राजस्थान का इतिहास (अजमेर का चौहान वंश)
History of Rajasthan (Chauhan Dynasty of Ajmer)
अजयराज (1105 – 1133) –
- अजयराज पृथ्वीराज प्रथम के पुत्र थे।
- अजयराज ने 1113 ई. में अजमेर शहर बसाया था व इसे अपनी राजधानी बनाया था। (अजमेर को भारत का मक्का,अंडो की टोकरी, राजस्थान का हृदय, राजस्थान का नाका, राजस्थान का चौराहा कहा जाता है।) अजमेर को ही सांप्रदायिक सदभाव का जिला कहा जाता है।
- अजयराज ने अजयमेरु दुर्ग का निर्माण कराया था। यह दुर्ग बीठड़ी पहाड़ी पर बना हुआ है।
- बीठड़ी पहाड़ी पर बने इस दुर्ग को वर्तमान में तारागढ़ दुर्ग नाम से जाना जाता है।
- पृथ्वीराज सिसोदिया ने अजयमेरू दुर्ग का नाम बदलकर अपनी पत्नी ताराबाई के नाम पर तारागढ़ रखा था। (तारागढ़ दुर्ग को अरावली का अरमान, राजपूताने की कुंजी कहा जाता है।
- विशप हैबर ने इस दुर्ग को राजस्थान का जिब्राल्टर कहा है।
- अजयमेरु दुर्ग पर सबसे ज्यादा स्थानीय आक्रमण हुए थे।
- अजयमेरु दुर्ग में पृथ्वीराज चौहान तृतीय का स्मारक है।
- इस दुर्ग में घोड़े की मजार, मीरान साहब की दरगाह, रूठी रानी का महल है।
- यहाँ घूँघट, बांद्रा, इमली, गुगडी आदि बुर्ज स्थित है।
- इसी दुर्ग में दारा शिकोह ने शरण ली थी।
- यहाँ पर नाना साहब व इब्राहिम का झालरा है।
- अजयराज ने ‘श्री अजयदेव’ नाम से चाँदी के सिक्के चलाए थे। इन सिक्कों में सोमलेखा (सोमवती) का नाम भी आता है।
- अजयराज ने शुहाबुद्दीन (शिहाबुद्दीन) तुर्क को हराया था।
- अजयराज ने मालवा के परमार राजा नरवर्मन को पराजित किया था।
- अजयराज ने अन्हिलपाटन (गुजरात) के चालुक्य शासक मूलराज द्वितीय को हराया था।
अर्णोंराज (आनाजी) (1133- 1155 ई) –
- अर्णोंराज ने जयसिंह सिद्धराज के साथ युद्ध किया था। इस युद्ध के पश्चात अर्णोंराज जयसिंह सिद्धराज की पुत्री कांचन देवी से विवाह कर लेते है। इनसे उत्पन्न संतान का नाम सोमेश्वर चौहान था।
- अर्णोंराज ने कुमारपाल (चालुक्य शासक) के साथ दो युद्ध किये थे। ये युद्ध माउंट आबू के समीप हुए थे। दोनों युद्ध में आनाजी की पराजय होती है। इसकी जानकारी प्रबंध कोष से मिलती है।
- अर्णोंराज की दूसरी रानी सुधवा (मरूदेश की राजकुमारी) से उत्पन्न तीन संतान के नाम जग्गदेव, देवदत्त, विग्रहराज चतुर्थ (बीसलदेव) था।
- अर्णोंराज शैव धर्म (भगवान् शिव से संबंधित धर्म) के अनुयायी थे। इन्होने अजमेर में शिव मंदिर बनवाया था।
- अर्णोंराज ने पुष्कर में वराह मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर का पुनः निर्माण समरसिंह ने कराया था। स मंदिर की मूर्ति को जहांगीर ने फेक दिया था।
- अर्णोंराज के दरबारी कवि देवबोध व धर्म घोष थे।
- 1137 ई. में तुर्क आक्रमणकारियों के रक्त से अजमेर को शुद्ध करने के लिए अनासागर झील बनवाई थी। यह झील तुर्क आक्रमणकारियों के रक्त को साफ़ करने के लिए बनायी गयी थी।
