राजस्थान का इतिहास (कछवाहा  वंश) – भाग 1 

[History of Rajasthan (Kachhwaha Dynasty) – Part 1]


कछवाहा राजवंश (Kachhwaha Dynasty) – 

भगवान् राम के दो पुत्र थे। एक का नाम लव तथा दुसरे का नाम कुश था।लव के नाम पर पकिस्तान में पड़ने वाला शहर लाहौर का नाम पढ़ा था। कुश के वंशज थे कुशवाह जो आगे चल के कछवाहा हुए।कछवाहा राजवंश का राज्य था ढुंढाड़  क्षेत्र। ढुंढाड़  क्षेत्र राजस्थान के उत्तर पूर्व क्षेत्र में स्थित है।

जयपुर, सीकर के आसपास  के क्षेत्र को ढुंढाड़ कहते है इस क्षेत्र में कछवाहा राजवंश का शासन था।

कछवाहा राजवंश के संस्थापक – 

कछवाहा राजवंश के संस्थापक दूल्हराय (तेजकरण) थे। दूल्हराय (तेजकरण) ने 1137 में दौसा के मीणाओं और बड़गुर्जरों को हराया था और दौसा को अपनी प्रारंभिक राजधानी बनाया था। दूल्हराय (तेजकरण) ने दौसा के रामगढ़ में कछवाहों की कुल देवी “जमूवाय माता” का मंदिर बनाया था।

कछवाहा राजवंश की राजधानी का क्रम –

  • दौसा
  • रामगढ़
  • आमेर
  • जयपुर

कछवाहा वंश की कुलदेवी “जमूवाय माता” है और कछवाहों की आराध्य देवी “शीला माता” है।

शीला माता का मंदिर मान सिंह प्रथम ने बनाया था।

कछवाहा  राजवंश के प्रमुख शासक – 

कोकिल देव (Kokil Dev) – 

  • 1207 में कोकिल देव ने आमेर के मीणाओं को हरा के आमेर को अपनी राजधानी बनाया था।
  • आमेर 1727 तक कछवाहा वंश की राजधानी रही थी।
  • कोकिल देव ने अम्बिकेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया था।
  • 1727 में जब सवाई जयसिंह (द्वितीय) ने जयपुर बसाया तो तब कछवाहा वंश की राजधानी जयपुर हुई।
  • 520 साल तक कछवाहा वंश की राजधानी आमेर थी।
  • कोकिल देव ने बैराठ व भेड़ को जीता था।
  • पंचमदेव कोकिल देव का पुत्र था जो की पृथ्वीराज चौहान (III) का सामंत था।
  • पंचमदेव तराईन के दुसरे युद्ध में मारा गया था।

रामदेव (Ram Dev) – 

  • रामदेव ने कदमी महल बनाया था।
  • कदमी महल में ही कछवाहा वंश का राजतिलक होता था।
  • कछवाहों का राजतिलक मीणा जाती करती थी।
  • कदमी महल 1237 में आमेर दुर्ग में बनाया गया था।

पृथ्वीराज (Prathavi Raj) –

  • पृथ्वीराज ने 1527 में  खानवा के युद्ध में राणा सांगा की सहायता की थी।
  • राणा सांगा और बाबर का खानवा का युद्ध हुआ था जिसमे राणा सांगा की सहायता पुरे राजस्थान के सभी राजपूतो ने की थी।
  • पृथ्वीराज ने आमेर को 12 भागों में बाटा था।
  • पृथ्वीराज ने अपने राज्य को अपने 12 पुत्रों में विभाजित कर बारह कोटड़ी व्यवस्था प्रारंभ की थी।
  • बाला बाई जो की पृथ्वीराज की रानी  थी उन्होंने आमेर में लक्ष्मी नारायण मंदिर का निर्माण करवाया था।
  • पृथ्वीराज के गुरु चतुर नाथ थे।
  • पृथ्वीराज रामानंदी संप्रदाय के संत कृष्णदास पयहारी के अनुयाई थे।
  • पृथ्वीराज के पुत्र सांगा ने एक कस्बा बसाया था जिसका नाम सांगानेर रखा गया था।
  • इसी सांगानेर क्षेत्र को ही मोजमाबाद के नाम से भी जाना जाता था।

भारमल / बिहारीमल (Bharmal/ Biharimal ) – 

  • भारमल ने 1547 से 1573 तक आमेर के शासक रहे थे।
  • भारमल राजपूतों में पहले राजा थे जिन्होंने 1562 में सांगानेर में अकबर से मिले और अकबर की आधिनता स्वीकारी थी।
  • 1556 ई. में भारमल मजनू खां की सहायता से अकबर से दिल्ली में मुलाकात हुई थी।
  • 6 फ़रवरी 1562 में साभंरझील में भारमल ने अपनी पुत्री हरखा बाई (जोधा बाई) का विवाह कराया था।
  • अकबर से भारमल को 5000 की मनसबदारी मिली थी। (मनसबदारी राजा द्वारा दिया गया एक पद था ,जो स्तर के हिसाब से दिया जाता था। 5000 और 7000 मनसबदारी के सबसे बड़े पद थे।)
  • अकबर ने भारमल को अमीर-उल-उमरा की उपाधि दी थी।

भगवंत दस/ भगवान दास (Bhagwant Das/ Bhagwaan Das) – 

  • भगवंत दस भारमल के पुत्र थे।
  • भगवंत दस का कार्यकाल 1573 से 1589 तक रहा था।
  • भगवान दास प्रथम हिन्दू शासक जिनको अकबर ने राजा की उपाधि , ध्वज व नगाड़ा देकर सम्मानित किया था।
  • अकबर द्वारा चितौड़ पर हमला किये जाने में उदय सिंह चितौड़ का तीसरा साका हुआ तब अकबर का साथ भगवंत दास ने दिया था।
  • महाराणा प्रताप को समझाने के तीसरे प्रमुख दल के नेता थे भगवंत दास।
  • भगवंत दास अपने बेटे मान सिंह के समझाने के बाद तीसरी बार महाराणा प्रताप को समझाने गए थे।
  • भगवंत दास ने अपनी पुत्री मानबाई का विवाह जहाँगीर से 13 फ़रवरी 1585 में किया था।
  • जहाँगीर से लाहौर में विवाह होने के बाद भगवंत दस की पुत्री को  “सुल्ताना मस्ताना” के नाम से जाना जाने लगा था।
  • खुसरों मानबाई और जहाँगीर का पुत्र था।
  • जहाँगीर ने सिखों के पाचवें गुरु अर्जुन देव की हत्या करवाई थी।
  • 6 मई 1604 को मानबाई ने अफीम खा कर आत्महत्या कर ली थी।
  • खुसरों को लाहौर में फांसी दी जाती है।
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