भौगोलिक परिस्तिथियों के आधार पर अत्तराखंड को 8 भागों में बटा गया है –
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ट्रांस हिमालयी क्षेत्र
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बृहत्तर,उच्च्च या महान हिमालयी क्षेत्र
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मध्य या लघु हिमालयी क्षेत्र
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दून या द्वार क्षेत्र
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शिवालिक क्षेत्र या ब्रह्यय हिमालय
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भाभर क्षेत्र
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तराई क्षेत्र
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हरिद्वार या गंगा का मैदानी भूभाग
1. ट्रांस हिमालयी क्षेत्र-
(ट्रांस का अर्थ – के पार)
- ट्रांस हिमालयी क्षेत्र महान हिमालय के उत्तर में स्तिथ है।
- यहाँ की पर्वत श्रेणियों को जैक्सर पर्वत श्रेणी कहा जाता है।
- इनकी चौड़ाई 20 से 30 किमी की है।
- इनकी उचाई 2500 से 3500 मीटर है।
- यहाँ के प्रमुख दर्रे –जेलखणा,माणा,नीति , चोरहोती , दमजम, शलशला, किंगरी बिंगरी, दारमा आदि है।
(दर्रा -पर्वतिय क्षेत्रों और पहाडियों में आवागमन के लिए पाए जाने वाले प्राकृतिक मार्गों को दर्रा कहा जाता हैं।)
2. बृहत्तर,उच्च्च या महान हिमालयी क्षेत्र-
- वर्ष भर बर्फ़ से ढका रहने के कारण इन्हें हिमाद्री भी कहा जाता है।
- इनका विस्तार – उत्तरकाशी , टिहरी, रुद्रप्रयाग, चमोली, बागेश्वर , पिथौरागढ़ से होता है।
- इन पर्वतो की चौड़ाई – 15 किमी से 30 किमी तक है।
- इन पर्वतो की ऊचाई – 4500 से 7817 मीटर तक है।
- राज्य के प्रमुख पर्वत- नंदा देवी पश्चिमी, कामेट, नंदा देवी पूर्वी , माणा,बद्रीनाथ है।
(नंदा देवी पश्चिमी की ऊचाई 7817 मीटर है।यह हिमालय की दूसरी सबसे ऊची तथा भारत की तीसरी सबसे ऊची चोटी है।अत्तराखंड में इस चोटी को मुख्य देवी के रूप में पूजा जाता है। इस चोटी को माँ नंदा का रूप माना जाता है।)
(नंदा देवी पूर्वी की ऊचाई 7434 मीटर है।इस चोटी को माँ सुनंदा का स्वरूप माना जाता है।)
- इस क्षेत्र में विशाल हिमनद /ग्लेशियर पाए जाते है, जो राज्य की सभी प्रमुख नदियों के उद्गम स्रोत है।
- इन चोटियों में 12000 फिट से ऊपर कोई वनस्पति नहीं है।
- इन चोटियों में 12000 से 10000 फिट की ऊचाई में कुछ घास तथा झाड़ियाँ पाई जाती है।
- 10000 फिट से निचे बुग्वाल या घास के मैदान पाए जाते है। प्रसिद्ध फूलो की घाटी यही स्थित है।
- यहाँ की चट्टानें 130 से 140 करोड़ वर्ष पुरानी मानी जाती है।
- इस क्षेत्र में ग्रेनाइट, नीस चट्टानें, रूपांतरित, अवसादी चट्टानें पायी जाती है।
- इस क्षेत्र के मूल निवासी भोटिया तथा उनकी उपजातियाँ जाड़, मारछा, तोलछा (भागीरथी-अलकनंदा घाटी) शौका , जोहार (धौली-गौरी -काली नदी घाटी) निवास करते है।
- इन क्षेत्रों में ग्रीष्म ऋतू की रुड़ी या खर्साऊ कहा जाता है।
- शीत ऋतू को शीतकला या स्यूंद कहा जाता है।
- वर्षा ऋतू को चौमास या बसगाल कहा जाता है।
- इस क्षेत्र में वर्षा सबसे कम होती है। यहाँ 40 से 80 सेंटीमीटर तक वर्षा होती है। यहाँ वर्षा बर्फ़ के रूप में होती है।
- इन क्षेत्रों में चीड़, साल, सागौन के वन पाए जाते है।
3.मध्य या लघु हिमालयी क्षेत्र-
- आंशिक रूप से बर्फ़ से ढका होने के कारण इसे हिम का आँचल या हिमांचल भी कहा जाता है।
- वृहत हिमालय के दक्षिण में तथा शिवालिक हिमालय के उत्तर में स्तिथ है।
- यह राज्य के 9 जिलो में फेला है। (नैनीताल,देहरादून,उत्तरकाशी,टिहरी ,पौड़ी,चमोली,रुद्रप्रयाग,अलमोड़ा,चंपावत)
- चौड़ाई- 70 से 100 किमी।
- ऊचाई- 1200 से 4500मीटर।
- यहाँ के पर्वत वलित प्रकार के होते है, जो की कायांतरित चट्टानों से निर्मित है।
