राजस्थान का इतिहास (बीकानेर का राठौड़ वंश)


History of Rajasthan (Rathore Dynasty of Bikaner)


बीकानेर को पहले जांगल प्रदेश नाम से जाना जाता था। जांगल प्रदेश को प्राचीन समय में कुरु जांगला ,जांगलू या माद्रेय जंगला कहा जाता था। जांगल प्रदेश के पूर्वी भाग को सपादलक्ष (वर्तमान में अजमेर जिला) कहा जाता था। राव बिका जिन्होंने बीकानेर शहर बसाया था वे
राव जोधा के पाचवें पुत्र थे।

राव बीका (1465-1504 ई.) –

  • राव बिका राव जोधा के पुत्र थे।
  • राव बिका ने बीकनेर जा कर करणी माता के आशीर्वाद से 1465 में राठौड़ वंश की स्थापना की थी। बीकानेर का प्राचीन नाम जांगल प्रदेश था।
  • राव बिका ने अपनी राजधानी कोडमदेसर को बनाया था।
  • राव बिका ने अप्रैल 1488 में नेरा जाट के सहयोग से बीकानेर बसाया था।
  • राव बिका ने जोधपुर के शासक राव सुजा को पराजित कर राठौड़ वंश के सभी राजकीय चिन्हों को लेकर बीकानेर आ गये थे।

राव लूणकरण (1504-1526 ई.) –

  • राव लूणकरण ने लूणकरणसर क़स्बा बसाया था। लूणकरणसर को राजस्थान का राजकोट कहा जाता है।
  • राव लूणकरण ने लूणकरणसर तालाब का निर्माण कराया था।
  • राव लूणकरण को बीठू सूजा के ग्रन्थ ‘राव जैतसी रो छन्द’ में ‘कर्ण‘ व ‘कलियुग का कर्ण‘ कहा है। ‘राव जैतसी रो छन्द’ में 401 छन्द है।
  • ‘कर्मचन्द्रवंशोंत्कीकर्तनंक काव्यम्‘ में राव लूणकरण की तुलना कर्ण से की गयी है।
  • राव लूणकरण की पुत्री बालाबाई का विवाह आमेर के राजा पृथ्वीराज के साथ हुआ था। पृथ्वीराज ने खानवा के युद्ध में राणा सांगा की सहायता की थी।

राव जैतसी (1526-1541 ई.) –

  • 26 अक्टूबर,1534 ई. में राव जैतसी ने लाहौर के शासक कामरान को हराया था। इस युद्ध का उल्लेख बीठू सूजा के ग्रन्थ ‘राव जैतसी रो छन्द में’ मिलता है।
  • 1541 ई. में पाहेवा / साहवा का युद्ध राव जैतसी व मालदेव के मध्य फलोदी (जोधपुर) में हुआ था। इस युद्ध में राव जैतसी की मृत्यु हो गयी थी।
  • पाहेवा / साहवा युद्ध का वर्णन बीठू सूजा के ‘राव जैतसी रो छन्द’ में मिलता है।
  • राव जैतसी ने 17 मार्च 1527 में खानवा के युद्ध में अपने पुत्र राव कल्याणमल को राणा सांगा की सहायता को भेजा था। खानवा का युद्ध भरतपुर में हुआ था।