- अर्णोंराज ने तुर्कों को हराया था। इस आक्रमण में काफी लोग मारे गये थे। जयानक द्वारा लिखे गये पृथ्वीराज विजय ग्रन्थ में लिखा है “अजमेर को तुर्कों के रक्त से शुद्ध करने के लिए आनासागर झील का निर्माण कराया था’।
- अनासागर झील के समीप चंद्रा नदी बहती है।
- अनासागर झील तारागढ़ दुर्ग तथा नाग पहाड़ के मध्य में स्थित है।
- इस झील में बारहदरी का निर्माण खुर्रम (शाहजहाँ) ने करवाया था।
- इस झील में दौलतबाग का निर्माण सलीम (जहांगीर) ने करवाया था। जिसे शाही बाग भी कहा जाता था। वर्तमान में इसको सुभाष उद्यान नाम से जाना जाता है।
- अनासागर झील के किनारे अस्मत बेगम ने गुलाब से इत्र बनाने की विधि बनायी थी। अस्मतबेगम नूरजहाँ (मेहरूनिसा) की माता थी।
- अर्णोंराज की हत्या इन्ही के पुत्र जग्गदेव ने की थी। जग्गदेव को चौहानों का प्रथम पितृहन्ता कहा जाता है।
विग्रहराज चतुर्थ/ बीसलदेव –
- बीसलदेव को कवि बान्धव भी कहा गया है। यह जयानक द्वारा कहा गया है।
- विग्रहराज चतुर्थ के काल को कला व साहित्य की दृष्टि से चौहानों का स्वर्ण काल कहा जाता है।
- बीसलदेव ने दिल्ली के तोमर शासक को पराजित कर दिल्ली पर अपना कब्ज़ा कर लिया था। यह दिल्ली में शासक करने वाले प्रथम चौहान शासक थे।
- बीसलदेव ने दिल्ली में शिवालिक स्तम्भ का निर्माण करवाया था। जिसे भगवान् विष्णु का अवतार बताया गया था।
- विग्रहराज चतुर्थ ने संस्कृत भाषा में हरिकेली नाटक की रचना की थी। इस ग्रन्थ में अर्जुन व भगवान् शिव के मध्य संवाद का वर्णन हुआ है।
- विग्रहराज चतुर्थ के दरबारी कवी सोमदेव थे। सोमदेव ने ललित विग्रहराज नामक ग्रन्थ लिखा है इस ग्रन्थ में इंद्रपुरी की राजकुमारी देसलदेवी व बिसलदेव का प्रेम वर्णन किया गया है।
- नरपति नाल्ह ने बिसलदेव रासों लिखा था। इसके चार खंड है। प्रथम खंड में बिसलदेव व राजमति का प्रेम वर्णन है। द्वितीय खंड में उड़ीसा विजय वर्णन, तृतीय खंड में राजमति का विरह वर्णन व चतुर्थ खंड में भोज राजा का राजमति को घर ले जाना और बिसलदेव का चित्तौड़गढ़ चले जाने का वर्णन है।
- विग्रहराज चतुर्थ ने एकादशी के दिन धर्मघोष सूरी के कहने पर पशुवध पर रोक लगा दी थी।
- विग्रहराज चतुर्थ ने संस्कृत पाठशाला बनवायी थी। जिसका नाम सरस्वती कंठाभरण पाठशाला है।
- क़ुतुबुद्दीन ऐबक ने इस पाठशाला की संरचना बदलकर इसका नाम ढाई दिन का झोपड़ा रख दिया था। इसने इसकी दीवारों में फ़ारसी अभिलेख लिखवाए थे।
- इस संरचना का डिज़ाइन अबु बक्र ने तैयार किया था। यह राजस्थान की प्रथम मस्जिद है।
- इस मस्जिद में 16 खम्भे है।
- जॉन मार्शल ने कहा की यह ढाई दिन में बनकर तैयार हुआ था।
- पर्सी ब्राउन ने कहा यहाँ पर पंजाबशाह का ढाई दिन का उर्स लगता है।
- कर्नल जेम्स टॉड ने कहा मैंने राजस्थान में इतनी प्राचीन व सुरक्षित ईमारत कहीं नहीं देखी।
- किलहॉर्न ने कहा विग्रहराज कालिदास व भावभूति की होड़ रखता है।
- विग्रहराज ने गजनी शासक खुसरोशाह को हराया था।
