के राज्याभिषेक की घोषणा 28 फरवरी 1572 को हुई थी।
- महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक 1 मार्च 1572 को गोगुन्दा (उदयपुर) में हुआ था। राज्याभिषेक के पश्चात राज्याभिषेक समारोह कुम्भलगढ़ दुर्ग में हुआ था।
- महाराणा का राज्याभिषेक 32 वर्ष की आयु में हुआ था।
- महाराणा के राज्याभिषेक को राजमहलों की क्रांति कहा जाता है।
- महाराणा प्रताप के दरबारी कवी चक्रपाणि मिश्रा थे।
- महाराणा प्रताप एक मात्र ऐसे शासक है जिनका जन्म 1597 ई. में विक्रमी संवत व मृत्यु 1597 ई. में हुई थी।
- महाराणा के राज्याभिषेक से नाराज होकर उदय सिंह के पुत्र जगमाल अकबर के पास चले जाते है। अकबर ने जगमाल को जहाजपुर (भीलवाड़ा) सौप दिया था।
- 17 अक्टूबर 1583 ई. सिरोही में हुए दत्ताणी के युद्ध में जगमाल की मृत्यु हो जाती है। यह युद्ध जगमाल व सिरोही के राव सुरताण देवड़ा (महाराणा प्रताप के मित्र) के मध्य हुआ था।
- कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार महाराणा प्रताप व भामाशाह की मुलाकात चुलिया गाँव में हुई थी।
- अकबर ने महाराणा प्रताप के खिलाफ चार संधि प्रस्तावक भेजे थे।
1. 1572 ई. में जलाल खां कोरची
2. जून 1573 ई. में मान सिंह प्रथम
3. सितम्बर 1573 ई. में भगवंतदास
4. दिसम्बर 1573 ई. में टोडरमल - मानसिंह प्रथम प्रताप के पुत्र अमरसिंह प्रथम से उदयसागर झील किनारे मिलते है।
महाराणा के उपनाम –
- भारत का वीर पुत्र
- हल्दीघाटी का शेर
- मेवाड़ केसरी
हल्दीघाटी का युद्ध –
- हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून 1576 में हुआ था।
- गोपीनाथ शर्मा के अनुसार हल्दीघाटी का युद्ध 21 जून 1576 को हुआ था।
- हल्दीघाटी के युद्ध को बादशाह बाग का युद्ध आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव द्वारा कहा गया था।
- हल्दीघाटी के युद्ध को खमनौर का युद्ध अबूल फजल द्वारा कहा’गया था।
- हल्दीघाटी के युद्ध को गोगुन्दा का युद्ध बंदायूनी द्वारा कहा गया था।
- हल्दीघाटी के युद्ध को मेवाड़ की थर्मोपल्ली कर्नल जेम्स टॉड ने कहा है।
- हल्दीघाटी के युद्ध को रक्ततलाई, हाथियों का युद्ध भी कहा जाता है।
- हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप ने राजसमन्द के कुम्भलगढ़ क्षेत्र में महाराणा प्रताप ने युद्ध की योजना बनायीं थी। (राजसमन्द में ही हल्दीघाटी क्षेत्र आता है।)
- अकबर की ओर से मानसिंह प्रथम ने अजमेर के मैगजीन दुर्ग में युद्ध की व्यूह रचना / रणनीति बनायीं थी।
- मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) में अबकर की सेना को प्रशिक्षण दिया गया था।
- हल्दीघाटी युद्ध में मुग़ल सेनापति मानसिंह प्रथम व आसिफ़ खां था। मानसिंह प्रथम इस युद्ध में मरदाना हाथी पर सवार होकर आया था।
- इस युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना लोहसिंह गाँव व मुग़ल सेना मोलेला गाँव में थी।
- महाराणा प्रताप ने इस युद्ध का प्रमुख केंद्र केलवाड़ा (राजसमन्द) को बनाया था।
- महाराणा प्रताप की हरावल सेना का नेतृत्व हाकिम खां सूरी ने किया था। हाकिम खां सूरी प्रताप की सेना में एकमात्र सेनापति था। (युद्ध में आगे की तरफ़ रहने वाली सेना को हरावल व पीछे की तरफ़ रहने वाली सेना को चंद्रावल कहा जाता था।)
- हाकिम खां सूरी का मकबरा खमनौर (रासमंद) में बना हुआ है।
- प्रताप की चंद्रावल सेना का नेतृत्व राणा पूंजा द्वारा किया गया था।
- प्रताप का शास्त्रागार मायरा की गुफा थी। गुफा का नाम मचीन था।