राव कल्याणमल (1544-1574 ई.) –

  • राव जैतसी की मृत्यु के बाद राव कल्याणमल शेरशाह सूरी (फरीद) के पास सहायता मागने जाता है जिसके पश्चात 5 जनवरी 1544 को शेरशाह सूरी व मालदेव के मध्य युद्ध होता है। इस युद्ध में मालदेव भाग जाता है और राव कल्याणमल को बीकानेर का शासक बनाया जाता है।
  • राव कल्याणमल बीकानेर के प्रथम शासक थे जिन्होंने अफगानों के साथ विवाहिक संबंध स्थापित किये थे।
  • शेरशाह सूरी जब राजस्थान आया तो उसकी सहयता राव कल्याणमल व मेड़ता के वीरमदेव ने की थी।
  • 1570 ई. राव कल्याणमल ने नागौर दरबार में मुगलों की अधीनता स्वीकार की थी। नागौर दरबार अहिच्छत्रपुर में लगा था।
  • पृथ्वीराज व रायसिंह राठौड़ राव कल्याणमल के पुत्र थे।
  • अकबर ने पृथ्वीराज राठौड़ को गागरोंण दुर्ग दे दिया था। गागरोंण दुर्ग झालावाड़ में है। गागरोंण दुर्ग ओदक दुर्ग है जिसे जल दुर्ग कहा जाता है।
  • गागरोंण दुर्ग में पृथ्वीराज राठौड़ ने ‘बेलि क्रिसन रूकमणी री’ग्रन्थ लिखा था। यह ग्रन्थ डिंगल भाषा में लिखा गया है। यह ग्रन्थ उत्तरी मारवाड़ का प्रसिद्ध ग्रन्थ है।
  • कवि दुरसा आढ़ा ने ‘बेलि क्रिसन रूकमणी री’ ग्रन्थ को पाँचवा वेद एवं 19वाँ पुराण कहा है।
  • इटली के कवि डॉ. टेस्सीटोरी ने पृथ्वीराज राठौड़ को ‘डिंगल का होरेस’कहा है।
  • कन्हैयालाल सेठिया ने पृथ्वीराज राठौड़ को पीथल कहा है।

महाराजा रायसिंह (1574-1612 ई.) –

  • 1572 ई. में कल्याणमल के पुत्र रायसिंह राठौड़ को अकबर द्वारा जोधपुर का प्रशाशक नियुक किया गया था। रायसिंह राठौड़ को चन्द्रसेन के खिलाफ़ भेजा गया था।
  • रायसिंह राठौड़ को इतिहासकार मुंशी देवीप्रसाद ने ‘राजपूताने का कर्ण’ कहा है।
  • रायसिंह राठौड़ को अकबर ने महाराजा की पदवी प्रदान की।
  • रायसिंह राठौड़ को ही मुग़ल दरबार का स्तंभ कहा जाता है।
  • रायसिंह राठौड़ ने अपनी पुत्री का विवाह शहजादे सलीम के साथ किया था।
  • रायसिंह राठौड़ को अकबर द्वारा 4000 की मनसबदारी दी गयी थी व जहाँगीर द्वारा 5000 की मनसबदारी दी गयी थी।
  • रायसिंह राठौड़ अकबर का दूसरा सर्वाधिक विश्वासपात्र राजपूत शासक था।
  • रायसिंह राठौड़ के समय बीकानेर चित्रकला की शुरुवात हुई थी।
  • रायसिंह राठौड़ के समय भागवत पुराण ग्रन्थ मिला था।
  • रायसिंह राठौड़ ने “ज्योतिष रत्नमाला” नामक ग्रन्थ लिखा था।
  • रायसिंह राठौड़ ने “रायसिंह महोत्सव” की शुरुवात की थी।
    रायसिंह राठौड़ को ‘कर्मचन्द्रवंशोकीर्तनकंकाव्यम’में राजेन्द्र की उपाधि प्राप्त है।
  • रायसिंह राठौड़ बीकानेर के राठौड़ वंश के प्रथम शासक थे जिन्होंने ‘महाराजाधिराज‘ और महाराजा की उपाधियाँ धारण की थी।
  • सन् 1594 में रायसिंह राठौड़ ने जूनागढ़ किले का निर्माण करवाया था। जूनागढ़ किले को ज़मीन का जेवर व राती घाट का किला कहा जाता हैं।
  • रायसिंह राठौड़ ने जूनागढ़ किले को 1589 से 1594 तक अपने प्रधानमंत्री कर्मचंद पंवार की देख रेख में बनवाया था।
  • जूनागढ़ किले के भीतर रायसिंह राठौड़ ने एक प्रशस्ति भी लिखवाई जिसे‘रायसिंह प्रशस्ति‘ कहा जाता हैं।
  • जूनागढ़ किले के प्रवेश द्वार पर सूरजपोल के बाहर जयमल राठौड़ व पत्ता सिसोदिया की हाथी पर सवार पाषाण मूर्तियाँ रायसिंह राठौड़ द्वारा स्थापित करवाई गयी थी।
  • जूनागढ़ किले में राजस्थान राज्य की प्रथम लिफ्ट स्थित है।
  • 1612 में रायसिंह की बुरहानपुर (महाराष्ट्र) में हुई थी।

