राजस्थान राज्य की लोक देवियाँ (भाग – 1)
Folk Goddesses of Rajasthan State (Part – 1)
1. करणी माता ( Karani Mata ) –
- करणी माता का वास्तविक नाम रिद्धिबाई था।
- करणी माता का जन्म सुआप (जोधपुर) में हुआ था।
- करणी माता का मंदिर देशनोक (बीकानेर) में है।
- करणी माता के पिता का नाम मेहाजी चारण था।
- करणी माता के माता का नाम देवलबाई था।
- करणी माता की इष्ट देवी तेमड़ा माता है।
- करणी माता के उपनाम डोकरी, चूहों की देवी, जोगमाया, जगत माता का अवतार आदि है।
- सफेद चील को करणी माता का रूप माना जाता है।
- करणी माता ने स्वयं करणी माता के मंदिर की नींव रखी थी।
- 19वीं शताब्दी में कर्ण सिंह ने इस मूल मंदिर का निर्माण करवाया था।
- बीकानेर के सेठ चाँदमल ढढ्ढा द्वारा करणी माता मंदिर का प्रवेश द्वार ( सिंह द्वार ) संगमरमर से बनाया गया है।
- राजस्थान के बीकानेर क्षेत्र में करणी माता को शक्ति एवं जगत माता का अवतार माना जाता है।
- मान्यता है की यदि मंदिर में पूजा-अर्चना करते वक्त किसी व्यक्ति के सिर पर चूहा चढ जाता है तो उसे शुभ माना जाता हैं।
- करणी माता मंदिर का पूर्निर्माण महाराजा गंगा ने करवाया था। महाराजा गंगासिंह ने मंदिर में चाँदी के किवाड़ भेंट किए थे ।
- करणी माता के पुजारी चारण समुदाय के व्यक्ति होते हैं।
- करणी माता के मंदिर को ” मठ” कहा जाता हैं।
- देशनोक में स्थित करणी माता के मंदिर में सर्वाधिक चूहे पाए जाते हैं, इसलिए इस मंदिर को चूहों का मंदिर भी कहा जाता है। इसी कारण से करणी माता चुहों वाली देवी के नाम से प्रसिद्ध है।
- करणी माता चारणों व बीकानेर के राठौड़ों की की कुलदेवी है।
- करणी माता मंदिर में पाए जाने वाले सफेद चूहों को काबा कहा जाता है।
- करणी माता मंदिर में दो कढ़ाइयाँ रखी गयी है, जिनको “सावन-भादो कढ़ाइयाँ” कहा जाता हैं।
- प्रतिवर्ष चैत्र एवं आश्विन के नवरात्रों में बहुत बड़ा मेला लगता हैं।
- मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव करणी माता द्वारा ही रखी गयी थी।
- मान्यता है की करणी माता ने ही देशनोक कस्बा बसाया था और इसे अपना कार्यस्थल बनाया था।
- करणी माता का विवाह ‘साठीका गाँव’ के चारण बीठू केलु के पुत्र देपाजी बीठू से हुआ था। करणी माता भोग-विलास से दूर होकर भक्ति की राह में चलने लगी थी जिसके कारण करणी माता ने अपनी बहन गुलाब कुँवरी का विवाह देपाजी बीठू से करवा दिया था।
- विवाह करने के पश्चात करणी माता देशनोक के समीप ‘जाँगव्ठू के बीड़/ नेहदी’ नामक स्थान पर रहने लगी । ( नेहडी वह स्थान जहाँ बैठकर करणी माता ‘विलोवणा/दही मंथन’ किया करती थी। )
- करणी माता ने अपनी बहन गुलाब कुँवरी के पुत्र लाखण को गोद लिया था , जिसकी मृत्यु कोलायत झील (बीकानेर) में रक्षाबंधन के दिन श्रावण मास की पूर्णिमा को में डूब कर मर गया था।