- महाराणा प्रताप की सेना ने मानसिंह की सेना को पीछे धकेल दिया था तभी महिन्तर खां ने अफवाह फैलाते हुए कहा अकबर सेना लेकर आ गया जिससे मुगल सैनिकों में जोश आ गया था।
- इस युद्ध में महाराणा प्रताप की ओर से लूणा व रामप्रसाद हाथी व मानसिंह की ओर से गजराज व रणमंदार हाथी जाते है। रामप्रसाद अकबर के पास चला जाता है तथा अकबर इस हाथी को पीरप्रसाद नाम देता है।
- अकबर सवाई हाथी पर था।
- इस युद्ध में घायल होने के बाद महाराणा प्रताप कोल्यारी गाँव जाते है। घायल अवस्था में झाला बीदा प्रताप को लेके जाते है।
- प्रताप कमलनाथ पर्वत के पास अस्थाई राजधानी बनाते है जिसका नाम आवरगढ़ था।
- राणा प्रताप के घोड़े चेतक की समाधि बलिचा गाँव में है।
- इसके कुछ समय पश्चात महाराणा प्रताप वापिस कुम्भलगढ़ दुर्ग चले जाते है।
- कुम्भलगढ़ में 1578 ई. में प्रताप का दूसरा राज्याभिषेक/ समारोह होता है। इस समारोह में मारवाड़ के चन्द्रसेन मौजूद थे।
- भामाशाह को मेवाड़ का कर्ण/दानवीर कहा जाता है। भामाशाह पाली के थे। अपने भाई ताराचंद के सात मिलकर 20,000 स्वर्ण मुद्राएँ दी थी।
- हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के भाई शक्तिसिंह द्वारा उनको घोड़ा देकर सहायता प्रदान की जाती है।
- हल्दीघाटी के युद्ध के बाद अकबर ने उदयपुर का नाम मोहम्मदाबाद रखा था।
- हल्दीघाटी को बनास का युद्ध भी कहा जाता था।
- हल्दीघाटी स्वतंत्रता प्रेमियों का तीर्थ स्थल था। यहाँ प्रतेक वर्ष हल्दीघाटी का महोत्सव मनाया जाता है।
- बदायूंनी ने अपनी पुस्तक मुन्तखव-उल-तवारिज में हल्दीघाटी के युद्ध का वर्णन किया है।
कुम्भलगढ़ का युद्ध –
- कुम्भलगढ़ दुर्ग में 1577, 1578, 1579 में शहबाज खां आक्रमण करता है।
- 1578 ई. में हुए कुम्भलगढ़ युद्ध में महाराणा प्रताप की ओर से लड़ रहे राव माण सोनगरा व सिंधल सूजा मारे जाते है। इस युद्ध में शाहबाज खां जीत जाता है।
- शाहबाज खां एकमात्र व्यक्ति जिसने कुम्भलगढ़ दुर्ग जीता था।
- 1580 में अकबर ने अब्दुर्रहीम खानखाना को प्रताप के विरूद्ध भेजा था। अमर सिंह और महाराणा प्रताप की सेना जब अब्दुर्रहीम खानखाना पर हमला करते है तो वह भाग जाता है। इसकी बीबी बच्चों को अमर सिंह द्वारा कैद कर लिया जाता है। इसके पश्चात महाराणा प्रताप कहते है अरे नारी का सम्मान करना सिखिये ये हमारे कुल में नहीं है। तब अमर सिंह अब्दुर्रहीम खानखाना को उसकी बीबी व बच्चें लौटा देते है।
मेवाड़ के प्रमुख ठिकाने –
- दीवेर – यहाँ सुलतान खां को अकबर ने प्रशासक नियुक्त किया था। यह ठिकाना राजसमन में आता था।
- देसुरी – यह ठिकाना राजसमन में आता था।
- देवल – यह ठिकाना डूंगरपुर में आता था।
- देबारी – यह ठिकाना उदयपुर में आता था।
दिबेर का युद्ध –
- दिवेर का युद्ध 26 अक्टूबर 1582 ई. को विजयादशमी के दिन हुआ था। विजयादशमी यानी आश्विन शुक्ल दशमी को हुआ था।
- यह युद्ध महाराणा प्रताप व सुलतान खां का मध्य हुआ था।
- इस युद्ध में सुलतान खां मारा जाता है।
- इस युद्ध को छापली का युद्ध भी कहा जाता है। छापली नमक स्थान जिसे पहले धोरण गाँव कहते थे प्रताप ने छापामार युद्ध पद्धति का प्रयोग किया था जिस कारण छापली नाम पड़ा था।
- कर्नल जेम्स टॉड ने इस युद्ध को मेवाड़ का मैराथन कहा है।
- दिवेर युद्ध को महाराणा प्रताप की विजयों का श्री गणेश कहा जाता है।
- उन्देश्वर महादेव मंदिर महाराणा प्रताप दिवेर युद्ध से पहले पूजा अर्चना व युद्ध के बाद पूजा किया करते थे।
