राजस्थान का इतिहास (कछवाहा वंश) – भाग 2


[History of Rajasthan (Kachhwaha Dynasty) – Part 2]


मानसिंह (I) (Man Singh (I) 1589 – 1614 ई )  – 

  • शीला माता का मंदिर मान सिंह प्रथम ने बनाया था।
  • मान सिंह (I) का जन्म 6 दिसम्बर 1550 को मौजमाबाद में हुआ था।
  • मान सिंह (I) जयपुर के प्रमुख शासकों में से एक थे।
  • मान सिंह (I) 11 वर्ष की उम्र में में ही अकबर के दरबार में चले गये थे।
  • इतनी कम उम्र में अकबर के दरबार में जाने के कारण अकबर मान सिंह (I) को अपना फर्जन (पुत्र) मानता था।
  • मान सिंह (I) और अकबर की पहली मुलाकात बैराठ में व  दूसरी मुलाकात मोमिनाबाद (आमेर)हुई थी।(मुगलों द्वारा आमेर का नाम बदल कर मोमिनाबाद  रखा गया था।)
  • भगवंत दास की मृत्यु के समय मान सिंह (I) पटना में थे।
  • मान सिंह (I) का पहला राज्याभिषेक पटना में हुआ व दूसरा राज्याभिषेक आमेर में हुआ था।
  • मान सिंह (I) ने लगभग 55 सालों तक मुग़ल सल्तनत की सेवा की थी।
  • इतने विश्वास होने के कारण अकबर ने मान सिंह (I) को 7000 की मनसबदारी दी थी।
  • किसी भी हिन्दू शासक को मुग़ल दरबार में इतनी बड़ी मनसबदारी नहीं मिली थी।
  • मान सिंह (I) अकबर के नौ रत्नों में से भी एक थे।
  • मान सिंह (I)को बंगाल , लाहौर का सूबेदार बनाया गया था।
  • मान सिंह (I) महाराणा प्रताप और अकबर के युद्ध में महाराणा प्रताप को समझाने वाले दुसरे दल के प्रमुख थे।
  • मान सिंह (I) के समझाने में जब महाराणा प्रताप नहीं माने  तो मान सिंह (I)के पिता भगवंत दास  को अकबर ने तीसरे दल के प्रमुख बना कर भेजा था।
  • मान सिंह (I) को महाराणा प्रताप और अकबर के हल्दी घटी के युद्ध में  अकबर द्वारा सेनापति बनाया गया था।
  • 18 जून 1576 को हल्दीघाटी के युद्ध में मान सिंह (I)स्वतंत्र सेनापति के रूप में अपना प्रथम सैन्य अभियान किया था।
  • मान सिंह (I) जब लाहौर के मनसबदार थे तब मान सिंह (I) लाहौर से “ब्लू पाटरी” कला को जयपुर लाये थे।जिसके आज प्रमुख कलाकार है कृपाल सिंह शेखावत। कृपाल सिंह शेखावत के गुरु का नाम भुर सिंह शेखावत थे।
  • मान सिंह (I) लाहौर से मीनाकारी कला लेके आये थे। इसके प्रसिद्ध कलकार कुदरत सिंह थे।
  • 1569 में मान सिंह (I) सर्वप्रथम रणथम्भौर अभियान पर गए थे।
  • 1572 में मान सिंह (I) गुजरात अभियान पर गए थे। गुजरात में शेरखां के विद्राह का दमन किया था।
  • 1573 में मान सिंह (I) ढुँगरपुर अभियान पर गए थे। ढुँगरपुर में आसकारण को भगाया गया था।
  • 1585 में मान सिंह (I) काबुल का सूबेदार बने थे। काबुल में मिर्ज़ा हाकिम का दमन किया था।
  • 1587 में मान सिंह (I) बिहार का सूबेदार बने थे, यहाँ मान सिंह (I) ने पुरणमल को हराया था।
  • बिहार में मान सिंह (I) ने मानसिंह नगर बसाया था।
  • मान सिंह (I) ने 1592 में आमेर के महलों का निर्माण करवाया था।
  • 1592 में मान सिंह (I) ने उड़ीसा विजय किया था।
  • 1594 में मान सिंह (I) ने बंगाल विजय किया था।
  • बंगाल में मान सिंह (I) ने अकबर महल बनाया था, जिसे राजमहल भी कहते है।
  • मान सिंह (I) तीन बार बंगाल के सूबेदार बने थे।
  • पूर्वी बंगाल के लक्ष्मीनारायण व राजा केदार को पराजित कर शीलादेवी माता की मूर्ति लाये थे।
  • मान सिंह (I) बंगाल के जेस्सोर से शीलादेवी माता की मूर्ति लेके आये थे और आमेर के महलों में स्थापित की थी।
  • शिला माता कछवाहा वंश की आराध्य माता है।
  • शिला माता का मंदिर मान सिंह (I) ने बनाया था।
  • बंगाल के सूबेदार  होते हुए इनके 3 पुत्रों की मृत्यु हुई थी।
  • मान सिंह (I) बंगाल को 3 भागों में बाटा था।
  • मान सिंह (I) की पत्नी कनकावती ने अपने पुत्र जगत सिंह (I) की याद में  “जगत शिरोमणि मन्दिर” का निर्माण आमेर में करवाया था।
  • “जगत शिरोमणि मन्दिर” मंदिर को मीरा मंदिर भी कहते है। इस मंदिर में श्री कृष्ण की काले रंग की प्रतिमा लगे गयी थी। मीरा बाई चित्तौड़ में पूजा करती थी।
  • काबुल अभियान जो की 1581 में हुआ था यह  मुगलों द्वारा किया गया पहला और अंतिम अभियान था।
  • काबुल अभियान में सर्वाधिक राजपूतों ने भाग लिया था इस अभियान के उपरांत मान सिंह (I) को काबुल का सूबेदार बना दिया गया था।
  • मान सिंह (I) का राज कवि हापा बारहठ  था।
  • संत दादू दयाल मान सिंह (I) के दरबारी थे।
  • मान सिंह (I) द्वारा पुष्कर में मान महल का निर्माण करवाया गया था,जिसमें वर्तमान में आर टी डी सी का होटल संचालित है।
  • मान सिंह (I) की मृत्यु 1614 में ऐलिचपुर (अहमद नगर, महाराष्ट्र) में हुई थी।

