राजस्थान का इतिहास (चौहान वंश)
History of Rajasthan (Chauhan Dynasty)
राजपूतों की उत्पत्ति –
गुरु वशिष्ठ वैदिक काल के विख्यात ऋषि थे। गुरु वशिष्ठ सप्तर्षि थे। (सप्तर्षि अर्थात – उन सात ऋषियों में से वह एक ऋषि जिसे ईश्वर द्वारा सत्य का ज्ञान एक साथ प्राप्त हुआ हो तथा जिन्होंने मिलकर वेदों का दर्शन किया हो। गुरु वशिष्ठ की पत्नी अरुन्धती थी। गुरु वशिष्ठ भगवान् ब्रम्हा के मानस पुत्र थे। वे राजा दशरथ के राजकुल गुरु थे। गुरु वशिष्ठ ने माउन्ट आबू (सिरोही) में एक यज्ञ कराया था।
इस यज्ञ के दौरान अग्नि कुंड से चार जातियां उत्पन्न हुई थी। प्रतिहार, परमार, चालुक्य, चौहान जातियाँ उत्पन्न हुई थी। चालुक्य जाती को सोलंकी भी कहा जाता है। चौहान शब्द की उत्पत्ति चाहमान शब्द से हुई है। जयानक भट्ट द्वारा रचित पृथ्वीराज विजय ग्रन्थ में चाहमान शब्द का पता चलता है। चौहानों का हंसोट शिलालेख मिला था।
- चा – चाप
- ह – हरि
- मा – मान
- न – नीतिवान
चौहानों के संस्थापक –
- सांभर – 551 ई. वासुदेव चौहान
- अजमेर – 1113 ई. अजयराज
- रणथम्भोर – 1194 ई. गोविन्दराज
- नाडोल – 960 ई. में लक्ष्मणदेव चौहान
- जालौर – 1179 ई. में कीर्तिपाल चौहान
- सिरोही – 1311 ई. में लुम्बा चौहान
- राजस्थान का इतिहास (हाड़ौती का चौहान वंश)
अग्नि कुंड से उत्पत्ति –
- पृथ्वीराज रासो ग्रन्थ में लिखा गया है की चौहानों की उत्पत्ति अग्निकुंड से हुई है। इस ग्रन्थ के रचियेता चंदबरदाई है।
- हम्मीर रासों ग्रन्थ में भी चौहानों को अग्निकुंड से उत्पन्न हुआ बताया गया है। इसके रचियेता जोधराज है।
- इतिहासकार मुहणौत नैणसी ने भी चौहानों की उत्पत्ति अग्नि कुंड से बतायी है।
- राजस्थान के राज्य कवि सूर्यमल्ल मिश्रण ने भी चौहानों को अग्निकुंड से उत्पन्न बताया है।
सूर्यवंशी –
- पृथ्वीराज विजय ग्रन्थ में चौहानों को सूर्यवंशी बताया गया है। इस ग्रन्थ को जयानक भट्ट द्वारा लिखा गया था।
- हम्मीर महाकाव्य में भी चौहानों को सूर्यवंशी बताया गया है। इस ग्रन्थ को नयनचन्द्र सुरी द्वारा लिखा गया था।
- इनके सूर्यवंशी होने का पता पृथ्वीराज चौहान द्वितीय के बेदला अभिलेख से मिलता है। यह अभिलेख डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने लिखा था।
चंद्रवंशी –
- 1177 ई. में मिले हांसी के शिलालेख (हरियाणा) में चौहानों को चंद्रवंशी बतया गया है।
- अचलेश्वर महादेव का मंदिर (अंगूठा मंदिर) माउन्ट आबू सिरोही में है। यहाँ मिले शिलालेख में भी चौहानों को चन्द्रवंशी बताया गया है।
विदेशी –
- कर्नल जेम्स टॉड , विलियम क्रुक, वि.ए. स्मिथ ने चौहानों. को विदेशी बताया है।
ब्राहमणवंशीय –
- डॉ. दशरथ शर्मा, गोपीनाथ शर्मा, कायम खां रासों ने चौहानों को ब्राहमणवंशीय बताया है।
- 1170 ई. के बिजोलिया शिलालेख में भी इसका प्रमाण मिलता है।
- बिजोलिया का प्राचीन नाम विजयावल्ली था। बिजोलिया शिलालेख वर्तमान में भीलवाड़ा स्थान में है।
- बिजोलिया शिलालेख सोमेश्वर चौहान के समय का है।
- यह शिलालेख गोविन्द ने लिखवाया था।
- बिजोलिया शिलालेख 13 पद्यों में रचित है।
- इसके रचियता गुणभद्र थे।
- इस शिलालेख के लेखक कायस्थ केशव थे।
- यह शिलालेख जैन लोलक के निर्देशन में लिखा गया था।
- यह शिलालेख पार्श्वनाथ मन्दिर से प्राप्त हुआ था।
- यह शिलालेख संस्कृत भाषा में है।
- ऊपरमाल का प्राचीन नाम उतमाद्रि था।
- बिजोलिया शिलालेख अभिलेख में चौहानों वत्स गोत्रीय ब्राहमण बताया गया है।
