शाकंभरी माता का मंदिर उदयपुर वाटी (झुनझुनु) में स्थित है।
शाकंभरी माता खण्डेलवाल समाज की कूल देवी रूप में प्रसिद्ध है।
शाकंभरी माता ने अकाल से पीडित जनता को बचाने के लिए फल सब्जियां, कंद-मूल उत्पन किये थे।इसी कारण से शाकंभरी
माता को शाक /सब्जियों की रक्षक देवी आदि उपनामों से भी जाना जाता है।
इन सभी शक्तियों के कारण ही सकराय माता शाकंभरी माता माता कहलायी थी।
शाकंभरी माता के मंदिर का निर्माण वासुदेव चौहान द्वारा करवाया गया था।
शाकंभरी माता का एक मंदिर सांभर (जयपुर) में भी है।
शाकंभरी माता को सांभर के चौहानों की भी कुलदेवी है।
शाकंभरी माता के अन्य मंदिर उदयपुरवाटी (झुंझुनू) एवं सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में स्थित है।
6. शीला माता –
शिला माता आमेर के कछवाहा वंश की आराध्य देवी है।
शिला माता का उपनाम अन्नपूर्णा देवी है।
शिला माता मंदिर का निर्माण कच्छवाह शासक मानसिंह प्रथम द्वारा करवाया गया था।
16वीं शताब्दी में मानसिंह प्रथम पूर्वी बंगाल के लक्ष्मीनारायण व राजा केदार को पराजित कर शीलादेवी माता की मूर्ति लाये थे।
बंगाल के जेस्सोर से शीलादेवी माता की मूर्ति लेके आये थे और आमेर के महलों में स्थापित की थी।
शिला माता मंदिर का पुनर्निर्माण मिर्जा राजा जयसिंह द्वारा करवाया गया था।
मंदिर में स्थापित शिला माता की प्रतिमा अष्टभुजी है।
शिला माता का मंदिर सफेद संगमरमर से निर्मित है, जिसमे स्थापत्य कला की उत्कृष्ट कृति है।
शिला माता का मंदिर आमेर (वर्तमान जयपुर) में स्थित है।
शिला माता का मंदिर आमेर दुर्ग में स्थित है।
शिला माता के इस मंदिर में राजा मान सिंह के शासनकाल में नरबलि तथा बाद में छागबलि दी जाती थी।
वर्तमान में सभी बालियों को बंद कर दिया गया है।
शिला माता के इस मंदिर में ‘शराब’ चढ़ाई जाती है, इस मंदिर में भक्तों को शराब एवं जल चरणामृत रूप’में दिया जाता है।
शिला माता के मंदिर में वर्ष में दो बार चैत्र और आश्विन के नवरात्र में मेला लगता है।
माता के मंदिर के पास भैरव देव का भी मंदिर है, माना जाता है की यदि माता के दर्शन’ के पश्चात भैरव देव के दर्शन ना किये तो माता के दर्शन भी अधूरे होते है।
7. जमूवाय माता-
जमूवाय माता का मंदिर जमुवा रामगढ में स्थित’ है।
जमूवाय माता आमेर के शासक कछवाहों की कुल देवी हैं।
दूल्हराय (तेजकरण) ने दौसा के रामगढ़ में कछवाहों की कुल देवी “जमूवाय माता” का मंदिर बनाया था।
मान्यता है की जमूवाय माता सतयुग में मंगलायू , त्रेतायुग में हड़वाय,द्वापर युग में बढ़वाय और कलियुग में जमुवाय माता के रूप में आई थी।
8. राणी सती माता –
राणी सती माता का जन्म महम ग्राम (डोकवा) के अग्रवाल घुड़सालम के घर में हुआ था।
राणी सती माता का वास्तविक नाम नारायणी बाई अग्रवाल था।
राणी सती माता को दादी जी उपनाम से जाना जाता है।
राणी सती माता के पति का नाम तनधनदास था।