ग्रंथों की रचना जो मान सिंह (I) के समय में हुई – 

  • जगन्नाथ द्वारा- मानसिंह कीर्ति मुक्तावली
  • मुररिदान द्वारा – मानप्रकाश
  • दलपत राज द्वारा- पत्र प्रशस्ति और पवन पश्चिम आदि ग्रंथों की रचना की गई

मिर्जा राजा जयसिंह (Mirza Raja Jaisingh 1621- 67 ई ) – 

  • मिर्ज़ा राजा जयसिंह आधिकारिक तौर पर सबसे लम्बे मुग़ल सेवक माने जाते है।
  • मिर्ज़ा राजा जयसिंह  ने 46 वर्षो तक मुग़ल सल्तनत की सेवा की थी।
  • मिर्ज़ा राजा जयसिंह  ने 3 मुग़ल शासकों के शासन काल में सेवा की थी,जिसमे पहला जहाँगीर , दूसरा शाहजहाँ और तीसरा औरंगजेब था।
  • मिर्ज़ा राजा जयसिंह को मिर्ज़ा की उपाधि शाहजहाँ ने दी थी।
  • मिर्ज़ा राजा जयसिंह के राजकवि बिहारी थे।
  • मिर्ज़ा राजा जयसिंह के दरबारी कवि बिहारी ने 1663 में बिहारी सतसई की रचना  की थी।
  • मिर्ज़ा राजा जयसिंह द्वारा इस पुस्तक के हर एक दोहे पर एक स्वर्ण मुद्रा दी जाती थी।
  • राजकवि बिहारी कवि के भांजे कुलपति मिश्र ने 52 ग्रंथो की रचना की थी।
  • दरबारी कवि राम कवि ने जय सिंह चरित्र लिखा था।
  • मिर्ज़ा राजा जयसिंह व औरंगजेब की मुलाकात मथुरा में हुई थी।
  • मिर्ज़ा राजा जयसिंह ने 11 जून 1665 में पुरंदर की संधि करायी थी।
  • पुरंदर की संधि शिवाजी औरऔरंगज़ेब के मध्य हुई थी।
  • पुरंदर की संधि में शिवाजी ने 35 में से 23 दुर्ग मुगलों को दे दिए थे।
  • पुरंदर की संधि के बाद शिवाजी  के पुत्र शम्भा जी को औरंगजेब द्वारा 5000 की मनसबदारी दी गयी थी।
  • पुरंदर की संधि के दौरान यूरोपियन इतिहासकार मनूची मौजूद था।
  • पुरंदर की संधि के दौरान वहाँ पर बर्नियर नामक यात्री उपस्थित थे।
  • इसके बाद शिवाजी को आगरा दीवान-ए- ख़ास में बुलाया गया था और इसी आगरा के किले में शिवाजी को कैद कर लिया गया था।
  • शिवाजी आगरा के इस राम सिंह हवेली से भाग जाते है।
  • मिर्ज़ा राजा जयसिंह औरंगाबाद में जयसिंहपुरा को बसाया था।
  • मिर्ज़ा राजा जयसिंह की मृत्यु बुरहानपुर में हुई थी।