1584 ई. में महाराणा प्रताप के खिलाफ पांचवी व आखरी बार अकबर ने जगन्नाथ कछवाहा को भेजा था। उसके बाद अंतिम 13 वर्षों में महाराणा प्रताप व अकबर के मध्य कोई युद्ध नहीं हुआ था। इसे इतिहास में अघोषित संधि कहा जाता है।
- 1585 में महाराणा प्रताप ने चावण्ड को अपनी आपातकालीन राजधानी बनाया था। चावण्ड में चामुंडा माता का मंदिर बनवाया था।
- चावण्ड चित्रकला शैली की शुरुवात प्रताप के शासनकाल में हुआ था।
- 19 जनवरी 1597 ई. में चावण्ड में धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाते समय महाराणा प्रताप की मृत्यु हो जाती है।
- 8 खम्भों की प्रताप की छतरी बांडोली (उदयपुर) में है।
- महाराणा प्रताप का स्मारक दिवेर (राजसमन्द), मोतीमगरा में है।
- महाराणा प्रताप ने मांडलगढ़ व चित्तौड़गढ़ को छोड़कर सम्पूर्ण मेवाड़ पुनः हासिल कर लिया था।
Note –
- राजस्थान का सर्वोच्च खेल रत्न पुरूस्कार का नाम महाराणा प्रताप खेल रत्न पुरूस्कार है। यह पुरुस्कार सर्वप्रथम लिम्बाराम को तीरंदाजी के लिए मिला था।
- राजस्थान का दानशीलता के लिए भामाशाह पुरूस्कार दिया जाता है।
- सांप्रदायिक सदभावना के लिए हाकिम खां सुरी पुरूस्कार दिया जाता है।
महाराणा अमरसिंह प्रथम (1597-1620 ई.) –
- महाराणा अमरसिंह प्रथम महाराणा प्रताप के पुत्र थे।
- महाराणा अमरसिंह का जन्म मंचीद के महल (राजसमन्द) में हुआ था।
- महाराणा अमरसिंह का राज्याभिषेक चांवड़ में हुआ था।
- महाराणा अमरसिंह ने अकबर व जहांगीर का शासनकाल देखा था।
- महाराणा अमरसिंह प्रथम ने 1597 से 1605 तक अकबर से संघर्ष किया था।
- महाराणा अमरसिंह प्रथम ने हरिदास झाला के नेतृत्व में एक अलग सैन्य विभाग बनाया था।
- महाराणा अमरसिंह प्रथम ने 1605 से 1615 तक जहांगीर से संघर्ष किया था।
- 1613- 1616 तक जहांगीर ने अपना मुग़ल दरगार अजमेर में लगाया था। जिसका उद्देश्य अमरसिंह को बंदी बनाना था।
- जहांगीर ने मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए खुर्रम को भेजा था। (खुर्रम नी मेवाड़ पर इतने आक्रमण किये की मेवाड़ की स्थिति जर्जर हो गयी थी।)
- महाराणा अमरसिंह मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं करते है। इनके पुत्र कर्णसिंह व हरिदास झाला ने कहा यदि हमे इस सिसोदिया वंश को जीवित रखना है तो हमें मुगलों से संधि करनी होगी,इससे क्रोधित होकर अमरसिंह राजपाट से संन्यास ले लेते है।
- 5 फरवरी सन् 1615 ई. मुगलों व सिसोदिया वंश के मध्य एक संधि होती है जिसे मुगल-मेवाड़ सधि के नाम से जाना जाता है। (हालाँकि यह संधि अमरसिंह के नाम से ही हुई थी।)
- इस संधि के अनुसार मेवाड़ ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली थी। कर्णसिंह इस संधि के दौरान जहांगीर के दरबार में उपस्थित थे।
- युवराज कर्णसिंह जहांगीर के दरबार में उपस्थित हुए व उन्हें 5000 का मनसब दिया गया था।
- सन् 1615 ई. में ही चित्तौड़गढ़ वापिस मेवाड़ की राजधानी बना दी जाती है।
- चावण्ड शैली का स्वर्णकाल महराणा अमरसिंह के समय को ही हुआ था।
- संन्यास लेके के बाद अमरसिंह गंगोद भव स्थान आहड़ (उदयपुर) चले गया थे।
- 1620 ई. को गंगोद भव में ही महाराणा अमरसिंह की मृत्यु हो गयी थी।
- अमरसिंह की छतरी आहड़ (उदयपुर) में गंगोद भव गाँव मे बनी हुई है।
- गंगोद भव में प्रथम छतरी महाराणा अमरसिंह की है। इस छतरी वाले स्थान को महासतियाँ कहा जाता है। (महासतियाँ – मेवाड़ के सिसोदिया वंश का शाही श्मशान स्थल)
- महाराणा अमरसिंह के पश्चात मेवाड़ के सभी राजाओं का अंतिम संस्कार यही हुआ था।