महाराजा दलपत सिंह (1612-13 ई.) –

  • महाराजा रायसिंह ने अपनी राज्य की बागडोर अपने प्रधानमंत्री कर्मचंद पंवार को सौपी थी।
  • कर्मचंद पंवार दलपत सिंह को राजा बनाने का षड्यंत्र रचता है, जिससे क्रधित होकर सूरसिंह जहाँगीर के पास चला गया।

महाराजा सूरसिंह (1613-1631 ई.) –

  • जहाँगीर ने सूरसिंह को बीकानेर का राजा बनाया था।
  • जहाँगीर के समय जब खुर्रम ने विद्रोह किया तो जहाँगीर ने खुर्रम के विरुद्ध सूरसिंह को भेजा था, इस विद्रोह में खुर्रम असफल रहा था।
  • सूरसिंह ने दो मुगल शासक जहाँगीर तथा शाहजहाँ के समय सेवाएं प्रदान की थी।

महाराजा कर्णसिंह (1631-1669 ई.) –

  • सूरसिंह के पश्चात उनके पुत्र कर्णसिंह राजा बनाया गया था।
  • कर्णसिंह को औरंगजेब द्वारा जांगलधर बादशाह की उपाधि प्रदान की गयी थी।
  • कर्णसिंह ने करणी माता का मंदिर बनवाया था।
  • 1644 ई. में बीकानेर के कर्णसिंह व नागौर के अमरसिंह राठौड़ के मध्य‘मतीरा री राड़‘नामक युद्ध हुआ था। इस युद्ध में अमर सिंह राठौड़ विजयी रहे थे।
  • कर्णसिंह ने विद्वानों के सहयोग से साहित्यकल्पदुम ग्रन्थ की रचना की थी।
  • कर्णसिंह के आश्रित विद्वान गंगानन्द मैथिल ने कर्णभूषण एवं काव्यडाकिनी नामक ग्रन्थों की रचना की थी।

महाराजा अनूपसिंह (1669-1698 ई.) –

  • अनूपसिंह ने दक्षिण में बीजापुर- गोलकुंडा अभियान के तहत मराठों के खिलाफ़ की गयी कारवाही से मुग़ल शासक औरंगजेब ने प्रसन्न होकर अनूपसिंह को ‘महाराजा‘ एवं ‘माही भरातिव‘ की उपाधि से सम्मानित किया था।
  • अनूपसिंह प्रकाण्ड विद्वान, कूटनीतिज्ञ, विद्यानुरागी एवं संगीत प्रेमी शासक थे।
  • अनूपसिंह ने अनूपविवेक, काम-प्रबोध, अनूपोदय आदि संस्कृत ग्रन्थों की रचना की थी।
  • अनूपसिंह के समय को बीकानेर चित्रकला का स्वर्ण काल कहा जाता हैं।
  • अनूपसिंह के समय ही आनंदराम ने गीता को राजस्थानी भाषा में अनुवाद किया था।
  • अनूपसिंह के समय में उस्ता कला लाहौर से आई थी। उस्ताकला के कलाकारों को उस्ताद कहा जाता था।
  • उस्ताकला ऊटों की खाल पर की जाती हैं। उस्ताकला बीकानेर जिले की प्रसिद्ध हैं।
  • बीकानेर में ऊट महोत्सव मनाया जाता हैं।
  • उस्ताकला के प्रसिद्ध कलाकार हिसामुद्दीन उस्ता थे। इन्होने अपने पिता से यह कला सीखी थी। हिसामुद्दीन उस्ता को पद्मश्री पुरूस्कार से सम्मानित किया गया था।
  • उस्ताकला के वर्तमान कलाकार हनीब उस्ता व इलाही बक्श हैं।
  • अनूपसिंह ने अपने नाम पर अनूप गढ़ बनवाया था। अनूप महल में हिण्डोला झूला हैं। अनूप गढ़ का प्राचीन नाम चुंघेर था।
  • अनूप महल में बीकानेर के राजाओं का राजतिलक होता था।