बिशन सिंह (Bisan Singh 1689 – 1699) – 

सवाई जयसिंह द्वितीय (Sawai Jai Singh II 1699 – 1743 ई ) – 

  • सवाई जयसिंह का वास्तविक नाम विजय सिंह था।
  • सवाई जयसिंह ने 18 नवम्बर 1727 को जयपुर नगर बसाया था।
  • सवाई जयसिंह ने सबसे ज्यदा मुग़ल शासकों की सेवा की थी।
  • सवाई जयसिंह ने 7 मुग़ल शासकों की सेवा की थी। (औरंगज़ेब , बहादुर शाह (I),जहाँदर शाह, फरुर्खशियर, रफ़ी उरदरजात,रफ़ी उद्दौला, मुहम्मद शाह रंगीला)
  • सवाई की उपाधि जयसिंह को औरंगज़ेब ने दी थी।
  • इतिहासकारों ने सवाई जयसिंह को चाणक्य  की संज्ञा दी थी।
  • सवाई जयसिंह को “राजराजेश्वर राजाधिराज” की उपाधि मुहम्मद शाह रंगीला ने दी थी।
  • सवाई जयसिंह को मुगल सम्राट जहाँदर शाह द्वारा को तीन बार मालवा का सूबेदार नियुक्त किया गया था। सवाई जयसिंह 1713,1730,1732 में मालवा के सूबेदार रहे थे।
  • 1707 ई. में सवाई जयसिंह के शासनकाल में औरंगज़ेब की मृत्यु हुई थी।
  • 12 जून, 1707 ई. में सवाई जयसिंह के शासनकाल में  जजाऊ का युद्ध  ने हुआ था। जजाऊ का युद्ध औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद मुग़ल साम्राज्य पर उत्तराधिकार के लिए हुआ था।
  • औरंगजेब की मृत्य के बाद औरंगजेब के पुत्रों मुअज्जम (बहादुरशाह) और आजम  में सत्ता को लेकर संघर्ष हो गया जिसमें सवाई जयसिंह ने औरंगजेब  के दुसरे पुत्र  आजम का साथ दिया था।
  • इस संघर्ष में शहजादे मुअज्जम [बहादुरशाह(I)]  विजयी हुआ था।
  • मुअज्जम [बहादुरशाह(I)] सवाई जयसिंह  से क्रोधित होकर सवाई जयसिंह को आमेर के राज्य से हटा दिया तथा सवाई जयसिंह के छोटे भाई को आमेर का शासक बना दिया था।
  • मुअज्जम [बहादुरशाह(I)] ने आमेर का नाम  बदलकर “इस्लामाबाद /मोमिनाबाद” रखा था।
  • मुअज्जम [बहादुरशाह(I)] ने आमेर का फौजदार सैय्यद हुसैन खां को नियुक्त किया गया था।
  • पुनः आमेर प्राप्ति के लिए सवाई जयसिंह ने 3 मार्च 1707 ई.  में  “देबारी समझौता” किया था।
  • “देबारी समझौता” समझौता में आमेर , मेवाड़ , मारवाड़ तीनों सामिल हुए थे।
  • सवाई जयसिंह 1715 में पिलसुद का युद्ध लड़ा था। इस युद्ध में सवाई जयसिंह ने मराठों को हराया था।
  • सवाई जयसिंह में 18 नवम्बर 1727 में जयपुर शहर बसाया था और जयपुर को अपनी राजधानी बनाया था। (आधुनिक जयपुर के निर्माता मिर्ज़ा स्माइल को कहा जाता है।) [30 मार्च 1949 को जयपुर को सम्पूर्ण राजस्थान राज्य की राजधानी बनाया गया।]
  • जयपुर शहर की नीव पण्डित जगन्नाथ ने रखी थी।
  • जगन्नाथ सवाई जयसिंह के गुरु थे।
  • जयपुर शहर के शिल्पकार (आर्किटेक्ट)  विद्याधर भट्टाचार्य  थे।
  • जयपुर शहर में एक विद्याधर नगर भी है जो  विद्याधर भट्टाचार्य  की याद में ही बनाया गया था।
  • सवाई जयसिंह 1733 में  मंदसौर का युद्ध लड़ा था।मंदसौर  के युद्ध में मराठों ने सवाई जयसिंह को हर दिया था।
  • 17 जुलाई 1734 में “हुरडा सम्मलेन” हुआ था, इस सम्मलेन में सभी राजपूत राजा इक्कठा हुए थे। (हुरडा आज के भीलवाड़ा में पड़ता है।)
  • “हुरडा सम्मलेन” का मुख्य उद्देश्य था मराठाओं के आक्रमण से राजपूतों को बचाना था।”हुरडा सम्मलेन” की अध्यक्षता जगत सिंह (II) ने की थी।
  • यह “हुरडा सम्मलेन”  सफल नहीं हो पाया था। सवाई जयसिंह  की मराठों के साथ मध्यस्थता के कारण यह असफल रहा था।
  • सवाई जयसिंह  अंतिम हन्दू राजा थे जिन्होंने 1740 अश्वमेध यज्ञ कराया था। इस अश्वमेध यज्ञ के राजपुरोहित-पुण्डरीक रत्नाकर थे।अश्वमेध यज्ञ में दीप सिंह कुम्भाणी राजपूतो ने पकड़ा था।
  • सवाई जयसिंह ने 1718 – 1734 तक 5 सौर वैधशालाओ (जन्तर-मंतर) का निर्माण करवाया था। जो जयपुर , दिल्ली , उज्जैन , बनारस (वाराणसी) एवं मथुरा में स्थित है। दिल्ली की वैधशाला सबसे प्राचीन है, जयपुर की वैधशाला सबसे नवीन व सबसे बड़ी है।
  • सवाई जयसिंह ने ब्राह्मणों के विश्राम हेतु  जल महल का निर्माण करवाया था।
  • सवाई जयसिंह द्वारा विधवा पुनर्विवाह हेतु नियम बनाने का प्रयत्न किया था।
  • सवाई जयसिंह 1741 में  गंगवाना (जोधपुर) का युद्ध लड़ा था।गंगवाना (जोधपुर) के युद्ध में  सवाई जयसिंह ने अभय सिंह और बख्त सिंह को हराया था।
  • सवाई जयसिंह ने जयगढ़ दुर्ग में जयबाण तोप का निर्माण कराया था। जिसका प्रथम बार उपयोग का गोला चाकसू में गिरा था जहाँ पर गोलेरव तालाब बना था।
  • सवाई जयसिंह ने कल्कि महाराजा का मंदिर बनवाया था
  • सवाई जयसिंह ने जयपुर में गोविन्द देव जी का मंदिर बनवाया था।
  • सवाई जयसिंह ने ब्रजराज की उपाधि बदनसिंह को प्रदान की थी।
  • सवाई जयसिंह ने चंदमहल बनवाया था।
  • सवाई जयसिंह ने सिटी पैलेस बनवाया था।
  • सवाई जयसिंह ने नाहरगढ़ दुर्ग बनाया था।
  • जंतर-मंतर के प्रमुख यंत्रों में सम्राट यंत्र (विश्व की सबसे बड़ी सूर्य घड़ी ), नाड़ी वलय यंत्र, दिगंश यंत्र, भित्ति यंत्र, मिस्र यंत्र, राम यंत्र (ऊँचाई मापने का यन्त्र), जयप्रकाश यंत्र (मौसम से सम्बंधित जानकारी के लिए) आदि प्रमुख हैं।
  • ईश्वरी सिंह और माधो सिंह(I) के मध्य 1 मार्च – 2 मार्च 1747 को राजमहल (टोंक) का युद्ध हुआ था। यह युद्ध बनास नदी के किनारे हुआ था।इस युद्ध में ईश्वरी सिंह की जीत होती है।

