चौरी-चौरा कांड आजादी के आंदोलन का एक गुमनाम चेहरा है जिसे इतिहास के पन्नों में कोई जगह नहीं दी गई है। यह वही आंदोलन है जिसे महात्मा गांधी ने चौरी-चौरा का अपराध करार कर दिया गया। इतिहासकारों का मानना है कि महात्मा गांधी ने चौरी-चौरा कांड के कारण ही अपना असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था।
चौरी-चौरा कांड में शामिल सबूतों ने ब्रिटिश हुकूमत को हिला कर रख दिया था। 4 फ़रवरी 1922 को चौरी चौरा का कांड हुआ था। चौरी चौरा उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में एक गांव है जो ब्रिटिश शासन काल में कपड़ों और अन्य वस्तुओं की बड़ी मंडी हुआ करता था। अंग्रेजी शासन के टाइम महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की थी।जिसका उद्देश्य अंग्रेजी शासन का विरोध करना था।
इस आंदोलन के दौरान देशवासी ब्रिटिश उत्पादों, सरकारी स्कूल को त्याग कर स्वदेशी वस्तुएं अपना रहे थे। और वहां के स्थानीय बाजार में भी भयंकर विरोध हो रहा था। इन विरोध प्रदर्शनों के चलते 2 फरवरी 1922 को पुलिस ने 2 क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया था। गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए करीब 11,000 आंदोलनकारियों ने थाने के सामने ब्रिटिश शासन के खिलाफ प्रदर्शन और नारेबाजी की।
इस प्रदर्शन को रोकने के लिए पुलिस ने हवाई फायरिंग की और जब प्रदर्शनकारी नहीं माने तो पुलिस ने उन लोगों पर ओपन फायर किया । जिसके कारण 3 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए। इसी दौरान पुलिस कर्मियों की गोलियां खत्म हो गई और प्रदर्शनकारियों को उग्र होता हुआ देख सभी पुलिसकर्मी थाने में ही छुप गए। अपने साथी क्रांतिकारियों की मौत से आक्रोशित क्रांतिकारियों ने थाना घेरकर उसमें आग लगा दी।
इस घटना में कुल 23 पुलिसकर्मियों की जलकर मृत्यु हो गई। जिसमे थानेदार गुप्तेश्वर सिंह, उप निरिक्षक सशस्त्र पुलिस बल पृथ्वी पाल सिंह, हेड कांस्टेबल वशीर खां, कपिलदेव सिंह, लखई सिंह, रघुवीर सिंह, विषेशर राम यादव, मुहम्मद अली, हसन खां, गदाबख्श खां, जमा खां, मगरू चौबे, रामबली पाण्डेय, कपिल देव, इन्द्रासन सिंह, रामलखन सिंह, मर्दाना खां, जगदेव सिंह, जगई सिंह, और उस दिन वेतन लेने थाने पर आए चौकीदार बजीर, घिंसई,जथई व कतवारू राम की मौत हुई थी।
यह घटना जब महात्मा गांधी को पता चली तो उन्होंने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। 9 जनवरी 1923 के दिन चौरी-चौरा कांड के लिए 172 लोग को आरोपी बनाया गया और फांसी की सजा सुनाई गई। इस्लामाबाद (प्रयागराज) हाईकोर्ट मे पीआईएल दायर की गई थी। इस चौरी-चौरा कांड में क्रांतिकारियों की ओर से मुकदमा पंडित मदन मोहन मालवीय नहीं लड़ा था। जिसके बाद 19 मुख्य आरोपी अब्दुल्ला, भगवान, विक्रम, दुदही, काली चरण, लाल मुहम्मद, लौटी, मादेव, मेघू अली, नजर अली, रघुवीर, रामलगन, रामरूप, रूदाली, सहदेव, सम्पत पुत्र मोहन, संपत, श्याम सुंदर व सीताराम को इस घटना के लिए फांसी दे दी गई थी।
बाकी लोगों को सबूतों के अभाव के चलते छोड़ दिया गया था। इतिहास मानते हैं कि गुप्तेश्वर सिंह ने 1 फरवरी को भगवान को लाठियों से पीटा ना होता तो तो शायद 4 फरवरी की भयानक आग लगती नहीं और ना ही गुप्तेश्वर सिंह अपने 23 साथियों के साथ मरते और ना भगवान समेत 19 लोगों को फांसी पर चढ़ा दिया जाता।
महात्मा गांधी चौरी-चौरा कांड से बहुत नाराज थे। जिसके कारण उन्होंने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था। महात्मा गांधी इसी चौरी-चौरा कांड की वजह से राम प्रसाद बिस्मिल और उनके नौजवान साथियों से नाराज थे। इसके कारण कांग्रेस दो विचारधाराओं में विभाजित हो गई थी। एक था नरम दल और दूसरा था गरम दल।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, रामप्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद जैसे कई क्रांतिकारी गरम दल के नायक बने। लेकिन ये हमारे लिए दुर्भाग्य का विषय था की चौरी चौरा थाने में 23 पुलिस वालों की याद में तो पार्क बनाया गया मगर इन शहीदों की याद में लंबे समय तक कोई स्मारक नहीं था। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने चौरी चौरा घटना के 60 साल बाद शहीद स्मारक भवन का 6 फरवरी 1982 को शिलान्यास किया था।