राजस्थान का इतिहास (मेवाड़ का गुहिल वंश)


History of Rajasthan (Guhil Dynasty of Mewar)


मेवाड़ राजवंश राजस्थान का सबसे प्राचीन राजवंश हैं। मेवाड़ राजवंश में दो राजवंशों ने शासन किया था। प्रथम राजवंश गुहिल वंश जिसे गहलोत वंश व गुहिलोत वंश भी कहा गया हैं। गुहिल वंश के संथापक गुहादित्य थे। द्वितीय राजवंश सिसोदिया वंश था। सिसोदिया वंश के संस्थापक राणा हमीर थे।

मेवाड़ का उद्दारक राणा हमीर , भामाशाह व महाराणा प्रताप को कहा जाता हैं। मेवाड़ को प्राचीनकाल में मेदपाट , प्राग्वाट , शिविजनपद कहा जाता था। शिविजनपद की राजधानी मध्यमिका थी। मध्यमिका को वर्तमान में नगरी कहा जाता है। नगरी चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित है। नगरी सभ्यता चित्तौड़गढ़ जिले में हैं।

अबुल फजल ने मेवाड़ राजवंश के लिए कहा की यह ईरान के शासक नौशेखा आदिल की संतान है। कर्नल टॉड व स्मिथ में मेवाड़ राजवंश को विदेशी बतया है। कर्नल टॉड ने इनकी उत्पत्ति वल्लभी (गुजरात) से बतायी है।

आनंदपुर (गुजरात) के ब्राहमण वंशीय बतया गया है। मेवाड़ शासको को कुंभलगढ़ प्रशस्ति व ‘एकलिंग महात्म्य’ ग्रन्थ में ब्राहमण वंशीय बतया गया है। मेवाड़ शासकों को हिंदुआ सूरज तथा सूर्यवंशी बताया गया है। “जो दृढ़ राखे धर्म को तिहि राखे करतार” यह मेवाड़ राजवंश का वाक्य है। इसका अर्थ यह है की जो धर्म की रक्षा करते है उनकी रक्षा देवता करते हैं।

मेवाड़ राजवंश के ध्वज में यह वाक्य लिखा गया हैं। इनके ध्वज में सूर्य की आकृति बनी हुई हैं। इसी ध्वज में एक और भील सरदार तथा दूसरी ओर राजपूत शासक का चित्र बना हुआ हैं। मेवाड़ राजवंश के कुल देवता एकलिंग नाथ जी हैं। एकलिंक नाथ जी को मेवाड़ी राजा भी कहा जाता हैं। मेवाड़ के शासक स्वंय को एकलिंग नाथ जी का दीवान मानते थे। दीवान दुसरे राज्य में जाते समय आसंका (अनुमति या आशीर्वाद) लेते थे।

मेवाड़ राजवंश के आराध्य देव “चारभुजा नाथ” हैं। इनका मंदिर गढ़बोर (राजसमन्द) में हैं। मेवाड़ राजवंश की कुल देवी बाण माता हैं। बाण माता को बरबड़ी माता भी कहा जाता हैं। मेवाड़ राजवंश की आराध्य देवी चारभुजा देवी हैं।

विक्रम संवत 1331 (1274) की चित्तौड़ प्रशस्ति से गुहिल वंश की अनेक शाखाओं का पता चलता है। कर्नल जेम्स टॉड व मुहणोत नैणसी ने गुहिलों की 24 शाखाओं का उल्लेख किया हैं। जिसमे गुहिल, चाटसू के गुहिल, मालवा, वागड़, धोड़, काठियावाड़, मारवाड़ तथा मेवाड़ के गुहिल प्रमुख हैं।