Note – महासतियाँ का टीला बागौर (भीलवाड़ा) में है। यह कोठारी नदी के किनारे स्थित है। म्हास्तियाँ का टीला बगौर सभ्यता का एक स्थल है।
मुगल-मेवाड़ सधि के नियम –
- मेवाड़ के महाराणा मुग़ल दरबार में उपस्थित नहीं हुंगे। इसके विपरीत मुगलों ने कहा यदि महाराणा उपस्थित नहीं हुंगे तो युवराज का उपस्थित होना जरुरी होगा।
- मेवाड़ के शासक मुगलों से वैवाहिक संबंधों के लिए बाध्य नहीं हुंगे।
- चित्तौड़गढ़ दुर्ग वापिस मेवाड़ को दे दिया जाये। मुगलों ने कहा यह दुर्ग वापिस दे दिया जायेगा परन्तु इस दुर्ग की मरमत नहीं होगी।
- मेवाड़ के युवराज को 5000 का मनसब दिया जायेगा।
महाराणा कर्णसिंह (1620-1628 ई.) –
- महाराणा कर्णसिंह का जन्म 7 जनवरी, 1584 को हुआ था।
- महाराणा कर्णसिंह का राज्याभिषेक 26 जनवरी, 1620 को हुआ था।
- मेवाड़-मुग़ल संधि होक के पश्चात जब माहाराना अमरसिंह ने संन्यास ले लिया था तो सारा राजपाट महाराणा कर्णसिंह ने संभाला था,परन्तु इनका राज्याभिषेक अमरसिंह की मृत्यु के पश्चात ही हुआ था।
- महाराणा कर्णसिंह का राज्याभिषेक चित्तौड़गढ़ दुर्ग में हुआ था।
- यह मेवाड़ के प्रथम युवराज/शासक थे जो मुग़ल दरबार में उपस्थित हुए थे।
- उदयपुर में पिछोला झील जगमंदिर महलों का निर्माण कार्य आरम्भ करवाया था। इसको पूर्ण इनके पुत्र महाराणा जगतसिंह प्रथम ने किया था। इसी कारण से यह जगमंदिर कहलाते हैं।
- 1622 ई. में महाराणा कर्णसिंह के शासन काल में शाहजादा खुर्रम अपने पिता जहाँगीर से विद्रोह करता है।
- विद्रोह करने के पश्चात खुर्रम दक्षिण भारत की ओर निकल गया था। दक्षिण भारत में खुर्रम को महाराणा कर्णसिंह ने शरण दी थी।
- माना जाता है की सर्वप्रथम खुर्रम को देलवाड़ा की हवेली में शरण दी व उसके पश्चात जगमंदिर में शरण दी थी।
- कर्णसिंह की छतरी आहड़ (उदयपुर) में गंगोद भव गाँव मे बनी हुई है। महाराणा अमरसिंह के बाद दूसरी छतरी महाराणा कर्णसिंह की है।
महाराणा जगतसिंह प्रथम (1628-1652 ई.) –
- महाराणा जगतसिंह ने मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के समकालीन राजा थे।
- जगतसिंह ने पिछोला झील में स्थित जगतमंदिर का निर्माण पूर्ण कराया था। यह कला का मंदिर है।
- इस मंदिर का नाम इन्होने अपने नाम पर ही जगतमंदिर रखा था।
- जगतसिंह प्रथम दानवीरता व वाक् पटूता के लिए प्रसिद्ध थे।
- जगतसिंह प्रथम ने उदयपुर में जगन्नाथ राय/ जगदीश मंदिर (सपनों में बना मंदिर) बनवाया था।
- जगन्नाथ राय मंदिर सूत्रधार (सुथार) भाणा व उनके पुत्र मुकुन्द की अध्यक्षता में बना था व यह मंदिर अर्जुन की निगरानी में बना था।
- 13 मई, 1652 को जगन्नाथ राय मंदिर की प्रतिष्ठा हुई। इस मंदिर की विशाल जगन्नाथ राय प्रशस्ति की रचना कृष्णभ़ट्ट ने की थी।
- जगतसिंह प्रथम ने अपनी धाय माता नौजूबाई के लिए जगदीश मंदिर के समीप एक मंदिर बनवाया था। जिसे धाय मंदिर/नौजूबाई मंदिर कहा जाता है।
- महाराणा जगतसिंह प्रथम ने पिछोला में मोहनमंदिर और रूपसागर तालाब का निर्माण कराया था।
महाराणा राजसिंह (1652-80 ई.) –
- महाराणा जगतसिंह के पश्चात उनके पुत्र राजसिंह राजा बने थे।
- महाराणा राजसिंह का राज्याभिषेक 10 अक्टूबर, 1652 ई. को हुआ था।
- महाराणा राजसिंह को विजय कटकातु की धारण की थी। (विजय कटकातु – दुश्मनों का नाश करने वाला)
- तुलादान पद्धति महाराणा राजसिंह के समय में ही शुरू हुई थी।
- महाराणा राजसिंह ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग का निर्माण कार्य शुरू किया था। जिसके बाद शाहजहाँ ने सादुल्ला खां के नेतृत्व में 30,000 सैनिक भेज दिए थे।
