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कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह (COMPANY HAVILDAR MAJOR PIRU SINGH)

  • मूल नाम- पीरू सिंह
  • पिता – लाल सिंह
  • जन्म- 20 मई 1918
  • उपाधि – कंपनी हवलदार मेजर
  • देहांत – 18 जुलाई 1948 (उम्र 30)

कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह का जीवन परिचय-

20 मई 1918 को राजस्थान के झुंझुनू जिले के बेरी गांव में पीरु सिंह का जन्म हुआ था।पिता लाल सिंह एक किसान थे।पीरु सिंह सात भाई-बहन थे।ये तीन भाई और चार बहने थी,जिसमे सबसे छोटे पीरु सिंह हि थे।बचपन से ही पीरु सिंह का मन पढाई में नहीं लगता था।सात साल की उम्र में पीरु सिंह का विद्यालय में दाखिला दिलाया गया।एक बार उनका अपने एक सहपाठी के साथ झगड़ा हो गया था,जिससे अध्यापक ने उन्हें फटकार लगायी और पीरु सिंह को गुस्सा आ गया जिससे उन्होंने अपनी स्लेट वही फेक दी और घर को भाग आये।उसके बाद उन्होंने कभी भी स्कूल की तरफ़ देखा भी नहीं।स्कूल छोड़ के आने के बाद उनके पिता ने उन्हें खेतों के काम में लगा दिया।जिसे वह बड़े शौक के साथ करते थे।इसके साथ हि उन्हें शिकार करने का बड़ा शौक था।इसी शौक के कारण वह कई बार घायल भी हुए थे।

कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह की पहली पोस्टिंग-

बचपन से ही खेल-कूद और शिकार करने के शौक़ीन रहे पीरु सिंह जैसे-जैसे बड़े हुए वैसे-वैसे फ़ौज और फौजियों से कफी प्रभावित हुए थे।जिससे आगे चल कर ये फ़ौज में भर्ती हुए थे।20 मई 1936 में पीरु सिंह का फ़ौज में चयन हो गया।पहले उन्हें 1 पंजाब रेजिमेंट की 10वीं बटालियन में भेजा गया।ट्रेनिंग पूरी होने के बाद 1मई 1937 को पीरु सिंह को उसी रेजिमेंट की 5वीं बटालियन में तैनात किया गया।बचपन से ही शिक्षा से नफरत करने वाले पीरु सिंह ने फ़ौज में भर्ती होने के बाद शिक्षा को बहुत गंभीरता से लिया और शिक्षा प्रमाण पत्र प्राप्त किया।प्रमाण पत्र प्राप्त  करने के बाद उन्होंने कुछ और परीक्षाओं को उत्तीर्ण करा,जिसके बाद 7 अगस्त 1940 को उन्हें लांस नायक के पद पर पदोन्नत किया गया था।मार्च 1941 में उन्हें लांस नायक से नायक पद पर पदोन्नत किया गया। इसी के साथ उन्हें सितम्बर में पंजाब रेजिमेंटल सेंटर झेलम में  एक प्रशिक्षक के तौर में तैनात किया गया था।फरवरी 1942 में उन्हें हवलदार पद पर पदोन्नत किया गया था।

पीरु सिंह एक बहुत अच्छे खिलाड़ी भी थे।पीरु सिंह ने राष्ट्रीय स्तर और अंतर रेजिमेंटल की चैंपियनशिप में बास्केटबॉल, हॉकी और क्रॉस कंट्री दौड़ में अपनी रेजिमेंट का प्रतिनिधित्व किया था।मई 1945 में पीरु सिंह को हवलदार से कंपनी हवलदार मेजर बना दिया गया था। द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने बाद पीरु सिंह को ब्रिटिश कॉमनवेल्थ ऑक्यूपेशन फ़ोर्सकी तरफ से जापान भेजा गया था।इन सबके बाद पीरु सिंह को राजपूताना राइफल्स की छठी बटालियन में भेज दिया गया।

भारत-पाकिस्तान युद्ध-

भारत-पकिस्तान दोनों देशों की आज़ादी के बाद यह पहला युद्ध था।जिसके लिए 18 जुलाई 1948 को 6 राजपूताना राइफल्स के कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह को जम्मू कश्मीर भेजा गया था।उन्हें जम्मू कश्मीर के तिथवाल में एक पहाड़ी को अपने कब्ज़े में करने का कार्य सौपा गया था।जिस पर दुश्मनों ने अपना कब्ज़ा कर रखा था।पीरु सिंह ने जम्मू कश्मीर पहुचते ही कार्य करना शुरू कर दिया था।हमला करने के दुआरान पीरु सिंह पर एम एम जी और हथगोले से हमला किया गया।उनकी टुकड़ी के अधिकतर जवान शहीद तथा घायल हो चुके थे।पीरु सिंह ने अब बाकी बचे हुए साथियों के साथ लड़ने का फैसला किया।घायल होने के बाद भी वो लगातार जवानों प्रेरित करते रहे तथा उनका हौसला बढ़ाते रहे।कुछ समय पश्चात पूरी टुकड़ी में अब केवल पीरु सिंह ही जीवित बचे हुए थे।दुसमन लगातार गोलिया और बम फेकने में था,जिसकी परवाह न करते हुए  पीरु सिंह आगे बढ़ते रहे और दुसमन अब वो दुश्मन के बहुत करीब पहुँच चुके थे।इसी बीच दुसमन की तरफ़ से आया एक बम से पीरु सिंह लहुलुहान हो गये और रेंगते हुए आगे बढ़े ,लेकिन इसके बाद भी वो आगे बढ़ते रहे और दुश्मनों का खात्मा करते रहे और अपनी अंतिम साँस तक लड़ते रहे।

परमवीर चक्र-

कंपनी हवलदार मेजर  पीरु सिंह की उत्कृष्ट वीरता और अदम्य शौर्य तथा उनके सर्वोच्च बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया।

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