राजस्थान की हस्तकला/ लोककला (भाग – 3)
Handicraft/Folk Art of Rajasthan (Part – 3)
मिरर वर्क –
- इसका प्रमुख केंद्र चौहटन (बाड़मेर) में है। चौहटन गौंद उत्पादन के लिए भी प्रसिद्ध है।
- कपड़े पर काँच की कशीदाकारी करने को मिरर वर्क कहा जाता है।
- मिरर वर्क का सर्वाधिक कार्य जैसलमेर में होता है।
- मिरर वर्क के प्रसिद्ध कलाकार रुमा देवी है। 2019 में रुमा देवी को नारी शक्ति पुरूस्कार से सम्मानित किया गया था।
गोटा जरी –
- कपड़े पर परतदार डिज़ाइन तैयार करने को गोटा जरी कहा जाता है।
- गोटा जरी का प्रमुख केंद्र खण्डेला (सीकर) में है।
- खण्डेला में गोटा जरी ‘सलमा सितारा’ से जाना जाता है।
- गोटा जरी का अन्य केंद्र भिनाय (अजमेर) ,जयपुर है।
जरी – सोने, चाँदी किया गया पॉलिशदार कडाई को जरी कहा जाता है। जरी के बेस जयपुर के प्रसिद्ध है। जरी का कार्य सवाई जयसिंह सुरत से जयपुर लाए थे।
जरदौजी – सोने चाँदी किया गया पॉलिशदार धागा जरदोजी कहा जाता है।
गोटा के प्रकार –
लप्पा – गोटे पर बनाया गया अलंकरण
लाप्पी – गोटे पर बनाया गया छोटा अलंकरण
किरण – गोटे की झालर को किरण कहते है। दुल्हन का घुंघट
बांकड़ी – गोटे पर बनाया गया बेल बुन्टों का डिज़ाइन
चम्पाकली – गोटे पर बनाया गया बेल फूलों का डिज़ाइन
खजुरभांत – गोटे पर बनाये गये खजुर के अलंकरण, जिन्हें नक्शी कहते है।
गोखरू – गोटे का मुड़ा हुआ प्रकार (गोखुरू हाथ का आभूषण भी है।)
बादला – सोने या चाँदी की कड़ाई करने वाला तार (बादला जोधपुर – जिंक से निर्मित एक बोतल है।)
मुकेश – कपड़े पर बादले द्वारा की गई बिंदियों की छोटी-छोटी कड़ाई मुकेश कहलाती है।
बिजिया – ओढ़ने पर चिपकाने के लिए गोटे से बनाये गये फूल
बंधेज –
- कपड़ो को बांधकर आयताकार या वर्गाकार डिज़ाइन तैयार करना बंधेज कहलाता है।
- बंधेज कला मुल्तान से मारवाड़ लायी गयी थी।
- बंधेज कला को टाई व डाई भी कहा जाता है।
- बंधेज का सर्वाधिक कार्य सुजानगढ़ (चुरू) में होता है।
- बंधेज की मंडी जोधपुर में है।
- बंधेज का कार्य शेखावटी में फूल जी भाटी व बाग जी भाटी के द्वारा शुरू किया गया था।
- बंधेज का प्रसिद्ध कलाकार तैय्यब जी खां (जोधपुर) है। इन्हें 2001 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।
- बंधेज का कार्य चढ़वा जाति व बंधारा जाति के मुसलमान सर्वाधिक करते है।
- बंधेज का सर्वप्रथम उल्लेख बाणभट्ट द्वारा रचित हर्षचरित में मिलता है।
नग बांधना – कपड़े पर डिजाइन बनाकर बारीक़ धागे से छोटी छोटी कढ़ाई करना नग बांधना कहलाती है।
शिकारगाह वाले अलंकरण का बंधेज – बूंदी
मोर व इमली के अलंकरण वाला बंधेज – सवाई माधोपुर
बारीक बंधेज हाडौती ( कोटा , बूंदी, बांरा ) का प्रसिद्ध है।
चुण – बंधेज में भरा जाने वाला रंग चुण कहलाता है।