बूंदी उत्तराधिकारी विवाद – 

  • सवाई जयसिंह की बहन अमरकुंवरी का विवाह बूंदीके राजा बुद्धसिंह के साथ हुआ था। अमरकुंवरी की कोई संतान नहीं थी तो सवाई जयसिंह ने करवड के जागीरदार सालिम सिंह के पुत्र दलैलसिंह को उत्तराधिकारी घोषित किया था।
  • सवाई जयसिंह ने अपनी पुत्री कृष्णाकुंवरी का विवाह किया था।
  • इसके बाद अमरकुंवरी की एक संतान होती है जिसका नाम उम्मेद सिंह था।
  • मराठे सर्वप्रथम बूंदी में आये थे।
  • अमरकुंवरी अपनी पुत्र को राजगद्दी में बैठाने के लिए मराठों की सहायता लेती है।
  • मल्हार राव होलकर व राणो जी अमरकुंवरी के बुलाने में राजस्थान आते है।
  • मल्हार राव होलकर  को अमरकुंवरी द्वारा राखी बाँध कर भाई बनाया जाता है।
  • मराठों के जाने के बाद में वापिस दलैलसिंह  शासक बनता है।
  • मराठों का प्रवेश रोकने के लिए सवाई जयसिंह ने जयपुर में नाहरगढ़ (जयपुर का मुकुट/सुदर्शनगढ़) दुर्ग का निर्माण कराया था।

ग्रंथों की रचना जो मिर्ज़ा राजा जयसिंह के समय में हुई –

  • जयसिंह कारिका – यह ग्रन्थ ज्योतिष पर आधारित है
  • जीजे मोहम्मद शाही – यह ग्रन्थ नक्षत्रों पर आधारित है