गुहिल राजवंश का उदय – 

  • वल्लभी (गुजरात) के राजा शिलादित्य पर आक्रमण होता हैं।
  • शिलादित्य की पत्नी का नाम पुष्पावती था।
  • शिलादित्य की पत्नी माउंट आबू में अम्बा देवी / अम्बुर्दा देवी (राजस्थान की वैष्णों देवी) के दर्शन को आई थी।
  • इसी मंदिर में पुष्पावती की मुलाकात कमलावती से होती हैं।
  • मंदिर से वापिस आते समय एक गुफ़ा में पुष्पावती एक पुत्र को जन्म देती है जिसका नाम गुहादित्य था। इस बालक का पालन-पोषण कमलावती करती हैं।
  • गुहादित्य द्वारा ही गुहिल वंश की नीव रखी जाती हैं।

गुहिल राजवंश के प्रमुख शासक – 

गुहादित्य  – 

  • गुहादित्य के पिता का नाम शिलादित्य व माता का नाम पुष्पावती था।
  • गुहादित्य की धाय माँ कमलावती थी।
  • गौरी शंकर हीराचंद ओझा के अनुसार गुहादित्य ने गुहिल वंश की नीव 566 ई. में रखी थी।
  • गुहादित्य ने हूण वंश के शासक मिहिरकुल को पराजित करके गुहिल राजवंश की नीव रखी थी।
  • गुहादित्य ने राजधानी नागदा (उदयपुर के पास) को बनाया था।
  • शक्ति कुमार के आटपुर अभिलेख में गुहीलो को वल्लभी शासक ही बताया गया हैं।
  • गुहादित्य का राजतिलक मंडलिफ द्वारा किया गया था।

बप्पा रावल या कालभोज – 

  • बप्पा रावल गुहिल राजवंश के प्रथम प्रतापी शासक थे।
  • बप्पा रावल के पिता का नाम महेंद्र द्वितीय थे।
  • बप्पा रावल ने नागदा को अपनियो राजधानी बनाया था।
  • नागदा में एक मंदिर है जिसका नाम सहस्त्रबाहू मंदिर जिसने सास बहु का मंदिर भी कहा जाता हैं।
  • 734 ई. में बप्पा रावल द्वारा कैलाशपूरी उदयपुर में एकलिंग मंदिर बनवाया था। एकलिंग नाथ पाशुपात समुदाय की पीठ हैं। पशुपात समुदाय के प्रवर्तक दंडधारी लाकूलीश मूनि हैं।
  • 734 ई. में चित्तौड़गढ़ के अन्तिम मौर्य शासक मान मौर्य से चित्तौड़गढ़ दुर्ग जीता था।
  • बप्पा रावल अपने गुरु हारित ऋषि की गायें चराया करते थे।
  • बप्पा रावल ने मेवाड़ में सर्वप्रथम सोने के सिक्के जारी किये थे।
  • मेवाड़ में भीलो का कर माफ़ करने के बाद इन्हें बप्पा की उपाधि दी गयी थी। बप्पा का अर्थ पिता होता हैं।
  • इतिहासकारों के अनुसार बाप्पा रावल का साम्राज्य मध्य एशिया – खुरासान , ईरान/ईराक तक फैला हुआ था।
  • बप्पा रावल की समाधि नागदा (उदयपुर) में हैं।
  • बप्पा रावल को सी.वी. वैध ने चार्ल्स मोर्टल कहा है। बाप्पा रावल 16 हाथ का दुपट्टा , 32 हाथ की धोती पहनते थे। 4 बकरे भोजन में खाते थे। 2 भैसों की बलि देते थे व 32 मन की तालवार रखते थे।