महाराजा स्वरूपसिंह (1698-1700 ई.) –

  • अनूपसिंह की मृत्यु के पश्चात उनके ज्येष्ठ पुत्र स्वरूपसिंह मात्र नौ वर्ष की आयु में बीकानेर की गद्दी में बैठ गए थे।
  • स्वरूपसिंह के औरगांबाद तथा बुरहानपुर में नियुक्त होने के कारण बीकानेरका सभी राजकार्य उनकी माता सिसोदणी संभालती थी।

महाराजा सुजानसिंह (1700-1735 ई.) –

  • स्वरूपसिंह के पश्चात सुजानसिंह बीकानेर के राजा बन थे।
  • महाराजा सुजानसिंह ने दक्षिण में रहकर मुगलों की सेवा की थी।
  • महाराजा सुजानसिंह के समय जोधपुर के महाराजा अजीत सिंह ने बीकानेर पर आक्रमण किया परन्तु इस आक्रमण का जवाब ठाकुर पृथ्वीराज तथा हिन्दूसिंह (तेजसिंह) ने डटकर दिया था, जिस कारण जोधपुर की सेना को वापस जोधपुर जाना पड़ा था।
  • मथेरण जोगीदास ने वरसलपुर गढ़ विजय नामक ग्रंथ की रचना की थी। वरसलपुर गढ़ विजय का दूसरा नाम ‘ महाराजा श्री सुजानसिंह जी रौ रासौ ‘ है।

महाराजा जोरावर सिंह (1736-1746 ई.) –

  • इतिहासकार मुंशी देवी प्रसाद के अनुसार जोरावर सिंह संस्कृत भाषा के उच्च कवि थे।
  • जोरावर सिंह के दो ग्रंथ वैद्यकसागर तथा पूजा पद्धति वर्तमान में बीकानेर के पुस्तकालय में है।
  • जोरावर सिंह की माता सीसोदिणी ने बीकानेर में चतुर्भुज मंदिर का निर्माण करवाया था।

महाराजा गजसिंह (1746-1787 ई.) –

  • महाराजा गजसिंह के समय बीदासर के निकट दड़ीबा गाँव में तांबे की खान की ख़ोज हुई थी।
  • 1757 ई. में गजसिंह ने नौहरगढ़ की नींव रखी थी।
  • महाराजा गजसिंह को मुग़ल शासक अहमदशाह ने ‘माहीमरातिब’ की उपाधि प्रदान की थी।
  • महाराजा गजसिंह की प्रशंसा में चारण गाडण गोपीनाथ ने ‘महाराज गजसिंह रौ रूपक’ ग्रंथ की रचना की थी।
  • सिंढायच फतेराम ने ‘महाराज गजसिंह रौ रूपक’ तथा ‘महाराज गजसिंह रा गीतकवित दूहा’ ग्रंथों की रचना की थी।
  • गजसिंह के पश्चात महाराजा राजसिंह बीकानेर के शासक बने थे।
  • महाराजा राजसिंह की मृत्यु के पश्चात इनके सेवक मंडलावत संग्राम सिंह ने महाराजा राजसिंह की जलती चिता में आहुति दे दी थी।
  • राजसिंह के पश्चात प्रतापसिंह बीकानेर के राजा बने परन्तु इनका शासनकाल अल्प समय तक ही रहा था।