- विग्रहराज ने टोंक में बिसलपुर नामक कस्बा बसाया था। बीसलपुर में शिव मंदिर भी बनवाया था।
- विग्रहराज ने टोंक में बीसलपुर बाँध बनाया था।
पृथ्वीराज चौहान तृतीय –
- पृथ्वीराज चौहान तृतीय का जन्म 19 मई1166 ई. में हुआ था। इनका जन्म अन्हिलपाटन (गुजरात) में हुआ था।
- पृथ्वीराज चौहान के पिता का नाम सोमेश्वर चौहान था।
- पृथ्वीराज चौहान की माता का नाम कर्पुरी देवी था। कर्पुरीदेवी ही पृथ्वीराज चौहान तृतीय की संरक्षिका थी।
- पृथ्वीराज चौहान तृतीय के प्रधानमंत्री कदम्बवास/ कैमास थे। (नागौर का अहिछत्रपुर दुर्ग निर्माण कदम्बवास ने करवाया था।)
- पृथ्वीराज चौहान तृतीय के सेनाध्यक्ष भुवनमल थे। भुवनमल कर्पुरीदेवी के चाचा थे।
- 1177 ई. में पृथ्वीराज चौहान का 11 वर्ष की आयु में राज्यभिषेक हुआ था।
- पृथ्वीराज चौहान के घोड़े का नाम नाट्यरम्भा था।
- पृथ्वीराज चौहान की पत्नी का नाम ईचछिनी व संयोगिता था।
- पृथ्वीराज के भाई का नाम हरिराज व बहन का नाम प्रथा था।
- पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि व मित्र चंदबरदाई (पृथ्वी भट्ट) थे।
- पृथ्वीराज चौहान के दरबार में विद्यापति गौड़, विश्वरूप, वागीश्वर, जनार्धन थे।
- पृथ्वीराज चौहान के दरबार में जयानक थे। जिन्होंने पृथ्वीराज विजय की रचना पुष्कर झील किनारे की थी। यह एक कश्मीरी कवि थे।
- पृथ्वीराज चौहान ने अपने चचेरे भाई नागार्जुन के विद्रोह का दमन किया था।
- 1178 ई. में हुए गुड़गाँव के युद्ध में पृथ्वीराज चौहान ने नागार्जुन को पराजित किया था। इस युद्ध में हार के बाद नागार्जुन भाग गया था।
- पृथ्वीराज चौहान ने अजमेर में कला व साहित्य संस्थान बनाया गया था। जिसके अध्यक्ष पदमनाभ थे।
- पृथ्वीराज चौहान ने बिसलपुर बाँध (टोंक) में महादेव का मंदिर बनवया था।
- पृथ्वीराज चौहान का प्रथम शिलालेख बडल्या/बेदला था।
- पृथ्वीराज चौहान का दूसरा शिलालेख आवलंदा था।
- पृथ्वीराज चौहान ने भंड़ानकों के विद्रोह का दमन किया था। भंड़ानक सतलज प्रदेश से आये थे व गुड़गाँव, हिसार में निवास कर रहे थे। इसके बाद ये आगे विस्तार करने लगते है जिसमे ये मथुरा, अलवर, भरतपुर में निवास करने लगते है। इसी के बाद पृथ्वीराज चौहान इनके सात युद्ध करते है व इनको पराजित कर गुड़गाँव में अधिकार के लेते है।
- पृथ्वीराज चौहान ने दिल्ली में लालकोट शहर बसाया था।
- पृथ्वीराज चौहान ने दिल्ली में रायपिथौरागढ़ किले का निर्माण कराया था।
- पृथ्वीराज चौहान के सीमा विस्तार के कारण 1182 ई. में मोहबा विजय/ तुमुल का युद्ध पृथ्वीराज व परमर्दि देव के मध्य हुआ था। इस युद्ध में परमर्दि देव की तरफ़ से आल्हा व ऊदल युद्ध करते है।
- इस युद्ध में आल्हा व ऊदल वीरिगति को प्राप्त हो जाते है व पृथ्वीराज चौहान इस युद्ध को जीत जाते है।
- मोहबा विजय युद्ध जीतने के बाद पृथ्वीराज ने अपने पुन्जनराय सामंत को मोहबा में नियुक्त किया था।