राणी सती माता का मंदिर झुनझुनू जिले में है।
राणी सती माता अग्रवाल जाति की कुलदेवी है।
हिसार के नवाब की रक्षा करते हुए तनधनदास स्वर्ग सिधार गए तब नारायणी बाईं ने सन् 1652 में मार्गशीर्ष कृष्णा नवमीं को अपने सतीत्व की रक्षा के लिए सती हुई थी।
नारायणी बाईं के साथ इनके परिवार कुल 13 स्त्रियां सती हुई ।
झुनझुनू में प्रतिवर्ष भाद्रपद अमावस्या को मेला लगता था।
1988 में राजस्थान राज्य सरकार द्वारा सती प्रथा निवारण अधिनियम -1987 के तहत यहाँ लगने वाले मेले में रोक लगा दी थी।
9. नारायणी माता / करमेती माता-
नारायणी माता का मंदिर अलवर जिले में राजगढ तहसील के बरवा डूंगरी में स्थित है ।
नारायणी माता को नाईं समुदाय अपनी कुलदेवी मानता है।
नारायणी माता को मीणा समाज की अराध्य देवी माना जाता है।
नारायणी माता का यह मंदिर 11वीं सदी में बनाया गया था।
अलवर जिले में नारायणी माता के पुजारी, मीणा समुदाय के लोग होते है।
10. आई माता –
आई माता का मंदिर बिलाड़ा ग्राम (जोधपुर) में स्थित है।
आई माता को नवदुर्गा/मानी देवी का अवतार माना जाता है।
जीजाबाई आई माता के बचपन का नाम था।
आई माता का जन्म अंबापुर (गुजरात) प्रान्त बीका डाबी राजपूत के घर विक्रम संवत् 1472 भादवा सुदी बीज शनिवार को हुआ था।
आई माता का मंदिर को दरगाह कहा जाता है। माता की समाधी स्थल को बढ़ेर कहा जाता है।
आई माता सिरवी समुदाय की कुल देवी है। (सिरवी समुदाय राजपूतों से निकला एक कृषक समुदाय माना जाता है।)
इस मंदिर में आई माता की मूर्ति नहीं है।
आई माता के मंदिर में इनकी मूर्ति नहीं होती है।
आई माता के मंदिर में गुर्जर समुदाय का प्रवेश निषिद्ध है।
आई माता के मंदिर में दीपक की ज्योति से कैसर टपकता है।
प्रतेक माह की शुक्ला द्वितीया को आई माता की पूजा अर्चना होती है।
आई माता के गुरु रामदेवजी थे।
आई पंथ के अनुयायियों को आईं माता द्वारा बनाए गए 11 नियमों का पालन करना अनिवार्य है। इन 11 नियमों का पालन करने हेतू सूत के धागे की 11 गाँठों वाली बेल पुरुष के हाथ पर तथा महिलाओं के गले में बाधी जाती है।
11. आवड़ माता –
आवड़ माता का मंदिर भू-गांव (जैसलमेर) में स्थित है।
माना जाता है की आवक माता का जन्म जैसलमेर में आगमन विक्रम संवत् 888 में हुआ था।
आवड़ माता का उपनाम तेमडे़राय था।
आवड़ माता को हिंगलाज माता का अवतार माना जाता है।
मान्यता है की हकरा नदी पर क्रोधित होकर आवड़ माता नदी का पूरा पानी एक घूंट में पी गई थी।
12. आशापुरा माता –
आशापुरा माता बिस्सा समुदाय की कुलदेवी है।
बिस्सा समुदाय आशापुरा माता के उपासक हैं ।
आशापुरा माता का मंदिर पोकरण के निकट स्थित है ।
बिस्सा समुदाय में विवाहित महिलाएं मेहँदी नहीं लगा सकती है।
आशापुरा माता के लिए भाद्र शुक्ला दशमीं व माघ शुक्ला दशमीं को दो विशाल उत्सव किये जाते है।
बिस्सा समुदाय के लोग झडूला इसी मंदिर में उतारते है तथा विवाह के पश्चात ‘जात’ लगाने भी जाते है।
