उत्तराखंड के प्रसिद्ध वाद्य यंत्र
Famous Instruments of Uttarakhand
1.धातु या घन वाद्य यंत्र- घंटा, थाली, घुंघरू, चिमटा, विणाई, मंजीरा, करताल ,कांसे की थाली , खजड़ी, , चिमटा, थाली आदि।
2.चर्मवाद्य- ढोल, दमाऊं (दमामा) , नगाड़ा, डफली, हुड़का या हुड़की, डोंर, साइया, तबला, डफली, आदि।
3. तार या तांत वाद्य- सारंगी, इकतारा, वीणा,एकतारा, दो तारा वीणा आदि।
4.सुषिर या फूंक वाद्य- तुरही, रणसिंघा, अंकोरा , नागफणी,भोंकर, शंख, मोछंग(मोरचंग), , मोठंग, अल्गोजा(बांसुरी), मशकबीन आदि।
5. अन्य वाद्ययंत्र –आरगन, गिटार, हारमोनियम आदि।
बिणाई / मोरछंग –
- बिणाई / मोरछंग लोहे से बना हुआ एक वाद्ययंत्र है।
- बिणाई आकर में छोटा होता है। इस वाद्ययंत्र को सामान्यतः महिलाये बजाती है।
- आधुनिक युग में अब यह यंत्र विलुप्त (Extinct) होने की कगार पर है।
ढोल –
- उत्तराखण्ड के पारंपरिक वाद्य यंत्रो में से ढोल भी एक है।
- ताँबे या साल की लकड़ी से ढोल का निर्माण किया जाता है।
- ढोल की दाई पुड़ी पर बारहसिंगा या भैंस की खाल तथा बाई पुड़ी (खाल) पर बकरी की पतली खाल चढ़ी होती है।
- ढोल का उपयोग देवताओं के जागर, शादी-विवाह तथा सभी मंगल कार्यों में किया जाता है।
- उत्तराखंड का राज्य वाद्य यंत्र भी ढोल ही है।
दमाऊं (दमामा) –
- यह प्रमुख वाद्ययंत्र ताँबे या साल की लकड़ी से निर्माण किया जाता है।
- यह वाद्ययंत्र एक फुट व्यास तथा आठ इंच गहरा होता है। जो की एक कटोरे के समान होता है।
- दमाऊं वाद्ययंत्र के मुख पर मोटे चमड़े की खाल चढ़ी होती है।
- ढोल और दमाऊँ दोनों वाद्ययंत्रो को साथ-साथ बजाया जाता है।
हुडुक या हुड़की –
- कुमाऊँ में कत्यूरी वंश के राज के समय में राजा दुलाशाह के दरबार में लगभग छठी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में बिजुला नैक द्वारा पहली बार हुडकी बजाई जाने का उल्लेख हुआ है।
- यह हुडकी बजाने का उल्लेख कत्यूरियों की गाथा में मिलता है।
- हुडुक /हुड़की की लम्बाई लगभग 1 फुट 3 इंच होती है, तथा इसकी पुड़ी को बकरी आमाशय की भीतरी खाल से बनाया जाता है।
- हुडुक /हुड़की उत्तराखंड का एक बहुत ही महत्वपूर्ण लोक वाद्य यंत्र है।
- हुडुक /हुड़की को जागरों, कृषि कार्यों तथा युद्ध प्रेरक प्रसंगो में बजाया जाता है।
डौंर या डमरू –
- डौंर उत्तराखंड का एक प्रमुख वाद्ययंत्र है।
- डौंर को एक ओर हाथ से तथा दूसरी ओर लकड़ी के सोटे (wooden string) से बजाया जाता है।
- सानण या खमिर की लकड़ी से डौंर को बनाया किया जाता है।
- डौंर के दोनों सिरों में घुरड़, कांकड़ या बकरे की पूड़ी (खाल) लगाई जाती है।
- डौंर का ज्यदा प्रचलन गढ़वाल क्षेत्र में होता है।
- सिर्फ ब्राह्मण पुरोहित द्वारा ही डौंर का वादन किया जाता है।
मोछंग/मोरछंग –
- मोछंग लोहे की पतली शिराओं से बना एक छोटा सा वाद्ययंत्र है।
- मोछंग को होठों पर स्थिर रखकर अँगुलियों से बजाया जाता है।
- अँगुली के लगातार चलने से तथा मुख से आने वाली हवा से इस वाद्ययंत्र से काफ़ी मधुर स्वर निकलते हैं।
डफली –
- डफली उत्तराखंड अधिकतर बजाये जाना वाले वाद्ययंत्रो में से एक है।
- डफली का आकर थाली के सामान गोल होता है।
- डफली के उप्परी भाग में ड़ी (खाल) चढ़ी होती है।
- डफली के निचले भाग में फ्रेम में घुँघरू लगे होते है।
मशकबीन-
- मशकबीन उत्तराखंड में बजाये जाने वाले वाद्ययंत्रो में से एक है।
- वास्तव में मशकबीन एक यूरोपियन वाद्य यंत्र है।
- मशकबीन एक चमड़े की थैली होती है , जिसमे चार छेद होते है, इन छेदों से में से एक छेद निचे की तरफ होता है और बाकि छेद उप्पेर की तरफ होते है।
- निचे की तरफ के छेद से एक पाइप नीचे की ओर तथा तीन पाइप ऊपर की जोड़े जाते है।
- मशकबीन को बजाने के लिए एक पाइप और होता है जिसमे से हवा फुकी जाती है।
- मशकबीन को बजाने वाले पाइप में कोई छेद नहीं किया जाता, बाकि चारो पाइपों में छेद किये जाते हैं। जिनसे काफ़ी मधुर सुर निकलते है।
इकतारा –
- इकतारा भी उत्तराखंड के प्रमुख वाद्ययंत्रो में से एक है।
- इकतारा तानपुरे के समान होता है।
- इकतारा में केवल एक ही तार होता है
सारंगी –
- सारंगी एक बहुत मदुर सुर वाला वाद्ययंत्र है।
- सारंगी पेशेवर जातियों का प्रमुख संगीत वाद्ययंत्र है।
- सारंगी का उपयोग बाद्दी जाति , मिरासी जाति द्वारा नृत्य व गायन के लिए किया जाता है।
Note - बाद्दी जाति के लोग अपना जीवन यापन नृत्य व गायन द्वारा ही करते है।
अल्गोजा (बांसुरी) –
- मधुर सुरों वाला यह वाद्ययंत्र उत्तराखंड के लोकगीतों जैसे खुदेड़ अथवा झुमैला गीतों के साथ बांसुरी को बजाया जाता है।
- बांसुरी को बांस या मोटे रिंगाल से बनाया जाता है।
तुरही, रणसिंघा और भंकोर –
- तुरही, रणसिंघा और भंकोर यह तीनों वाद्य यंत्र लगभग एक-दूसरे से मिलते जुलते हैं।
- प्राचीन काल में तुरही, रणसिंघा और भंकोर का प्रयोग युद्ध का ऐलान व् विश्राम के लिए किया जाता था।
- तुरही, रणसिंघा और भंकोर तीनों वाद्य यंत्र तांबे से बने होते है।
- तीनों वाद्य यंत्र एक नाल के रूप में होते है, जो मुख की ओर संकरा दूसरी ओर चौड़ा होता है।