उत्तराखंड की बोक्सा जनजाति
Bhoksa or Buksa Tribes Of Uttarakhand
बोक्सा जनजाति की उत्पति-
- बुक्सा जनजाति के लोग स्वयं को पंवार राजपूत बताते है।
- इन्हें मराठों द्वारा भगाई गई लोगों का वंशज मानते है।
- कुछ इतिहासकारों इन्हें मराठाओं द्वारा भगाए गए लोगों का वंशज मानते है।
- चित्तौड़ पर मुगलों के आक्रमण के समय राजपूत स्त्रियां और उनके अनुचर भागकर यहां आने और उन्हीं के वंशज होने को मानते है।
- कुछ इतिहासकार के अनुसार जब मुगलों ने चितौड़गढ़ पर आक्रमण किया था तो उस समय राजपूत स्त्रियां और उनके अनुचर भागकर इस क्षेत्र में आ गये थे तथा इन्हें उन्हीं के वंशज होने को मानते है।
बोक्सा जनजाति का निवास-
- ऐसा माना जाता है की बोक्सा जनजाति के लोग सर्वप्रथम 16वीं शताब्दी में बनबसा(चम्पावत) में आये थे तथा यही बसे थे।।
- बोक्सा जनजाति के लोग उत्तराखंड राज्य के तराई-भाभर में स्थित इस क्षेत्रों में रहती है-
नैनीताल- रामनगर
उधमसिंह नगर- काशीपुर, बाजपुर,
देहरादून- डोईवाला, विकासनगर
पोड़ी- दुगड्डा - बोक्सा जनजाति के लोग इन विकासखंडों में लगभग 173 गांव में निवास करते है।
- बोक्सा जनजाति के लोगों की संख्या उत्तराखंड राज्य में सर्वाधिक उधमसिंह नगर के बाजपुर, काशीपुर, गदरपुर आदि स्थानों पर है।
- नैनीताल व उधमसिंह नगर के बोक्सा बहुल क्षेत्रों में इन लोगों को बुकसाड़ कहा जाता है।
बोक्सा जनजाति के लोगों की शारीरिक रचना-
- इन लोगों का कद और आँखे छोटी, पलके भारी, चेहरा चौड़ा, होंठ पतले एवं नाक चपटी होती है। इनके जबड़े मोटे और निकले हुए तथा दाढ़ी और मुछे घनी और बड़ी होती है।
- बोक्सा जनजाति के लोगों का कद व आंखे छोटी, पलके भारी, चेहरा चौड़ा, होंठ पतले, नाक चपटी होती है।
- बोक्सा जनजाति के लोगों के जबड़े मोटे और निकले हुए तथा दाढ़ी और मुछे घनी और बड़ी होती है।
बोक्सा जनजाति की भाषा –
- बोक्सा जनजाति के लोगों की अपनी कोई विशेष बोली नहीं है।
- बोक्सा जनजाति के लोग जिन स्थानों में निवास करते है वही की बोली का उपयोग करते है।
- भावरी , कुमयां, रच भैंसी बोली को बोक्सा जनजाति का कहा जाता है।
बोक्सा जनजाति का पहनावा –
- बोक्सा जनजाति के पुरुष धोती, कुर्ता, सदरी , पगड़ी पहनते है।
- बोक्सा जनजाति की महिलाएं लहंगा, चोली, ओढ़नी पहनती है।
बोक्सा जनजाति सामाजिक व्यवस्था –
- बोक्सा जनजाति में परिवार पितृसत्तात्मक होता है।
- बोक्सा जनजाति में प्राचीन समय से ही एक विवाह व बहु विवाह प्रथा प्रचलित थी परन्तु अब बोक्सा जनजाति बहु विवाह प्रथा समाप्त हो चुकी है।
- बोक्सा जनजाति में ज्यादातर संयुक्त और विस्तृत परिवार (extended family) पाए जाते है।
- बोक्सा जनजाति में कुछ केंद्रीय परिवार भी देखने को मिलते है।
- बोक्सा जनजाति में अब धीरे-धीरे इनका झुकाव केंद्रीय परिवार की ओर बढ़ता जा रहा है।
- बुक्सा जनजती के लोग गौत्र को बहुत उच्च मानते है।
- बोक्सा जनजाति में समान गोत्र के लोग आपस में विवाह नहीं कर सकते है।
- बुक्सा जनजती के गोत्र –
यदुवंशी
राजवंशी
पंवारवंशी
तनवार
परतजा
बोक्सा जनजाति का धर्म-
- बुक्सा जनजती के लोग हिन्दू धर्म को मानते हैं।
- बुक्सा जनजती के लोग महादेव, काली, दुर्गा, लक्ष्मी, राम, कृष्ण की पूजा करते है।
- ज्वाल्पादेवी, साकरिया देवता,हुल्का देवी, खेड़ी देवी बुक्सा जनजती के स्थानीय देवी देवता है , जनकी ये लोग पूजा करते है।
- काशीपुर की चामुंडा देवी इस क्षेत्र के बुक्सा जनजती की सबसे बड़ी देवी मानी जाती है।
- बुक्सा जनजती के लोग कल्पित आत्माओं (बुज्जा) की पूजा भी करते हैं।
बोक्सा जनजाति के त्योहार –
- बोक्सा जनजाति के प्रमुख त्योहार चैती, नोबी, होली, दीपावली, नवरात्रि आदि है।
- बोक्सा जनजाति में चैती एक महत्वपूर्ण त्यौहार तथा मेला है।
बोक्सा जनजाति की अर्थव्यवस्था –
- पहले बोक्सा जनजाति में आर्थिक जीवन जंगली लकड़ी, शहद, फल-फूल-कंद, जंगली जानवरों के शिकार व मछली पर आधारित था।
- समय के साथ आगे बढते हुए बोक्सा जनजाति अब कृषि, पशुपालन एवं दस्तकारी पर आधारित है।
बोक्सा जनजाति की राजनीतिक व्यवस्था –
- बोक्सा जनजाति में गांव में छोटी-मोटे विवादों से निपटारे के लिए एक समिति होती है। जिसका एक प्रधान होता है।
- बोक्सा जनजाति में गांव के प्रधान का स्तर सर्वोच्च होता है।