- 1184 ई. पृथ्वीराज चौहान ने चालुक्य शासक भीमदेव द्वितीय (गुजरात के शासक) को पराजित किया था। इस युद्ध का मुख्य कारण यह था की भीमदेव द्वितीय संखला परमार जैतसिंह की पुत्री व माउंटआबू की राजकुमारी ईचछिनी से विवाह करना चाहते थे। पृथ्वीराज चौहान ने ईचछिनी से विवाह किया था।
- चालुक्य शासक भीमदेव द्वितीय भारत के पहले शासक थे जिन्होंने मुहम्मद गौरी को पराजित किया था।
संयोगिता व पृथ्वीराज चौहान का ननिहाल दिल्ली में था। इन दोनों की प्रेम कहानी दिल्ली से ही शुरू हुई थी। संयोगिता के पिता व कन्नोज के राजा जयचंद गाहड़वाल इस प्रेम के खिलाफ थे। इसके बाद जयचंद राजसूर्य यज्ञ करवाते है तथा संयोगिता का स्वयंवर रचते है। इस स्वयंवर दरबार के बाहर पृथ्वीराज चौहान की मूर्ति रख देते है।
संयोगिता पृथ्वीराज चौहान की अनुपस्थित में पुतले को माला पहना देती है। माला पहनाने के बाद पृथ्वीराज चौहान वेश-भूषा बदलकर स्वयंवर में आकर संयोगिता को अपने साथ अजमेर ले जाते है और विवाह कर लेते है। इस विवाह को गन्धर्व विवाह कहा जाता है।
- पृथ्वीराज चौहान की छतरी गजनी में है।
- पृथ्वीराज चौहान का स्मारक अजमेर जिले में है। 13 सितम्बर 1996 को राष्ट्र को समर्पित किया था।
तराईन के युद्ध –
- 1191 ई. में करनाल(हरियाणा) में तराईन का प्रथम युद्ध हुआ था।
- यह युद्ध पृथ्वीराज चौहान व महोमद गौरी के मध्य हुआ था।
- इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के सेनापति खंडेराव थे।
- इस युद्ध में मुहम्मद गौरी हार जाता है।
- दुसरे युद्ध से पहले मुहम्मद गौरी अपने दो दूत किवाम-उल-मुल्क व रुकनुद्दीन हमजा पृथ्वीराज चौहान के पास भेजता है व कहता है की या तो आप इस्लाम को स्वीकार कर कर लीजिए या मुहम्मद गौरी की अधीनता स्वीकार कर लीजिए।
- इसके उत्तर में पृथ्वीराज चौहान कहते है या तो तू जहाँ से आया है वहाँ वापिस चला जा नहीं तो अपनी अगली मुलाकात युद्ध क्षेत्र में होगी।
- 1192 ई. में करनाल(हरियाणा) में तराईन का दूसरा युद्ध हुआ था।
- इस युद्ध में मुहम्मद गौरी जीत जाता है।
- इस युद्ध में पृथ्वीराज के सेनापति उदयराज रूठ जाते है तथा सही समय में इस युद्ध में नहीं पहुँच पाते है व दो सोमेश्वर और प्रताप सिंह मुहम्मद गौरी के साथ मिल जाते है।
- अबुल फजल ने कहा की पृथ्वीराज चौहान को गजनी लेके गये थे।
- मिनहाज ने कहा की इसी युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हत्या कर दी गयी थी।
- हम्मीर महाकाव्य के अनुसार पृथ्वीराज चौहान को कैद कर लिया गया था।
- तराईन के युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की सहयता जालौर के समरसिंह, मेवाड़ के सामंतसिंह, दिल्ली से गोविन्दराय ने की थी।
पृथ्वीराज चौहान तृतीय की उपाधियाँ –
- दलपुंगल (विश्व विजेता)
- रायपिथौरा (युद्ध में पीठ नहीं दिखाने वाला)
- भारतेश्वर
- सपादलक्षेश्वर
- हिन्दू सम्राट