राजस्थान की हस्तकला/ लोककला (भाग – 2)


Handicraft/Folk Art of Rajasthan (Part – 2)


पेचवर्क / चटापटी / रफू –

  • इसका प्रमुख केंद्र शेखावटी है।
  • इसका कार्य जैसलमेर में भी होता है।
  • इसकी प्रमुख कलाकार शशि झालानी (जयपुर) की है।
  • एक कपड़े पर दुसरे कपड़े को रख कर तुरपाई करना पेचवर्क कहलाता है।

पिछवाइयां –

  • पिछवाइ कला नाथद्वारा (राजसमन्द) की है। नाथद्वारा का प्राचीन नाम सिहाड़ था।
  • दीवार पर बनी मूर्ति के पीछे देवी-देवताओं की जीवनी का चित्रण को पिछवाइ कला कहा जाता है।
  • इस कला की शुरुवात लगभग 1700 ई. में हुयी थी।
  • पिछवाइयों का प्रमुख रंग नीला होता है।
  • पिछवाइयों में वल्लभ संप्रदाय की झांकी देखने को मिलती है।
  • इसके प्रसिद्ध कलाकार विठ्ठल दास थे।
  • इस कला के अन्य कलाकार नरोत्तम लाल जोशी, घनश्याम, कैलाश शर्मा आदि है।
  • पिछवाइ कला का कार्य जांगिड़ परिवार व गौड़ ब्राहमण जाति के लोग करते है।

श्री नाथ जी के पाने –

  • कागज पर देवी-देवताओं की जीवनी का चित्रण पाने कहलाता है।
  • यह नाथद्वारा (राजसमन्द) के है।
  • इसके अंदर ’24 रंगों’ का प्रयोग होता है।

फड़ –

  • किसी देवी-देवताओं की जीवनी का कपड़े पर चित्रांकन करना फड़ कहलाता है।
  • फड़ का प्रमुख केंद्र शाहपुरा (भीलवाड़ा) है।
  • फड़ का कार्य जोशी परिवार द्वारा किया जाता है।
  • फड़ के जीर्ण – शीर्ण होने पर इसका पुष्कर झील में विसर्जन किया जाता है।
  • फड़ का मुख्य रंग लाल व हरा है।
  • श्रीलाल जोशी फड़ चित्रकला के प्रमुख कलाकार है।
  • प्रथम फड़ चितेरी महिला पार्वती जोशी थी।
  • फड़ कला को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाली महिला गौन्तली देवी थी।
  • अन्य कलाकार शांतिलाल जोशी, प्रदीप मुखर्जी, कल्याण जी जोशी आदि है।
  • फड़ में देवियों को नीले रंग से दिखाया जाता है।
  • फड़ में देवताओं को लाल रंग से दिखाया जाता है।
  • फड़ में राक्षस को काले रंग से दिखाया जाता है।
  • फड़ में साधू- संतों को सफेद या पीले रंग से दिखाया जाता है।
  • फड़ 30 फीट लम्बी व 5 फीट चौड़ी होती है।
  • फड़ का वाचन रात्रि में होता है।
  • इसमें महिला आगे- आगे लालटेन लेके चलती है व पुरुष महिला के पीछे से बांचता है।

नोट – फड़ व पिछवाइ का चित्रांकन चतुर्थ मासा (आषाढ से कार्तिक माह तक / देवश्यनी एकादशी से देव उठनी एकादशी तक) में नहीं होता है।