टिपाई – बंधेज में हाथों के द्वारा भरा जाने वाला रंग टिपाई कहा जाता है।
अलीखबो – अन्धेज में तैयार किया गया अलंकरण अलीखबो कहलाता है।
बंधेज के प्रकार –
डिब्बेदार
कोहनीदार
बेडदार
बावरा – पंचरंगों से रंगा हुआ बंधेज का साफा
बंधेज का साफा, साड़ी, चुनरी जोधपुर जिले की प्रसिद्ध है।
लहरिया –
- 1, 3,5,7 रंगों की रेखाएं एक तरफ जाती है उसे लहरिया कहते है।
- लहरिया जयपुर का प्रसिद्ध है। जयपुर का पंचरंगी लहरिया तथा समुद्रलहर का लहरिया प्रसिद्ध है।
- लहरिया सावन के महीने व तीज के अवसर पर उपयोग किया जाता है।
- पुरुष लहरिये के पगड़ी बांधते है।
प्रतापशाही लहरिया – इस लहरिये का उल्लेख साहित्य में मिलता है।
राजशाही लहरिया – इस लहरिया में मुख्यत गुलाबी रंग का प्रयोग किया जाता है।
समुद्रलहर लहरिया – इसमें 1, 3, 5, 7 रंगों की रेखाएं होती है।
पोमचा –
- पोमचा वंश वृधि का प्रतिक माना जाता है।
- कम फूलो से अभिप्राय युक्त ओढ़नी पोमचा कहलाती है।
पिला पोमचा – पुत्र जन्म पर (यह पीहर पक्ष द्वारा लाया जाता है।)
गुलाबी पोमचा – पुत्री जन्म पर
काला या चिड़ का पोमचा – विधवा महिलाओं का (यह हाडौती का प्रसिद्ध है।)
मोठड़ा –
- मोठड़ा जोधपुर का प्रसिद्ध है।
- कपड़े पर लहरिया की रेखाओं को आड़ी तिरछी लाइनों से काटना मोठड़ा कहलाता है।
साड़ियाँ –
- भारत में बनारस की साड़ियाँ प्रसिद्ध है।
- कोटा की राजस्थान में साड़ियाँ प्रसिद्ध है। इन साड़ियों को कोटा डोरिया/ मसुरिया साड़ी भी कहा जाता है।
- कोटा डोरिया/ मसुरिया साड़ी को भौगोलिक चिन्हीकरण में शामिल किया गया है।
कोटा डोरिया –
- इस साड़ी के अंदर 300 वर्ग होते है।
- 1761 ई. में कोटा के दीवान झाला जालिम सिंह के समय मैसूर से एक कलाकार महमूद मसुरिया आये थे। इन्ही के नाम पर कोटा डोरिया साड़ी का नाम मसुरिया साड़ी हुआ था।
कोटा डोरिया साड़ी को पहनकर न्यू यॉर्क (अमेरिका) में वसुंधरा राजे सिंधिया ने मॉडलिंग की थी जिसके लिए उन्हें वीमेन टुगेदर अवार्ड से सम्मानित किया गया था।
- स्प्रे प्रिंटिंग की साड़ियाँ – स्प्रे प्रिंटिंग की साड़ियाँ राजस्थान में नाथद्वारा राजसमन्द की प्रसिद्ध है।
- चुवा चन्दन की साड़ियाँ – चुवा चन्दन की साड़ियाँ राजस्थान में नाथद्वारा राजसमन्द की प्रसिद्ध है।
- सूठ की साड़ियाँ – सूठ की साड़ियाँ राजस्थान में सवाई माधोपुर की प्रसिद्ध है।
- जेनब की साड़ियाँ – जेनब की साड़ियाँ राजस्थान में दीगोद (कोटा) की प्रसिद्ध है।
- फ़ुल पत्ती वाली साड़ी – फ़ुल पत्ती वाली साड़ी राजस्थान में जोबनेर (जयपुर) की प्रसिद्ध है। यह राजस्थान में लाल मिर्च उत्पादन के लिए भी प्रसिद्ध है।
- मलमल की साड़ी – मलमल की साड़ी राजस्थान में मथानिया (जोधपुर) की प्रसिद्ध है।
- जालीदार साड़ी – राजस्थान में जैसलमेर की प्रसिद्ध है।