हर्ष का शिलालेख –
- हर्ष का शिलालेख हर्ष की पहाड़ी से मिला है। हर्ष की पहाड़ी रेवासा (सीकर जिले) में है।
- हर्ष का शिलालेख हर्षनाथ मंदिर से मिला था। यह मंदिर गुवक प्रथम ने बनवाया था।
- इस अभिलेख से चौहानों की वंशावली व उपलब्धियों का पता चलता है।
चित्तौड़गढ़ का शिलालेख –
- चित्तौड़गढ़ शिलालेख चित्तौड़गढ़ दुर्ग से प्राप्त हुआ था।
- इस शिलालेख से चौहानों के सूर्यवंशी व चंद्रवंशी होने का पता चलता है।
चौहानों को सेवाडी अभिलेख में इंद्र का वंशज कहा गया है।
सांभर के चौहान –
राजस्थान में त्रिभुज आकृति का स्थान जिसे अजमेर कहा जाता है। इस अजमेर के आसपास के क्षेत्र को सपाद्लक्ष कहा जाता था। सपाद्लक्ष का अर्थ सवा लाख गांवों का समूह। सपाद्लक्ष का पश्चमी भाग जांगलप्रदेश था। सपाद्लक्ष सांभर के आस-पास का क्षेत्र है। 551 ई. में वासुदेव चौहान ने चौहान वंश की नीव रखी थी। सांभर की प्रथम राजधानी अहिच्छत्रपुर (नागौर) थी।
वासुदेव चौहान ने ही सांभर झील का निर्माण करवाया था। इसका प्रमाण बिजोलिया शिलालेख में मिलता है। शाकम्भरी माता चौहान वंश की कुल देवी है। सांभर, उदयपुरवाटी (झुनझुनू), साहरनपुर (उ.प्र.) में शाकम्भरी माता के मंदिर स्थित है। देवयानी तीर्थ (तीर्थो की नानी) सांभर में स्थित है।
वासुदेव चौहान –
- 551 ई. में वासुदेव चौहान ने चौहान वंश की नीव रखी थी।
- वासुदेव चौहान को चौहान वंश का आदिपुरुष / मूलपुरुष कहा जाता है।
- वासुदेव चौहान ने सांभर झील का निर्माण कराया था।
दुर्लभराज –
- दुर्लभराज के समय सर्वप्रथम मुस्लिम आक्रमण हुए थे।
- दुर्लभराज वत्सराज का समान्त था।
- दुर्लभराज ने त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लिया व धर्मपाल (पाल वंश) को पराजित किया था।
गुवक प्रथम –
- गुवक प्रथम हर्षनाथ जी का मंदिर बनवाते है।
- हर्षनाथ जी चौहानों के कुलदेवता है।
- इस मंदिर को औरंगजेब ने तुड़वा दिया था।
- गुवक प्रथम नाग भट्ट द्वितीय के सामंत थे।
- गुवक प्रथम के समय कन्नौज विजय हुई थी। इस विजय के बाद गुवक प्रथम को वीर की उपाधि दी गयी थी।
चन्दनराज –
- चन्दनराज ने तोमरों को पराजित किया था।
- चंदनराज ने रूद्र की बहन रुद्राणी (आत्मप्रभा) से विवाह किया था। रुद्राणी शिव मंदिर (पुष्कर) में प्रतिदिन 1000 दीपक जलाया करती थी। रुद्राणी योगिक क्रिया में निपुण थी।
गुवक द्वितीय –
- गुवक द्वितीय ने अपनी बहन का विवाह मिहिर भोज के साथ किया था।
वाकपतिराज –
- वाकपतिराज ने “महाराज” की उपाधि धारण की थी।
सिंह राज –
- सिंह राज प्रथम स्वतंत्र शासक जिन्होंने “परम भट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर” की उपाधि धारण की थी।
- सिंह राज स्वतंत्र हो जाते है तथा प्रतिहारों के सामंत नहीं रहते।
विग्रहराज द्वितीय –
- विग्रहराज द्वितीय ने मतंगा की उपाधि धारण की थी।
- 956 ई. में विग्रहराज द्वितीय ने गुजरात के भड़ौच नामक स्थान पर आशापुरा माता का मंदिर बनवाया था।
- विग्रहराज द्वितीय ने मूलराज चालुक्य (सोलंकी) शासक को पराजित किया था।
दुर्मभराज द्वितीय –
- दुर्लभराज द्वितीय ने दुर्लभमेरु की उपाधि धारण की थी।
गोविन्द तृतीय –
- गोविन्द तृतीय ने वैरीभट्ट धारक की उपाधि धारण क थी।
पृथ्वीराज चौहान प्रथम –
- पृथ्वीराज के समय राजा हट्टड ने जीण माता के मंदिर का निर्माण कार्य था। जीण माता के गीतों को चिरजा कहा जाता है। जीण माता के गीत करुण रस से ओतप्रोत होता है।