आशापाला वृक्ष में आशापुरा माता का वास है।
चौहान वंश का आराध्य वृक्ष आशापाला वृक्ष है। चौहान समुदाय के लोग ना ही इस वृक्ष को काटते हैं और न ही जलाते हैं।
13. सच्चियाय माता (सचिया माता) –
सच्चियाय माता का मंदिर ओसियाँ (जोधपुर) में स्थित है।
ओसियाँ का प्राचीन नाम उकेश या उपकेश पट्टन था।
सच्चियाय माता ओसवाल समुदाय की कुलदेवी है ।
सच्चियाय माता को सम्प्रदायिक सद्भाव की देवी कहा जाता है।
सच्चियाय माता के मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में प्रतिहार वंश के शासकों द्वारा करवाया गया था।
इस मंदिर में वर्तमान प्रतिमा कसौरि पत्थर की है।
ओसियाँ ग्राम राजस्थान का एकमात्र ग्राम है जहाँ चार शताब्दी ( 8-12वीं शताब्दी ) तक विभिन्न संप्रदायों के देव भवन बनते रहे हैं ।
14. ब्रह्माणी माता –
ब्रह्माणी माता का मंदिर सोरसण (बांरा) में स्थित है।
ब्रह्माणी माता का मंदिर विश्व का एक मात्र ऐसा मंदिर है जहाँ माता की पीठ की पूजा की जाती है।
इस मंदिर में माता के पीठ का श्रृंगार कर पूजा अर्चना की जाती है व श्रद्धालु भी माता के पीठ के दर्शन करते हैं।
ब्रह्माणी माता कुम्हार समुदाय की कुलदेवी है।
माघ शुक्ल सप्तमी को इस स्थान में गधों का मेला लगता हैं।
15. तनोटिया माता / रूमाला माता –
महाराजा केहर ने अपने पुत्र तणु के नाम पर तन्नौर नगर बसाया तथा तनोटिया माता की स्थापना करवाई थी।
तनोटिया माता का मंदिर तन्नौट (जैसलमेर) में स्थित है।
तनोट माता को रुमाल वाली देवी, सेना के जवानों की ईष्ट देवी, भाटी शासकों की ईस्ट देवी, थार की वैष्णो देवी आदि नामों से भी जाना जाता हैं।
तनोट माता की पूजा बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (बीएसएफ) के जवान करते हैं।
तनोटिया माता को सैनिको की आराध्य देवी माना जाता है।
16. स्वागिया माता –
स्वागिया माता का मंदिर जैसलमेर क्षेत्र में स्थित है।
स्वांगिया माता भाटी वंश की कुलदेवी है।
स्वांगिया माता को आवड़ माता का ही एक स्वरूप माना जाता है।
17. घेवर माता –
घेवर माता का मंदिर राजसमंद जनपद में स्थित है।
घेवर माता राजस्थान इतिहास में एकमात्र लोक देवी है जो बिना पति के सती हुई थी।घेवर माता स्वंय के हाथों में ज्वाला प्रज्जवलित कर सती हुई थी।
मान्यता है की राजसमन्द में पाल बार – बार बनते बनते टूट जाया करती थी,तब किसी ज्योतिषी के कहने से ऐसी स्त्रि की खोज की गई जो पतिव्रता हो और जिसके बाएँ गाल पर आंखों के नीचे तिल हो ।
इसके पश्चात ही मालवे से घेवर बाईं को लाया गया था। इसके बाद घेवर माता के हाथ से पाल पर पत्थर रखवाया गया था।
18. जिलाणी माता –
जिलाणी माता का मंदिर अलवर जिले के बहरोड़ कस्बे की प्राचीन बावडी के निकट स्थित है।
जिलाणी माता ने मुसलमानों से हिन्दुओं की रक्षा की तथा हिन्दुओं को मुसलमान बनने से बचाया था।
जिलाणी माता के मंदिर में प्रतिवर्ष दो विशाल मेलों का आयोजन किया जाता है।