- प्रमुख खनिज – ताँबा, ग्रेफाइट, जिप्सम,मैग्नेसाइट आदि पाए जाते है।
- नदियाँ- सरयू ,अलकनंदा,पश्चिमी राम गंगा, नयार आदि है।
- इस क्षेत्र की अलकनंदा नदी घाटी-ज्वार,चुआ के लिए प्रसिद्ध है।
- अल्मोड़ा नदी घाटी – मक्का के लिए प्रसिद्ध है
- प्रमुख झीले –भीमताल, नौकुचियाताल, सातताल, खुर्पाताल, सूखाताल , पूनाताल,नैनीताल,सरियाताल आदि है।
- औसत वार्षिक वर्षा- 160 से 200 सेंटीमीटर।
- वन – चीड़, फर,देवदार,बाँज आदि ।
- इस क्षेत्र के निचले भागो में घास के मैदान,बुग्याल, मर्ग(कश्मीर में – गुलमर्ग, सोनमर्ग, टनमर्ग ), पयार,थच( कुल्लू)
- प्रमुख पठार- देववन,मसूरी,रानीखेत, बिनसर, सुरकुंडा, दूधातोली, लोखंडीटिब्बा,लालटिब्बा।
- दूधातोली- अन्य नाम: “उत्तराखंड का पामीर” ( अलमोड़ा, पौड़ी, चमोली में विस्तृत)
(पामीर- ऊचाई पर स्थित समतल क्षेत्र।)
- 5 नदियों का संगम – पश्चिमी राम गंगा(सबसे बड़ी), आरागाड़,पूर्वी न्यार, पश्चीमी न्यार।
- 1960 में गढ़वाली जी ने जवाहर लाल जेहरू से दूधातोली (गैरसैण) को देश की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की माँग की।
- भारत की सबसे ऊचि चोटी- 1. K2 ( काराकोरम पर्वत श्रंखला) 2. कंचनजंघा ( हिमालय पर्वत श्रंखला ) 3. नंदा देवी पश्चीमी (हिमालय पर्वत श्रंखला )
4.दून या द्वार क्षेत्र-
- मध्य हिमालय के दक्षिण में शिवालिक के उत्तर में स्तिथ है।
- चौड़ाई- 24 से 34 किमी।
- ऊचाई- 350 से 750 मीटर।
- पश्चिम उत्तराखंड में इसे दून( कोटादून, पातलीदून, हर की दून, देहरादून) तथा पूर्वी उत्तराखंड में इसे द्वार कहा जाता है (हरिद्वार ,कोटद्वार)।
- औसत वार्षिक वर्षा – 200 से 500 सेंटीमीटर।
- प्रमुख वन- चीड़, देवदार,ओक( ऊचे क्षेत्रों में)
- शीशम , सेमल, आवला , साल ( निचले क्षेत्रों में)
- खनिज – चूना पत्थर
- प्रमुख नदिया – आसन , सुसवा
5.शिवालिक क्षेत्र या ब्रह्यय हिमालय-
(शिव+अलक=शिवजी की भौहें=शिवालिक)
- इस पर्वत श्रेणी को ” मैनाक श्रेणी “ कहा जाता है। इनके अन्य नाम हिमालय के गिरिपद है।
- चौड़ाई-10 से 20 किमी।
- ऊचाई- 700 से 1200 मीटर।
- विस्तार-इसका विस्तार 7 जिलो (देहरादून,हरिद्वार, टिहरी,पौड़ी,अलमोड़ा,नैनीताल,चंपावत) में है।
- नदियों के प्रवाह के कारण यह क्षेत्र लगातार न होकर खंडित आवस्था में फैला हुआ है, जिसके कारण “गहरी घाटियों” का निर्माण हुआ।
- सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र में सर्वाधिक वर्षा वाला क्षेत्र यही है।
- प्रमुख वन- शीशम , सेलम , आवला,बांस,सागौन,साल। ( निचले क्षेत्रों में )
- देवदार,बेंत , बुरांश,चीड़ । ( ऊचे क्षेत्रों में)
- प्रमुख खनिज – चूना पत्थर ,फास्फेटिकशैल, जिप्सम, संगमरमर ।
- यह श्रेणी हिमायल का सबसे नवीन भाग है। 1.75 लाख से 3 करोड़ वर्ष पुरना है।
- “जीवाश्म” पाए जाते है।
6.भाभर क्षेत्र-
- शिवालिक के दक्षिण का मैदानी क्षेत्र।
- चौड़ाई-10 से 12 किमी।
- यह भाग नदियों द्वारा लाये गये कंकड़ पत्थर,बालू आदि से निर्मित।
- यहाँ की नदिया रिसकर.तराई भाग में पुनः उत्पन्न हो जाती है।
- विस्तार- देहरादून से चपावत।
7.तराई क्षेत्र-
- विस्तार- हरिद्वार, पौड़ी, नैनीताल,उधम सिंह नगर में विस्तृत।
- चौड़ाई-20 से 30 किमी।
- तराई क्षेत्र नदियों द्वारा लाये महीन बारीक बालू से निर्मित है।
- “पातालतोड़ कुएं” प्राप्त।
- फासले – धान, गन्ना, गेहूं, आलू ।
- प्रमुख स्थल – रुद्रपुर,सितारगंज, बाजपुर, काशीपुर,खटीमा।
8.हरिद्वार या गंगा का मैदानी भूभाग-
- दक्षिण हरिद्वार ( रुड़की,लक्सर) में विस्तृत। महीन बारीक बालू से निर्मित।
- फसल- गन्ना, गेहूं,धान।
- उपजाऊ मृदा-(कॉप मृदा या जलोढ मृदा)- अधिकांश मात्रा में उपलब्ध।
- पुरानी जलोढ मृदा – बांगर।
- नयी जलोढ मृदा – खादर।