राजस्थान का इतिहास (जाट वंश)


History of Rajasthan (Jaat Dynasty)


जाट राजवंश की उत्पत्ति –

माना जाता है की जाट राजवंश की उत्पत्ति भगवान शिव की जटाओं से हुई थी। ज्येष्ठ शब्द से जाट शब्द की उत्पत्ति हुई है। जाट वंश के लोग खुद को लक्ष्मण जी का वंशज मानते है। जाट वंश के कुल देवता लक्ष्मण है।

जाट राजवंश का उदय औरंगज़ेब के समय में हुआ था। जाट राजवंश का क्षेत्र को ब्रज में पड़ता है इसलिए जाट राजवंश को ब्रजराज की उपाधि मिली थी।

जाट राजवंश के प्रमुख नेता गोकुला थे। गोकुला औरंगज़ेब की नीतियों के विरुद्ध खड़े हुए थे। औरंगज़ेब ने मंदिर, मूर्ति तुड़वा दी थी। औरंगज़ेब ने जबरन लोगो का धर्म परिवर्तन भी कराया था।

औरंगज़ेब ने ही सिक्खों के नौवें गुरु तेगबहादुर जी की हत्या करवाई थी। गोकुला तिलपत के ज़मीदार थे। औरंगज़ेब ने हिन्दुओं से लेने वाला राजनीति कर (जजिया कर) वापिस लगा दिया था। 1666 में गोकुला ने तिलपत में मुगलों की सेना को हराया था।

इसके पश्चात गोकुला महावन क्षेत्र में जाते है, जहाँ गोकुला शक्ति संग्रह करते है। शक्ति संग्रह करते हुए औरंगज़ेब हुसैन अली खां को सेना का नेतृत्व देता है और गोकुला को गिरफ्तार करने भेज देता है।

गोकुला की गरफ्तारी के बाद औरंगज़ेब गोकुला को जबरन इस्लाम कबूल करने को मजबूर करता है, परन्तु गोकुला इस्लाम कबूल नहीं करते है। इसके पश्चात 1 जनवरी 1670 को गोकुला को टुकड़ो में काट कर आगरा किले के बाहर फेक दिया गया था।

गोकुला के बाद जाटों के नेता बने भाज्जा। भाज्जा के सात पुत्र थे। जिनके नाम निम्न है – राजा राम, प्रताप सिंह, भाव सिंह, सूपा, मेदू, गुमान सिंह, चुडामल जाट। भुज्जा अपने बेटे भाव सिंह के साथ मुगलों से लड़ाई में मारे गये थे।

भुज्जा की मृत्यु के बाद जाटों के नेता बने राजा राम। राजा राम ने 1688 में अकबर के मकबरे को लूटा था। राजा राम ने अकबर की कब्र को खोद अकबर की हड्डियों को निकल कर जला दिया था।

जाट राजवंश के प्रमुख शासक –

चूड़ामन जाट(1688-1722 ई) –

  • राजा राम के बाद चुडामल जाट वंश के प्रथम शासक बने थे। चुडामल जाट को ही जाट वंश का संस्थापक कहा जाता है।
  • 1695 में चुडामल ने थून का किला बनवाया था व इसे अपनी राजधानी बनाया था।
  • औरंगज़ेब ने बिसन सिंह को चुडामल के विरुद्ध भेजा था ताकि चुडामल का दमन कर लिया जाये या चुडामल जाट को बंदी बना लिया जाये। बिसन सिंह इस कार्य को करने में असफ़ल रहे थे।
  • 1707 में चुडामल औरंगज़ेब के पुत्र आज़म शाह की सेना में हमला कर उसके कैंप से सम्पूर्ण सम्पति लूट ली थी।
  • इसके बाद चुडामल 1707 में ही औरंगज़ेब के दुसरे पुत्र मुअज्ज़म के पास जाकर मुअज्ज़म की सत्ता को स्वीकार कर लिया था।
  • चुडामल को मुअज्ज़म द्वारा आगरा – दिल्ली मार्ग में नाकेदारी का काम दिया था।
  • चुडामल कुछ दिन काम करने के बाद लूट-पाट कर वहाँ से वापिस आ गये थे।
  • इसके पश्चात चुडामल को बारामूला – शिकंदारा के मार्ग में नाकेदारी का काम दिया था, यहाँ भी चुडामल लूट-पाट कर वहाँ से वापिस आ गये थे।
  • 1722 में चुडामल ने ग्रह कलेश के कारण जहर खा कर आत्महत्या कर ली थी।
  • चुडामल की मृत्यु के बाद बदन सिंह ने 23 नवंबर, 1722 को सवाई जय सिंह की सहायता से थून किले में आक्रमण कर दिया तथा यहाँ से चुडामल के दोनों पुत्रों को भगा कर स्वंय शासक बन गया था।
  • चुडामल के दोनों पुत्रों अतिराम और भावसिंह को जोधपुर में अजीत सिंह ने शरण दी थी।