- महाराणा राजसिंह ने एक दौड़ आरम्भ की थी जिसे टिका दौड़ कहा जाता था। (टिका दौड़- राजतिलक से पहले शिकार करना)
- मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के पुत्रों में उत्तराधिकार को लेके हुए युद्ध महाराणा राजसिंह ने औरंगजेब का साथ दिया था।
- 1671 ई. में महाराणा राजसिंह ने वृन्दावन से आयीं मूर्तियों का सिहाड़ गांव (राजसमन्द) में श्रीनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था। यह मंदिर वल्लभ संप्रदाय की प्रमुख पीठ है।
- महाराणा राजसिंह ने कांकरोली में वल्लभ संप्रदाय का द्वारिकाधीश मंदिर बनवाया था।
- इन्ही मंदिरों को बनाने के कारण महाराणा राजसिंह व औरंगजेब के मध्य सम्बन्ध ख़राब हो गये थे।
- महाराणा राजसिंह ने महाराजा अजीत सिंह व वीर दुर्गादास को शरण दी थी। महाराजा अजीत सिंह को केलवा की जागीर प्रदान की थी।
- किशनगढ़ की राजकुमारी व रूप सिंह की पुत्री चारुमती महाराणा राजसिंह से विवाह करना कहती थी, परन्तु औरंगजेब चारूमति से विवाह करना चाहता था।
- महाराणा राजसिंह चारुमती से विवाह करने जाते है तथा रतन सिंह चूंडावत को औरंगजेब से लड़ने भेज देते है।
- हाड़ीरानी सहलकंवर ने अपनी पति रतन सिंह चूंडावत को अपना शीश काटकर दे दिया था। रतन सिंह चूंडावत औरंगजेब को हरा देते है तथा महाराणा राजसिंह चारुमती से विवाह कर लेते है।
- मेघराज मुकुल ने हाड़ीरानी सहलकंवर के बलिदान पर सैनाणी कविता लिखी है।
- 1669 ई. में औरंगजेब ने मंदिर तोड़ने के आदेश दे दिए थे। औरंगजेब के सेनापति हसन अली ने मेवाड़ में 172 मंदिरों को तोडा था।
- 2 अप्रैल 1679 ई. में औरंगजेब ने जजिया कर लगा दिया था। महाराणा राजसिंह ने जजिया कर का विरोध किया था।
- सितम्बर 1679 ई. में औरंगजेब ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया था। इस आक्रमण में औरंगजेब ने जगदीश मंदिर तुड़वा दिया था।
- महाराणा राजसिंह इस आक्रमण के पश्चात पहाड़ों में चले गये थे। औरंगजेब ने हसन अली खां को महाराणा राजसिंह का पीछा करने भेजा था परन्तु उसे सफलता नहीं मिली थी।
- 1680 ई. में महाराणा राजसिंह की मृत्यु पहाड़ों में ही हुई थी।
- महाराणा राजसिंह ने गोमती नदी का जल रोककर राजसंमद झील का निर्माण करवाया था।
- राजसमन्द झील के उत्तर भाग में नौ चौकी पर 25 काली शिलालेखों पर संस्कृत में लिखा सबसे बड़ा शिलालेख ‘राज-प्रशस्ति’ अंकित है।
- इस शिलालेख के लेखक रणछोड़ भट्ट तैलंग थे।
- राजसमन्द झील में घेवर माता का मंदिर बना हुआ है। घेवर माता बिना पति के अपने हाथ में दिया लेकर सती हुई थी। (पति की निशानी के साथ यदि कोई सती होती है तो उसे अनुमरण कहा जाता है।)
- महाराणा राजसिंह ने राजनगर बसाया था।
- महाराणा राजसिंह ने बोहरा गणेश मंदिर (उदयपुर) में बनवाया था।
- राजसिंह ने अम्बिका मंदिर (उदयपुर) में बनवाया था।
- महाराणा राजसिंह की पत्नी रामरसदे ने उदयपुर में त्रिमुखी बावड़ी का निर्माण करवाया था।
- महाराणा राजसिंह ने सर्वऋतु महल (उदयपुर) का निर्माण कराया था।
- देबारी घाटी का किला भी महाराणा राजसिंह द्वारा बनवाया गया था।
महाराणा जयसिंह (1680-1698 ई.) –
- 1681 ई. में महाराणा जयसिंह जजिया कर को पूर्णत: समाप्त कर देते है।
- महाराणा जयसिंह ने 1687 ई. में चार नदियाँ गोमती, झामरी, रूपारेल एवं बगार का पानी रोककर ढेबर नामक नाके पर संगमरमर की जयसमंद झील का कार्य आरम्भ कराया था।
- यह झील 1691 ई. में पूरी हुई थी। यह झील उदयपुर में है। इस झल को ढेबर झील भी कहा जाता है।