पाबूजी की फड़ –

चांदी की फड़ –

  • राजस्थान में पाबूजी की फड़ सबसे लोकप्रिय मानी जाती है।
  • पाबूजी की फड़ में रावणहत्था वाद्ययंत्र प्रयोग में लिया जाता है।
  • पाबूजी की फड़ का वाचन थोरी,आयड व नायक भोपों द्वारा किया जाता है।
  • पाबूजी की फड़ में केसरकालमी घोड़े को काले रंग से दिखाया गया है।
  • पाबूजी भाला लिए अश्वारोही व उनकी पाग बांयी ओर झुकी हुई है।
  • मारवाड़ में ऊठ के बीमार होने पर राईका/ रेवारी जाति पाबूजी की फड़ का वाचन करती है।
  • पाबूजी के पवाडे गाते समय माठ वाद्ययंत्र का प्रयोग किया जाता है।
  • पाबूजी की फड़ सबसे कम चित्रांकन वाली फड़ है।

देवनारायण जी की फड़ –

  • देवनारायण जी की फड़ सबसे लम्बी (25 हाथ लम्बी) फड़ है।
  • देवनारायण जी की फड़ सबसे छोटी फड़ भी है।
  • देवनारायण जी की फड़ सबसे प्राचीन फड़ है।
  • देवनारायण जी की फड़ श्री लाल जोशी द्वारा तैयार की गयी थी, जो जर्मनी के संग्रहालय में राखी हुई है।
  • राजस्थान की एकमात्र ऐसी फड़ में जिस पर 2 सितम्बर 1992 को पाँच रुपये का डाक टिकट जारी किया गया था।
  • देवनारायण जी की फड़ में जन्तर वाद्ययंत्र का प्रयोग करके गुर्जर भोपों द्वारा फड़ का वाचन किया जाता है। जन्तर वाद्ययंत्र में 5 या 6 तार होते है। यह गले में डालकर बजाया जाने वाला वाद्ययंत्र है।
  • देवनारायण जी की फड़ में इनका वाहन लीलागर घोड़ा दिखया गया है।
  • कल्याण जी जोशी ने हाल ही में कोरोना पर फड़ बनायीं थी।
  • रामलाल भोपा व पत्तासीभोपन ने अमिताभ बच्च्चन की फड़ बनाकर उसका वाचन न्यू यॉर्क में ड्रम वाद्ययंत्र के साथ किया था।
  • एकमात्र ऐतिहासिक फड़ हाड़ी रानी की फड़ है।
  • शांतिलाल जोशी ने पद्मनी का जोहर, अमरसिंह की वीरता, संयोगिता हरण, हाड़ी रानी का त्याग, हल्दीघाटी के युद्ध का वर्णन की फड़ बनायीं थी। 1991 ई. में हुए बार्सिलोना ओलम्पिक में शांतिलाल जोशी ने इन सभी फडो को प्रदर्शित किया था।
  • प्रदीप मुखर्जी ने श्री मद भागवत कथागीत गोविन्द के कथानकों को चित्रित किया था।

गोगाजी की फड़ –

  • चौहान भोपो द्वारा इस फड़ का वाचन किया जाता है।
  • इसमें डेरू वाद्ययंत्र का प्रयोग किया जाता है।

रामदला व कृष्णादला की फड़ –

  • इस फड़ में वाद्ययंत्र का प्रयोग नहीं किया जाता है।
  • यह फड़ हाड़ोती क्षेत्र की प्रमुख फड़ है।
  • यह एकमात्र ऐसी फड़ है जिसका वाचन दिन में होता है।
  • यह फड़ कृष्ण जीवन पर आधारित है।

भैंसासुर की फड़ –

  • इस फड़ में वाद्ययंत्र का प्रयोग नहीं किया जाता है।
  • चोरी करने से पहले इस फड़ के आगे माथा टेका जाता है।
  • बावरी व कंजर जनजाति इस फड़ का वाचन करती है।

रामदेव जी की फड़ –

  • चौथमल चितेरे ने यह फड़ तैयार की थी।
  • इसमें रावण हत्था वाद्ययंत्र का प्रयोग किया जाता है। राजस्थान का प्राचीनतम वाद्ययंत्र रावण हत्था है। यह अध् कटे नारियल के समान होता है।
  • रम्मत शुरू होने से पहले रामदेव जी के भजन गाये जाते है।
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