बप्पारावल से सम्बन्धित प्रशस्तियाँ – 

  • रणकपुर प्रशस्ति (1439) के सूत्रधार देपाक/दिपा ने बप्पारावल व कालभोज को अलग-अलग व्यक्ति बताया है।
  • कान्हाव्यास द्वारा 1460 में रचित कुम्भलगढ़ प्रशस्ति में बप्पारावल से लेकर राणा कुम्भा तक के सभी राजाओं के विरूद्ध उपलब्धियों व युद्ध विजयों का वर्णन किया गया हैं।
  • 1488 महेश भट्ट द्वारा रचित रणकपुर के दक्षिणी द्वार की प्रशस्ति में बप्पारावल के संन्यास लेने का उल्लेख है।
  • रूपभट्ट द्वारा रचित वैद्यनाथ प्रशस्ति संग्रामसिंह द्वितीय के शासनकाल में 1719 में लिखी गयी थी। इस प्रशस्ति में हारित ऋषि (बप्पारावल के गुरु)  से बप्पारावल को मेवाड़ साम्राज्य मिलने का उल्लेख है।
  • लकुलीश शैवानुगामी परम्परा के अनुसार हारीत ऋषि बप्पा रावल के गुरु बताये गये हैं।

चित्तौड़गढ़ का किला – 

  • चित्तौड़गढ़ का किला (गिरि दुर्ग) गम्भीरी व बेड़च नदियों के किनारे पर बनाया गया हैं।
  • चित्तौड़गढ़ का किला मेसा के पठार पर स्थित चित्रांगद मौर्य (कुमारपाल संभव के अभिलेख के अनुसार चित्रांग) द्वारा बनाया गया था।
  • चित्तौड़गढ़ के किले में सात द्वार हैं। इन द्वारों के नाम पाडनपोल, भैरवपोल, गणेशपोल, हनुमानपोल, जोडनपोल, लक्ष्मणपोल, रामपोल है।
  • चित्तौड़गढ़ के किले के लिए कहा जाता है की गढ तो बस चित्तौड़गढ़ बाकी सब गढ़िया…
  • चित्तौड़गढ़ का किला क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा किला है।
  • चित्तौड़गढ़ का किला व्हेल मछली की आकृति का किला है।
  • चित्तौड़गढ़ के किले को राजस्थान का दक्षिणी-पूर्वी प्रवेश द्वार कहा जाता हैं।
  • चित्तौड़ को किलों का सिरमौर तथा राजस्थान का गौरव कहा जाता है।
  • राजस्थान किलों की दृष्टि से देश में तृतीय स्थान रखता है। प्रथम स्थान महाराष्ट्र का, द्वितीय स्थान मध्यप्रदेश का  व तृतीय स्थान राजस्थान का है।

अल्लट /आलू रावल (951-953) – 

  • अल्लट ने आहड़ को अपनी राजधानी बनाया था।
  • मेवाड़ में नौकरशाही प्रथा की शुरुवात अल्लट ने की थी।
  • अल्लट ने हुण राजकुमारी हरियादेवी से विवाह किया था।
  • आहड़ में वराह मंदिर का निर्माण कराया था।
  • जगत अम्बिका मंदिर का निर्माण कराया था। अम्बिका मंदिर को मेवाड़ का खजुराहों कहा जाता हैं। (राजस्थान का खजुराहों किराडू है व अम्न्दिर सोमेश्वर मंदिर हैं।)

रावल जैत्रसिंह (1213-50 ई.) – 

  • 1227 में रावल जैत्रसिंह व इल्तुतमिश के मध्य भूताला का युद्ध होता हैं। इस युद्ध में रावल जैत्रसिंह विजयी रहे थे।
  • इस युद्ध की जानकारी जयसिंह कृत ‘हम्मीर-मद-मर्दन’ नामक ग्रन्थ से इसकी जानकारी प्राप्त होती हैं।
  • रावल जैत्रसिंह ने मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़गढ़ को बनाया था।
  • रावल जैत्रसिंह के सेनापति बालक व मदन थे।
  • 1248 में नासिरुद्दीन महमूद को पराजित किया था।
  • रावल जैत्रसिंह के शासनकाल में मध्यकालीन मेवाड़ का स्वर्ण काल था।
  • डॉ. गौरी शंकर हिराचंद ओझा ने रावल जैत्रसिंह को “रण रसिक” कहा हैं।