सवाई जयसिंह  के गुरु जगन्नाथ द्वारा लिखे गए ग्रन्थ- 

  • सम्राट सिद्धांत
  • सिद्धांत कोस्तुम्भ

ईश्वरी सिंह  ( Ishwari Singh 1743-50 ई ) – 

  • महाराजा सवाई जयसिंह  के पुत्र ईश्वरी  सिंह 1743 ई. में जयपुर के  शासक बने थे।
  • 1747 ई. में हुए  राजमहल (टोंक) के युद्ध में ईश्वरी सिंह विजयी रहे थे।
  • ईश्वरी सिंह का सेनापति हरगोविंद नाटाणी था।
  • 1749 ईस्वी में ईश्वरी सिंह ने जयपुर के त्रिपोलिया बाजार में  60 फीट ऊंची “ईसरलाट (सरगासूली)” बनवाई थी। इसमें 7 खण्ड है। यह ईसरलाट (सरगासूली) जयपुर के त्रिपोलिया के पीछे है।
  • ईश्वरी सिंह का आदमकद चित्र साहिब राम ने बनाया था।
  • ईश्वरी सिंह को जागृत देव व भोमिया देव के नाम से भी जानते है।
  • कृष्ण कवि ने ईश्वरीविलास नामक ग्रन्थ लिखा था।
  • ईश्वरी  सिंह के राजा बनने से क्रोधित होक इनके छोटे भाई माधोसिंह (I) ने बुंदी और मराठो की संयुक्त सेना की सहायता से जयपुर पर आक्रमण कर दिया था।इस आक्रमण को ही “बगरू का युद्ध” कहा गया है। इस युद्ध में माधोसिंह (I)मराठों की तरफ़ से मल्हार राव होल्कार, कोटा के दुर्जन साल को व बूंदी के उम्मेद सिंह को लेकर आते है।इस युद्ध को माधोसिंह (I)जीत जाते है।
  • “बगरू का युद्ध” माधोसिंह (I)के जीतने के बाद मल्हार राव होल्कर ईश्वरी सिंह और माधोसिंह (I) के बीच समझोता करवाते है,लेकिन तय कर समय में न दे पाने के कारण 12 दिसंबर, 1750 ईश्वरीसिंह ने आत्महत्या कर ली थी।
  • ईश्वरी  सिंह अकेले जयपुर के इसे राजा है जिनकी छतरी इश्वरलाट के पास है। अन्य सभी राजाओं की छतरी “गैटोर” में है।
  • ईश्वरी  सिंह की छतरी सिटी पैलेस में है।

माधोसिंह प्रथम (I)(Madhu Singh (I) 1750-68 ई )  – 

  • माधों सिंह (I) के समय भारत की उत्तरी पश्चमी सीमा पर अहमद शाह अब्दाली ने आक्रमण किया था।
  • इस आक्रमण के समय मुग़ल शासक अहमद शाह था।
  • जयपुर में  मोती डूंगरी के महलों का निर्माण माधों सिंह (I)ने करवाया था।
  • शील की डूंगरी पर शीतला माता का मंदिर का निर्माण करवाया था।
  • 1761 में माधों सिंह (I) और  शत्रुसाल के मध्य भटवाडा का युद्ध हुआ था। शत्रुसाल की कोटा सेना का नेतृत्व झाला जालिम सिंह द्वारा किया गया था। भटवाडा के युद्ध में शत्रुसाल की जीत होती है। यह युद्ध बूंदी की सीमा को लेकर हुए विवाद के कारण हुआ था।
  • 1763 में माधों सिंह (I) ने सवाई माधोपुर नगर बसाया था।
  • 1767 में  माधों सिंह (I)और भरतपुर के राजा जवाहर सिंह के मध्य मावला-मंडोली का युद्ध हुआ था। इस युद्ध में माधों सिंह (I) जीत जाते है।जयपुर के गुरु सहाय व हरसहाय मावला-मंडोली के युद्ध में मारे गये थे।