- मान्यता है की करणी माताजी ने अपनी शक्तियों से उस बालक को पुनर्जिवित कर दिया था।
- इसी कारणवश चारण समुदाय के लोग कोलायत बीकानेर में कपिल मुनि के मेले में नहीं जाते है।
- चारण समाज के लोग करणी माता मंदिर के चूहों को अपना पूर्वज मानते है।
- अलवर के बख्तावर सिंह ने करणी माता के मंदिर में स्वर्ण पाट भेंट किए थे।
- दशरथ मेघवाल नामक व्यक्ति करणी माँ की गायों की रक्षा करते हुए मरा था। करणी माता के मंदिर के प्रमुख द्वार के समीप करणी माता के ग्वाले दशरथ मेघवाल का देवरा है।
- करणी माता ने राव कान्हा जिसने गोधन पर आक्रमण किया था उसका वध किया था।
- मान्यता है की चारणों को करणी माता ने चूहा बनने का श्राप दिया था।कहा जाता है इसी कारण करणी माता के मंदिर में इतनी अधिक मात्रा में चूहे हैं।
- यह भी कहा जाता है जिस दिन करणी माता खुश होगी तभी चारणों को इस श्राप से मुक्ति मिलेगी।
- करणी माता के आशीर्वाद से ही राव जोधा के पुत्र राव बीका के बीकानेर शहर की की नींव रखी गई थी।
- करणी माता ने विक्रम संवत् 1595 की चैत्र शुक्ला नवमी ‘को घिनेरू की तलाई नामक स्थान पर महाप्रयाग कर लिया था।
- करणी माता ने करीब 150 वर्षों तक भौतिक शरीर को धारण किया था।
2. जीण माता –
- जीण माता का वास्तविक नाम जयंती बाई था।
- जीण माता का का जन्म धांधू ग्राम (सीकर) में चौहान वंश के राजा घंघ के घर में हुआ था।
- जीण माता के भाई का नाम हर्ष था।
- जीण माता के भाई हर्ष के विवाह के पश्चात एक दिन नणद-भौंजाईं में हुई कहा सुनी के बाद जीण माता घर छोड़ कर चली गयी थी। भाई हर्ष के लाख मानाने पर भी जब वह नहीं लौटी तो हर्ष भी उनके साथ चले गये और पहाडों में तपस्या करने लगे थे।
- जीण माता का मंदिर रेवासा ग्राम (सीकर) में स्थित है।
- जीण माता का मंदिर का निर्माण राजा हट्टड़ ने 1064 ई. में करवाया था।
- हर्ष पर्वत के शिलालेख के अनुसार जीण माता का मंदिर का राजा हट्टड़ ने पृथ्वीराज चौहान (प्रथम) के समय में करवाया था।
- जीण माता चैहानों की कुलदेवी है।
- जीण माता की प्रतिमा अष्टभुजी हैं।
- जीणमाता की अष्टभुजा प्रतिमा एक बार में ढाई प्याला मदिरा पान चढ़ाने की रस्म अदा की जाती हैं।
- चैत्र और अश्विन माह के नवरात्रों में प्रतिवर्ष जीण माता का मेला लगता हैं। मीणा जनजाति के लोग इस मेले में मुख्य रूप से भाग लेते है।
- पुजारी जीणमाता की तांत्रिक शक्ति पीठ को सिद्ध स्थल मानते हैं ।
- जीण माता को मीणों की कुल देवी, चौहानों की कुल देवी, शेखावाटी क्षेत्र की लोक देवी एवं मधुमक्खियों की देवी आदि नामों से जाना जाता है ।
- जीणमाता के मंदिर परिसर में बकरों के कान की बलि देने की प्रथा प्रचलित है।
- राजस्थानी लोक साहित्य में जीण माता का लोकगीत सर्वाधिक लम्बा हैं।
- जीण माता के इस लोक गीत को कनफटे जोगी केसरिया वस्त्र धारणकर, माथे पर सिन्दूर लगाकर, डमरू व सारंगी पर गाते है।