तेज सिंह –

  • तेज सिंह के समय 1252-53 में बलवन का आक्रमण हुआ था।
  • 1260 ई. में मेवाड़ का प्रथम चित्र शैली ग्रन्थ ‘श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र चुर्णि’ तेजसिंह के शासनकाल में मिला था।
  • ‘श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र चुर्णि’ कलम चंद द्वारा रचित ताड़ के पत्तों पर बनाया गया हैं।
  • तेज सिंह के समय में मेवाड़ चित्रकला शैली की शुरुवात हुई थी।
  • तेज सिंह ने चाचिंगदेव की पुत्री रूपादेवी से विवाह किया था।
  • तेज सिंह को परमभट्टारक परमेश्वर की उपाधि दी गयी थी।

रावल समरसिंह (1273-1301) – 

  • रावल समरसिंह के दो पुत्र कुम्भकरण व रतनसिंह थे।
  • कुम्भकरण ने नेपाल में जाकर गुहिल वंश की नीव रखी थी।
  • रतन सिंह श्रीलंका चले गया थे।
  • रावल समरसिंह तको तुर्कों  का संहारक कहा जाता हैं।

रावल रतनसिंह (1301-1303 ई.) – 

  • रतनसिंह समरसिंह के पुत्र थे।
  • रतनसिंह 1301 ई. में शासक बने थे।
  • 26 अगस्त 1303 में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण में रतन सिंह ने केसरिया किया था व रानी पद्मावती ने 1600 रानियों के साथ जोहर किया था। यह चित्तोड़ का प्रथम साका था।
  • अमीर खुसरों द्वारा रचित खजाई-उल-फतुह ग्रन्थ इस साके की जानकारी मिलती है। जिसे तारीख-ए-अलाई भी कहा जाता है।
  • तारीख-ए-अलाई को आधार मान कर 1540 ई. में मलिक महोम्मद जायसी ने पद्मावत ग्रन्थ अवधि भाषा में लिखा था।
  • रतन सिंह इस युद्ध में गोरा-बादल (चाचा – भतीजा) वीरगति को प्राप्त हुए थे।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने युद्ध जितने के पश्चात चित्तोड़ का नाम बदलकर अपने पुत्र खिज्र खां के नाम पर खिज्राबाद रखा था। जिसका उल्लेख धाई बा पीर दरगाह अभिलेक में मिलता है।
  • अलाउद्दीन खिलजी चित्तोड़ को खिज्र खां को सौप कर चला गया था।
  • खिज्र खां ने चित्तोड़ मालदेव सोनगरा (मुछला मालदेव) को सौप दिया था।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग – 

  • चित्तौड़गढ़ दुर्ग मेसा के पठार पर बना हुआ है।
  • चित्तौड़गढ़ दुर्ग को राजस्थान का गौरव कहा जाता है।
  • चित्तौड़गढ़ दुर्ग राजस्थान का प्रथम आवासीय किला (लिविंग फोर्ट) था।
  • चित्तौड़गढ़ दुर्ग व्हेल मछली की आकृति का किला है।
  • चित्तौड़गढ़ दुर्ग में सात प्रवेश द्वार है। पाड़न पोल, भैरव पोल, त्रिपोलिया पोल, गणेश पोल, जोडन पोल, लक्ष्मण पोल और राम पोल।
  • इस दुर्ग के दर्शनीय स्थल पद्मनी पैलेस, रतनगढ़ मंदिर पैलेस, गोरा-बादल महल, संत रैदास की छतरी, बाघसिंह की छतरी, कलाजी राठौर की छतरी, चलफिर शाह की दरगाह, नौगजा पीर की दरगाह, मीरा मंदिर, कुम्भश्याम मंदिर, त्रिभुवन नारायण मंदिर (समिधेश्वर), अन्नपूर्णा माता मंदिर,  बाण माता मंदिर, सतवीस देवरी, कलिका माता मंदिर (राजस्थान का प्रथम सूर्य मंदिर), कुम्भा महल, लखोटा की बारी, श्रृंगार चंवरी आदि है।
  • इस दुर्ग में विजय स्तम्भ व कीर्ति स्तम्भ है।
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