सवाई प्रताप सिंह (Sawai Pratap Singh 1778-1803 ई ) – 

  • पृथ्वीराज कछवाहा (II) की मृत्यु के बाद प्रताप सिंह गद्दी में बैठे थे।
  • चित्रकार साहिबराम ने प्रताप सिंह के समय आदमकद चित्र बनाये थे। जिनमे प्रमुख चित्र ईश्वरी सिंह का था। प्रताप सिंह का समय जयपुर चित्रकला का स्वर्ण काल था।
  • प्रताप सिंह के काव्य गुरु गणपति भारती थे।
  • प्रताप सिंह दरबार में संगीत गुरु चांद खां थे। चांद खां को प्रताप सिंह द्वारा बुद्धप्रकाश की उपाधि दी थी। चांद खां ने “स्वर संगीत” नामक एक ग्रन्थ लिखा था।
  • 1787 ई.  में प्रतापसिंह के शासनकाल में तुंगा के युद्ध में जयपुर एवं जोधपुर राज्य (विजय सिंह) की संयुक्त सेना ने मराठाओं (महादजी सिंधिया/ माधव राज सिंधिया) को हराया था।प्रताप सिंह द्वारा 63 लाख रुपये का वादा पूरा नहीं किया जाना ही इस युद्ध का कारण बना था। इसी युद्ध के साथ यह मराठाओं की पहली हार भी थी। इस हार के बाद महादजी सिंधिया ने लालसौट में यह कहा था की “यदि मैं जीवित रहा तो जयपुर को धुल में मिला दूंगा”।प्रतापसिंह ने तुंगा के मैदान में सिंधिया को हराया था।
  • प्रतापसिंह ब्रजनिधि नाम से कविताएँ लिखा करते थे।
  • प्रतापसिंह को “ब्रजनिधि” उपाधि दी गयी थी।
  • प्रतापसिंह के समय में ही महाराष्ट्र से तमाशा लोक नाट्य शैली आयी थी।
  • प्रतापसिंह के दरबार में 22 साहित्यकार थे, जिनको “गंधर्व बाईसी” कहा जाता था।
  • प्रतापसिंह ने राधा गोविन्द संगीतसार नामक ग्रन्थ लिखा था।जिसमे मुख्य योगदान देवऋषि ब्रजपाल का था।
  • प्रतापसिंह ने जयपुर शहर में एक संगीत सम्मेलन का आयोजन करवाया जिसके अध्यक्ष देवऋषि ब्रजपाल भट्ट थे।
  • इसी संगीत सम्मेलन में राधा गोविंद संगीत सार नामक ग्रंथ की रचना की गई थी।
  • 1790 में प्रतापसिंह  और महादजी सिंधिया के मध्य पाटन का युद्ध हुआ था। इस युद्ध में मराठा सेना का नेतृत्व फ्रांसिस”डी-बोई” ने किया था।इस युद्ध में महादजी सिंधिया विजयी रहे थे।
  • डी-बोई की कब्र मेड़ता (नागौर) में है।मेड़ता को मीरा की नगरी कहा जाता है।
  • 1790 में मेड़ता का युद्ध हुआ था।
  • 1799 ई. में प्रतापसिंह ने जयपुर में हवामहल का निर्माण करवाया था। हवा महल 5 मंजिल ऊँचा महल है।इसी हवा महल को शरद/प्रताप मंदिर,रतन मंदिर,विचित्र मंदिर,प्रकाश मंदिर,हवा मंदिर कहा जाता है।हवा महल को राजकीय संग्रालय में परिवर्तित कर दिया गया जिसका आन्तरिक प्रवेश द्वार आनन्द पोल कहा जाता है। हवा महल के निर्माण करने का कारण यह था की राज दरबार की रानियाँ  बहार न जाकर सभी त्यौहार जैसे तीज की सवारी,गणगौर महोत्सव,जन्माष्टमी आदि यही से देख सके।
  • इस हवा महल की आकृति प्रतापसिंह के आराध्य देवता श्रीकृष्ण के मुकुट के समान बनाई गयी थी।हवा महल के अंदर 935 खिड़कियाँ व 365 जाली झरोखे है।
  • हवा महल के शिल्पकार लाल चंद थे।
  • 1800 में मालपुरा का युद्ध हुआ था।यह युद्ध भी  प्रतापसिंह और मराठों के मध्य हुआ था।इस युद्ध में भी मराठे जीते थे जिसके बाद प्रताप सिंह ने मराठों के साथ समझोता कर लिया था।
  • प्रतापसिंह के समय अंग्रेज जार्ज थॉमस ने आक्रमण किया था।
  • प्रतापसिंह को जयपुर के इतिहास में कला संगीत एवं साहित्य का आश्रयदाता माना जाता है।

जगत सिंह द्वितीय (II) ( Jagat Singh II 1803-18 ई ) – 

  • जगत सिंह द्वितीय के राजा बनने के पश्चात् मेवाड़ (उदयपुर) के राजा महाराणा भीमसिंह की पुत्री कृष्णा कुमारी को लेकर जयपुर (जगत सिंह द्वितीय) और मारवाड़ (जोधपुर) (राव मानसिंह) के मध्य “गींगोली” का युद्ध 1807 में परबतसर (नागौर) में हुआ था। [ मेवाड़ (उदयपुर) के राजा महाराणा भीमसिंह ने अपनी पुत्री कृष्णा कुमारी का विवाह मारवाड़ के राजा राव भीमसिंह से तय किया था।इस ख़बर को सुनते ही राव भीमसिंह की खुशी से मृत्यु हो गयी थी।इसके पश्चात् राजा महाराणा भीमसिंह अपनी पुत्री का विवाह जयसिंह के साथ तय कर देते है। जिसके बाद राव मानसिंह और जगत सिंह द्वितीय का युद्ध हुआ था। ]
  • गींगोली के युद्ध में जगत सिंह द्वितीय की सेना विजयी रही थी।
  • कृष्णा कुमारी को अमीर खां पिण्डारी ने जहर दिया था।
  • अमीर खां पिण्डारी को टोंक का संस्थापक कहा जाता है। टोंक  को नवाबों की नगरी कहा जाता है।
  • जगत सिंह द्वितीय की प्रेमिका रसकपूर नामक वेश्या के कारण जगत सिंह द्वितीय को जयपुर का बदनाम शासक भी कहा जाता है।
  • रसकपूर  को नाहरगढ़ दुर्ग में कैद किया गया था।
  • सेना भर्ती व वेतन के लिए जगत सिंह द्वितीय ने “बख्शी” नामक अधिकारी की नियुक्ति की थी।
  • अप्रैल 1818 में जगत सिंह द्वितीय ने मराठाओं एवं पिण्डारियो के आक्रमण से परेशान होकर ईस्ट इंडिया कम्पनी से सहायक संधि कर ली थी।
  • 21 दिसम्बर 1818 को जगत सिंह द्वितीय देहांत हो गया था।