- जीण माता का यह लोकगीत करूण रस से ओत-प्रोत है जो ‘चिरंजा’ कहलाता है ।
- नागौर जिले के प्राचीन कस्बे मारोठ के पश्चिम में स्थित पर्वत की गुफा के भीतर महाराजा महेशदान सिंह ने एक छोटा किन्तु भव्य मंदिर बनवाया था।
3. कैला देवी –
- कैला देवी माता के मंदिर को गोपाल सिंह ने 19वीं शताब्दी में बनवाया था।
- कैला देवी यदुवंशी राजवंश की जादोन शाखा की कुलदेवी है।
- यदुवंशी कैला देवी को दुर्गा के रूप में पूजते हैं।
- मान्यता है की पूर्वजन्म में कैला देवी अंजनी माता (हनुमानजी की माता) का अवतार थी,अत: कैला देवी को ‘अंजनी माता’ का रूप भी माना जाता हैं।
- कैला देवी माता का मंदिर करौली जिले के त्रिकूट पर्वत की घाटी में स्थित है।
- कैलादेवी की आराधना करते हुए भक्त लांगूरिया भक्ति गीत गाते है।
- कैला देवी की अराधना करते हुए घुटकुल नृत्य किया जाता है जिसे गुर्जर एवं मीणा जाति के लोग करते है। कैलादेवी गुर्जरों व मीणाओं की इष्टदेवी है।
- कैलादेवी का लक्खी मेला हर वर्ष चैत्रमास की शुक्ल अष्टमी को त्रिकूट पर्वत की चोटी पर लगता है।लांगूरिया गीत मेले का प्रमुख आकर्षण का केंद्र है।
- कैलादेवी मंदिर के सामने ही बोहरा की छतरी है। मान्यता है की बोहरा के पुजारी पुश्तैनी बीमारी को झाड़-फूंक कर ठीक कर देते है।
- कैलादेवी की तीर्थयात्रा तब तक सफल नहीं मानी जाती जब तक श्रद्धालु कालीसिल नदी में स्नान नहीं करते।
- अंजना माता अग्रवाल जाति की कुल देवी तथा हनुमानअग्रवाल जाति के कुल देवता है।
- कैलादेवी का मंदिर पुरे राजस्थान में एकमात्र एसा मंदिर है जहाँ बलि नहीं दी जाती है।
4. शीतला माता –
- शीतला माता का मंदिर लूणिवास गाँव, चाकसू तहसिल (जयपुर) शील की डूंगरी में स्थित हैं।
- शीतला माता के मंदिर का निर्माण सवाई माधोसिंह ने कराया था।
- शीतला माता का वाहन गधा है।
- शीतला माता के पुजारी-कुम्हार समाज के लोग होते है।
- शीतला माता के मंदिर में मूर्ति की स्थानमें भाषण (पत्थर) के खंड है।
- शीतला माता का प्रतीक चिन्ह मिट्टी की कटोरियाँ (दीपक) है।
- प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण अष्टमी (शीतलाष्टमी) को शीतला माता के इस मंदिर में मेला लगता है।
- शीतलाष्टमी के दिन शीतला माता को ठंडा भोजन/बास्योड़ा का भोग लगाया जाता है।
- शीतला माता का उपनाम सैढ़ल माता, बोदरी माता,चेचक की देवी, बच्चों की पालनहार व सेढ़ल माता आदि नाम से जाना जाता है।
- शीतला माता को खण्डित रूप में पूजी जाती है।
- शीतलाष्टमी के दिन मारवाड़ में घुडला पर्व मनाया जाता है।
- शीतला माता के मंदिर को सुहाग मंदिर के नाम से भी जाना जाता है ।
- बांझ महिलाएं संतान प्राप्ति हेतु शीतला माता की पूजा अर्चना करती है।
- शीतला माता का प्राचीन मंदिर उदयपुर में गोगुंदा गांव में स्थित है।