राजस्थान का इतिहास (जालौर का चौहान वंश)
History of Rajasthan (Chauhan Dynasty of Jalore)
जालौर का प्राचीन नाम जाबालिपुर था। इस क्षेत्र में जाल वृक्ष की अभिकता व महर्षि जाबालि की तपोभूमि होने के कारण कहा जाता था। नाडौल शाखा के शासक अल्हण के छोटे पुत्र कीर्तिपाल चौहान ने जालौर में चौहान वंश की नीव रखी थी। जालौर दुर्ग को सुवर्णगिरी नाम से भी जाना जाता है। यह दुर्ग सुकड़ी नदी के किनारे स्थित है। जालौर के चौहानों को सोनगरा कहा जाता है। (जालौर को ग्रेनाइट सिटी भी कहा जाता है।)
कीर्तिपाल चौहान –
- कीर्तिपाल चौहान को कितु एक महान राजा कहा जाता है।
- 1177 ई. में कीर्तिपाल ने मेवाड़ के सामंत सिंह को पराजित किया था।
- 1181 ई. में कीर्तिपाल ने जालौर में चौहान वंश की नीव रखी थी।
- सोनगढ़ पर्वत के कारण यह चौहान सोनगरा चौहान कहलाए थे।
- सोनगरा चौहानो की कुल देवी आशापुरी माता (महोदरी माता) है।
- कीर्तिपाल चौहान को सुंधा अभिलेख में ‘राजेश्वर’ कहा गया है।
- कीर्तिपाल चौहान ने परमारों को हराया था। चालुक्यों के सहयोग से परमारों को हराया था।
समरसिंह (1182 – 1205 ई.) –
- समरसिंह कीर्तिपाल के पुत्र थे।
- समरसिंह ने अपनी पुत्री लीलावती का विवाह चालुक्य शासक भीमदेव द्वितीय से किया तथा मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किये थे।
- समरसिंह ने जालौर दुर्ग को सुदृढ़ बनाया था।
उदयसिंह –
- 1228 ई. में उदयपुर के समय जालौर पर इल्तुतमिश ने आक्रमण किया था। उदय सिंह ने इस आक्रमण को असफल कर दिया था।
- 1254 ई. में उदयसिंह ने नासरुद्दीन महमूद के आक्रमण को असफल किया था।
- उदयसिंह की छतरी भीनमाल (जालौर) में है।
- उदयसिंह ने लवणप्रसाद को पराजित कर गुजरात विजिय हासिल की थी।
- उदयसिंह ने जालौर सीमा की वृद्धि की थी।
चाचिंगदेव –
- चाचिंगदेव के समय कोई भी मुस्लिम आक्रमण नहीं हुआ था।
- चाचिंगदेव नासिरुद्दीन व बलबन के समकालीन शासक थे।
- चाचिंगदेव अपनी पुत्री रूपा देवी का विवाह मेवाड़ के शासक तेजसिंह के साथ किया था।
सामंतसिंह –
- सामंतसिंह चाचिंगदेव के पुत्र थे।
- सामंतसिंह ने जलालुद्दीन खिलजी से संघर्ष किया था।
- सामंतसिंह ने अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण का सामना किया था।
- सामंतसिंह ने अपने योग्य पुत्र कान्हड़देव को शासन सौप दिया था।
कान्हड़देव चौहान –
- कान्हड़देव चौहान के पुत्र का नाम वीरमदेव चौहान था।
- कान्हड़देव चौहान के प्रधानमंत्री का नाम जैता देवड़ा था।
- कान्हड़देव के दरबारी कवि का नाम पद्मनाभ था। पद्मनाभ ने कान्हड़दे प्रबंध व वीरमदेव सोनगरा री बात ग्रन्थ लिखे है।
अलाउद्दीन खिलजी की पुत्री फिरोजा को जालौर के वीरमदेव चौहान से प्रेम हो जाता है। फिरोजा वीरमदेव से ही विवाह करना चाहती थी। इस बात से क्रोधित होकर अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर में आक्रमण कर दिया था। जालौर में आक्रमण करने से पहले सिवाना में आक्रमण किया था क्यूंकि सिवाना को जालौर की कुंजी कहा जाता था।
सिवाना दुर्ग का साका –
- सिवाना दुर्ग ह्ल्देश्वर पहाड़ी में बना हुआ है। इस दुर्ग का निर्माण वीर नारायण पंवार ने करवाया था।
- सिवाना दुर्ग को जालौर दुर्ग की कुंजी कहते है। इसे मारवाड़ शासकों की शरणस्थली कहा जाता है।
- इस दुर्ग को कुमठ/कुम्णना दुर्ग भी कहा जाता है।
- यह साका 1308 ई. में हुआ था।
- इस साके में आक्रमणकारी अलाउद्दीन खिलजी था।
- सिवाणा के शासक सात्तल देव (कान्हड़ देव के भतीजे) थे।
- इस साके में मैणा देवी ने जौहर किया था।
- इस साके में विश्वासघाती भांवला पंवार था। इसमें सात्तल देव के साथ विश्वासघात किया था।
- इसको जीतने के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने इसका नाम खैराबाद रख दिया था।
जौलार दुर्ग का साका –
- जालौर का साका 1310 -11 ई. में हुआ था।
- इस साके में केसरिया कान्हड़ देव चौहान द्वारा किया गया था।
- इस साके में जौहर जैतल देवी द्वारा किया गया था।
- इस साके में आक्रमणकारी अलाउद्दीन खिलजी था।
- इस साके का विश्वासघती दहिया राजपूत बिका था।
- इस साके के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने इसका नाम जलालाबाद रखा था।
- यहाँ पर अलाउद्दीन ने मस्जिद बनवाई थी, जिसे अलाउद्दीन खिलजी की मस्जिद कहा जाता है।
- इस साके में जैता देवड़ा, जैता उलीचा, कन्धाई, लूणकरण वीरगति को प्राप्त हुए थे।
- इस साके के पश्चात अलाउद्दीन खिलजी की पुत्री फिरोजा ने यमुना में कूदकर जान दे दी गयी थी। (फिरोजा की धाय माँ गुल विहिशत थी।)
- अलाउद्दीन खिलजी का सेनापति इन-आइन-उल-मुल्क-मिल्तानी सर्प्रथम जालौर पर आक्रमण करने की बात की थी।
कान्हड़देव ने अपना राज्य सिणग्गरी नटकी को अपना राज्य देने की बात कही थी।