जयसिंह तृतीय  (Jai Singh (III)1818- 1835 ई) – 

  • जयसिंह तृतीय के समय जयपुर की जनता ने “कैप्टन ब्लैक” की हत्या की थी
  • जयसिंह तृतीय की धाय माँ “रूपा बढ़ारण” को जयगढ़ दुर्गमें कैद किया गया था।

रामसिंह द्वितीय (II)  ( Ram Singh (II) 1835-1880 ई ) –

  • रामसिंह द्वितीय को अंग्रेजो का लाड़ला कहा जाता है।
  • रामसिंह द्वितीय मात्र 16 महीने की आयु में जयपुर के राजा बने थे।
  • रामसिंह द्वितीय के वयस्क होने तक जयपुर का प्रशासन अंग्रेजो ने सम्भाला था।यहाँ शासन व्यवस्था “लुडलो” ने संभाली थी।
  • ईस्ट इंडिया कंपनी की तरफ से 1843 में लार्ड लुडलो प्रशासक बनकर आये थे।
  • लार्ड लुडलो ने सामाजिक कुरीतियाँ  जैसे सती प्रथा , दास प्रथा , कन्या वध एवं दहेज प्रथा पर रोक लगाई थी।
  • 1857 की क्रांति में रामसिंह द्वितीय ने अपना पूरा समर्थन अंग्रेजों को दिया था तथा उनकी हर प्रकार से सहायता की थी।राजस्थान की एकमात्र रियासत जयपुर थी जिसमें राजा के साथ स्थानीय जनता ने भी अंग्रेजों का साथ दिया था।
  • 1857 की क्रांति में अंग्रेजों की सहायता करने के कारण रामसिंह को “सितार-ए-हिंद” की उपाधि व “कोटपूतली” परगना उपहार स्वरूप दिया  था।
  • रामसिंह ने जयपुर को आधुनिक बनाया था।
  • 1857 में “मदरसा-ए-हुनरी” की स्थापना की थी।
  • मेयो कॉलेज, मदरसा-ए-हुनरी (राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स), महाराजा कॉलेज, संस्कृत कॉलेज, रामगढ़ बांध,रामबाग पैलेस,रामनिवास बाग,जयपुर जन्तुआलय, रामनिवास थियेटर (राजस्थान का सबसे प्राचीन थियेटर) रामसिंह द्वितीय द्वारा बनाया गया था।
  • 1876 में रामसिंह द्वितीय ने प्रिंस ऑफ वेल्स की यात्रा की स्मृति में अल्बर्ट हाल बनवाया था।अल्बर्ट हाल भिति चित्रों के लिए प्रसिद्ध है।(शेखाघाटी की हवेलियाँ भी भिति चित्रों के लिए प्रसिद्ध है।)
  • अल्बर्ट हॉल का शिलान्यास प्रिंस अल्बर्ट एडवर्ड सप्तम प्रिंस ऑफ वेल्स द्वारा किया गया था।
  • अल्बर्ट हॉल के वास्तुकार सर स्टीवन जैकब थे।
  • 1876 ईस्वी में रामसिंह द्वितीय ने “प्रिंस ऑफ़ वेल्स अल्बर्ट” के आगमन की खुशी में पुरे जयपुर को गेरुआ रंग से रंगवाया था।जयपुर के लिए ब्रिटिश पत्रकार स्टेनले रीड ने “द रॉयल टाउन ऑफ़ इंडिया” में जयपुर के लिए “पिंक सिटी” शब्द का प्रयोग किया था।
  • रामसिंह को जयपुर शहर का समाज सुधारक शासक कहा जाता है।
  • रामसिंह ने जयपुर में “मदरसा हुनरी” (महाराजा स्कूल ऑफ़ आर्ट) का निर्माण करवाया था।
  • “मदरसा हुनरी” (महाराजा स्कूल ऑफ़ आर्ट) का दूसरा नाम “तस्वीरा रो कारखानों” था।
  • रामसिंह द्वितीय ने राज्य का प्रथम चिड़िया घर जयपुर में बनाया था।
  • रामसिंह द्वितीय ने जयपुर में रामगढ़ बाँध का निर्माण कराया था।
  • रामसिंह द्वितीय ने राम बाग बनवाया था।
  • उत्तर भारत का प्रथम पारसी सिनेमाघर रामप्रकाश थियेटर रामसिंह द्वितीय ने बनवाया था।
  • राम सिंह द्वितीय ने ऊंट पर बैठकर वेश बदलकर जनता के बीच जाकर उनके दुःख दर्द का पता लगया करते थे।
  • जयपुर में चाँदी की टकसाल स्थापित की थी।
  • राम सिंह द्वितीय ने कालू व चूड़ामण को ब्लू पॉटरीकला सीखने के लिए दिल्ली भोला ब्राह्मण के पास भेजा था।
  • ब्लू पॉटरी कला का स्वर्णकाल राम सिंह द्वितीय का काल था।
  • राम सिंह द्वितीय दीवानी एवं फौजदारी  न्यायलयों की स्थापना की थी।