- जयसमंद झील में सात टापू बने हुए है। सबसे बड़े टापू का नाम बाबा का भागड़ा व सबसे छोटे टापू का नाम प्यारी है।
- जयसमंद झील से दो नहरें भाट व श्याम/किल नहर निकाली गयी।
- जयसमंद झील के किनारे चित्रित महल बने हुए है।
- जयसमंद झील के किनारे रूठी रानी का महल बना हुआ है।
महाराणा अमरसिंह द्वितीय (1698-1710 ई.) –
- महाराणा अमरसिंह द्वितीय के शासनकाल में 3 मार्च 1707 ई. में देबारी समझौता हुआ था। यह समझौता मेवाड़ के शासक महाराणा अमरसिंह द्वितीय व जयपुर के शासक सवाई जयसिंह द्वितीय के मध्य हुआ था।
- देबारी समझौते के अंतर्गत महाराणा अमरसिंह अपनी पुत्री चन्द्र कुंवरी का विवाह सवाई जयसिंह के सात कर देते है।
- महाराणा अमरसिंह द्वितीय ने वागड़ व प्रतापगढ़ को पुनः अपने अधीन कर लिया था।
महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय (1710-1734 ई.) –
- महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय ने वैद्यनाथ मंदिर का निर्माण कराया था। वैद्यनाथ मंदिर प्रशस्ति के लेखक रूपभट्ट को माना जाता है। यह मंदिर भगवान् शिव का मंदिर है।
- महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय ने सहेलियों की बाड़ी (उदयपुर) का निर्माण कराया था।
- महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय व सवाई जयसिंह द्वितीय ने मिलकर 17 जुलाई 1734 ई. में हुरड़ा (भीलवाड़ा) में हुरड़ा सम्मेलन आयोजित करने की योजना बनाई थी। यह सम्मेलन असफल रहता है।
- इस समेलन से पहले ही संग्राम सिंह की मृत्यु हो जाती है।
- इस सम्मेलन की अध्यक्षता संग्राम सिंह द्वितीय के पुत्र जगत सिंह द्वितीय ने की थी।
- इस सम्मलेन को बुलाने का मुख्य कारण मराठों के आक्रमण को रोकना था।
- इनने अपने शासनकाल में नाहर मगरी के महल तथा उदयपुर के महलों में चीनी की चित्रशाला का निर्माण करवाया गया।
- अकबर के समय आधीन हुई रामपुरा जागीर संग्राम सिंह के शासनकाल में पुन: मेवाड़ को प्राप्त हुई थी।
जगत सिंह द्वितीय (1734-1751 ई.) –
- जगतसिंह द्वितीय ने पिछोला झील जगत निवास महल (उदयपुर) का निर्माण करवाया था।
- जगतसिंह के शासनकाल में ही मराठों ने पहली बार चौथ कर वसूला था। मराठों ने मेवाड़ से सर्वाधिक चौथ वसूला था।
- इनके शासनकाल में ही अफगान आक्रमणकारी नादिरशाह ने दिल्ली में आक्रमण किया था।
- जगतसिंह के दरबारी कवि नेकराम ने जगत विलास ग्रन्थ लिखा था।
जगतसिंह की मृत्यु के पश्चात प्रतापसिंह शासक बने थे परन्तु वे मात्र तीन वर्ष ही शासक रहे थे। उनकी मृत्यु हो गयी थी। प्रतापसिंह के पश्चात राजसिंह द्वितीय मेवाड़ के शासक बने थे परन्तु ये भी सात वर्षों तक ही शासन कर पाए थे। 1761 ई. में इनकी मृत्यु हो गयी थी। राजसिंह की कोई संतान नहीं थी इसलिए इनके बाद इनके छोटे भाई अरिसिंह को मेवाड़ का शासक बनाया गया था।
महाराणा भीमसिंह (1778-1828 ई.) –
- महाराणा भीमसिंह 7 जनवरी, 1778 ई. को मेवाड़ के शासक बने थे।
- महाराणा भीमसिंह के शासनकाल में मेवाड़ के चूंडावत एवं शक्तावत सरदारों के मध्य विरोध प्रबल हो गया था।
- इन्ही के शासनकाल में मराठों के हस्तक्षेप व लूटमार के कारण मेवाड़ की स्थिति बहुत ही दयनीय हो गई थी।
- महाराणा भीमसिंह के इतिहास को एक कलंक की तरह देख देखा जाता है। इनके समय ही कृष्णा कुमारी विवाद हुआ था।
- मेवाड़ के शासक भीमसिंह ने अपनी पुत्री कृष्णा कुंवारी की सगाई मात्र 9 साल की उम्र में मारवाड़ के शासक भीमसिंह के साथ तय कर दी थी।
- विवाह से पहले ही मारवाड़ के भीमसिंह की मृत्यु हो जाती है।