बदनसिंह (1722-56 ई) –

  • बदन सिंह स्वंय को जयपुर के ठाकुर मानते थे।
  • बदन सिंह ने 1722 में भरतपुर नामक नवीन रियासत का निर्माण किया था।
  • सवाई जयसिंह ने बदन सिंह को डीग परगने की जागीरदारी भी दी थी। (डीग भरतपुर क्षेत्र में आता है।)
  • बदनसिंह ने जलमहलों को बनवाया था।
  • बदनसिंह ने डीग, कुम्हेर व भरतपुर में नये किले बनवाये थे।
  • 1726 में बदन सिंह ने बैर के किले का निर्माण कराया था।
  • सवाई जयसिंह ने बदन सिंह को ब्रजराज की उपाधि दी थी।
  • बदन सिंह को जाट राजवंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
  • 1734 में बदन सिंह की आखों की रौशनी कम होने के कारण अपना राज-पाट अपने पुत्र सूरजमल जाट को सौप देते है।

सूरजमल (1756-63 ई) –

  • सूरजमल ने 1733 में भरतपुर में लोहगढ़ दुर्ग बनाया था।
  • लोहगढ़ दुर्ग पुरे भारत में एक मात्र ऐसा दुर्ग है जिसे कोई भी नहीं जीत पाया है।
  • लोहगढ़ दुर्ग में दो विजय स्तंभ बनाये गये है,पहला बुर्ज है जौहर बुर्ज जो दिल्ली विजय में बनाया गया था तथा दूसरा बुर्ज है फ़तेह बुर्ज जो अंग्रेजों पर विजय में बनाया गया था।
  • पिता बदन सिंह की मृत्यु के पश्चात 7 जून 1756 को सूरजमल का राजभिषेक हुआ था।
  • सूरजमल के शासनकाल में उनके राज्य में आगरा, मथुरा, मेरठ, अलीगढ़ आदि सम्मिलित थे।
  • सूरजमल को बुद्धिमता व राजनीतिक कुशलता के कारण जाट समुदाय का प्लेटो कहा जाता है।
  • 1754 ई. में मराठा नेता होल्कर के कुम्हेर आक्रमण किया परन्तु सूरजमल ने इस आक्रमण को विफल किया था।
  • सूरजमल के समय अहमद शाह दिल्ली का सुलतान था।
  • सूरजमल ने अहमद शाह के समय दिल्ली लुटी थी।
  • अहमद शाह के समय एक लड़की को दिल्ली में जिन्दा जला दिया गया था,जिससे क्रोधित होकर उस लड़की की माँ सूरजमल के पास सहायता मागने आती है। इसके पश्चात सूरजमल अहमद शाह के खिलाफ़ खड़े हो जाते है।
  • 1760 में सूरजमल की सेना और सदा शिव भाव (पेशवा बालाजी बाजी रावके भाई) की सेना मिल के अहमद शाह अब्दाली को पराजित कर दिया था।
  • 14 जनवरी 1761 को हुए पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों की सेना व अहमद शाह की सेना के मध्य हुआ था। इस युद्ध में
  • सूरजमल मराठों का साथ नहीं देते है।
  • पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों को हार का सामना करना पड़ता है।
  • युद्ध में हरने के बाद सूरजमल मराठों को अपने राज्य में शरण देते है व वापिस जाने के लिए रूपये तथा रसद दिया था।
  • 12 जून 1761 को सूरजमल ने आगरा के किले पर अपना अधिकार कर लिया था।
  • सूरजमल ने गोपाल भवन, नंद भवन, केशव भवन, सावन भादौ भवन आदि जलमहलों का निर्माण कराया था।
  • 25 दिसम्बर, 1763 को गाजियाबाद और दिल्ली के मध्य हिंडन नदी के तट पर सूरजमल की मृत्यु हो गयी थी।
  • सूरजमल की युद्धों व वीरता का वर्णन करते हुए सूदन कवि ने ‘सुजान चरित्र’नामक रचना की थी।

जवाहर सिंह –

  • सूरजमल के पश्चात उनके पुत्र जवाहर सिंह भरतपुर के शासक बने था।
  • जवाहर सिंह ने दिल्ली में आक्रमण किया था तथा उसे जीत कर लाल किले के दरवाजे को लाकर भरतपुर के दुर्ग में लगवाया था।

रणजीत सिंह (1777-1808 ई.) –

  • 1803 ई. में जसवंत राय होल्कर ने भरतपुर दुर्ग में आकर शरण ली थी।
  • 1803 ई. में जसवंत राय होल्कर को गिरफ्तार करने हेतु लार्ड लेक के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने लोहगढ़ दुर्ग पर आक्रमण कर दिया था परन्तु अंग्रेजों को हार का सामना करना पड़ा था।
  • 29 सितम्बर, 1803 ई. को रणजीत सिंह ने ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ संधि कर ली थी।
  • रणजीत सिंह अंग्रेजों को हराने वाले एक मात्र राजा थे।
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