महाराजा सूरतसिंह (1787-1828 ई.) –

  • 1799 ई. में सूरतसिंह ने सूरतगढ़ का निर्माण करवाया था।
  • दयालदास ने ‘बीकानेर के राठौड़ों री ख्यात’ नामक ग्रन्थ लिखा हैं।
  • 1805 ई. में महाराजा सूरतसिंह ने अमरचंद सुराणा के नेतृत्व में भटनेर (हनुमानगढ़) में मगलवार को आक्रमण किया था व अपना अधिकार कर लिया था। मंगलवार को’ अधिकार करने के कारण भटनेर का नाम बदलकर हनुमानगढ़ रखा दिया गया था।
  • महाराजा सूरतसिंह ने भटनेर के जाप्ता भाटी को पराजित किया था।
  • 1807 ई. में हुए गिंगोली के युद्ध में बीकानेर के शासक सूरतसिंह ने जयपुर की सेना की सहायता की थी।
  • 1814 ई. में महाराजा सूरतसिंह ने चुरू पर आक्रमण किया था। इस युद्ध में चुरू के शिवसिंह के गोला बारूद ख़त्म होने के बाद चाँदी के गोलेदागे थे।
  • 1818 ई. में महाराजा सूरतसिंह ने ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ संधि की थी। यह संधि सूरतसिंह की और से ओझा काशीनाथ ने सम्पन्न की थी।

महाराजा रतनसिंह (1828-1851 ई.) –

  • महाराजा सूरतसिंह के पश्चात इनके ज्येष्ठ पुत्र रतनसिंह बीकानेर के राजा बने थे।
  • 1829 ई. में बीकानेर व जैसलमेर के मध्य वासणपी का युद्ध हुआ था इस युद्ध में बीकानेर राज्य को पराजय का सामना करना पड़ा था।
  • वासणपी के युद्ध में अंग्रेजों ने मेवाड़ के महाराणा जवानसिंह को मध्यस्थ बनाकर दोनों पक्षों में समझौता करवाया।
  • मुग़ल शासक अकबर द्वितीय ने रतनसिंह को ‘माहीमरातिब’ का खिताब प्रदान किया था।
  • रतनसिंह द्वारा राजरतन बिहारी का मंदिर का निर्माण करवाया गया था।
  • बीठू भोमा ने रतनविलास व सागरदान करणीदानोत ने रतनरूपक नामक ग्रंथ की रचना की थी।

महाराजा सरदारसिंह (1851-1872 ई.) –

  • सरदारसिंह द्वारा 1854 ई. में सती प्रथा व जीवित समाधि प्रथा पर रोक लगवा दी थी।
  • महाराजा सरदारसिंह ने 1857 की क्रांति में राजस्थान के हांसी, हिसार से बहार जाकर पंजाब के बड़ालू नामक स्थान पर अंग्रेजों की सहायता की थी।
  • 1857 की क्रांति में सहायता करने के बाद अंग्रेजों ने महाराजा सरदारसिंह को हनुमानगढ़ की टिब्बी तहसील में 41 गाँव दिए थे।
  • सरदारसिंह द्वारा महाजनों से लिया जाने वाला बाछ कर माफ कर दिया गया था।
  • सरदारसिंह ने बीकानेर के सिक्कों से मुगल बादशाह का नाम हटाकर महारानी विक्टोरिया का नाम अंकित करवाया था।