- इसके पश्चात् मेवाड़ के भीमसिंह ने अपनी पुत्री की सगाई आमेर के शासक जगतसिंह के साथ तय कर दी थी।
- मारवाड़ के भीमसिंह की मृत्यु के पश्चात उनके छोटे भाई मानसिंह शासक बनाते है तथा वह नहीं चाहते थे की कृष्णा कुंवरी का विवाह आमेर के शासक जगतसिंह के साथ हो।मानसिंह भीमसिंह को पत्र लिखकर यह संदेश भेजते है जिस दिन कृष्णा कुंवारी की सगाई मारवाड़ रियासत के साथ हुई उसी दिन ये मारवाड़ घराने की बहू बन गयी थी। यदि अब भीमसिंह नहीं रहे तो मैं जीवित हूँ इनका विवाह मेरे साथ ही होगा वरना किसी के साथ नहीं होगा।
- इसी कारण से आमेर शासक व मारवाड़ शासक के मध्य युद्ध हुआ था।
- इस युद्ध में जगत सिंह ने अपनी सहायता के लिए मराठों व अमीर खां पिंडारी को बुलाया था।
- 1807 ई. में मानसिंह व जगतसिंह के मध्य गिन्गोली नामक स्थान में गिन्गोली का युद्ध हुआ था। इस युद्ध में मानसिंह बुरी तरह से पराजित हो जाता है तथा वह भागकर जोधपुर किले में स्वंय को बंद कर लेता है।
- इसके बाद जगतसिंह जोधपुर पहुँच कर जोधपुर किले की घेराबंदी कर देते है परन्तु मानसिंह ने पिंडारियों को ज्यादा पैसे दे कर अपनी ओर कर लिया था।
- इसके पश्चात अमीर खां सेना लेकर आमेर की घेराबंदी शुरू कर देता है। जगत सिंह को वापिस आमेर जाना पड़ता है।
- ये सब विवाद देखने के बाद अमीर खां पिण्डारी व अजीत सिंह चुडावत महाराणा भीमसिंह से कहते है या तो आप अपनी पुत्री को मार के ये विवाद खत्म करो वरना हम आपको खत्म कर देंगे।
- महाराणा भीमसिंह ने अपनी पुत्री कृष्णा कुमारी को 1810 ई. में जहर देकर मरवा दिया था। इस समय कृष्णा की उम्र मात्र 16 वर्ष थी।
- महाराणा भीमसिंह मेवाड़ के प्रथम शासक थे जिन्होंने वर्ष 1818 ई. में ईस्ट इण्डिया कम्पनी से सहायक संधि कर ली थी।
- महाराणा भीमसिंह के शासनकाल में किसना आढा ने भीम विलास ग्रंथ की रचना की थी।
महाराणा भीमसिंह के पश्चात जवानसिंह मेवाड़ के शासक बने थे। 1831 में गवर्नर जनरल विलियम बैंटिक की अजमेर यात्रा के समय महाराणा जवानसिंह ने उनसे मुलाकात की थी। जवानसिंह ने पिछोला झील के तट पर जल निवास महलों का निर्माण करवाया था।
महाराणा सरदार सिंह (1838 – 1842 ई.) –
- जवानसिंह की मृत्यु के पश्चात सरदार सिंह मेवाड़ के राजा बने थे।
- जवानसिंह के शासनकाल में वर्ष 1841 में भीलों के विद्रोह को दबाने के लिए “मेवाड़ भील कोर’ का गठन किया गया था।
महाराणा स्वरूप सिंह (1842-1861 ई.) –
- 1844 में महाराणा स्वरूप सिंह ने कन्या वध पर प्रतिबंध लगाया था।
- 1853 में महाराणा स्वरूप सिंह ने डाकन प्रथा को गैर-कानूनी घोषित किया था तथा इस प्रथा को समाप्त करने का श्रेय कैप्टन जे. सी. ब्रुक को दिया जाता है।
- 1861 में महाराणा स्वरूप सिंह ने सतीप्रथा पर रोक लगाने के लिए आदेश जारी किये थे।
- महाराणा स्वरूप सिंह ने जाली सिक्कों के प्रचलन को समाप्त हेतु स्वरूपशाही सिक्के चलाए थे।
- महाराणा स्वरूप सिंह के शासनकाल में आकाशीय बिजली गिरने के कारण विजय स्तंभ का ऊपरी भाग क्षतिग्रस्त हो गया था, जिसका महाराणा स्वरूप सिंह ने पुन: निर्मित करवाया था।
- 1857 की क्रांति स्वरूप सिंह के शासनकाल में ही हुई थी।
- इनकी मृत्यु के पश्चात इनकी एक पासवान ऐंजाबाई सती हुई थी।
महाराणा शंभुसिंह (1861-1874 ई.) –
- महाराणा शम्भुसिंह के शासनकाल में शंभु पलटन नाम से नई सेना का गठन किया गया था।
- महाराणा शम्भुसिंह के शासनकाल में सती प्रथा, दास प्रथा तथा बच्चों के क्रय-विक्रय आदि पर कठोर प्रतिबंध लगाये गये थे।