माधोसिंह द्वितीय (II) (Madhosinh (II) 1880-1922 ई ) – 

  • माधोसिंह द्वितीय को बब्बर शेर के नाम से जाना जाता था।
  • माधोसिंह द्वितीय का वास्तविक नाम कायम सिंह था।
  • माधोसिंह द्वितीय प्रिंस अलबर्ट एडवर्ड सप्तम के राज्य अभिषेक में भाग लेने इंग्लैंड गए थे।
  • माधोसिंह द्वितीय अपनी इस इंग्लैंड यात्रा के दौरान चांदी के दो पात्रों में गंगाजल भरकर ले गए जो आज भी सिटी पैलेस में मौजूद है।
  • माधोसिंह द्वितीय अपनी नौ रानियों के लिए एक जैसे “नौ महल” नाहरगढ़ दुर्ग में बनवाए थे।
  • माधोसिंह द्वितीय ने मुबारक महल का निर्माण करवाया था।
  • माधोसिंह द्वितीय ने पंडित मदनमोहन मालवीय जी को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय हेतु पाँच लाख रूपये भेंट स्वरूप दिए थे।
  • 1903 में झुन्झुनू व सवाई माधोंपुरके मध्य रेल चलवाई थी।
  • 1904 में डाक टिकट व पोस्टकार्ड की शुरुवात की थी।
  • माधोसिंह द्वितीय ने वृन्दावन के अंदर माधव बिहारी का मंदिर बनवाया था।

मानसिंह द्वितीय(II) ( Mansingh(II) 1922-49 ई ) – 

  • मानसिंह द्वितीय को 30 मार्च 1949 के पश्चात आजीवन राजप्रमुख बनाया गया था।
  • मानसिंह द्वितीय द्वारा राजस्थान के प्रथम उच्च न्यायालय का उद्घाटन किया गया था।
  • मानसिंह द्वितीय की गायत्री देवी पत्नी लोकसभा में जाने वाली प्रथम महिला सांसद थी जो भारी मतों से विजयी हुई थी। गिनिजबुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में  गायत्री देवी का नाम दर्ज है।
  • गायत्री देवी कुच विहार (पश्चिम बंगाल) से थी।
  • मानसिंह द्वितीय की पत्नी महारानी गायत्री देवी ने जयपुर में राजस्थान के पहले महिला कन्या विश्वविद्यालय महारानी गायत्री देवी गर्ल्स स्कूल (जयपुर) की स्थापना की थी।
  • महारानी गायत्री देवी (जयपुर)  राजस्थान की प्रथम महिला लोकसभा सदस्य थी।
  • महारानी गायत्री देवी ने अपनी आत्मकथा भी लिखी थी जिसका  शीर्षक  “एक राजकुमारी की यादें” (Princess Remember) है।
  • मानसिंह द्वितीय के प्रधानमंत्री मिर्ज़ा स्माइल था। मिर्ज़ा स्माइल को आधुनिक जयपुर का निर्माता माना जाता है जिनके नाम पर एम्.आई. रोड बनी है।
  • मानसिंह द्वितीय स्पेन के राजदूत रहे थे।
  • मानसिंह द्वितीय कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पढाई करते थे।
  • मानसिंह द्वितीय पोलो के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी थे।
  • मानसिंह द्वितीय के नाम पर एस.एम्.एस. अस्पताल व एस.एम्.एस. स्टेडियम बनाया गया है।
  • मानसिंह द्वितीय की मृत्यु पोलो खेलते हुए लंदन में हुई थी।
  • मानसिंह द्वितीय ने गायत्री माता के लिए मोती डूंगरी में तख़्त-ए-शाही महल बनवाए थे।
  • राजस्व मंडल की स्थापना 1942 में मानसिंह द्वितीय के समय में हुई थी।
  • 2009 में गायत्री देवी का निधन हो गया था।

भवानी सिंह ( Bhavani Singh) – 

  • भवानी सिंह कछवाहा कछवाहा वंश के अंतिम शासक थे।
  • भवानी सिंह  का निधन 16 अप्रैल 2011 को हुआ था।

 

Categories: Rajasthan

error: Content is protected !!