महाराजा डूंगरसिंह (1872-1887 ई.) –

  • महाराजा सरदारसिंह के पुत्र न होने के कारण कुछ समय टस्क बीकानेर राज्य का कार्य कप्तान बर्टन की अध्यक्षता वाली समिति ने किया था।
  • वायसराय लॉर्ड नॉर्थब्रुक की स्वीकृति से कप्तान बर्टन ने डूंगरसिंह को बीकानेर की गद्दी में बैठाया था।
  • डूंगरसिंह ने बीकानेरी भुजिया की शुरुवात की थी।
  • डूंगरसिंह ने अंग्रेजों के साथ नमक समझौता किया था।
  • डूंगरसिंह ने बीकानेर किले का जीर्णोद्वार करवाया तथा इसमें सुनहरी बुर्ज, गणपति निवास, लाल निवास, गंगा निवास आदि महल बनवाये थे।

महाराजा गंगासिंह (1887-1943 ई.) –

  • गंगासिंह ने अपनी शिक्षा अजमेर के मेयो कॉलेज से की थी।
  • गंगासिंह के लिए शिक्षक पंडित रामचंद्र दुबे को नियुक्त किया गया था।
  • गंगासिंह ने देवली छावनी (टोंक) में अपनी सैनिक शिक्षा भी प्राप्त की थी।
  • गंगासिंह के शासनकाल में विक्रम संवत 1956 (1899-1900 ई.) में भीषण अकाल पड़ा जिसे छप्पनिया अकाल भी कहते हैं।
  • गंगासिंह ने गंगा नगर शहर बसाया था। गंगा शहर का स्थापना दिवस 26 अक्टूबर को होता हैं। गंगा नगर को पहले रामनगर (रामू जाट की ढाणी ) कहा जाता था।
  • 1921 में गंगा सिंह नरेन्द्र मंडल के प्रथम चांसलर बने थे। यह नरेंद्र मंडल नाम महाराजा जयसिंह ने दिया था।
  • 1927 में गंगासिंह ने नहर निकली जिसका नाम गंग नहर था। यह नाहर फ़िरोजपुर से हुसैनीवाला लायी गयी थी। यह नहर 129 किलोमीटर लम्बी नहर हैं।
  • गंग नहर विश्व की पहली सिचाई नहर हैं।
  • गंगा सिंह को आधुनिक भारत व राजस्थान का भागीरथ कहा जाता हैं।
  • गंगासिंह 1930,1931 व 1932 के गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने गये थे। यह सम्मेलन लन्दन में हुए थे।
  • गंगासिंह ने ऊटों की सेना भेजी थी जिसको गंगा रिसाला कहा जाता था। यह सेना चीन भेजी गयी थी। चीन ने इसके बाद गंगासिंह को एक चीनी युद्ध पदक दिया था।
  • गंगा सिंह ने अपनी पिता लाल सिंह की याद में लाल गढ़ पैलेस बनवाया था। लाल गढ़ पैलेस लाल पत्थर से बना है।
  • गंगा सिंह के समय में इटली से टेस्सीटोरी आया था।
  • नथमल जोशी का धोरां रो धोरी उपन्यास टेस्सीटोरी के जीवनी पर है , इस उपन्यास में नथमल जोशी ने टेस्सीटोरी को टिब्बों का मसीहा कहा हैं।
  • करणी माता के प्रवेश द्वार गंगा सिंह द्वारा भेट किये गए थे।
  • गंगासिंह ने गोगाजी के मंदिर को आधुनिक स्वरूप दिया था।
  • गंगासिंह के शासनकाल में अंग्रेजों की सहायता से ‘कैमल कोर’ का गठन किया गया जो ‘गंगा रिसाल’ के नाम से भी जानी जाती थी।

महाराजा शार्दुल सिंह (1943-1949 ई.) –

  • महाराजा शार्दुल सिंह बीकानेर के अंतिम शासक थे।
  • महाराजा शार्दुल सिंह प्रथम शासक थे जिन्होंने एकीकरण के समय विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। महाराजा शार्दुल सिंह ने 7 अगस्त, 1947 को ‘इस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ पर हस्ताक्षर किए व भारत में विलय हो गए थे।
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