- महाराणा शम्भुसिंह के शासनकाल में महाराणा की आवश्कता हेतु पॉलिटिकल एजेंट मेजर टेलर की अध्यक्षता में एक परिषद का गठन किया गया व शासन चलाया जाने लगा था।
- महाराणा शम्भुसिंह मेवाड़ के प्रथम शासक थे जिनके साथ कोई सती नहीं हुई थी।
महाराणा सज्जनसिंह (1874-1884 ई.) –
- महाराणा सज्जनसिंह के शासनकाल में गवर्नर जनरल लॉर्ड नार्थब्रुक उदयपुर की यात्रा पर आए थे।
- गवर्नर जनरल लॉर्ड नार्थब्रुक उदयपुर आने वाले प्रथम गवर्नर जनरल थे।
- 1877 ई. में लगे दिल्ली दरबार में महाराणा सज्जनसिंह शामिल नहीं हुए थे।
- 1877 ई. में इन्ही के शासनकाल मेंही मेवाड़ में देश हितेषिणी सभा की स्थापना हुई थी।
- 10 मार्च 1877 ई. को कविराज श्यामलदास की सलाह पर इजलास खास नमक एक संस्था का गठन किया गया था। इस संस्था में 15 सदस्य थे। यह संस्था दीवानी, फौजदारी तथा अपील संबंधी मामलों की परिषद थी। इजलास खास मेवाड़ में प्रसासनिक सुधार के लिए बनायीं गयी थी।
- 20 को अगस्त, 1880 महेन्द्राज सभा का गठन किया गया था। यह सभा न्यायिक सुधारों से संबंधित सभा थी। इस सभा में 17 सदस्य थे। ब्रिटिश सरकार ने इन्हें GCSI (Grand Commandor of The Star of India) की उपाधि प्रदान की थी। यह उपाधि लॉर्ड रिपन ने स्वयं चित्तौड़ आकर महाराणा को प्रदान की थी।
- 1881 ई. में महाराणा सज्जन सिंह ने सज्जन यंत्रालय (उदयपुर) की स्थापना करायी थी। यह एक छापाखाना था।
- दयानंद सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश का लेखन कार्य उदयपुर में ही पूर्ण किया था।
- महाराणा सज्जनसिंह के दरबारी कवि श्यामलदास द्वारा वीर विनोद ग्रन्थ की रचना प्रारंभ की थी। महाराणा सज्जनसिंह के पुत्र फतेहसिंह ने इसकी रचना को बंद करा दिया था।
- दरबारी कवि श्यामलदास को कविराज की उपाधि प्रदान थी।
महाराणा फतेहसिंह (1884-1930 ई.) –
- 1885 में महाराणा फतेहसिंह के काल में गवर्नर जनरल डफरिन उदयपुर आए थे।
- 1887 ई. में महाराणी विक्टोरिया के शासन के 50 वर्ष पूर्ण होने पर महाराणा फतेहसिंह ने सज्जन निवास बाग में विक्टोरिया हॉल का निर्माण करवाया था।
- इन्होने 1888 ई. में फतेह सागर झील का निर्माण करवाया था।
- 1889 ई. में महाराणा फतेहसिंह ने वाल्टरकृत हितकारिणी सभा की स्थापना करायी थी।
- 1 जनवरी 1903 को दिल्ली दरबार लगा था। महाराणा फतेहसिंह दिल्ली दरबार को जाते है तो केसरी सिंह बारहट 1300 सोरठों (दोहों का विपरीत रूप) में एक कविता लिखी जिसे चेतावनी रा चूंगटिया कहा जाता है। माना जाता है की इस कविता को सुनने के पश्चात फतेहसिंह दिल्ली रेलवे स्टेशन में अंग्रेजी अफ़सरों से मिल कर वापिस आ जाते है।
- फतेहसिंह के समय में बिजोलिया और बेंगू किसान आंदोलन हुए थे।
- 1921 ई. में फतेहसिंह ने अंग्रेजों के दवाब में आकर सिंघासन त्याग दिया था।
महाराणा भूपाल सिंह (1930-1947 ई.) –
- महाराणा भूपाल सिंह के काल में मेवाड़ प्रजामण्डल आंदोलन घटना हुईं थी।
- यह मेवाड़ रियासत के अंतिम शासक थे।
- महाराणा भूपाल सिंह को वृहत राजस्थान का महाराज प्रमुख बनाया जाता है।
- 18 अप्रैल, 1948 को सिसोदिया वंश का विलय संयुक्त राजस्थान में हो गया था।
अन्य गुहिल शाखाए –
डूंगरपुर रियासत –
- स्थापना – 1358 ई.
- संस्थापक – डूंगरसिंह
बासंवाडा रियासत –
- स्थापना – 1527 ई.
- संस्थापक – जगमाल सिंह
प्रतापगढ़ रियासत देवलिया ठिकाना –
- स्थापना – 1437 ई.
- संस्थापक – क्षेमकरण
- प्रतापगढ़ नगर की स्थापना – 1699 ई.
शाहपुरा रियासत –
- स्थापना – 1631 ई.
- संस्थापक – सुजान सिंह